सूरे लुक़मान पवित्र क़ुरआन का इकतीसवां सूरा है। इसमें 34 आयतें हैं और यह मक्के में उतरा है। इस सूरे का नाम लुक़मान इसलिए पड़ा है कि इसमें तत्वदर्शी हज़रत लुक़मान की नसीहतों का उल्लेख है। इस सूरे के शुरु में ईश्वर ने क़ुरआन को तत्वदर्शिता का मार्ग दिखाने वाला कहा है। इस किताब की बात अपनी जगह अटल है। इसमें किसी ग़लत बात की कोई गुंजाइश नहीं है। इसमें कोई ऐब नहीं है। यह किताब तत्वदर्शी विद्वान की तरह शिक्षा देती है, नसीहत करती है, प्रेरणा देती है, पाठ लेने योग्य कहानियों से भरी पड़ी है और इसके सभी अर्थ तत्वदर्शिता पर आधारित हैं। इन्सान पवित्र क़ुरआन के ज़रिए सत्य को पाएगा, पवित्र क़ुरआन की बातों को अमल में लाता है जिसके नतीजे में ईश्वर की अनंत कृपा का पात्र बनता है।
लुक़मान सूरे की एक से तीन आयत में ईश्वर कह रहा है, “अलिफ़ लाम मीम! यह किताब तत्वदर्शिता रखती है। सदाचारियों व नेक लोगों के लिए मार्गदर्शन व ईश्वरीय कृपा के उतरने का ज़रिया है।”
लुक़मान सूरे की आयत 4 और 5 में भले लोगों का इन शब्दों में परिचय कराया गया है, “वे नमाज़ क़ाएम करते हैं, ज़कात देते हैं और परलोक पर विश्वास रखते हैं। वे अपने ईश्वर की ओर से सही मार्ग पर हैं और वे ही मुक्ति पाने वाले हैं।”
लुक़मान सूरे की आयत नंबर दस में एकेश्वरवाद के पक्ष में दलीलें दी गयी हैं। आसमान को बनाने, गृहों के लटके रहने और पहाड़ों के बनाने का उल्लेख है। इस आयत में आया है, ईश्वर ने आसमानों को ऐसा बनाया जो दिखाई देने वाले खंबों के बिना हैं। इसका अर्थ यह है कि आसमानों और गृहों में ऐसे खंबे हैं जो दिखाई नहीं देते। यह गुरुत्वाकर्षण के नियम की ओर इशारा है जो बहुत ही शक्तिशाली खंबे की तरह आसमान के गृहों को रोके हुए लेकिन यह खंबे दिखाई नहीं देते। यह विषय पवित्र क़ुरआन के वैज्ञानिक चमत्कारों में से एक है जिसकी राद नामक सूरे की आयत नंबर 2 में व्याख्या की जा चुकी है।
उसके बाद यह आयत पहाड़ों के वजूद में आने के बारे में इन शब्दों में कह रही है, “ ईश्वर ने पहाड़ बनाये ताकि तुम बेचैन न रहो।”
यह आयत कि इस जैसी पवित्र क़ुरआन में बहुत सी आयते हैं, बताती है कि पहाड़ से ज़मीन में स्थिरता है और आज विज्ञान से यह बात साबित हो चुकी है कि पहाड़ बहुत सी दृष्टि से ज़मीन की स्थिरता का आधार हैं। पहाड़ों की जड़े एक दूसरे से जुड़ी हुयी हैं, एक ठोस ढाल की तरह ज़मीन को भीतरी दबाव के सामने सुरक्षित रखते हैं और अगर पहाड़ न होते तो शायद बहुत ही तबाह करने वाले भूकंप इंसान को ज़मीन पर जीने न देते। इसके अलावा पहाड़ तूफ़ान के ज़ोर को तोड़ते हैं। अगर पहाड़ न होते तो ज़मीन की सतह घातक तूफ़ान और हवाओं की ज़द पर होती।
वनस्पतियों के जोड़े होने की बात भी पवित्र क़ुरआन का वैज्ञानिक चमत्कार है। क्योंकि जिस वक़्त क़ुरआन उतरा है उस वक़्त पेड़ पौधों के जोड़े होने का विषय व्यापक स्तर पर साबित नहीं हुआ था और पवित्र क़ुरआन ने इस विषय को पूरी दृढ़ता के साथ पेश किया।
