महराब जंग की जगह
  • शीर्षक: महराब जंग की जगह
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  • रिलीज की तारीख: 18:38:2 1-9-1403





महराब जंग की जगह
अगर इंसान दिन मे कई बार किसी ऐसी जगह पर जाये जिसका नाम ही मैदाने जंग हो, जहाँ पर शैतानों, शहवतो, ताग़ूतों, सरकशों और हवस से जंग होती हो तो इस ताबीर का इस्तेमाल एक फ़र्द या पूरे समाज की ज़िंदगी मे कितना ज़्यादा मोस्सिर होना चाहिए।

इस बात को नज़र अन्दाज़ करते हुए कि आज के ज़माने मे ग़लत रस्मो रिवाज की बिना पर इन महराबों को दुल्हन के कमरों से भी ज़्यादा सजाया जाने लगा है।इन ज़रो जवाहिर और फूल पत्तियों की नक़्क़ाशी ने तो मामले को बिल्कुल बदल दिया है। यानी महराब को शैतान के भागने की जगह के बजाए, उसके पंजे जमाने की जगह बना दिया जाता है।

एक दिन पैगम्बरे इस्लाम (स.) ने हज़रत ज़हरा सलामुल्लाह अलैह से फ़रमाया कि इस पर्दे को मेरी नज़रो के सामने से हटा दो। क्योंकि इस पर बेल बूटे बने हैं जो नमाज़ की हालत मे मेरी तवज्जुह को अपनी तरफ़ खीँच सकते हैं।

लेकिन आज हम महराब को संगे मरमर और नक़्क़ाशी से सजाने के लिए एक बड़ी रक़म खर्च करते हैं। पता नही कि हम मज़हबी रसूम और मेमारी के हुनर के नाम पर असल इस्लाम से क्यों दूर होते जा रहे हैं? इस्लाम को जितनी ज़्यादा गहराई के साथ बग़ैर किसी तसन्नो के पहचनवाया जायेगा उतना ही ज़यादा कारगर साबित होगा