वुज़ू के सही होने की कुछ शर्तें हैं
पहली शर्त- वुज़ू का पानी पाक हो। एक क़ौल की बिना पर वुज़ू का पानी उन चीज़ो से आलूदा न हो जिनसे इंसान को घिन आती हो जैसे हलाल गोश्त जानवर का पेशाब, पाक मुरदार और ज़ख़्म का मवाद वग़ैरह। यह क़ौल एहतियात की बिना पर है वरना ऐसा पानी शरअन पाक है ।
दूसरी शर्त- पानी मुतलक़ (ख़ालिस) हो।
271 नजिस या मुज़ाफ़ पानी से वुज़ू करना बातिल है। चाहे वुज़ू करने वाला इंसान उसके नजिस या मुज़ाफ़ होने के बारे में न जानता हो। या भूल गया हो कि यह पानी नजिस या मुज़ाफ़ है। लिहाज़ा अगर वह ऐसे पानी से वुज़ू करके नमाज़ पढ़ चुका हो तो सही वुज़ू करके दोबारा नमाज़ पढ़ना ज़रूरी है।
272 *अगर एक इंसान के पास मिट्टी मिले हुए मुज़ाफ़ पानी के इलावा दूसरा पानी वुज़ू के लिए न हो और नमाज़ का वक़्त कम रह गया हो तो ज़रूरी है कि तयम्मुम करे। लेकिन अगर वक़्त काफ़ी हो तो ज़रूरी है कि पानी के साफ़ होने का इंतेज़ार करे या किसी तरह उस पानी को साफ़ करके वुज़ू करे।
*तीसरी शर्त –वुज़ू का पानी मुबाह हो।
273 *ग़स्बी या ऐसे पानी से वुज़ू करना जिसके बारे में वह यह न जानता हो कि उसका मालिक इसके इस्तेमाल पर राज़ी है या नही हराम व बातिल है। इसके इलावा अगर चेहरे व हाथों से वुज़ू का पानी ग़स्ब की हुई जगह पर गिरता हो या वह जगह जिस पर बैठ कर वुज़ू कर रहा हो ग़स्बी हो और वुज़ू करने के लिए कोई और जगह भी न हो तो ऐसी हालत में उस इंसान को तयम्मुम करना चाहिए। और अगर किसी दूसरी जगह वुज़ू कर सकता हो तो ज़रूरी है कि दूसरी जगह वुज़ू करे लेकिन अगर दोनो हालतों में इंसान गुनाह करते हुए उसी जगह वुज़ू करे तो उसका वुज़ू सही है।
274 *किसी मदरसे की ऐसी हौज़ से वुज़ू करने में कोई हरज नही है जिसके बारे में यह न जानता हो कि यह तमाम लोगों के लिए वक़फ़ है या सिर्फ़ मदरसे के तलबा के लिए जबकि लोग आम तौर पर उस हौज़ से वुज़ू करते हों और कोई उन्हें मना भी न करता हो।
275 अगर कोई इंसान एक मस्जिद में नमाज़ न पढ़ना चाहता हो और यह भी न जानता हो कि इस मस्जिद का हौज़ तमाम लोगों के लिए वक़फ़ है या सिर्फ़ उन लोगों के लिए जो इस मस्जिद में नमाज़ पढ़ते हैं तो उसके लिए इस हौज़ से वुज़ू करना सही नही है। लेकिन अगर आम तौर पर वह लोगभी इस हौज़ से वुज़ू करते हों जो इस मस्जिद में नमाज़ न पढ़ते हों और उन्हें कोई मना भी न करता हो तो वह इंसान भी उस हौज़ से वुज़ू कर सकता है।
276 मुसाफ़िर खानों वग़ैरह की हौज़ से उन लोगों का वुज़ू करना जो उनमें न रहते हों इस हालत में सही है जबकि आम तौर पर ऐसे लोग भी इस हौज़ से वुज़ू करते हों जो वहाँ न रहते हों और उनको कोई मना भी न करता हो।
