सूरे रअद का की तफसीर 2
  • शीर्षक: सूरे रअद का की तफसीर 2
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  • रिलीज की तारीख: 18:48:35 1-9-1403

इस कार्यक्रम में पवित्र क़ुरआन के सूरे राद में बिजली और उसकी कड़क, सत्य और असत्य की विशेषताएं, बुद्धिजीवियों के ख़ूबियां और ईश्वर की याद से मन को मिलने वाली शांति की समीक्षा की गयी है। आशा है यह प्रयास भी आपको पसंद आएगा।            


चूंकि इस आयत में बिजली की कड़क को ईश्वर का गुणगान कहा गया है इसलिए इस सूरे का नाम राद है। यह आयत एकेश्वरवाद, ईश्वर की महानता और सृष्टि के रहस्यों का उल्लेख कर रही है और कुछ प्राकृतिक घटनाओं के की ओर संकेत से श्रद्धालुओं के मन में ईश्वर की पहचान का दीप जला रही है। इस संदर्भ में बादलों के बीच चमकने वाली बिजली के संबंध में पवित्र क़ुरआन कह रहा है कि बिजली की चमक आंखों को चकाचौंध कर देती है और उसकी गड़गड़ाहट तुम्हें डरा देती है किन्तु चूंकि प्रायः बिजली की चमक के बाद भारी बारिश होती है इसलिए उससे लोगों के मन में आशा की किरण पैदा होती है और इस आशा व भय के बीच वे संवेदनशील क्षण बिताते हैं।


आज वैज्ञानिक शोध ने सही कर दिया है बिजली के इंसान और प्रकृति के लिए बहुत से लाभ हैं। प्रायः बिजली चमकने के बाद बारिश शुरु होती है। इस प्रकार बिजली की बारिश होने और ज़मीन की सिंचाई में बड़ा महत्वपूर्ण योगदान है। दूसरा अहम बिन्दु यह है कि बारिश की बूंदे बिजली और भीषण गर्मी के कारण अम्ल का रूप धारण कर लेती हैं और ज़मीन में मौजूद तत्वों से मिल कर एक प्रकार की लाभदायक खाद का उत्पादन करती हैं और इस प्रकार वनस्पतियों को शक्ति मिलती है।


बाद की आयत में बिजली की गड़गड़ाहट का उल्लेख किया गया है कि जो बिजली से अलग नहीं है। बाद की आयत में आया है, बिजली की गड़गड़ाहट ईश्वर का गुणगान करती है। प्रकृति की यह गरजदार आवाज़ व्यवहारिक रूप से ईश्वर की प्रशंसा करती है और दूसरे शब्दों में बिजली की गड़गड़ाहट बिजली की ज़बान है जिससे सृष्टि के रचनाकार की महानता व सृष्टि की व्यवस्था का पता चलता है। न केवल बिजली या भौतिक दुनिया के अन्य तत्व ईश्वर का गुणगान करते हैं बल्कि सभी फ़िरश्ते भी ईश्वर के भय से उसकी प्रशंसा व गुणगान में लीन हैं।     


सूरे राद की आयत नंबर 17 में ईश्वर एक बहुत ही आकर्षक मिसाल से सत्य और असत्य के बच तुलना करता है। सूरे राद की आयत संख्या 17 में ईश्वर कह रहा है, “ ईश्वर ने आसमान से पानी भेजा तो नदी नाले अपनी अपनी क्षमता भर बह निकले। फिर जब बाढ़ आयी तो उसके साथ झाग आ गयी। और वैसे ही झाग उन धातुओं से भी उठती हैं जिन्हें आभूषण और बर्तन इत्यादि बनाने के लिए पिघलाया जाता है। ईश्वर इसी मिसाल से सत्य और अस्त्य के मामले को स्पष्ट करता है। झाग उड़ जाती है और किन्तु जिस चीज़ से लोगों को फ़ायदा पहुंचा है वह ज़मीन पर रह जाती है। ईश्वर इसी प्रकार मिसालों से अपनी बात समझाता है।”


