नमाज़ और लिबास
  • शीर्षक: नमाज़ और लिबास
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  • रिलीज की तारीख: 20:26:14 1-9-1403





नमाज़ और लिबास


रिवायात मे मिलता है कि आइम्मा-ए-मासूमीन अलैहिमुस्सलाम नमाज़ का लिबास अलग रखते थे। और अल्लाह की खिदमत मे शरफ़याब होने के लिए खास तौर पर ईद व जुमे की नमाज़ के वक़्त खास लिबास पहनते थे। बारिश के लिए पढ़ी जाने वाली नमाज़ (नमाज़े इस्तसक़ा) के लिए ताकीद की गयी है कि इमामे जमाअत को चाहिए कि वह अपने लिबास को उलट कर पहने और एक कपड़ा अपने काँधे पर डाले ताकि खकसारी व बेकसी ज़ाहिर हो। इन ताकीदों से मालूम होता है कि नमाज़ के कुछ मखसूस आदाब हैं। और सिर्फ़ नमाज़ के लिए ही नही बल्कि तमाम मुक़द्दस अहकाम के लिए अपने खास अहकाम हैं।

हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम को भी तौरात की आयात हासिल करने के लिए चालीस दिन तक कोहे तूर पर मुनाजात के साथ मखसूस आमाल अंजाम देने पड़े।

नमाज़ इंसान की मानवी मेराज़ है। और इस के लिए इंसान का हर पहलू से तैयार होना ज़रूरी है। नमाज़ की अहमियत का अंदाज़ा नमाज़ के आदाब, शराइत और अहकाम से लगाया जासकता है।

इमाम रिज़ा अलैहिस्सलाम ने अपना वह लिबास जिसमे आपने दस लाख रकत नमाज़े पढ़ी थी देबल नाम के शाइर को तोहफ़े मे दिया। क़ुम शहर के रहने वाले कुछ लो