इस्लाम सम्पूर्ण और अविनाशी विधान
  • शीर्षक: इस्लाम सम्पूर्ण और अविनाशी विधान
  • लेखक: सैय्यद ऐजाज़ हुसैन मुसावी
  • स्रोत:
  • रिलीज की तारीख: 23:46:42 3-9-1403

इस्लाम, स्वस्थ विश्वासों, सही आचरण, अच्छे चरित्र, स्थिर अहकाम और आदेशों एवं निषेधों का संग्रह है।

इस धर्म के नियम और सिद्धांत प्रत्येक काल में मनुश्य की आवश्यकता के अनुसार वही (आकाशवाणी) के माध्यम से रसूले अकरम (स0) के पाक ह्रदय पर उतारे गये हैं और आप (स0) लोगों के अनुदेश के लिए इन सिद्धांतों का वर्णन किया करते थे।

पैग़म्बरे अकरम (स0) की रिसालत के मध्य ग़दीरे ख़ुम में अमीरुल मोमिनीन अली (अ0) को मोमिनीन का संरक्षक, लोगों की स्वामी शासक और मार्ग दर्शक बनाया गया तो ये इस्लाम धर्म सिद्धातों के पेश करने हलाल एवं हराम का वर्णन करने और वास्तविक्ता को प्रमाणित करने लिहाज़ से सम्पूर्ण हुआ और लोगों को महाप्रलय तक आप (स0) के अतिरिक्त किसी और को पैग़म्बर, क़ुरआन के अतिरिक्त दूसरी किताब और इस्लाम के अतिरिक्त किसी दूसरे धर्म से नि:स्पृह (बे नियाज़) कर दिया गया और उनको ऐसी वास्तविक्ता के पास ला दिया गया जिस के माध्यम से वह महाप्रलय तक अपने माद्दी और मानवी सिद्धांतो की आवश्यकता को पूरा कर सके।

الْيَوْمَ أَكْمَلْتُ لَكُمْ دِينَكُمْ وَأَتْمَمْتُ عَلَيْكُمْ نِعْمَتِي وَرَضِيتُ لَكُمُ الإِسْلاَمَ دِينًا[1]

आज मै ने तुम्हारे लिये धर्म को सम्पूर्ण कर दिया है और अपनी अनुकम्पा को सम्पूर्ण कर दिया है और तुम्हारे लिये इस्लाम धर्म को मनोनीत बना दिया है।

इमाम मोहम्द बाक़िर (अ0) फ़रमाते

وکانت الفريصة تنزل بعد الفريصة الاخری و کانت الولاية آخر الفرائض فانزل الله عزوجل:(الْيَوْمَ أَكْمَلْتُ لَكُمْ دِينَكُمْ وَأَتْمَمْتُ عَلَيْكُمْ نِعْمَتِي وَرَضِيتُ لَكُمُ الإِسْلاَمَ دِينًا)[2]

पैग़म्बरे अकरम (स0) के अवतरण काल में निरंतर विभिन्न प्रकार के अहकाम अवरोहित होते थे, मुसलमानो की विलायत और मार्ग दर्शता अन्तिम आवश्यक काम था (जिस को अवरोहित करने के बाद) ईश्वर ने ये आयत अवरोहित की (आज मै ने तुम्हारे लिये धर्म को सम्पूर्ण कर दिया है और अपनी अनुकम्पा को सम्पूर्ण कर दिया है और तुम्हारे लिये इस्लाम धर्म को मनोनीत बना दिया है।)

एक कथन में इमाम जाफ़र सादिक़ (अ0) फ़रमाते हैं

पैग़म्बरे अकरम (स0) की सेवा में जिबरईल उपस्थित हुए और कहा ऐ मोहम्मद ईश्वर आप पर सलाम भेजता है और आप से कहता है अपनी उम्मत (मुसलमानों) से कहो आज तुम्हारे धर्म को अबी तालिब के बेटे अली (अ0) के मार्ग दर्शन और विलायत के माध्यम से पूर्ण कर दिया और अपनी अनुकम्पा को तुम पर सम्पूर्ण कर दिया और तुम्हारे लिये इस्लाम धर्म को स्वीकार कर लिया। और इस के बाद अब कोई आदेश अवरोहित नही करूंगा। इस से पहले नमाज़, ज़कात, रोज़ा, और हज को दूसरे आदेश बना कर उतार चुका हूँ और विलायत एवं उत्तराधिकारी का चयन पाँचवा और अन्तिम आदेश है, इस चारों आदेशों को भी अबी तालिब के बेटे अली (अ0) की विलायत एवं लीडरी के बिना स्वीकार नही करूंगा।[3]

