वुज़ू का तरीक़ा
  • शीर्षक: वुज़ू का तरीक़ा
  • लेखक: हज़रत आयतुल्लाह सैय्यद अली सीसतानी साहब
  • स्रोत: al-shia.org
  • रिलीज की तारीख: 19:4:8 1-9-1403

242 वुज़ू में वाजिब है कि चेहरे व दोनों हाथो को धोया जाये और सिर के अगले हिस्से और दौनों पैरों के सामने वाले हिस्से का मसा किया जाये।


243 * चेहरे को लम्बाई में सिर के बाल उगने की जगह से ठोडी के आखिरी हिस्से तक और चौड़ाई में जितना हिस्सा बीच की उंगली और अंगूठे के बीच आजाये उसका धोना ज़रूरी है। अगर इस मिक़दार में से ज़रा भी हिस्सा धुले बिना रह जाये तो वुज़ू बातिल है। और अगर इंसान को यह यक़ीन न हो कि वाजिब हिस्सा पूरा धुल गया है तो यक़ीन करने के लिए थोड़ा अतराफ़ का हिस्सा भी धोना ज़रूरी है।


244 अगर किसी इंसान के हाथ या चेहरा आम लोगों से भिन्न हो तो उसे यह देखना चाहिए कि आम लोग वुज़ू में अपने चेहरे व हाथों को कहाँ तक धोते हैं और उसे भी उनकी तरह ही धोना चाहिए। इसके इलावा अगर किसी इंसानी के माथे पर बाल उगे हों या सिर के सामने के हिस्से पर बाल न हों तो उसे चाहिए कि अपने माथे को आम लोगों की तरह धोये।


245 अगर किसी इंसान को इस बात का एहतिमाल हो कि भवों, आँखों के कोनो और होंटो पर मैल या कोई दूसरी ऐसी चीज़ है जो इन तक पानी के पहुँचने में माने (बाधक) है और उसका यह एहतिमाल लोगों की नज़र में सही हो तो उसे वुज़ू से पहले तहक़ीक़ करनी चाहिए और अगर कोई ऐसी चीज़ मौजूद हो तो इसे हटा देना चाहिए।


246 अगर दाढ़ी के बालों के नीचे से चेहरे की खाल दिखाई देती हो तो खाल तक पानी पहुँचाना ज़रूरी है लेकिन अगर बालों के नीचे से खाल न दिखाई देती हो तो बालों का धो लेना काफ़ी है।


247 अगर किसी इंसान को शक हो कि उसके चेहरे की खाल बालों के नीचे से दिखाई देती है या नही तो एहतियाते वाजिब की बिना पर बालों को भी धोये और खाल तक पानी भी पहुँचाये।


248 * नाक के अन्दर के हिस्से और आँखों व होटों के उन हिस्सो का धोना वाजिब नही है जो बंद करने पर दिखाई न देते हों। लेकिन जिन हिस्सों का धोना ज़रूरी है उनका कुछ फ़ालतू हिस्सा भी धो लेना चाहिए ताकि वाजिब हिस्सों के धुलने का यक़ीन हो जाये।


249 *एहतियाते लाज़िम की बिना पर ज़रूरी है कि हाथों और चेहरे को ऊपर से नीचे की तरफ़ धोया जाये लेकिन अगर नीचे से ऊपर की तरफ़ धोया जाये तो वुज़ू बातिल है।


250 *हाथों और चेहरे पर पानी का जारी होना ज़रूरी नही है बल्कि अगर हथेली पानी से तर करके चेहरे व हाथों पर फेरी जाये और हथेली में इतनी तरी हो कि उसे फेरने से पूरे चेहरे और हाथों पर पानी पहुँच जाये तो काफ़ी है।


251 *चेहरे को धोने के बाद पहले दाहिना हाथ और बाद में बाँया हाथ कोहनी से उंगलियों के सिरे तक धोना चाहिए।


252 *अगर इंसान को यक़ीन न हो कि कोहनी को पूरी तरह धो लिया है तो यक़ीन करने के लिए कोहनी से ऊपर का कुछ हिस्सा भी धोना ज़रूरी है।


253 जिस इंसान ने चेहरा धोने से पहले अपने हाथों को कलाईयों तक धोया हो, उसे चाहिए कि चेहरा धोने के बाद हाथों को कोहनियों से उंगलियों के सिरों तक धोये। अगर वह हाथों को सिर्फ़ कलाईयों तक धोयेगा तो उसका वुज़ू बातिल होगा।


254 *वुज़ू में चेहरे व हाथों का एक बार धोना बाजिब दूसरी बार धोना मुस्तहब और तीसरी या इससे ज़्यादा बार धोना हराम है। एक बार धोना उस वक़्त मुकम्मल होगा जब वुज़ू की नियत से इतना पानी चेहरे या हाथ पर डाला जाये कि वह पानी पूरे चेहरे या हाथों पर पहुँच जाये और एहतियातन कोई जगह बाक़ी न रहे। लिहाजा अगर पहली दफ़ा धोने की नियत से दस बार भी चेहरे पर पानी डाला जाये तो कोई हरज नही है। यानी जब तक वुज़ू की नियत से चेहरे या हाथों को नही धोया जायेगा पहली बार नही गिना जायेगा। लिहाज़ा अगर चाहे तो चन्द बार चेहरे को धोले और आखिरी बार चेहरा धोते वक़्त वुज़ू की नियत कर सकता है। लेकिन दूसरी बार धोने में नियत का मोतबर होना इश्काल से ख़ाली नही है। और एहतियाते लाज़िम यह है कि अगरचे वुज़ू की नियत से न भी हो तब भी एक बार धो लेने के बाद दूसरी बार से ज़्यादा हाथों व चेहरे को न धोये।


