1861 - ज़कात चन्द चीज़ों पर वाजिब हैः
1. गेंहू, 2. जौ 3. खजूर 4. किशमिश 5.सोना चांदी 7. ऊंट 8. गाये 9. भेड़ बकरी 10. इहतियाते लाज़िम की बिना पर माले तिजारत।
अगर कोई शख़्स इन दस चीज़ों में से किसी एक का मालिक हो तो उन शरायत के तहत जिनका ज़िक्र बाद में किया जायेगा ज़रूरी है कि जो मिक़दार मुक़र्रर की गई, इस इन मसारिफ़ में से किसी एक मद में ख़र्च करे जिन का हुक्म दिया गया है।
1863. सल्त पर जो गेहूं की तरह एक नर्म अनाज है और जिसे बे छिलके का जो भी कहते हैं और अलस पर जो गेहूं की एक क़िस्म है और सन्आ (यमन) के लोगों की ग़िज़ा है एहतियात वाजिब की बिना पर ज़कात देना ज़रूरी है।
ज़कात वाजिब होने की शरायत
1863 ज़कात ............ दस चीज़ों पर उस सूरत में वाजिब होती है जब माल उस निसाब की मिक़दार तक पहुंच जाये जिस का ज़िक्र बाद में किया जायेगा और वह माल इंसान की अपनी मिल्किसत हो और उसका मालिक आज़ाद हो।
1864 अगर इंसान ग्यारह महीने गाये, भेड़ बकरी, ऊंट, सोने या चांदी का मालिक रहे तो अगर चे बारहवें महीने की पहली तारीख़ को ज़कात उस पर वाजिब हो जायेगी लेकिन ज़रूरी है कि अगले साल की इब्तेदा की हिसाब बारहवें महीनें के ख़ात्मे के बाद से करे।
1865 सोने, चांदी और माले तिजारत पर ज़कात के बाजिब होने की यह शर्त है कि इन चीज़ों का मालिक बालिग़ और आक़िल हो लेकिन गेहूं , जौ, खजूर, किशमिश और इसी तरह ऊंट, गाये और भेड़ बकरियों में मालिक का बालिग़ और आक़िल होना शर्त नहीं है।
1866 गेंहू और जौ पर जद्यकात वाजिब होती है जब इन्हें गेंहू और जौ कहा जाये। किशमिश पर ज़कात वाजिब होती है जब वह अभी अगंूर ही की सूरत में हों। और खजूर पर ज़कात उस वक़्त वाजिब होती है जब (वह पक जाये और) अरब उसे तमर कहें लेकिन गेंहू और जौ में ज़कात का निसाब देखने और ज़कात देने का वक़्त हा होता है जअ ग़ल्ला खल्यान में पहुंचे और उन (की बालियों) ये भूसा और (दाना) अलग किया जाये। जबकि खजूर और किशमिश में यह वक़्त वह होता है जब उन्हें उतारे लेते हैं। उस वक़्त को ख़ुश्क होने का वक़्त भी कहते हैं।
1867 गेहूं, जौ, किशमिश और खजूर में ज़कात साबित होने के लिये जैसा कि साबिक़ा मसअले में बताया गया है अक़वा की बिना पर मोतबर नहीं है कि उन का मालिक उन में तसर्रूफ़ कर सके। पस अगर हो और माल भी उसके लिये या उस के वकील के हाथ में न हो मसलन किसी ने उन चीज़ों को ग़स्ब कर लिया हो तब भी ज़कात उन चीज़ों में साबित है।
1868 सोने, चांदी, और माले तिजारत में ज़कात साबित होने के लिये, जैसा कि बयान हो चुका, ज़रूरी है कि मालिक आक़िल हो अगर मालिक पूरा साल या साल का कुछ हिस्सा दीवाना रहे तो उस पर ज़कात वाजिब नहीं है।
1869 अगर गाये, भेड़, ऊंट, सोने और चांदी का मालिक साल का कुछ हिस्सा मस्त (बे-हवास) या बे होश रहे तो ज़कात उस पर से साक़ित नहीं होती और इसी तरह गेंहू, जौ और किशमिश का मालिक ज़कात वाजिब होने के मौक़े पर मस्त या बे-होश हो जाये तो भी यही हुक्म है।
1870 गेंहू, जौ, खजूर और किशमिश के अलावा दूसरी चीज़ों में ज़कात साबित होने के लिये यह शर्त है कि मालिक उस माल में तसर्रूफ़ न कर सकता हो तो उस में ज़कात नहीं है।
1871 अगर किसी ने सोना और चांदी या कोई और चीज़ जिस पर ज़कात देना वाजिब हो किसी से कर्ज़ ली हो और वह चीज़ एक साल तक उस के पास रहे तो ज़रूरी है कि उस की ज़कात दे और जिस ने कर्ज़ दिया हो उस पर कुछ वाजिब नहीं है।