772. मुस्तहब नमाज़े बहुत सी हैं जिन्हें नफ़ल कहते हैं और मुस्तहब नमाज़ों से रोज़ाआना के नफ़्लों की बहुत ज़्यादा ताकीद की गई है। यह नमाज़े रोज़े जुमा के अलावा चौंतीस रक्अत हैं। जिनमें से आठ रक्अत ज़ोहर की, आठ रक्अत अस्र की, चार रक्अत मग़रिब की, दो रक्अत इशा की, ग्यारा रक्अत नमाज़े शब (यानी तहज्जुद) की और दो रक्अत सुब्ह की होती हैं। और चूंकि एहतियाते वाजिब की बिना पर इशा की दो रक्अत नफ़ल बैठकर पढ़नी ज़रूरी है इस लिये वह एक रक्अत शुमार होती है। लेकिन जुमा के दिन ज़ोहर और अस्र की सोला रक्अत नफ़ल पर चार रक्अत का इज़ाफ़ा हो जाता है। और बेहतर है कि यह पूरी की पूरी बीस रक्अतें ज़वाल से पहले पढ़ी जायें।
773. नमाज़े शब की ग्यारा रक्अतों से आठ रक्अतें नाफ़िलाए शब की नीयत से और दो रक्अत नमाज़े शफ़अ की नीयत से और एक रक्अत नमाज़े वत्र की नीयत से पढ़नी ज़रूरी हैं और नाफ़िलए शब का मुकम्मल तरीक़ा दुआ की किताबों में मज़्कूर है।
774. नफ़ल नमाज़ें बैठकर भी पढ़ी जा सकती हैं लेकिन बाज़ फ़ुक़हा कहते हैं कि इस सूरत में बेहतर है कि बैठ कर पढ़ी जाने वाली नफ़ल नमाज़ की दो रक्अतों को एक रक्अत शुमार किया जाए मसलन जो शख़्स ज़ोहर की नफ़लें जिसकी आठ रक्अतें है बैठकर पढ़ना चाहे तो उसके लिये बेहतर है कि सोला रक्अतें पढ़े और अगर चाहे कि नमाज़े वित्र बैठकर पढ़े तो एक एक रक्अत की दो नमाज़ें पढ़े। ताहम इस काम का बेहतर होना मालूम नहीं है लेकिन रजा की नीयत से अंजाम दे तो कोई इश्काल नहीं है।
775. ज़ोहर और अस्र की नफ़्ली नमाज़ें सफ़र में नहीं पढ़नी चाहियें और अगर इशा की नफ़्लें रजा की नीयत से पढ़ी जाए तो कोई हरज नहीं है।