255 दोनों हाथ दोने के बाद सिर के सामने वाले हिस्से का मसाह पानी की उस तरी से करना चाहिए जो हाथ में बाक़ी रह जाती है और एहतियाते मुस्तहब यह है कि मसह दाहिने हाथ से और ऊपर से नीचे की तरफ़ किया जाये।


256 सिर के चार हिस्सों में से माथे से मिला हुआ एक हिस्सा वह मक़ाम है जिस पर मसाह किया जाता है। इस हिस्से में जहाँ पर भी और जितना जगह पर भी मसाह किया जाये काफ़ी है। लेकिन एहतियाते मुस्तहब यह है कि लम्बाई में एक उंगली के बराबर और चौड़ाई में मिली हुई तीन उंगलियों के बराबर जगह पर मसाह किया जाये।


257 यह ज़रूरी नही है कि सिर का मसाह सिर की खाल पर ही किया जाये बल्कि सिर के सामने के हिस्से के बालों पर भी मसाह करना सही है। लेकिन अगर किसी के सिर के बाल इतने लम्बे हों कि कंघा करेने पर चेहरे पर आ गिरते हों या सिर के किसी दूसरे हिस्से तक जा पहुँच जाते हों तो ज़रूरी है कि वह बालों की जड़ों पर या माँग निकाल कर सिर की खाल पर मसह करे और अगर चेहरे पर आ गिरने वाले या सिर के दूसरे हिस्से तक पहुँचने वाले बालों को आगे की तरफ़ जमा करके उन पर मसाह करे या सिर के दूसरे हिस्सों के बालों पर जो आगे की तरफ़ आ गये हों मसाह करे तो ऐसा मसाह बातिल है।


258 *सिर के मसेह के बाद वुज़ू के पानी की उस तरी से जो हाथों में बाक़ी हो पैर के पंजे की किसी एक उंगली से लेकर पैर के जोड़ तक मसाह करना ज़रूरी है। एहतियाते मुस्तहब यह है कि दाहिने पैर का मसाह दाहिने हाथ से और बाँये पैर का मसाह बाँये हाथ से किया जाये।


259 पैर पर मसेह की चौड़ाई जितनी भी हो काफ़ी है लेकिन अच्छा है कि तीन मिली हुई उंगलीयों की चौड़ाई के बराबर हो और बेहतर यह है कि पैर के पंजे के पूरे ऊपरी हिस्से का मसाह पूरी हथेली से किया जाये।


260 *एहतियात यह है कि पैर का मसाह करते वक़्त हाथ उंगलियों के सिरों पर रखे और फिर पैर के उभार की तरफ़ खीँचे या हाथ पैर के जोड़ पर रख कर उंगलियों की तरफ़ खीँचे। पूरे पैर पर हाथ रख कर थोड़ासा खीँचना सही नही है।


261 सिर और पैर का मसाह करते वक़्त उन पर हाथों का फेरना ज़रूरी है। अगर सिर या पैर पर हाथ रख कर सिर या पैर को हरकत दी जाये तो मसाह बातिल है। लेकिन अगर हाथ फेरते वक़्त सिर या पैर थोड़ा हिल जाये तो कोई हरज नही है।


262 मसेह की जगह का खुश्क होना ज़रूरी है। अगर मसेह की जगह इतनी तर हो कि हथेली की तरी उस पर असर न करे तो मसाह बातिल है। लेकिन अगर मसेह की जगह चोड़ी नम हो या तरी इतनी कम हो कि वह हथेली की तरी से ख़त्म हो जाये तो कोई हरज नही है।


263 अगर मसाह करने के लिए हथेली पर तरी बाक़ी न रहे तो हाथ को दूसरे पानी से तर नही किया जा सकता, बल्कि इस हालत में अपनी दाढ़ी से तरी ले कर उससे मसाह करना चाहिए। दाढ़ी के इलावा किसी दूसरे हिस्से से तरी लेकर मसाह करने में इश्काल है।


264 अगर हथेली की तरी सिर्फ़ सिर के मसेह के लिए काफ़ी हो तो एहतियाते वाजिब यह है कि सिर का मसाह उसी तरी से किया जाये और पैर के मसेह के लिए अपनी दाढ़ी से तरी ली जाये।


265 मोज़े और जूते पर मसाह बातिल है लेकिन अगर सख़्त सर्दी या चोर व दरिन्दों के खौफ़ से जूते या मोज़े न उतारे जा सके तो एहबतियाते वाजिब यह है कि मोज़े या जूते पर मसाह करे और तयम्मुम भी करे। तक़िय्येह की सूरत में भी मोज़े व जूते पर मसाह करना काफ़ी है।


266 अगर पैर का ऊपरी हिस्सा नजिस हो और मसाह करने के लिए उसे धोया भी न जा सकता हो तो तयम्मुम करना ज़रूरी है।