नमाज़े मय्यत की मुस्तहब चीज़े
  • शीर्षक: नमाज़े मय्यत की मुस्तहब चीज़े
  • लेखक: आयतुल्लाह सीसतानी साहब
  • स्रोत:
  • रिलीज की तारीख: 18:49:28 1-9-1403

नमाज़े मैयित में कुछ चीज़ें मुस्तहब है।


1. नमाज़े मैयित पढ़ने वाले को वुज़ू, ग़ुस्ल या तयम्मुम करना चाहिए और एहतियात यह है कि तयम्मुम उस वक़्त करना चाहिए जब वुज़ू या ग़ुस्ल करना मुमकिन न हो, या यह डर हो कि अगर वुज़ू या ग़ुस्ल किया तो नमाज़ में शरीक न हो सकेगा।


2. अगर मैयित मर्द की हो तो इमाम या तन्हा नमाज़ पढ़ने वाले को मैयित के शिकम (पेट) के सामने खड़ा होना चाहिए और अगर मैयित औरत की हो तो उसके सीने के सामने खड़ा होना चाहिए।


3. नमाज़ नंगे पैर पढ़नी चाहिए।


4. हर तकबीर कहते वक़्त हाथों को उठाना चाहिए।


5. नमाज़ पढ़ने वाले और मैयित के बीच इतना कम फ़ासला होना चाहिए कि अगर हवा चले तो नमाज़ पढ़ने वाले का लिबास मैयित से छू जाये।


6. नमाज़े मैयित जमाअत के साथ पढ़ी जाये।

7. इमामे जमाअत तकबीरें और दुआएं ऊँची आवाज़ से पढ़े और मुक़तदी लोग उनको आहिस्ता आहिस्ता पढ़ें।


8. अगर नमाज़ जमाअत के साथ पढ़ी जा रही हो तो चाहे मुक़तदी एक ही इंसान हो उसे इमाम के पीछे खड़ा होना चाहिए।


9. नमाज़ पढ़ने वाले को मैयित और मोमेनीन के लिए बहुत ज़्यादा दुआएं करनी चाहिए।


10. अगर नमाज़ जमाअत से पढ़ना चाहें तो नमाज़ से पहले तीन बार अस्सलात कहें।


11. नमाज़े मैयित ऐसी जगह पर पढ़नी चाहिए, जहाँ ज़्यादा से ज़्यादा लोग शरीक हो सकते हों।


12. अगर कोई हाइज़ औरत नमाज़े जनाज़ा पढ़ना चाहे तो उसे नमाज़ियों की सफ़ों में खड़ा नही होना चाहिए, बल्कि तन्हा खड़ा होना चाहिए।


619. नमाज़े मैयित मस्जिदों में पढ़ना मकरूह है, लेकिन मस्जिदुल हराम में पढ़ना मकरूह नही है।

 

दफ़्न के अहकाम


620. मैयित को ज़मीन में इस तरह दफ़्न करना वाजिब है कि उसकी बू बाहर न आये और दरिन्दे उसका बदन बाहर न निकाल सकें। अगर ख़तरा हो कि दरिन्दें बदन को निकाले ले जायेंगे तो क़ब्र को ईंटो से पक्का कर देना चाहिए।


621. अगर मैयित को दफ़्न करना मुमकिन न हो तो उसे किसी कमरे या ताबूत में रखा जा सकता है।


622. मैयित को क़ब्र में दाहिनी करवट से इस तरह लिटाना चाहिए कि उसका सामने का हिस्सा क़िबला रुख़ हो।


623. अगर कोई इंसान पानी के जहाज़ में मर जाये और उसकी मैयित के खराब होने का ख़तरा न हो और उसे जहाज़ में रखने में भी कोई रुकावट न हो तो खुश्की में पहुँच कर उसे ज़मीन में दफ़्न करना चाहिए। अगर यह मुमकिन न हो तो ग़ुस्ल, हनूत, कफ़न और नमाज़ के बाद उसे एक चटाई में लपेट कर और चटाई का मुँह बंद करके उसे समुन्द्र में डाल देना चाहिए। या कोई भारी चीज़ उसके पैरों में बाँध कर उसे पानी में छोड़ देना चाहिए। जहाँ तक मुमकिन हो उसे ऐसी जगह डालना चाहिए जहाँ वह फ़ौरन जानवरों का लुक़मा न बन सके।