277 बड़ी नहरों से वुज़ू करने में कोई हरज नही है। चाहे इंसान न जानता हो कि उनका मालिक राज़ी है या नही । लेकिन अगर उन नहरों का मालिक उनमें वुज़ू करने से मना करे या मालूम हो कि मालिक वुज़ू करने पर राज़ी नही है या मालिक नाबालिग़ या पागल हो तो एहतियाते मुस्तहब यह है कि उनसे वुज़ू न किया जाये।
278 अगर कोई इंसान यह भूल जाये कि पानी ग़स्बी है और उससे वुज़ू करले तो उसका वुज़ू सही है। लेकिन अगर कोई इंसान खुद पानी ग़स्ब करे और बाद में भूील जाये कि पानी ग़स्बी है और उस पानी से वुज़ू करे तो उसके वुज़ू के सही होने में इश्काल है।
चौथी शर्त –वुज़ू का बरतन मुबाह हो
पाँचवीँ शर्त –एहतियाते वाजिब की बिना पर बवुज़ू का बरतन सोने व चाँदी से न बना हो । इन दो शर्तों की तफ़सील आने वाले मसले में बयान की जा रही है।
279 अगर वुज़ू का पानी ग़स्बी या सोने व चाँदी के बरतन में हो और उस इंसान के पास इसके अलावा और कोई पानी न हो तो, अगर वह उस पानी को शरई तरीक़े से किसी दूसरे बरतन में पलट सकता हो तो उसके लिए ज़रूरी है कि उसे किसी दूसरे बरतन में पलटे और फिर उससे वुज़ू करे। लेकिन अगर ऐसा करना आसान न हो तो तयम्मुम करना ज़रूरी है। और अगर उसके पास उसके अलावा दूसरा पानी मौजूद हो तो ज़रूरी है कि उससे वुज़ू करे और अगर इन दोनो हालतों में वह सही तरीक़े पर अमल न करते हुए उस पानी से वुज़ू करे जो ग़स्बी या सोने व चाँदी के बरतन में है तो उसका वुज़ू सही है।
280 अगर किसी हौज़ में एक ईंट या पत्थर ग़सबी लगा हो और उर्फ़े आम में इस हौज़ से पानी निकालना इस ईँट या पत्थर पर तसर्रुफ़ न समझा जाता हो तो तो उस हौज़ से पानी निकालने में कोई हरज नही है । लेकिन अगर ऐसा करना उस पर तसर्रुफ़ समझा जाये तो हौज़ से पानी निकालना हराम है लेकिन उससे वुज़ू करना सही है।
281 अगर आइम्मा-ए- ताहेरीन या उनकी औलाद के मक़बरो के सहन में जो पहले क़ब्रिस्तचान था कोई नहर या हौज़ खोद दी जाये और यह इल्म न हो कि सहन की ज़मीन कब्रिस्तान के लिए वक़्फ़ हो चुकी है या नही तो इस हौज़ या नहर के पानी से वुज़ू करने में कोई हरज नही है।
छटी शर्त- बदन के वह हिस्से जिन पर वुज़ू किया जाता है वुज़ू के वक़्त पाक हों।
282 अगर वुज़ू पूरा होने से पहले वह हिस्सा नजिस हो जाये जिसे धोया या मस किया जा चुका हो तो वुज़ू सही है।
283 अगर वुज़ू के हिस्सों के इलावा बदनके दूसरे हिस्से नजिस हों तो वुज़ू सही है लेकिन अगर पेशाब व पख़ाने की जगह नजिस हो तो एहतियाते मुस्तहब यह है कि पहले उन्हें पाक किया जाये बाद में वुज़ू किया जाये।
284 अगर वुज़ू वाले हिस्सों में से बदन का कोई हिस्सा नजिस हो और वुज़ू करने के बाद शक हो कि वुज़ू से पहले इस नजिस हिस्से को पाक किया था या नही तो वुज़ू सही है लेकिन ुस हिस्से को पाक करना ज़रूरी है।
