(म.न.79) हर शख़्स के लिए मुस्तहब है कि जब भी पेशाब पख़ाना करने के लिए जाये तो ऐसी जगह पर बैठे जहाँ उसे कोई देख न सके। और पख़ाने मे दाख़िल होते वक़्त पहले अपना बायाँ पैर अन्दर रखे और वहाँ से निकलते वक़्त पहले दाहिना पैर बाहर रखे और यह भी मुस्तहब है पेशाब पख़ाना करते वक़्त अपने सर को (टोपी ,दुपट्टे वग़ैरह) से ढक कर रखे और बदन का बोझ अपने बायेँ पैर पर रखे।
(म.न.80) सूरज चाँद की तरफ़ चेहरा कर के पेशाब पख़ाना करना मकरूह है। लेकिन अगर अपनी शर्म गाह को किसी चीज़ के ज़रिये ढक ले तो फिर मकरूह नही है। इसके अलावा हवा के रुख़ के मुक़ाबिल, गली कूचों में, घरों के दरवाज़ों के सामने और फलदार दरख़्तों के नीचे पेशाब पख़ाना करना मकरूह है। इसी तरह पेशाब पख़ाना करते वक़्त कोई चीज़ खाना, ज़्यादा देर तक बैठे रहना, दाहिने हाथ से पेशाब पख़ाने के मक़ाम को धोना और इस हालत में बाते करना भी मकरूह है लेकिन अगर कोई मजबूरी हो या ज़िक्रे ख़ुदा किया जाये तो कोई हरज नही है।
(म.न.81) खड़े हो कर पेशाब करना मकरूह है। और इसी तरह सख़्त ज़मीन पर,जानवरों के सुराख़ों पर और पानी में ख़ास तौर पर रुके हुए पानी में पेशाब करना भी मकरूह है।
(म.न.82) पेशाब और पख़ाने को रोकना मकरूह है और अगर बदन के लिए मुकम्मल तौर पर नुक़सान देह हो तो हराम है।
(म.न.83) नमाज़ से पहले ,सोने से पहले, जिमाअ (संभोग) से पहले और मनी (वीर्य) के निकल जाने के बाद पेशाब करना मुस्तहब है।