624. अगर दुश्मन के ज़रिये क़ब्र खोदे जाने और मैयित को बाहर निकाल कर उसके नाक, कान या दूसरे अंग काटे जाने का ख़तरा हो तो इस सूरत में अगर मुमकिन हो तो मसला न. 623 में बयान किये गये तरीक़े के मुताबिक़ मैयित को समुन्द्र में डाल देना चाहिए।


625. अगर मैयित को समुन्द्र में डालना या उसकी क़ब्र को पक्का करना ज़रूरी हो तो उसके ख़र्च को मैयित के अस्ल माल से ले सकते हैं।


626. अगर कोई काफ़िर औरत मर जाये और उसके पेट में मरा हुआ बच्चा हो और उस बच्चे का बाप कोई मुसलमान हो तो उस औरत को क़ब्र में बाईं करवट से किबले की तरफ़ पीठ करके, इस तरह लिटाना चाहिए कि बच्चे का मुँह क़िबले की तरफ़ हो जाये। अगर पेट में मौजूद बच्चे के बदन में अभी जान न पड़ी हो तब भी एहतियाते मुस्तहब की बिना पर यही हुक्म है।


627. मुसलमानों को काफ़िरों के क़ब्रिस्तान में और काफ़िरों को मुसलमानों के क़ब्रिस्तान में दफ़्न करना जायज़ नही है।


628. मुसलमान को ऐसी जगह पर दफ़्न करना जायज़ नही है जहाँ पर उसकी बेहुरमती होती हो जैसे कूड़ा व गंदगी फेंके जानी वाली जगह।


629. मैयित को गस्बी व ऐसी ज़मीन में दफ़्न करना जायज़ नही है जो किसी दूसरे काम के लिए वक़्व की गई हो, जैसे मस्जिद वग़ैरा के लिए वक़्फ़ की गई ज़मीन।


630. किसी मैयित की क़ब्र खोद कर उसमें दूसरे मुर्दे को दफ़्न करना जायज़ नही है, लेकिन अगर क़ब्र इतनी पुरानी हो गई हो कि पहली मैयित का निशान बाक़ी न रहा हो तो दफ़्न कर सकते हैं।


631. मैयित के बदन से जो हिस्से जुदा हो गये हों, चाहे वह उसके बाल, नाख़ुन या दाँत ही हों, उन्हें उसके साथ दफ़्न कर देना चाहिए। अगर मैयित से जुदा हुए हिस्से मैयित को दफ़्न करने के बाद मिलें तो एहतियाते लाज़िम की बिना पर उन्हें किसी दूसरी जगह दफ़्न कर देना चाहिए। जो नाख़ुन या दाँत इंसान की ज़िंदगी में उससे जुदा हो जायें, उन्हें दफ़्न करना मुस्तहब है।


632. अगर कोई इंसान कुवें में डूब कर मर जाये और उसे बाहर निकालना मुमकिन न हो तो उस कुवें का मुँह बंद करके उसे ही उसकी क़ब्र क़रार देना चाहिए।


633. अगर कोई बच्चा माँ के पेट में मर जाये और उसका पेट में रहना माँ की ज़िंदगी के लिए खतरनाक हो तो उसे सबसे आसान तरीक़े से बाहर निकाल लेना चाहिए। अगर बच्चे को बाहर निकालने के लिए उसके टुकड़े टुकड़े करने पर मजबूर हों तो ऐसा करने में भी कोई हरज नही है। अगर उस औरत का शौहर अहले फ़न हो तो वह बच्चे को बाहर निकाले और अगर यह मुमकिन न हो तो कोई अहले फ़न औरत बच्चे को बाहर निकाले और अगर यह भी मुमकिन न हो तो कोई ऐसा महरम मर्द निकाले जो अहले फ़न हो और अगर यह भी मुमकिन न हो तो अहले फ़न नामहरम मर्द यह काम करे और अगर यह भी मुमकिन न हो तो फिर वह इंसान भी बच्चे को बाहर निकाल सकता है जो अहले फ़न न हो।


