सूरे रअद की तफसीर
  • शीर्षक: सूरे रअद की तफसीर
  • लेखक:
  • स्रोत: tv shia
  • रिलीज की तारीख: 5:19:34 28-9-1403

पवित्र क़ुरआन के जो सूरे मक्के में नाज़िल हुए उन्हें मक्की कहा जाता है और जो सूरे मदीने में उतरे उन्हें मदनी कहा जाता है। जो सूरे मक्के में नाज़िल हुए है उनमें आम तौर पर एकेश्वरवाद, अनेकेश्वरवाद से संघर्ष और प्रलय के बारे में बात की गयी है क्योंकि ये सूरे पैग़म्बरे इस्लाम की पैग़म्बरी की घोषणा के बाद नाज़िल हुए थे जबकि जो सूरे मदीने में नाज़िल हुए थे वे इस्लाम के फैल जाने और इस्लामी सरकार गठित हो जाने के बाद नाज़िल हुए थे इसलिए उनमें सामाजिक आदेश और मानव समाज की आवश्यकताओं से संबंधित आयतें नाज़िल हुई हैं और उनमें इन सब चीज़ों का उल्लेख किया गया है।


सूरे रअद पवित्र क़ुरआन के ११४ सूरों में से एक सूरा है। इस सूरे में कुरआने मजीद की सत्यता की ओर संकेत के बाद, एकेश्वरवाद और सृष्टि के रहस्यों को बयान किया गया है। इसी प्रकार इस सूरे में प्रलय के दिन के बारे में बहस की गयी है और इस बिन्दु की ओर संकेत किया गया है कि लोगों के भविष्य में हर प्रकार के परिवर्तन के लिए आरंभ, लोगों से होना चाहिये। इस सूरे की आयतों में अपने वचनों के पालन, माता पिता एवं निकट संबंधियों के साथ अच्छे व्यवहार, धैर्य, प्रतिरोध और ईश्वर के मार्ग में धन ख़र्च करने की बात की गयी है। इसी तरह यह सूरा लोगों को अतीत के मनुष्यों के इतिहास में ले जाता है और प्राचीन लोगों , व जातियों के अंत को बयान करता तथा उनकी याद दिलाता है। इसी तरह यह सूरा काफिरों व अनेकेश्वरवादियों को दिल दहला देने वाले दंड की सूचना देता है।


सूरे रअद की दूसरी आयत में महान ईश्वर फरमाता है,, ईश्वर वही है जिसने आसमान को ऐसे स्तंभों पर खड़ा कर रखा है जो दिखाई नहीं देते हैं और फिर विश्व के संचालन की ज़िम्मेदारी अपने हाथ में ले ली और सूरज एवं चांद को अपना अनुसरणकर्ता बनाया कि उनमें से हर एक नियत समय तक चलते रहें, वह सारे कार्यों का विधान कर रहा है वह अपनी निशानियों को खोल खोलकर बयान कर रहा है ताकि तुम अपने पालनहार से मुलाक़ात का विश्वास कर सको।


यह पूरा ब्रहमांड सर्व समर्थ व महान ईश्वर की सृष्टि व रचना का एक छोटा सा नमूना है। ज्ञान, हमारा मार्गदर्शन ब्रह्मांड के रहस्यों की ओर करता है।


यह आयत प्रकृति व ब्रह्मांड के उस रहस्य को खोलती है जिसका भेद पवित्र कुरआन की इस आयत के नाज़िल होने से पहले तक नहीं खुला था और किसी क्षो भी इसका ज्ञान नहीं था। एक समय तक लोग यह समझते थे कि आसमान प्याज़ की परत की भांति हैं यानी जिस तरह से प्याज़ का एक छिलका दूसरे पर निर्भर होता है और पूरी प्याज़ में छिलका ही छिलका होता है और एक छिलका दूसरे पर होता है ठीक उसी तरह से आसमान भी हैं जबकि शताब्दियों के बाद इंसान इस परिणाम पर पहुंचा कि हर आसमान एक नियत स्थान पर है और वह किसी दूसरे आसमान पर टिका भी नहीं है और जो चीज़ उन्हें उस स्थान पर रोके हुए है वह उनका संतुलित व ग़ुरुत्वाकर्षण शक्ति है और यही शक्ति दिखाई न देने वाला स्तंभ है।


पवित्र कुरआन के सूरे रअद की दूसरी आयत में महान ईश्वर ने कहा है कि ईश्वर वही है जिसने आसमानों को दिखाई न देने वाले स्तंभों पर टिका रखा है। इस आयत में दिखाई न देने वाले स्तंभों से तात्पर्य वही गुरुत्वा कर्षण शक्ति है।