285 अगर किसी के चेहरे या हाथ पर कोई ऐसा ज़ख़्म हो जिससे बराबर खून बहता रहता हो और पानी उसके लिए नुक़्सान दे न हो तो ज़रूरी है कि उस हिस्से की सही व सालिम जगह को तरतीबवार धोने के बाद ज़ख़्म वाली जगह को कुर या जारी पानी में डुबाये और उसे इतना दबाये कि ख़ून बंद हो जाये और पानी के अन्दर ही ज़ख़्म पर अपनी उंगली रख कर ऊपर से नीचे की तरफ़ खीँचे ताकि उस ज़ख़्म पर पानी जारी हो जाये। इस हालत में उसका वुज़ू सही है।
सातवीं शर्त- वुज़ू करने और नमाज़ पढ़ने के लिए वक़्त काफ़ी हो।
286 अगर नमाज का वक़्त इतना कम रह गया हो कि अगर इंसान वुज़ू करे तो पूरी नमाज़ या नमाज़ का एक हिस्सा वक़्त के बाद पढ़ना पड़ेगा, तो इस हालत में तयम्मुम करना ज़रूरी है लेकिन अगर तयम्मुम और वुज़ू दोनों में बराबर वक़्त लगता हो तो फिर वुज़ू करना ही ज़रूरी है।
287 नमाज़ का वक़्त कम होने की वजह से अगर किसी इंसान के लिए तयम्मुम ज़रूरी हो और वह कुरबत की नियत से या किसी मुस्तहब काम को करने के लिए मसलन क़ुरआने मजीद पढ़नेम के लिए वुज़ू करे तो उसका वुज़ू सही है। लेकिन अगर इसी नमाज़ को पढ़ने के लिए वुज़ू करे तो तब भी वुज़ू सही है लेकिन उसे क़स्दे कुर्बत हासिल नही होगा।
आठवीँ शर्त- वुज़ू क़सदे कुर्बत यानी अल्लाह से क़रीब होने के लिए किया जाये। अगर अपने आपको ठंडक पहुँचाने या किसी और नियत से वुज़ू किया जाये तो बातिल है।
288 वुज़ू की नियत का ज़बान से अदा करना या दिल में दोहराना ज़रूरी नही है । बल्कि अगर एक इंसान वुज़ू के तमाम अफ़आल को अल्लाह के हुक्म पर अमल करने की ग़रज़ से बजा लाये तो काफ़ी है।
नवीँ शर्त– वुज़ू तरतीब से किया जाये यानी पहले चेहरा उसके बाद दायाँ हाथ और फिर बाया हाथ धोना चाहिए, इसके बाद सिर का और फिर पैरों का मसाह करना चाहिए और एहतियाते मुस्तहब यह है कि दोनों पैरों का मसाह एक साथ न किया जाये बल्कि पहले दाहिने पैर का मसाह करना चाहिए और बाद में बायेँ पैर का।
दसवीँ शर्त- वुज़ू में एक हिस्से को धोने के बाद बिला फ़ासला दूसरे हिस्से को धोया जाये।
289 अगर वुज़ू के अफ़ाल के बीच इतना फ़ासला हो जाये कि आम तौर पर उसे बिला फ़ासला धोना न कहा जाये तो वुज़ू बातिल है। लेकिन अगर किसी शख़्स को कोई उज़्र पेश आ जाये मसलन वह भूल जाये या पानी ख़त्म हो जाये तो फिर बिला फ़ासला धोने की शर्त मोतबर नही है। बल्कि वुज़ू करने वाला इंसान बाद के हिस्सों को फ़ासले के साथ भी धो सकता है । लेकिन अगर बाद वाला हिस्सा धोने या मसाह करने में इतना फ़ासला हो जाये कि पहले धोये हुए हिस्सों की तरी ख़ुश्क हो गई हो तो वुज़ू बातिल है।लेकिन अगर जिस हिस्से को धो रहा हो या मसाह कर रहा हो सिर्फ उससे पहले वाला हिस्सा खुश्क हुआ हो और बाक़ी हिस्से तर हो, मसलन बायाँ हाथ धोते वक़्त दाहिना हाथ ख़ुश्क हो गया हो लेकिन चेहरा तर हो तो इस हालत में वुज़ू सही है।
290 अगर कोई इंसान वुज़ू करते वक़्त वुज़ू के हिस्सों को में बिला फ़ासला धोये लेकिन गर्मी या बुख़ार की वजह से पहले धोये हुए हिस्सों की तरी ख़ुश्क हो जाये तो वुज़ू सही है।