634. अगर माँ मर जाये और बच्चा उसके पेट में ज़िन्दा हो (अगरचे बच्चे के ज़िन्दा रहने की उम्मीद न भी हो तब भी) तो ज़रूरी है कि हर उस जगह को चाक किया जाये जो बच्चे की सलामती के लिए बेहतर हो और बच्चे को बाहर निकालने के बाद उस जगह को टाँके लगा देने चाहिए।


दफ़्न की मुस्तहब चीज़ें


635. मुस्तहब है कि मैयित से ताल्लुक़ रखने वाले लोग क़ब्र को एक दरमियाने क़द के इंसान के क़द के बराबर खोदें और मैयित को सबसे क़रीब से क़रीब क़ब्रिस्तान में दफ़्न करें। लेकिन अगर दूर वाला क़ब्रिस्तान किसी वजह से नज़दीक वाले क़ब्रिस्तान से बेहतर हो, मसलन उसमें नेक लोग दफ़्न हों या वहाँ फ़ातिहा पढ़ने के लिए ज़्यादा लोग जाते हों, तो उसमें ही दफ़्न करना चाहिए। मुस्तहब है कि जनाज़े को क़ब्र से कुछ गज़ की दूरी पर रखा जाये फिर तीन बार थोड़ी थोड़ी दूरी पर रख कर क़ब्र के पास ले जायें और चौथी बार क़ब्र में उतार दें। अगर मैयित मर्द की हो तो तीसरी बार ज़मीन पर इस तरह रखें कि मैयित का सर क़ब्र के निचले हिस्से की तरफ़ हो और चौथी बार उसे सर की तरफ़ से क़ब्र में दाख़िल करें। अगर मैयित औरत की हो तो तीसरी बार उसे क़ब्र पर क़िबले वाली तरफ़ रखें और करवट से क़ब्र में उतार दें और क़ब्र में उतारते वक़्त एक कपड़ा क़ब्र पर तान दें। मुस्तहब है कि जनाज़े को बहुत आराम के साथ ताबूत से निकाल कर क़ब्र में रखना चाहिए और दफ़्न करने से पहले व दफ़्न करते वक़्त की दुआओं को पढ़ते रहना चाहिए। मैयित के क़ब्र में रखने के बाद उसके कफ़न की गिराह खोल देनी चाहिए। उसका रुखसार ज़मीन पर रख कर उसके सर के नीचे मिट्टी का तकिया बना देना चाहिए और उसकी पीठ के पीछे ढेले रख देने चाहिए ताकि मैयित चित न हो सके। क़ब्र को बंद करने से पहले अपना दाहिना हाथ मैयित के दाहिने काँधे पर मारें और बाया हाथ मैयित के बाये कांधे पर रखें और उसके कानों के करीब मुँह ले जा कर तीन बार उसे हिलायें और कहे इस्मा इफ़हम या -----इब्ने----- ख़ाली जगह पर मैयित और उसके बाप का नाम लें। मसलन अगर उसका नाम मूसा और उसके बाप का नाम इमरान हो तो तीन बार कहें इस्मा इफ़हम या मूसा बिन इमरान इसके बाद कहें हल अन्ता अलल अहदिल्लज़ी फ़ारक़तना अलैहि मिनशहादति अन ला इलाहा इल्लल्लाहु वहदहु ला शरी-कलहु व अन्ना मुहम्मदन सल्लल्लाहु अलैहि व आलिहि अब्दुहु व रसूलुहु व सैय्यिदुन नबीयीना व ख़ातमुल मुर्सलीना व अन्ना अलीयन अमीरुल मोमेनीना व सैय्यिदुल वसीयीना व इमामु निफ़-तरज़ल्लाहु