लुक़मान सूरे की आयत नंबर बारह और कुछ बाद की आयतों में हज़रत लुक़मान हकीम और इस महापुरुष की अपने बेटे को की गयी कुछ नसीहतों का उल्लेख है। ये नसीहतें, आस्था, कुछ धार्मिक कर्तव्यों और नैतिक मूल्यों के बारे में हैं।
हज़रत लुक़मान के बारे में पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल लाहो अलैहि व आलेही व सल्लम का एक कथन है, “लुक़मान ईश्वरीय दूत नहीं थे बल्कि बहुत सोच विचार करने वाले बंदे थे। ईश्वर पर सच्चा विश्वास था। ईश्वर को मानते थे और ईश्वर उन्हें दोस्त रखता था और उन्हें तत्वदर्शिता दी।”
हज़रत लुक़मान अपने बेटे को नसीहत करते वक़्त उन्हें या बुन्यया अर्थात है मेरे बेटे कह कर संबोधित करते हैं और इस प्रेमपूर्ण शब्द के ज़रिए अपने बेटे के मन पर प्रभाव डालते हैं ताकि उनकी बात का असर हो।
हज़रत लुक़मान अपनी पहली नसीहत में, जिसका लुक़मान सूरे की तेरहवीं आयत में ज़िक्र है, अपने बेटे से कहते हैं, “किसी चीज़ को ईश्वर के बराबर न ठहराओ क्योंकि अनेके श्वरवाद बहुत बड़ा अत्याचार है।” मां बाप जब नसीहत करते हैं तो अपने बच्चों को नसीहत करने का तर्क देते हैं। इसी बात पर हज़रत लुक़मान भी बल देते हैं। इस बात में शक नहीं कि नसीहत के वक़्त उन बातों को पहले पेश किया जाता है जो प्राथमिकता रखती हैं। इसलिए हज़रत लुक़मान अपनी बात एकेश्वरवाद पर बल और अनेकेश्वरवाद के इंकार से शुरु करते हैं।
सृष्टि का हर फ़ेनॉमिना इस बात का पता देता है कि इस दुनिया को ईश्वर ने पैदा किया है। इस बात में शक नहीं कि जो भी सृष्टि के इन सुंदर चित्रों पर ध्यान देगा, उसके अस्तित्व को समझ जाएगा। वह पवित्र व अकेली हस्ती है। कोई भी चीज़ उसकी सहभागी बनने के लायक़ नहीं है। वह हर बुराई से पाक है।
सभी ईश्वरीय दूतों का पहला संदेश एकेश्वरवाद को फैलाने और अनेकेश्वरवाद से संघर्ष पर आधारित है। पवित्र क़ुरआन के शब्दों में सभी पाप माफ़ कर दिए जाएंगे सिवाए अनेकेश्वरवाद के। न सिर्फ़ मूर्तियां यहां तक कि ईश्वरीय दूतों और महापुरुषों को भी ईश्वर का सहभागी नहीं ठहराना चाहिए। अनेकेश्वरवाद के कारण इंसान ईश्वर की उपासना के शिखर से गिर कर ग़ैर ईश्वर की उपासना जैसे घटिया काम करने लगता है। क्योंकि इंसान ऐसी चीज़ को सृष्टि के बनाने वाले का समकक्ष क़रार देता है जो ख़ुद इंसान के बराबर नहीं है।
हज़रत लुक़मान इसी सूरे की सोलहवीं आयत में कहते हैं, “हे मेरे बेटे! अगर तुम्हारा कर्म राई के दाने के बराबर किसी पत्थर के बीच में या आसमान या ज़मीन में होगा, तो ईश्वर प्रलय के दिन उसे तुम्हारे सामने लाएगा क्योंकि ईश्वर हर चीज़ का जानने वाला है।”
