तफसीरे सूरऐ कहफ
  • शीर्षक: तफसीरे सूरऐ कहफ
  • लेखक:
  • स्रोत: टी वी शिय़ा
  • रिलीज की तारीख: 15:39:27 1-9-1403

कहफ़ सूरे में कुल 110 आयतें हैं। पवित्र क़ुरआन के आकर्षक सूरों में से एक कहफ़ सूरा भी है। इस सूरे में ईश्वर की स्तुति, सांसारिक जीवन का चित्रण और इस जीवन में मनुष्य का इम्तेहान, और रोचक कहानियों का उल्लेख है जो सुनने वाले के मन में एकेश्वरवाद और प्रतिरोध की भावना को बढ़ाती है। इस सूरे में गुफा वालों, हज़रत मूसा और हज़रत ज़ुलक़रनैन की कहानियां हैं।

कहफ़ सूरे की आयत संख्या 7 में ईश्वर कह रहा है कि जो कुछ धरती पर है उसे हमने उसकी शोभा बनायी है और तड़क-भड़क से भरी दुनिया बनायी जो लोगों को अपनी ओर आकृष्ट करती है और इंसान के मन में अनेक प्रकार की भावनाएं जागृत करती है ताकि इन भावनाओं व तड़क-भड़क के बीच इंसान की परीक्षा ले और वह अपने ईमान, संकल्प और इरादे की शक्ति का प्रदर्शन करे। वास्तव में इस संसार का जीवन सभी लोगों के लिए चेतावनी है कि ईश्वरीय परीक्षा के इस मैदान में दुनिया के विदित सौंदर्य से धोखा न खाएं बल्कि परलोक के लिए सदकर्म के बारे में सोंचे क्योंकि यह संसार अपने सारे आकर्षणों के बाद भी स्थायी नहीं है और अंततः सर्वनाश इसका अंजाम है।

क़ुरैश क़बीले के कुछ बड़े लोगों ने अपने दो साथी मदीना भेजे ताकि वे यहूदी विद्वानों से पैग़म्बरे इस्लाम के निमंत्रण के बारे में पूछें कि क्या ईश्वरीय किताबों में इस प्रकार की बातों का उल्लेख मिलता है? वे मदीना पहुंचे और यहूदी धर्मगुरुओं से संपर्क किया। यहूदी विद्वानों ने कहा, तुम लोग मोहम्मद से तीन सवाल करो अगर उन्होंने तीनों के सही जवाब दे दिए तो जान लो कि वह ईश्वर की ओर से महादूत हैं वरना झूठे हैं। उसके बाद उनके साथ जो चाहना करना।

सबसे पहले उनसे युवाओं के उस गुट के बारे में सवाल करना जो अपनी जाति से अलग हो गए थे। उसके बाद उनसे उस व्यक्ति के बारे में पूछना जिसने पूरी ज़मीन का चक्कर लगाया और पूरब से पश्चिम तक पहुंचा। इसी प्रकार उनसे आत्मा की वास्तविकता के बारे में पूछना। क़ुरैश के इन पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल लाहो अलैहि व आलेही व सल्लम की सेवा में पहुंचे और उनसे अपने सवाल पूछे। पैग़म्बरे इस्लाम ने कहा कि कल आपके सवालों का जवाब दूंगा किन्तु पैग़म्बरे इस्लाम के पास ईश्वरीय संदेश पंद्रह दिन बाद आया। जिब्रईल ईश्वर की ओर से कहफ़ नामक सूरा लेकर आए जिसमें युवकों के उस गुट की कहानी और इसी प्रकार धरती पर पूरब से पश्चिम तक की यात्रा करने वाले व्यक्ति का उल्लेख था और इसी प्रकार आत्मा से संबंधित आयत भी पैग़म्बरे इस्लाम पर उतरी।