ताअतुहु अलल आलमीना व अन्नाल हसना वल हुसैना व अली इब्नुल हुसैन व मुहम्मद इब्ने अली व जाफ़र इब्ने मुहम्मद व मूसा इब्ने जाफ़र व अली इब्ने मूसा व मुहम्मद इब्ने अली व अली इब्ने मुहम्मद व हसन इब्ने अली वल क़ाइमल हुज्जतल महदी सलावातु अल्लाहि अलैहिम आइम्मतुल मोमेनीना व हुजा-जुल्लाहि अलल ख़लक़ि अजमीना व आइम्मतका आइम्मतु हुदन अबरारुन या -----इब्ने ----ख़ाली जगह पर मैयित और उसके बाप का नाम लें और फिर कहे इज़ा अताकल मलाकैनि रसूलैनि मिन इन्दल्लाहि तबारका व तआला व सआलका अन रब्बिक व अन नबीयिक व अन दीनिक व अन किताबिक व अन क़िबलतिक व अन आइम्मतिक फ़ला तख़फ़ व ला तहज़न व क़ुल फ़ी जवाबिहिमा अल्लाहु रब्बी व मुहम्मदुन सल्लल्लाहु अलैहि व आलिहि नबिय्यी वल इस्लामु दीनी वल क़ुरानु किताबी वल का-बतु क़िबलती व अमीरुल मोमेनीना अलीयुबनु इबितालिब इमामी वल हसनुबनु अलीयिनिल मुजतबा इमामी वल हुसैनुबनु अलीयि-निश शहीदु बिकर्बला इमामी व अलीयुन ज़ैनुल आबेदीन इमामी व मुहम्दुनल बाक़िर इमामी व जाफ़रु निस्सादिक़ इमामी व मूसल काज़िमु इमामी व अलीयु निर्रिज़ा इमामी व मुहम्दु निल जवाद इमामी व अलीयु निलहादी इमामी वल हसानुल अस्करी इमामी वल हुज्जतुल मुनतज़रु इमामी हाउलाए सलवातु अल्लाहि अलैहिम अजमईना आइम्मती व सादती व क़ादती व शुफ़ा-आई बिहिम अतवल्ला व मिन आदाइहिम अतबर्रु फ़िद दुनिया वल आख़िरति सुम्मा एलम या----इब्ने------ ख़ाली जगह पर मैयित और उसके बाप का नाम लें और कहे अन्नल्लाह तबारका व तआला नेअमर्रब्बु व अन्ना मुहम्दन सल्लल्लाहु अलैहि व आलिहि नेअमर्रसूलु व अन्ना अली-यबना इबि तालिब व औलादुहुल मासूमीनल आइम्मतल इसना अशर नेअमल आइम्मतु व अन्ना मा जाआ बिहि मुहम्मदुन सल्लल्लाहु अलैहि व आलिहि हक़्क़ुन व अन्नल मौता हक़्क़ुन व सुआला मुनकिरिन व नकीरिन फ़िल क़ब्रि हक़्क़ुन वल बअसा हक़्क़ुन वन्नुशूरा हक़्क़ुन वस्सिराता हक़्क़ुन वल मीज़ानी हक़्क़ुन व ततायुरल कुतुबि हक़्क़ुन व अन्नल जन्नता हक़्क़ुन वन्नारा हक़्क़ुन व अन्नस साअता आतियतुन ला रैबा फ़ीहा व अन्ना अल्लाह यबअसु मन फ़िल क़ुबूर। फिर कहे अफ़हिमता या-------ख़ाली जगह पर मैयित का नाम ले और कहे सब्बतका अल्लाहु बिल क़ौलिस साबिति हदाका अल्लाहु इला सिरातिन मुस्तक़ीमिन अर्रफ़ा अल्लाहु बैनका व बैना औलियाइक फ़ी मुस्तक़र्रिम मिन रह-मतिक। इसके बाद कहे अल्लाहुम्मा जाफ़िल अर्ज़ा अन जम्बैहि व अस-इद बिरूहिही इलैका व लक़्क़िहि मिनका बुरहानन अल्लाहुम्मा अफ़वका अफ़वक।


