पवित्र क़ुरआन ईश्वर की अमानत और महान ईश्वरीय दूत हज़रत मुहम्मद मुस्तफ़ा सलल्ललाहो अलैह व आलेही व सल्लम का अमर चमत्कार है जिसके बारे में उनका कथन है कि इसके साथ रहने से तुम पथभ्रष्टता से मुक्ति पा जाओगे। पूरे विश्वास के साथ यह कहा जा सकता है कि पवित्र क़ुरआन के साथ रहना इस अर्थ में नहीं है कि इसे पवित्र समझो और इसका सम्मान करो बल्कि इसका अर्थ है उसकी उच्च व श्रेष्ठ शिक्षाओं का अनुसरण करना। पवित्र क़ुरआन के सूरों से परिचित होना, इस महान पुस्तक की शिक्षाओं में अधिक चिंतन मनन और इससे अधिक परिचित होने की दिशा में महत्त्वपूर्ण क़दम है।
सूरए नह्ल में 128 आयतें हैं। इसकी कुछ आयतें मक्के में तो कुछ मदीने में उतरी हैं। इस सूरे में हर वस्तु से पहले ईश्वरीय विभूतियों के बारे में चर्चा की गयी है। इन विभूतियों में वर्षा, अनेक प्रकार की वनस्पतियों, फलों और खाद्य पदार्थों का नाम लिया जा सकता है। इसी प्रकार इस सूरे में उन जानवरों की ओर भी संकेत किया गया है जो लोगों की सेवा करते हैं और उनसे मनुष्य विभिन्न प्रकार के लाभ उठाता है। इस आयत का लक्ष्य यह है कि मनुष्य, इन समस्त विभूतियो और अनुकंपाओं व सुन्दरताओं के सृष्टिकर्ता पर ध्यान दे और उसके भीतर आभार व्यक्त करने की भावना, सुदृढ़ हो।
चूंकि इस सूरे में मधुमक्खी की सृष्टि का भी उल्लेख हुआ है जिसे अरबी भाषा में नहल कहते हैं, अतः इस सूरे का नाम सूरए नहल पड़ा है इस सूरे में इसी प्रकार मधु को एक महत्त्वपूर्ण व लाभदायक खाद्य पदार्थ बताया गया है।
इस सूरे की आयतों में अनेकेश्वरवाद, सृष्टि की वैभवता, प्रलय और अनेकेश्वरवादियों की धमकियों पर चर्चा की गयी है। इसी प्रकार इस सूरे में न्याय, भलाई, पलायन, जेहाद, अत्याचार और वचन को तोड़ने तथा शैतानी उकसावे को नकारने की बाते वर्णित हैं।
उन दिनों जब पैग़म्बरे इस्लाम अनेकेश्वरवादियों और विरोधियों से संघर्षरत थे, उस समय भी उन्होंने उन लोगों को मूर्ति पूजा और अनेकेश्वरवाद से रोका था। उनके कुछ धुर विरोधियों ने पैग़म्बरे इस्लाम से कहा था क यदि आप अपने दावे में सच्चे हैं तो ईश्वर से हम पर प्रकोप आने की दुआ करें किन्तु ईश्वर ने अपनी व्यापक कृपा व दया के कारण प्रकोप को विलंबित कर दिया। उन्हें अवसर दिया शायद वे चिंतन मनन करे और अपनी हठधर्मी से दूर हो जाएं और ईश्वर की कृपा व दया के पात्र बनें किन्तु उन्होंने इस अवसर से लाभ नहीं उठाया, दिन प्रतिदिन उनकी शत्रुताओं में वृद्धि होती गयी और नौबत यहां तक पहुंच गयी कि वे पैग़म्बरे इस्लाम का अपमान और उनका उपहास तक करने लगे। उनके उत्तर में और पैग़म्बरे इस्लाम को सांत्वना देने के लिए सूरए नह्ल की आरंभिक आयतें उतरी। ईश्वर का आदेश आ गया है तो उसके बारे में (अकारण) जल्दी न करो कि ईश्वर हर उस वस्तु से कहीं पवित्र व उच्च है जिसे वे उसका समकक्ष ठहराते हैं। ईश्वर अपने आदेश से अपने बंदों में से जिस पर चाहता है फ़रिश्तों को अपने संदेश वही के साथ उतार देता है ताकि लोगों को डराओ कि मेरे अतिरिक्त कोई और पूज्य नहीं है तो केवल मुझ ही से डरो।
सूरए नह्ल की आयतें, अनेकेश्वरवाद के जड़ से सफ़ाये और एकेश्वरवाद पर लोगों के ध्यान को केन्दित करने के लिए दो मार्गों को अपनाती है। पहला मार्ग बुद्धि और तर्क का है जिसमें ईश्वर की भव्य विभूतियों और उसकी हतप्रभ करने वाली सृष्टि को बयान किया गया है जबकि दूसरा मार्ग ईश्वर की विभिन्न विभूतियों को बयान करना है।