291 वुज़ू के करते वक़्त चलने फिरने में कोई हरज नही है। लिहाज़ा अगर कोई इंसान चेहरे व हाथों को धोने के बाद चन्द क़दम चले और फिर सिर व पैरों का मसाह करे तो उसका वुज़ू सही है।
ग्यारहवीँ शर्त- इंसान अपने चेहरे व हाथों को ख़ुद धोये और फिर सिर व पैरों का मसाह करे। अगर कोई दूसरा इंसान उसे वुज़ू कराये या उसके चेहरे व हाथों पर पानी डालने या सिर व पैरों का मसाह करने में उसकी मदद करे तो उसका वुज़ू बातिल है।
292 अगर कोई इंसान ख़ुद वुज़ू न कर सकता हो तो दूसरे की मदद ले सकता है। लेकिन चेहरे व हाथों के धोने व सिर व पैर के मसेह में दोनों का शरीक होना ज़रूरी है। और अगर मदद करने वाला इंसान इस काम की उजरत माँगे और वह उसे अदा कर सकता हो और इसके अदा करने में उसे माली तौर पर नुक़्सान न हो तो उजरत का अदा करना ज़रूरी है। यह भी ज़रूरी है कि वुज़ू की नियत खुद करे और मसाह अपने हाथ से करे । और अगर दूसरे की सिरकत से भी ऐसा न कर सकता हो तो उसके लिए ज़रूरी है कि किसी दूसरे इंसान की मदद ले जो उसे वुज़ू कराये और इस हालत में एहतियाते वाजिब यह है कि दोनों वुज़ू की नियत करें। और अगर यह मुमकिन न हो तो ज़रूरी है कि उसका नाइब उसका हाथ पकड़ कर उसके मसेह की जगहों पर फेरे और अगर यह भी मुमकिन नो हो तो ज़रूरी है कि नाइब उसके हाथ से तरी ले कर उस तरी से उससे उसके सिर व पैरों का मसाह करे।
293 वुज़ू में ज़रूरी है कि जो काम इंसान ख़ुद कर सकता हो, उन्हे करने के लिए दूसरों की मदद न ले।
बारहवीँ शर्त- वुज़ू करने वाले के लिए पीनी नुक़्सान दे न हो।
294 जिस इंसान को यह डर हो कि अगर वुज़ू करेगा तो बीमार हो जायेगा या यह डर होकि अगर इस पानी से वुज़ू कर लिया गया तो बाद में प्यासा रह जायेगा, तो उसका फरीज़ा वुज़ू करना नही है। अगर वह जानता हो कि पीनी उसके लिए नुक़्सान दे है और वह वुज़ू करले और उसे वुज़ू करने से नुक़सान पहुँचे तो उसका वुज़ू बातिल है।
295 अगर चेहरे और हाथों को इतने कम पानी से धोना नुक़सान दे न हो जिस से वुज़ू सही हो जाये और इससे ज़्यादा पानी से धोना नुक़्सान दे हो तो कम पानी से वुज़ू करना ज़रूरी है।
तेरहवीँ शर्त- वुज़ू के हिस्सों पर कोई ऐसी चीज़ न लगी हो जो पानी पहुँचने में रुकावट हो।
296 अगर कोई इंसान यह जानता हो कि उसके वुज़ू वाले किसी हिस्से पर कोई चीज़ लगी हुई है , मगर उसे इस में शक हो कि यह चीज़ पानी के बदन तक पहुँचने में रुकावट है या नही तो ज़रूरी है कि या तो उस चीज़ को हटाये या फिर उसके नीचे तक पानी पहुँचाये।
297 अगर नाखुन के नीचे मैल जमा हो तो वुज़ू सही है लेकिन अगर नाख़ुन को काट दिया जाये और इस मैल की वजह से पानी खाल तक न पहुँच रहा हो तो इस मैल का साफ़ करना ज़रूरी है। अगर नाखुन मामूल से ज़्यादा बढ़ जाये तो बढ़े हुए हिस्से के नीचे मैल साफ करना ज़रूरी है।