636. मैयित को क़ब्र में उतारने वाले के लिए मुस्तहब है कि वह सर और पैर बरैहना हो और मैयित की पायती की तरफ़ से क़ब्र से बाहर निकले और मैयित के अज़ीज़ व अक़ारिब के अलावा जो लोग मौजूद हों वह हाथ की पुश्त से क़ब्र पर मिट्टी डालें और इन्ना लिल्लाहि व इन्ना इलैहि राजिऊन, पढ़ें। अगर मैयित औरत की हो तो उसका महरम उसे क़ब्र में उतारे और अगर महरम न हो तो उसके अज़ीज़ व अक़रिब उसे क़ब्र में उतारें।


637. मुस्तहब है कि क़ब्र मुरब्बा (चकौर) या मुस्ततील (आयताकार) बनाई जाये और ज़मीन से चार ऊंगल ऊँची हो और उस पर कोई तख़्ती या निशानी लगा दी जाये ताकि पहचानने में कोई दुशवारी न हो और क़ब्र पर पानी छिड़क कर मौजूद लोग अपनी उंगलियाँ क़ब्र की मिट्टी में धसाँ कर सात बार सूरः ए इन्ना अनज़लना पढ़ें और मैयित की मग़फ़ेरत के लिए दुआ माँगे फिर यह पढ़े अल्लाहुम्मा जाफ़िल अर्ज़ा अन जम्बैहि व अस-इद बिरूहिही इलैका व लक़्क़िहि मिनका रिज़वानन व अस्किन क़बरहु मिन रहमतिका मा तुग़नीहि अन रहमति मन सिवाक।


638. जो लोग जनाज़े में शिरकत के लिए जमा हुए हों उनके चले जाने के बाद मैयित का वली या वह इंसान जिसे वली इजाज़त दे, मैयित को उन दुआओं की तिलक़ीन दे जो बताई गई हैं।


639. मुस्तहब है कि मैयित को दफ़्न करने के बाद मरने वाले के घर वालों को पुरसा दिया जाये, लेकिन अगर इतनी मुद्दत गुज़र चुकी हो कि पुरसा देने से उनका दुख ताज़ा हो जाये तो पुरसा नही देना चाहिए। मैयित के घर वालों के लिए तीन दिन तक खाना भेजना भी मुस्तहब है और उनके घर उनके साथ बैठ कर खाना मकरूह है।


640. मुस्तहब है कि इंसान अपने अज़ीज़ व अक़ारिब और मख़सूसन बेटे की मौत पर सब्र करे और जब भी मरने वाले की याद आये इन्ना लिलालाहि व इन्ना इलैहि राजिऊन कहे और मैयित के लिए क़ुरान पढ़े और माँ बाप की क़ब्रों पर जाकर अल्लाह से अपनी हाजत तलब करे और क़ब्र को पक्का कर दे ताकि जल्दी ख़राब न होने पाये।


641. एहतियात की बिना पर किसी की मौत पर भी यह जायज़ नही है कि इंसान अपने बदन व चेहरे को ज़ख़्मी करे या अपने बालों को नोचे, लेकिन सर और चेहरा पीटना बर बिनाए अक़वा जायज़ है।


642. बाप और भाई के अलावा किसी दूसरे की मौत पर गिरेबान चाक करना एहतियात की बिना पर जायज़ नही है। बल्कि एहतियाते मुस्तहब यह है कि बाप व भाई की मौत पर भी गिरेबान चाक न किया जाये।


643. अगर औरत मैयित के सोग में अपना चेहरा ज़ख़्मी करके ख़ून निकाल ले या बाल नोचे तो एहतियात की बिना पर वह एक गुलाम आज़ाद करे या दस फ़क़ीरों को खाना खिलाये या उन्हें कपड़ा पहनाये और अगर मर्द अपनी बीवी या औलाद के मरने पर अपना गिरेबान या लिबास फाड़े तो उसके लिए भी यही हुक्म है।


644. एहतियाते मुस्तहब यह है कि मैयित पर ऊँची आवाज़ से न रोया जाये।