नमाज़ के लिए क़ुरआन का ब्यान
  • शीर्षक: नमाज़ के लिए क़ुरआन का ब्यान
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  • स्रोत:
  • रिलीज की तारीख: 20:17:55 1-9-1403






नमाज़ के लिए क़ुरआन का ब्यान


नमाज़ के लिए क़ुरआन का अदबी अंदाज़े ब्यान
सूरए निसा की 161 वी आयत मे अल्लाह ने दानिशमंदो, मोमिनों, नमाज़ियों और ज़कात देने वालोंकी जज़ा(बदला) का ज़िक्र किया है। लेकिन नमाज़ियों की जज़ा का ऐलान करते हुए एक मखसूस अंदाज़ को इख्तियार किया है।

दानिशमंदों के लिए कहा कि “अर्रासिखूना फ़िल इल्म

मोमेनीन के लिए कहा कि “अलमोमेनूना बिल्लाह

ज़कात देने वालों के लिए कहा कि “अलमोतूना अज़्ज़कात

नमाज़ियों के बारे मे कहा कि “अलमुक़ीमीना अस्सलात

अगर आप ऊपर के चारों जुमलों पर नज़र करेंगे तो देखेंगे कि नमाज़ियों के लिए एक खास अंदाज़ अपनाया गया है। जो मोमेनीन, दानिशमंदो और ज़कात देने वालो के ज़िक्र मे नही मिलता। क्योंकि अर्रासिखूना, अलमोमेनूना, अल मोतूना के वज़न पर नमाज़ी लोगों का ज़िक्र करते हुए अल मुक़ीमूना भी कहा जा सकता था। मगर अल्लाह ने इस अंदाज़ को इख्तियार नही किया। जो अंदाज़ नमज़ियों के लिए अपनाया गया है अर्बी ज़बान मे इस अंदाज़ को अपनाने से यह मअना हासिल होते हैं कि मैं नमाज़ पर खास तवज्जुह रखता हूँ।

सूरए अनआम की 162वी आयत मे इरशाद होता है कि “अन्ना सलाती व नुसुकी” यहाँ पर सलात और नुसुक दो लफ़ज़ों को इस्तेमाल किया गया है। जबकि लफ़ज़े नुसक के मअना इबादत है और नमाज़ भी इबादत है। लिहाज़ा नुसुक कह देना काफ़ी था। मगर यहाँ पर नुसुक से पहले सलात




नमाज़ के लिए क़ुरआन का ब्यान


नमाज़ के लिए क़ुरआन का अदबी अंदाज़े ब्यान
सूरए निसा की 161 वी आयत मे अल्लाह ने दानिशमंदो, मोमिनों, नमाज़ियों और ज़कात देने वालोंकी जज़ा(बदला) का ज़िक्र किया है। लेकिन नमाज़ियों की जज़ा का ऐलान करते हुए एक मखसूस अंदाज़ को इख्तियार किया है।

दानिशमंदों के लिए कहा कि “अर्रासिखूना फ़िल इल्म

मोमेनीन के लिए कहा कि “अलमोमेनूना बिल्लाह

ज़कात देने वालों के लिए कहा कि “अलमोतूना अज़्ज़कात

नमाज़ियों के बारे मे कहा कि “अलमुक़ीमीना अस्सलात

अगर आप ऊपर के चारों जुमलों पर नज़र करेंगे तो देखेंगे कि नमाज़ियों के लिए एक खास अंदाज़ अपनाया गया है। जो मोमेनीन, दानिशमंदो और ज़कात देने वालो के ज़िक्र मे नही मिलता। क्योंकि अर्रासिखूना, अलमोमेनूना, अल मोतूना के वज़न पर नमाज़ी लोगों का ज़िक्र करते हुए अल मुक़ीमूना भी कहा जा सकता था। मगर अल्लाह ने इस अंदाज़ को इख्तियार नही किया। जो अंदाज़ नमज़ियों के लिए अपनाया गया है अर्बी ज़बान मे इस अंदाज़ को अपनाने से यह मअना हासिल होते हैं कि मैं नमाज़ पर खास तवज्जुह रखता हूँ।

सूरए अनआम की 162वी आयत मे इरशाद होता है कि “अन्ना सलाती व नुसुकी” यहाँ पर सलात और नुसुक दो लफ़ज़ों को इस्तेमाल किया गया है। जबकि लफ़ज़े नुसक के मअना इबादत है और नमाज़ भी इबादत है। लिहाज़ा नुसुक कह देना काफ़ी था। मगर यहाँ पर नुसुक से पहले सलात