कहफ़ सूरे की आयतें उस समय मुसलमानों से संबंधित उस विषय की ओर संकेत करती हैं जिसकी मुसलमानों को बहुत ज़रूरत थी और वह विषय यह था कि सत्य का पालन करने वालों को चाहे वह बहुत कम ही क्यों न हों विदित रूप से शक्तिशाली दिखने वाले बहुसंख्यक भ्रष्ट लोगों के सामने झुकना नहीं चाहिए बल्कि उन्हें चाहिए कि गुफ़ा वाले ईश्वरीय बंदों की भांति ख़ुद को अपने आस-पास के भ्रष्ट माहौल से अलग रखें। यदि क्षमता हो तो बुरायी से निपटें और दृढ़ता का परिचय दें वरना बुरे स्थान से दूसरे स्थान की ओर पलायन कर जाएं। गुफा वाले कौन लोग थे उनके बारे में क़ुरआन में इस प्रकार वर्णन किया गया है।

“ हम ठीक-ठीक उनकी कहानी आपको बताते हैं। वे जवान थे जो अपने ईश्वर पर ईमान लाए और हमने उनका मार्गदर्शन बढ़ाया। और हमने उनके मन को उस समय मज़बूत कर दिया जब वह उठे और उन्होंने घोषणा की कि हमारा पालनहार वही है जो ज़मीन और आसमान का पालनहार है। हम उसके इलावा किसी को पूज्य नहीं मानते और यदि हम ऐसा करें तो निरर्थक बात होगी। हमारी जाति ने तो ईश्वर को छोड़ कर दूसरों को पालनहार चुन लिया है। ये लोग इनके पालनहार होने का कोई ठोस तर्क क्यों नहीं लाते। आख़िर उससे बढ़कर झूठा कौन होगा जो झूठ गढ़कर ईश्वर पर थोपे। और जबकि इनसे तुम अलग हो गए और उनसे भी जिन्हें वे ईश्वर को छोड़ कर पूजते हैं, तो गुफा में चलकर शरण लो कि तुम्हारा पालनहार तुम पर अपनी कृपा का दामन फैला देगा और तुम्हारे काम में सहूलत पैदा कर देगा।”

वे युवा जब गुफा में पहुंचे तो सो गए। पवित्र क़ुरआन आगे की कहानी का इस प्रकार वर्णन करता है, “ तुम सूरज को देखोगे कि जब निकलता है तो उनकी गुफा से दायी ओर मुड़ जाता है और जब डूबता है तो उनसे बायीं तरफ़ कतरा कर निकल जाता है। और वे एक विशाल जगह पर सोए हुए हैं। यह ईश्वर की निशानियों में से एक निशानी है। जिसका ईश्वर मार्गदर्शन करे उसी का मार्गदर्शन होता है। और जिसे पथभ्रष्टता में छोड़ दे तो आप उसका कोई मार्गदर्शक नहीं पाएंगे। यदि उन्हें आप देखते तो आपको लगता कि वे जाग रहे हैं हालांकि वे सोए हुए हैं और हम उन्हें दाएं और बाएं करवट बदलवाते रहते हैं और उनका कुत्ता गुफा के मुहाने पर अपने दोनों बाज़ू फैलाए बैठा है।”

क़ुरआन के अनुसार वे मोमिन बंदे तीन सौ नौ साल के लंबे समय के बाद पुनः नींद से जागे। उन्हें लगा कि वे एक दिन या आधा दिन सोए थे। फिर आपस में एक व्यक्ति को ज़िम्मेदारी सौंपी कि वह चांदी का सिक्का लेकर अंजान बनकर नगर में दाख़िल हो और खाने का प्रबंध करे। किन्तु ध्यान रहे कि कोई उसे न पहचाने क्योंकि अगर हमारे बारे में उन्हें पता चल गया तो या तो अपने धर्म की ओर ले जाएंगे या फिर मार डालेंगे।

