नमाज़ियों के दर्जात
  • शीर्षक: नमाज़ियों के दर्जात
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  • रिलीज की तारीख: 19:48:39 1-9-1403





नमाज़ियों के दर्जात

(अ) कुछ लोग नमाज़ को खुशुअ (तवज्जुह) के साथ पढ़ते हैं।

जैसे कि क़ुरआने करीम ने सूरए मोमेनून की दूसरी आयत मे ज़िक्र किया है “कि वह खुशुअ के साथ नमाज़ पढ़ते हैं।” खुशुअ एक रूहानी और जिसमानी अदब है।

तफ़्सीरे साफ़ी मे है कि एक बार रसूले अकरम (स.) ने एक इंसान को देखा कि नमाज़ पढ़ते हुए अपनी दाढ़ी से खेल रहा है। आपने फ़रमाया कि अगर इसके पास खुशुअ होता तो कभी भी इस काम को अंजाम न देता।

तफ़्सीरे नमूना मे नक़ल किया गया है कि रसूले अकरम (स.) नमाज़ के वक़्त आसमान की तरफ़ निगाह करते थे और इस आयत

(मोमेनून की दूसरी आयत) के नाज़िल होने के बाद ज़मीन की तरफ़ देखने लगे।


(ब)
कुछ लोग नमाज़ की हिफ़ाज़त करते हैं।

जैसे कि सूरए अनआम की आयत न.92 और सूरए मआरिज की 34वी आयत मे इरशाद हुआ है। सूरए अनआम मे नमाज़ की हिफ़ाज़त को क़ियामत पर ईमान की निशानी बताया गया है।

(स) कुछ लोग नमाज़ के लिए सब कामों को छोड़ देते हैं।

जैसे कि सूरए नूर की 37वी आयत मे इरशाद हुआ है। अल्लाह के ज़िक्र मे ना तो तिजारत रुकावट है और ना ही वक़्ती खरीदो फ़रोख्त, वह लोग माल को ग़ुलाम समझते हैं अपना आक़ा नही।


(द) कुछ लोग नमाज़ के लिए खुशी खुशी जाते हैं।


(य) कुछ लोग नमाज़ के लिए अच्छा लिबास पहनते हैं ।

जैसे कि सूरए आराफ़ की 31वी आयत मे अल्लाह ने हुक्म दिया है “कि नमाज़ के वक़्त जीनत इख्तियार करो।”

नमाज़ के वक़्त ज़ीनत करना मस्जिद को पुररौनक़ बनाना है।

नमाज़ के वक़्त ज़ीनत करना नमाज़ का ऐहतिराम करना है।

नमाज़ के वक़्त ज़ीनत करना लोगों का ऐहतिराम करना है।

नमाज़ के वक़्त ज़ीनत करना वक़्फ़ और वाक़िफ़ दोनों का ऐहतिराम है। लेकिन इस आयत के आखिर मे यह भी कहा गया है कि इसराफ़ से भी मना किया गया है।


(र) कुछ लोग नमाज़ से दायमी इश्क़ रखते हैं।

जैसे कि सूरए मआरिज की 23वी आयत मे इरशाद हुआ है कि “अल्लज़ीना हुम अला सलातिहिम दाइमून।”“वह लोग अपनी नमाज़ को पाबन्दी से पढ़ते हैं।” हज़रत इमाम बाक़िर अलैहिस्सलाम ने फ़रमाया कि यहाँ पर मुस्तहब नमाज़ों की पाबंदी मुराद है। लेकिन इसी सूरेह मे यह जो कहा गया है कि वह लोग अपनी नमाज़ों की हिफ़ाज़त करते हैं। यहाँ पर वाजिब नमाज़ों की हिफ़ाज़त मुराद है जो तमाम शर्तों के साथ अदा की जाती हैं।


(ल) कुछ लोग नमाज़ के लिए सहर के वक़्त बेदार हो जाते हैं।

जैसे कि सूरए इस्रा की 79वी आयत मे इरशाद होता है कि “फ़तहज्जद बिहि नाफ़िलतन लका” लफ़्ज़े जहूद के मअना सोने के है। लेकिन लफ़्ज़े तहज्जद के मअना नींद से बेदार होने के हैँ।

इस आयत मे पैग़म्बरे अकरम (स.) से ख़िताब है कि रात के एक हिस्से मे बेदार होकर क़ुरआन पढ़ा करो यह आपकी एक इज़ाफ़ी ज़िम्मेदारी है। मुफ़स्सेरीन ने लिखा है कि यह नमाज़े शब की तरफ़ इशारा है।


(व) कुछ ल