इस बात में कोई संदेह नहीं है कि पवित्र कुरआन की जो आयतें सृष्टि की आश्चर्यजनक वस्तुओं के बारे में जानकारी देती हैं। वास्तव में वे सृष्टि की रचना करने वाले की महानता को बयान करती हैं। जैसाकि न्यूटन ने अणुओं के मध्य आकर्षण शक्ति की खोज करके इस वास्तविकता को भी स्वीकार किया और कहा कि इस ब्रह्मांड के अचरज की व्याख्या के लिए केवल गुरुत्वाकर्षण शक्ति का होना प्रयाप्त नहीं है बल्कि शक्ति के ऐसे स्रोत का भी होना आवश्यक है जो ब्रह्मांड में मौजूद चांद तारों और सूरज आदि के मध्य गति को निर्धारित करे और सबके सब अपनी नियत कक्षा में परिक्रमा करें। वह शक्ति महान ईश्वर ही है जिसने ब्रह्मांड में मौजूद ग्रहों आदि के मध्य आकर्षण शक्ति उत्पन्न की और सबके सब अपनी नियत कक्षा में परिक्रमा कर रहे हैं।


सूरे रअद की तीसरा आयत में आया है,, वह ईश्वर वही है जिसने ज़मीन को फैलाया और उसमें पर्वत एवं नदियां बनाईं और हर पैदावार की दो दो किस्में बनाईं। वही रात से दिन को छिपा देता है निश्चय ही इसमें उन लोगों के लिए निशानियां हैं जो सोच विचार करते हैं,,


 महान ईश्वर ने ज़मीन को इस तरह से फैलाया है कि उसमें हर प्रकार के प्राणी रह सकते हैं, हर प्रकार के वृक्ष व झाड़ियां उग सकती हैं उसके ऊंचे नीचे भाग को समतल किया जबकि ज़मीन के आरंभिक स्वरूप में उसमें जीवन संभव नहीं था। ज़मीन को पैदा करने के बाद महान ईश्वर ने पहाड़ों की ओर संकेत किया है। पर्वतों की उपमा ज़मीन के अंदर कील से दी गयी है यानी पर्वता ज़मीन के अंदर कील हैं जो उसे अपनी जगह से हटने से रोकते हैं। पवित्र कुरआन की आयत में इसके बाद ज़मीन पर मौजूद पानी व नदियों की ओर संकेत किया गया है। पर्वतों के माध्यम से ज़मीन की सिंचाई की व्यवस्था बहुत ही रोचक व आकर्षक है। बहुत से पर्वतों के शिखर पर बर्फ़ जमा हो जाती है और वहां से वह धीरे धीरे पिघल कर पानी बनता है जिससे बहुत सी नदियां अस्तित्व में आती हैं और वर्ष भर उनसे ज़मीन की सिंचाई होती रहती है।


इसके बाद आयत में खाने पीने की चीज़ों और फलों का वर्णन किया गया है और समस्त फलों के जोड़े मौजूद हैं। प्राचीन समय से लोग खजूर सहित बहुत से पेड़ों के नर मादा होने को समझ गये हैं।  यानी वे समझ गये हैं कि बहुत से पेड़ों के नर और मादा दोनों होते हैं और कोई नहीं जानता था कि यह एक कानून है जो समस्त सजीव वस्तुओं के बारे में है चाहे वह वनस्पति हो या प्राणी। महान ईश्वर ने हर जीव का जोड़ा पैदा किया है। यह वह भेद है जिसका रहस्योदघाटन पवित्र कुरआन ने १४ सौ वर्ष पहले कर दिया था और इसे पवित्र कुरआन का वैज्ञानिक चमत्कार समझा जाता है।


महान ईश्वर पवित्र कुरआन के सूरे रअद की चौथी आयत में कहता है और धरती के विभिन्न भूभाग एक दूसरे से जुड़े हुए हैं और अंगूरों के बाग़, खेतियां और खजूर के पेड़ भी हैं जो इकहरे भी हैं और दोहरे भी।


सभी एक ही पानी से सींचे जाते हैं और हम फलों की दृष्टि से इनमें से कुछ को कुछ अन्य पर प्राथमिकता देते हैं। निश्चित रूप से इसमें उन लोगों के लिए जो चिंतन करते हैं, निशानियां है।