298 अगर किसी इंसान के चेहरे ,हाथों , सिर के अगले हिस्से या पैरों के ऊपर वाले हिस्से पर जल जाने से या किसी और वजह से वरम(सूजन) हो जाये तो उसे धो लेना और उस पर मसाह कर लेना काफ़ी है और अगर उसमें सुराख़ हो जाये तो खाल के नीचे पानी पहुँचाना ज़रूरी नही है। बल्कि अगर खाल का एक हिस्सा उखड़ जाये और दूसरा हिस्सा बाक़ी रहे तो जो हिस्सा नही उखड़ा है उसके नीचे पानी पहुँचाना ज़रूरी नही है। लेकिन अगर खाल इस तरह उखड़ी हो कि कभी बदन से चिपक जाती हो और कभी अलग हो जाती हो तो इस हालत में ज़रूरी है कि या तो खाल के उस हिस्से को काट दिया जडाये या फिर उसके नीचे पानी पहुँचाया जाये।
299 अगर किसी इंसान को यह शक हो कि उसके बदन के वुज़ू वाले हिस्सों पर कोई चीज़ लगी हुई है या नही मसलन गारे का काम करने के बाद शक करे कि गारा इसके हाथ को लगा रह गया है या नही तो ज़रूरी है कि इसको सही से देखे या फिर इतना मले कि यक़ीन हो जाये कि अब इस पर गारा कहीँ बाक़ी नही रह गया है या पानी इसके नीचे पहुँच गया है।
300 वुज़ू के जिस हिस्से को धोना हो या मसाह करना हो अगर उस पर मैल हो और वह इतना कम हो कि पानी के खाल तक पहुँचने में रुकावट न हो तो कोई हरज नही है। इसी तरह अगर पलस्तर वग़ैरह का काम करने के बाद इतनी सफ़ेदी हाथ पर लगी रह जाये जो खाल तक पानी के पहुँचने में रुकावट न हो तो उसमें भी कोई हरज नही है। लेकिन अगर शक हो कि पानी बदन तक पहुँच रहा है या नही तो इस हालत में इन चीज़ों के बदन से हटाना ज़रूरी है।
301 अगर कोई इंसान वुज़ू करने से पहले यह जानता हो कि वुज़ू वाले हिस्सों पर कोई ऐसी चीज़ लगी है जो बदन तक पानी पहुँचने में रुकावट है और वुज़ू करने के बाद शक करे कि इन हिस्सों तक पानी पहुँचाया है या नही तो उसका वुज़ू सही है।
302 अगर वुज़ू वाले किसी हिस्से पर कोई ऐसी चीज़ लगी हो जिस के नीचे पानी कभी तो खुद चला जाता हो और कभी न जाता हो और इंसान वुज़ू के बाद शक करे कि पानी इसके नीचे पहुँचा या नही तो अगर वह जानता हो कि वुज़ू करते वक़्त वह इस चीज़ की तरफ़ मुतवज्जेह नही था तो एहतियाते मुस्तहब यह है कि दोबारा वुज़ू करे।
303 अगर कोई इंसान वुज़ू करने के बाद वुज़ू वाले किसी हिस्से पर कोई ऐसी चीज़ देखी जो बदन तक पानी के पहुँचने में रुकावट हो तो और उसे वह यह न जानता हो कि यह वुज़ू के वक़्त मौजूद थी या बाद में लगी है तो उसका वुज़ू सही है। लेकिन अगर वह यह न जानता हो कि वुज़ू के वक़्त वह इस चीज़ की तरफ़ मुतवज्जेह नही था तो एहतियाते मुस्तहब यह है कि वह दोबारा वुज़ू करे।
304 अगर किसी इंसान के वुज़ू के बाद शक हो कि जो चीज़ बदन तक पानी के पहुँचने में रुकावट है वुज़ू के हिस्से पर थी या नही तो उसका वुज़ू सही है।