आसमान से साफ़ पानी बरसता है। नहरें, दर्रे और गड्ढे अपनी अपनी क्षमता के अनुसार पानी के भाग को अपने भीतर इकट्ठा करते हैं। नालियां मिल कर नहरों को अस्तित्व देती हैं। नहरें आपस में मिल कर पर्वतांचल में भयावह बाढ़ को जन्म देती हैं। बाढ़ के मार्ग में जो कुछ पड़ता है उसे वह बहा ले जाती है। इस बीच लहरें मारते हुए पानी पर झाग ज़ाहिर होते हैं और क़ुरआन के शब्दों में बाढ़ अपने साथ झाग भी लिए फिरता है। झाग का अस्तित्व में सिर्फ़ बारिश होने पर निर्भर नहीं है बल्कि उन धातुओं से भी झाग निकलता है जिन्हें ज़ेवरात और जीवन यापन की ज़रूरत की चीज़ें बनाने के लिए पिघलाया जाता है।


इस आयत में ईश्वर कह रहा है कि वह सत्य और असत्य को समझाने के लिए इस तरह की मिसालें देता है और आगे कहता है कि झाग किनारे चला जाता है और ख़त्म हो जाती है मगर जो चीज़ लोगों के लिए फ़ायदेमंद हे वह ज़मीन पर रह जाती है।


इस उदाहरण में ईश्वर ने सत्य को साफ़ पानी और असत्य को पानी के झाग से उपमा दी है। जिस वक़्त बाढ़ मैदानी क्षेत्र में पहुंचती है और उसका उफनता हुआ पानी बैठ जाता है तो उस में पानी जो चीज़ें होती हैं वे नीचें बैठ जाती हैं। झाग ख़त्म हो जाता है और पानी अपने साफ़ रूप में प्रकट होता है। इस मिसाल में क़ुरआन यह बताना चाहता है कि सत्य हमेशा फ़ायदेमंद होता है जिस तरह साफ़ पानी ज़िन्दगी के लिए ज़रूरी है लेकिन असत्य निरर्थक है। पानी अगर ज़मीन की सतह पर रह जाता है तो वह धीरे धीरे ज़मीन के भीतर चला जाता है और फिर बाद में सोतों, कुओं और भूमिगत नहरों के रूप में बाहर आ जाता है और प्यासों की प्यास बुझाता है, पेड़ों को फलदार बनाता है और फूलों को खिलाता है और सभी चीज़ को व्यवस्थित करता है।


इस बात में शक नहीं कि पानी के ऊपर झाग से किसी की प्यास नहीं बुझती और न उससे पेड़ उगते है। इसी प्रकार भट्टियों में पिघलने वाली धातुओं से निकलने वाली झाग भी फ़ायदेमंद नहीं होती और उसे भी फेंक दिया जाता है। असत्य पानी के ऊपर रहने वाली झाग के समान खोखला होता है मगर सत्य की जड़ मज़बूत होती है और वह आत्मनिर्भर होता है। असत्य की प्रवृत्ति में धोखा होता है वह आम लोगों को पसदं आने वाले नारों की मदद लेता है। वह सत्य का वस्त्र पहने होता है किन्तु झाग की भांति अस्थिर होता है। यदि सत्य सक्रिय हो जाए तो जिस प्रकार देग़ के ऊपर की झाग फेंक दी जाती है उसी प्रकार असत्य भी बाहर हो जाता है। यह स्वयं इस बात का तर्क है कि सत्य को सक्रिय होना चाहिए ताकि असत्य किनारे लग जाए।       


सूरे राद की 20 से 22 आयतों में बुद्धिमान और सत्य के समर्थकों की विशेषताओं का उल्लेख किया गया है। जो इस प्रकार हैं।


वे ईश्वर के साथ अपने वादों को पूरा करते हैं।


बुद्धिजीवी, जिन रिश्तों को जोड़े रखने का हुक्म दिया गया है उसे जोड़े रखते हैं।


अपने ईश्वर से डरते हैं और प्रलय के दिन ईश्वर के न्यायालय में लिए जाने वाले हिसाब की सख़्ती से डरते हैं।