हज़रत लुक़मान ईश्वर के ज्ञान और उसकी ओर से हर चीज़ का हिसाब रखे जाने का उल्लेख करते हुए अपने बेटे को सचेत करते हैं कि इंसान का कर्म चाहे अच्छा हो या बुरा चाहे वह राई के जैसा छोटा और मूल्यहीन नज़र आए, या ज़मीन की गहराई में किसी पत्थर के बीच में हो या आसमान में कहीं छिपा हो, कृपालु ईश्वर उसका बद्ला देने के लिए उस कर्म को ज़ाहिर करेगा। कोई भी चीज़ सृष्टि में खो नहीं सकती।
प्रलय के दिन हर इंसान के कर्म के ज़ाहिर होने और ईश्वर का इंसान के हर कर्म से अवगत होने का विषय, सभी व्यक्तिगत व सामाजिक सुधार का स्रोत बन सकता है। यह विषय इंसान को भलाई के लिए प्रेरित करने और बुराई से रोकने में प्रभावी हो सकता है।
हज़रत लुक़मान अपनी नसीहत जारी रखते हुए सबसे अहम कर्म यानी नमाज़ के बारे में अपने बेटे से कहते हैं कि नमाज़ पढ़ो क्योंकि नमाज़ ईश्वर से जोड़ने वाली सबसे अहम चीज़ है। नमाज़ से इंसान का मन जागरुक, आत्मा पवित्र और ज़िन्दगी बेहतर बनती है। लुक़मान सूरे की सत्रहवीं आयत में हज़रत लुक़मान कहते हैं, “मेरे बेटे नमाज़ पढ़ो! भलाई का हुक्म दो और बुराई से रोको और जो मुसीबत पड़े उस पर धैर्य से काम लो कि यह बहुत अहम काम है।”
नमाज़ और उसकी अहमियत के बारे में पिछले कार्यक्रमों में आपको बता चुके हैं लेकिन भलाई का हुक्म देना और बुराई से रोकना हज़रत लुक़मान की अहम नसीहतें हैं। दूसरों को भलाई के लिए कहना और बुराई से रोकना एक प्रकार की समाज की सार्वजनिक निगरानी है जिससे समाज का माहौल अच्छा होगा। चूंकि क़ुरआन इंसान के मार्गदर्शन के लिए आया है, लोगों को इस अहम काम का आदेश देता और उनके भीतर ज़िम्मेदारी की भावना जागृत करता है। अगर दूसरों को भले कर्म के लिए प्रेरित करेंगे तो देर सवेर उसका असर समाज में दिखाई देगा लेकिन अगर बुराइयों के सामने मूक दर्शक बने रहे तो धीरे-धीरे बुराई की जड़ पूरे समाज में फैल जाएगी और समाज बिखरने की कगार तक पहुंच जाएगा।
हज़रत लुक़मान की नसीहत के रूप में पवित्र क़ुरआन का संदेश यह है कि समाज में निगरानी की एक सार्वजनिक प्रणाली होनी चाहिए ताकि सामाजिक संबंध स्वस्थ रहें। भला कर्म करने वालों की सराहना की जाए और सबको बुराई छोड़ने के लिए प्रेरित किया जाए।
लुक़मान सूरे की आयत नंबर अट्ठारह और उन्नीस में हज़रत लुक़मान अपने बेटे को नसीहत करते हुए कहते हैं, “लोगों के साथ घमंड से पेश मत आओ, ज़मीन पर अकड़ कर मत चलो क्योंकि ईश्वर किसी घमंडी को दोस्त नहीं रखता। रास्ता मध्यम गति से चलो और धीमें स्वर में बात करो।”
इंसान की चाल से भी यह पता चल जाता है कि वह घमंडी है या नहीं। इस्लामी शिष्टाचार में इंसान को इस बात की इजाज़त नहीं है कि वह घमंड के साथ लोगों के पास से गुज़र जाए। क्योंकि घमंडी व्यक्ति कभी भी मुक्ति नहीं पा सकता।
इस्लाम में सभी मामलों में मध्य मार्ग अपनाने पर बल दिया गया है। इस्लाम ने ऊंची आवाज़ में बात करने से मना किया है। लेकिन पीड़ित व्यक्ति अपने अधिकार की रक्षा के लिए अपनी आवाज़ ऊंची कर सकता है।