उदाहरण स्वरूप सूरए नह्ल की आयत संख्या तीन और चार में ईश्वर की कुछ विभूतियों की ओर संकेत किया गया है। ईश्वर ने आकाशों और धरती की सत्य के आधार पर रचना की है और वह उस (वस्तु) से कहीं उच्च है जिसे वे उसका समकक्ष ठहराते हैं। उसने मनुष्य की रचना एक (तुच्छ) बूंद से की है किंतु वह फिर भी स्पष्ट रूप से (ईश्वर का शत्रु) हो गया है।
आकाशों और धरती की सृष्टि के बारे में बयान करने के बाद इस विषय को मनुष्य से जोड़ दिया गया कि उसकी रचना एक तुच्छ बूंद से की गयी किन्तु इसके बावजूद उसमें इतना घमंड है कि वह अपने सृष्टिकर्ता का शत्रु हो गया।
मनुष्य की सृष्टि के बाद, दूसरी अन्य विभूतियों की सृष्टि अर्थात चौपायों की सृष्टि और उनके विभिन्न लाभों की ओर संकेत किया गया।
और (ईश्वर ने) चौपायों की रचना की है जिनमें तुम्हारे लिए गर्मी प्राप्त करने का सामान तथा अन्य लाभ हैं और उनमें से कुछ (के दूध व मांस) को तुम खाते हो। ये तुम्हारे लिए शोभा का साधन भी हैं जब तुम संध्या के समय इन्हें वापस (घर) लाते हो और भोर समय (चराने के लिए बाहर) ले जाते हो।
चौपाये, मनुष्य को कई प्रकार से लाभ पहुंचाते है, इसमें से तीन की ओर संकेत किया गया है। पहले वस्त्र की ओर संकेत किया गया है। जानवरों के ऊन और उनकी खाल से मनुष्य अपने लिए वस्त्र और सिर छिपाने की जगह बना सकता है, जैसे वस्त्र, रज़ाई, जूते, टोपी और तंबू और दूसरे दूध और इससे बनने वाली अन्य वस्तुओं और तीसरे मांस की ओर संकेत किया जा सकता है।
रोचक बात यह है कि इन सभी लाभों में सबसे पहले वस्त्र और घर के मामले को पेश किया गया है क्योंकि बहुत से लोग विशेषकर बंजारे जानवरों के ऊन और बालों से वस्त्र भी बनाते हैं और अपने रहने के लिए तंबू भी बनाते हैं ताकि ठंडक और गर्मी से सुरक्षित रहें। प्रत्येक दशा में यह चीज़ अन्य चीज़ों पर वस्त्र और रहने के स्थान के महत्त्व को दर्शाती है।
आपको यह भी बताते चलें कि पवित्र क़ुरआन ने केवल जानवरों के सामान्य व भौतिक लाभों के बयान को पर्याप्त नहीं समझा बल्कि इन जानवरों के रहने के मानसिक प्रभावों की ओर भी संकेत किया है। पवित्र क़ुरआन कहता है कि ये तुम्हारे लिए शोभा का साधन भी हैं जब तुम संध्या के समय इन्हें वापस (घर) लाते हो और भोर समय (चराने के लिए बाहर) ले जाते हो। जानवरों के गल्ले का एक साथ चराहगाहों की ओर जाना और उनका एक साथ चरना और संध्या के समय उनका एक साथ विश्राम के लिए घर लौटने का दृश्य जहां एक ओर मनोरम व अच्छा लगता है वहीं दूसरी ओर समाज में प्रयास व उत्साह की लहर को दर्शाता है। वास्तव में इस वास्तविकता को चित्रित करता है कि गतिविधियों और प्रयासों से समाज का निखार होता है न कि निठल्ले और एक स्थान पर जमे रहने से। निसंदेह वह समाज जो अपने प्राकृतिक स्रोतों से सही ढंग से लाभान्वित होता है और कृषि तथा पशुपालन को विस्तृत करता है, आत्मनिर्भर होता है और निर्धनता से मुक्ति पाता है।
पवित्र क़ुरआन, मनुष्यों के लिए इन जानवरों के महत्त्वपूर्ण लाभों के बारे में कहता है कि और चौपाए तुम्हारे बोझ को ऐसे नगरों तक ढोते हैं जहाँ तक तुम (शरीर के) अत्यधिक श्रम के बिना नहीं पहुंचने वाले थे, निश्चित रूप से तुम्हारा पालनहार अत्यधिक कृपालु व दयावान है। और (तुम्हारे पालनहार ने) घोड़ों, ख़च्चरों तथा गधों की रचना की ताकि तुम उनकी सवारी कर सको और वे तुम्हारे लिए शोभा का साधन रहें, और तुम्हारा पालनहार ऐसी वस्तुओं की रचना करता है जिन्हें तुम जानते भी नहीं हो।