बुद्धिमान लोग ईश्वर की ख़ुशी के लिए धैर्य व दृढ़ता का परिचय देते हैं।


नमाज़ पढ़ते हैं और ईश्वर की ओर से मिलने वाली आजिविका को छिपा कर और दिखा कर लोगों में बांटते हैं। भले कर्मों द्वारा बुराइयों को ख़त्म करते हैं।


सूरे राद की आयत नंबर 28 में उन लोगों के संबंध में जो ईश्वर की ओर मन लगाते हैं, बहुत ही आकर्षक व्याख्या की गयी है। सूरे राद की 28वीं आयत में ईश्वर कह रहा है, “ वे ऐसे लोग हैं जो ईमान लाए हैं और उनके मन ईश्वर की याद से संतुष्ट हैं। जान लो कि ईश्वर की याद से मन को शांति मिलती है।”


इस आयत में बहुत ही आकर्षक बिन्दु पर बल दिया गया है वह यह कि मन को शांति सिर्फ़ और सिर्फ़ ईश्वर पर आस्था और उसकी याद से हासिल होती है। ईश्वर की याद का मतलब सिर्फ़ यह नहीं है कि मनुष्य अपनी ज़बान पर सिर्फ़ ईश्वर के नाम की माला जपता रहे बल्कि इसका मतलब यह है कि पूरी तनमयता से सृष्टि पर ध्यान केन्द्रित करे ।


बेचैनी और चिंता मनुष्य के लिए हमेशा से बहुत बड़ी समस्या रही है। जैसा कि इसका प्रभाव व्यक्तिगत और सामाजिक जीवन में दिखायी देता है। इसके विपरीत शांति ऐसी अमूल्य चीज़ है जिसे मनुष्य खो चुका है। शांति या चिंता का व्यक्ति और समाज के स्वास्थय और बीमारी कल्याण और दुर्भाग्य में बहुत बड़ी भूमिका है। पवित्र क़ुरआन ने बहुत छोटे किन्तु अर्थ भरे वाक्य में मनुष्य को शांति तक पहुंचने के सबसे नज़दीक के मार्ग का पता बता दिया है। जैसा कि पवित्र क़ुरआन कह रहा है, “ जान लो कि ईश्वर की याद से मन को शांति मिलती है। उस सर्वशक्तिमान व मेहरबान ईश्वर पर आस्था जो अपने बंदों का सदैव अभिभावक है वह मनुष्य की चिंता को कम कर सकता है और उसे स्थायी शांति व सुख दे सकता है।”
सूरे राद के अंत में नास्तिकों के दावे की ओर इशारा किया गया और पैग़म्बरे इस्लाम को संतोष दिलाया गया है। वे जो नास्तिक हो गए कहते हैं कि आप ईश्वरीय दूत नहीं हैं तो आप कह दीजिए कि ईश्वर और वे लोग हमारी गवाही के लिए काफ़ी हैं जिनके पास किताब का ज्ञान है।


नास्तिक हर दिन एक न एक बहाना ढूंढते हैं। हर दम चमत्कार दिखाने की मांग करते हैं और अंत में कहते हैं कि आप ईश्वरीय दूत नहीं हैं। उनके जवाब में कहिए कि हमारे और तुम्हारे बीच दो लोग गवाही के लिए काफ़ी हैं एक ईश्वर और दूसरा जिसके पास किताब का ज्ञान है। ईश्वर जानता है कि मैं उसकी ओर भेजा गया हूं और वे भी जानते हैं जिनके पास इस आसमानी किताब अर्थात क़ुरआन का पर्याप्त ज्ञान है। वे यह भी भलिभांति समझते हैं कि यह किताब गढ़ी हुयी नहीं है। इसके ईश्वर के सिवा किसी और के पास से भेजे जाने की संभावना नहीं है और यह पवित्र क़ुरआन के विभिन्न आयाम से चमत्कारी होने पर बार बार बल दिये जाने के अर्थ में है।