बाग़ों में नाना प्रकार के वृक्ष दिखाई पड़ते हैं जैसे अंगूर, सेब , आम, अमरूद इत्यादि। रोचक बात यह है कि ये सब वृक्ष एक ही ज़मीन पर उगते हैं उन सबकी सिंचाई एक ही पानी से होती है परंतु उनमें से हर एक का स्वाद दूसरे से भिन्न होता है। महान ईश्वर कहता है कि यह उन लोगों के लिए निशानियां हैं जो हमारी आयतों में सोच विचार करते हैं। पवित्र कुरआन के बहुत से व्याख्याकर्ताओं का मानना है कि सूरे रअद में कुछ प्राकृतिक वस्तुओं की ओर जो संकेत किया गया है उसे पवित्र कुरआन का वैज्ञानिक चमत्कार मानना चाहिये। सूरे रअद की ११वीं आयत में महान ईश्वर कहता है ,, हर एक मनुष्य के लिए उसके आगे और पीछे नीरीक्षक फ़रिश्ते होते हैं जो ईश्वर के आदेश से दुर्घटनाओं से उसकी रक्षा करते हैं। निश्चित रूप से ईश्वर किसी जाति की दशा तब तक नहीं बदलता जब तक वह स्वयं अपने आपको नहीं बदलती और जब ईश्वर किसी जाति को क्षति पहुंचाने का निर्णय कर लेता है तो वह टल नहीं सकती और न उसके अतिरिक्त ऐसे लोगों का कोई सहायक ही हो सकता ।


महान ईश्वर ने हर इंसान की रक्षा के लिए कुछ फरिश्तों को लगा रखा है और वे ख़तरनाक घटनाओं से मनुष्य की रक्षा करते हैं। इस प्रकार फ़रिश्तों का एक गुट रात को जबकि फ़िश्तों का दूसरा गुट दिन को मनुष्य के पास आता है और वह उसकी रक्षा करता है।


इस बात में कोई संदेह नहीं है कि मनुष्य को अपने जीवन में नाना प्रकार की कठिनाइयों वे समस्याओं का सामना होता है जैसे बीमारी, बाढ़, भूकंप, भूख, प्यास आदि। विशेषकर जब मनुष्य बच्चा होता है तो अज्ञानता के कारण उसे नाना प्रकार की समस्याओं का सामना होता है। हम अपने दिनचर्या के जीवन में कभी इस प्रकार की रका करने वाली शक्ति का आभास करते हैं कि वह शक्ति कवच की भांति खतरनाक घअनाओं से हमारी रक्षा करती है। इस्लाम के मार्गदर्शको। के कथनों में भी इस बात पर बल दिया गया है। हज़रत इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस्सलाम फ़रमाते हैं,, कोई बंदा नहीं है मगर यह है कि दो फ़रिश्ते उसके साथ हैं और वे उसकी रक्षा करते हैं परंतु जब ईश्वर का निश्चित आदेश आ जाता है तो वे उस मनुष्य को घटनाओं के हवाले कर देते है,,


इस बात का उल्लेख आवश्यक है कि यह सुरक्षा कसी प्रकार की शर्त के बिना नहीं है। अगर मनुष्य स्वयं को अप्रचलित समस्याओं में ग्रस्त कर ले जैसे जान बूझकर सांप के बिल में हाथ डाल दे तो ऐसे अवसरों पर महान ईश्वर और उसके फ़रिश्ते उसकी रका नहीं करते वह अपने कृत्य का स्वयं ज़िम्मेदार है। इस बात में कोई संदेह नहीं है कि जब किसी जाति को दंडित करने का ईश्वरीय आदेश आ जाता है तो मनुष्य के रक्षक उससे दूर हो जाते हैं और व उस कौम व व्यक्ति को घटनाओं के हवाले कर देते हैं। महान ईश्वर का जो यह आदेश है कि वह किसी क़ौम को परिवर्तित नहीं करता मगर यह कि वह स्वयं को परिवरिति करे वास्तव में महान ईश्वर का यह आदेश एक व्यापक कानून को बयान करता है। यह क़ानून हर चीज़ से पहले यह बयान करता है कि हर जाति का भविष्य स्वंय उसके हाथ में है। हर प्रकार का भला या बुरा परिवर्तन स्वयं उसके हाथ में है। महान ईश्वर की कृपा या दंड किसी भूमिका के बिना किसी को अपना पात्र नहीं बनाती बल्कि यह स्वयं जातियों की आंतरिक इच्छा व परिवर्तन है जो उन्हें महान ईश्वर की कृपा या प्रकोप का पात्र बनाता है। पवित्र कुरआन के इस व्यापक कानून के अनुसार जातियों के बाहर के हर प्रकार का परिवर्तन उसके भीतरी व आंतरिक परिवर्तन पर निर्भर है और हर प्रकार की सफलता व विफलता का स्रोत इसी प्रकार का परिवर्तन है।