ईश्वर की कृपा व दया की निशानियों में से एक यह है कि उसने चौपायों को शक्तिशाली पैदा किया और मनुष्य के हाथों में उनका नियंत्रण दिया। ध्यान योग्य बात यह है कि आधुनिक और मशीनी युग में जीवन व्यतीत करने वाले हम लोग भी घाटियों, तंग ढलानों और जटिल पर्वतीय क्षेत्रों से गुज़रने के लिए इन्हीं चौपायों का प्रयोग करते हैं।
सूरे नह्ल की आठवीं आयत में उन जानवरों की ओर संकेत किया गया है जिन्हें मनुष्य सवारी के लिए प्रयोग करता है। ईश्वर ने घोड़ों, ख़च्चरों तथा गधों की रचना की ताकि लोग उस पर सवारी कर सकें। जानवरों और सवारियों पर सवारी, शांति और कल्याण के अतिरिक्त शोभा का भी कारण बनता है।
पिछली आयतों में ईश्वर की विभिन्न विभूतियों की ओर संकेत किया गया तथा इस सूरे की दसवीं आयत और उसके बाद की अन्य आयतों में दूसरी विभूतियों की ओर संकेत किया गया है।
वही है जिसने आकाश से तुम्हारे लिए पानी बरसाया जिसमें तुम्हारे लिए पेयजल भी है और जिसमें से पौधे भी (उगते) हैं जिसमें (तुम अपने चौपायों को) चराते हो। ईश्वर उसी पानी से तुम्हारे लिए खेत, ज़ैतून के पेड़, खजूर, अंगूर तथा हर प्रकार के फल उगाता है। निश्चित रूप से इस बात में उन लोगों के लिए स्पष्ट निशानी है जो चिंतन करते हैं।
वर्षा का पानी स्वच्छ और जीवनदायक होता है जिसे मनुष्य पीता है और जानवर भी इस पानी के माध्यम से उगने वाली घासों को चरते हैं। वर्षा के पानी से विभिन्न प्रकार के कृषि उत्पाद और इसी प्रकार ज़ैतून के पेड़, खजूर, अंगूर तथा हर प्रकार के फल उगते हैं। निश्चित रूप से विभिन्न प्रकार के इन फलों का उगना, चिंतन मनन करने वालों के लिए ईश्वर की स्पष्ट निशानी है।
जैसा कि हम देखते हैं कि इस आयत में फलों में से ज़ैतून, खजूर और अंगूर का चयन किया गया है। खाद्य पदार्थों के विशेषज्ञों का कहना है कि फलों में बहुत ही कम फल हैं जो इन तीन फलों की तरह मनुष्य के लिए लाभादायक व सार्थक हों।
ज़ैतून का तेल, शक्तिवर्धक पदार्थ है। जो लोग सदैव स्वस्थ्य रहना चाहते हैं उन्हें प्रकृति की इस अनमोल देन से लाभ उठाना चाहिए। विशेषज्ञों के मतानुसार, ज़ैतून का तेल, गुर्दे व यकृत की बीमारियों तथा पथरी के लिए बहुत ही लाभदायक दवा है।
चिकित्सा विज्ञान की प्रगति के साथ खजूर की विशेषताएं अधिक स्पष्ट हो गयी हैं। खजूर में मौजूद कैल्शियम, हड्डियों को सुदृढ़ करता है और इसमें पाया जाने वाला फ़ास्फोरस, बौद्धिक गतिविधियों में सहायता प्रदान करता है और थकन दूर करने में मदद करता है। खजूर में पोटेश्यिम भी पाया जाता है जो मांस पेशियों और शरीर की बनावट के लिए बहुत लाभदायक है।
खाद्य पदार्थों के विशेषज्ञों के अनुसार अंगूर में इतने ज़्यादा पोषक तत्व पाये जाते हैं कि अगर इसे प्राकृतिक दवाख़ाने का नाम दिया जाए तो ग़लत न होगा। अंगूर ख़ून की सफ़ाई, जोड़े के दर्द, वातरक्त या गाउट और ब्लड में बदी यूरिया की कम करने लाभदायक दवा है। अंगूर, अमाशय और आंतों की सफ़ाई करता है जिससे कष्ट दूर होते हैं, उत्साह पैदा होता है और स्नायुतंत्र मज़बूत होता है।