वह व्यक्ति नगर में पहुंचा किन्तु क्या देखता है कि पूरा दृष्य ही बदला हुआ है और लोग वे  लोग ही न थे जिन्हें छोड़ कर गया था यहां तक कि उनकी ज़बान भी ठीक तरह से समझ में नहीं आ रही थी। उससे पूछा गया कि तुम कौन हो और कहां से आ रहे हो। उसने राज़ से पर्दा उठाया। उस नगर का राजा जो एकेश्वरवादी था, अपने साथियों के साथ गुफा गया। जब वे गुफा के द्वार तक पहुंचे तो ईश्वर ने उन लोगों पर इतना रोब डाल दिया कि उनमें से कोई भी गुफा में दाख़िल होने की हिम्मत न कर सका सिवाए उस व्यक्ति के जो गुफा से शहर गया था। जिस समय उनका मित्र गुफा में पहुंचा तो उसने अपने साथियों को भयभीत पाया क्योंकि वे यह समझ रहे थे कि गुफा के द्वार पर उपस्थित भीड़ अत्याचारी राजा दक़यानूस और उसके आदमियों की है जो उस समय मूर्ति पूजते थे। किन्तु उनके मित्र ने उन्हें पूरी घटना सुनायी और कहा कि ईश्वर ने उन्हें लोगों को सुधारने के लिए निशानी के तौर पर पेश किया है। वे प्रसन्न थे और उनकी आंखों से ख़ुशी के आंसू बह रहे थे। गुफा वालों ने ईश्वर के चमत्कार से अवगत होने के बाद उससे प्रार्थना की कि उन्हें पिछली वाली हालत में लौटा दे।

ईश्वर कहफ़ नामक सूरे की आयत नंबर 21 में कहा है, “इस प्रकार हमने लोगों को उनकी हालत के बारे में सूचित किया ताकि वे जान लें कि प्रलय का वादा सच्चा है और इस दुनिया के अंत और प्रलय के दिन के संबंध में संदेह की कोई गुजाइश नहीं है। उस समय लोग आपस में उनके बारे में बहस कर रहे थे। एक गुट कहता था कि वहां पर एक इमारत बनायी जाए ताकि वे सदैव नज़र से छिपे रहें और उनसे बात न करो कि ईश्वर उनकी हालत को बेहतर जानता है किन्तु जिन लोगों को गुफा वालों की वास्तविकता का पता चल गया उन्होंने उनकी घटना को प्रलय के दिन की सच्चाई के सिद्ध होने का तर्क माना। उन्होंने कहा कि हमें एक मस्जिद बनानी चाहिए ताकि उनकी याद भुलाई न जा सके।”

कहफ़ सूरे की बाद की आयतें इस ओर संकेत करती हैं कि पैग़म्बरे इस्लाम पर दुश्मनों और बिगड़े हुए कुलीन वर्ग की ओर से दबाव था कि वह अपने पास से निर्धन मोमिनों को हटाएं।  ईश्वर आदेश देता है कि इस दबाव के सामने दृढ़ता और धैर्य का परिचय दें और दबाव के सामने न झुकें। जैसा कि कहफ़ सूरे की आयत नंबर 28 इस बिन्दु पर बल देती है कि मनुष्य अपने विदित पद और पैसे से ऊंचा नहीं होता बल्कि सत्य के मार्ग पर चलते समय मंत्री और गड़ेरिया एक ही स्तर पर हैं। इसलिए पैग़म्बरे इस्लाम से कहा जाता है कि उन लोगों को अपने साथ रखें जो सुबह शाम ईश्वर को याद करते हैं।

सैद्धांतिक दृष्टि से जिस समाज में समृद्ध जीवन से संपन्न गुट हो और वह भ्रष्टाचार व अपव्यय में डूबा हो और दूसरा गुट ऐसा हो जिनके पास जीवन की मूल भूत ज़रूरत की चीज़ें न हों तो ऐसे समाज को स्वस्थ समाज नहीं कहा जा सकता और इस्लाम भेदभाव व अन्याय पर आधारित ऐसे समाज को स्वीकार नहीं करता। इसलिए पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल लाहो अलैहि व आलेही व सल्लम ने भ्रष्ट कुलीन वर्ग के लोगों को दूर करके कमज़ोर वर्ग को अवसर देकर एक ऐसे एकेश्वरवादी समाज की स्थापना की जिसमें लोगों की छिपी योग्यता निखर गयी और उसमें मानवीय मूल्यों, ईश्वर पर आस्था और सद्कर्म को मानदंड समझा गया।