नमाज़ और दुआ
नमाज़ और दुआ
क़ुनूत मे पढ़ी जाने वाली दुआओं के अलावा हर नमाज़ी अपनी नमाज़ के दौरान एहदिनस्सिरातल मुस्तक़ीम कह कर अल्लाह से बेहतरीन नेअमत “हिदायत” के लिए दुआ करता है। रिवायात मे नमाज़ से पहले और बाद मे पढ़ी जाने वाली दुआऐं मौजूद हैं जिनका पढ़ना मुस्तहब है। बहर हाल जो नमाज़ पढ़ता वह दुआऐं भी करता है।
अलबत्ता दुआ करने के भी कुछ आदाब हैं। जैसे पहले अल्लाह की तारीफ़ करे फिर उसकी मखसूस नेअमतों जैसे माअरिफ़त, इस्लाम, अक़्ल, इल्म, विलायत, क़ुरआन, आज़ादी व फ़हम वगैरह का शुक्र करते हुए मुहम्मद वा आलि मुहम्मद पर सलवात पढ़े। इसके बाद किसी पर ज़ाहिर किये बग़ैर अपने गुनाहों की तरफ़ मुतवज्जेह हो कर अल्लाह से उनके लिए माफ़ी माँगे और फिर सलवात पढ़कर दुआ करे। मगर ध्यान रहे कि पहले तमाम लोगों के लिए अपने वालदैन के लिए और उन लोगों के लिए जिनका हक़ हमार