इस वास्तविक्ता का वर्णन कर देना आवश्यक है कि पैग़म्बरे अकरम (स0) और अइम्मा मासूमीन (अ0) के तमाम कथन, ईश्वरीय आदेशों और क़ुरआनी आयतों की व्याख्या हैं, जो कि विश्वस्त किताबों से विश्वास पात्र रावी (किसी की कही बात को बयान करने वाला) से ली गयी हैं, ये सारे कथन समय के अनुसार और लोगों की आवश्यकता के अनुरूप शिक्षा एवं ज्ञान के स्रोत और अलौकिक परिवार से निकले है।

इस्लाम, स्वस्थ विश्वासों, सही आचरण, अच्छे चरित्र का नाम है और इन्सानों को ईश्वर के आदेशों को बिना किसी तर्क के स्वीकार कर लेना चाहिये, जिस समय इस्लाम इन्सानों की माद्दी और मानवी (लौकिकि एवं अलौकिक) जीवन के सम्पूर्ण व्यवहारिक एवं सदाचारिक पक्षो में विश्वास के साथ विराजमान हो जाता है तो वह इन्सान को मुसलमान की परिधि से निकाल कर उस के वास्तविक आशय में प्रविष्ट कर देता है परिणाम स्वरूप इन्सान को परलोक एवं संसार दोनो का सौभाग्य प्राप्त हो जाता है।

ईश्वर के सारे आदेशों को स्वीकार कर लेने का मूल्य इतना अधिक है कि तमाम अम्बिया और औलिया ने विनती एवं विलाप के साथ इस की इच्छा की है।

हज़रत इब्राहीम और इस्माईल (अ0) ने काबे का निर्माण करने के बाद दुआ के लिये हाथ उठाया और ईश्वर से कहाः

رَبَّنَا وَاجْعَلْنَا مُسْلِمَيْنِ لَكَ وَمِن ذُرِّيَّتِنَا أُمَّةً مُّسْلِمَةً لَّكَ[4]

हे ईश्वर! हम दोनो को अपना मुसलमान और आज्ञाकारी बना दे और हमारी संतान में भी एक आज्ञाकारी उम्मत पैदा कर।

हज़रत याक़ूब (अ0) ने अपने बेटों को वसीयत (मरते समय कहना कि मेरे पश्चात ऐसा ऐसा हो) करते समय कहा और इस बात की इब्राहीम (अ0) और याक़ूब (अ0) ने अपनी संतान को वसीयत की और कहाः

وَوَصَّى بِهَا إِبْرَاهِيمُ بَنِيهِ وَيَعْقُوبُ يَا بَنِيَّ إِنَّ اللّهَ اصْطَفَى لَكُمُ الدِّينَ فَلاَ تَمُوتُنَّ إَلاَّ وَأَنتُم مُّسْلِمُونَ[5]

और इसी बात की इब्राहीम (अ0) और याक़ूब (अ0) ने अपनी औलाद को वसियत की कि ऐ मेरे बेटों ईश्वर ने तुम्हारे लिये धर्म को निर्वाचित कर दिया है अब उस समय तक संसार से ना जाना जब तक वास्तविक मुसलमान न हो जाओ।

हज़रत यूसुफ़ (अ0) ने ईश्वर के दरबार में इस प्रकार से प्रार्थना कीः

تَوَفَّنِي مُسْلِمًا وَأَلْحِقْنِي بِالصَّالِحِينَ[6]

मुझे संसार से आज्ञाकारी उठाना और सदाचारियों की पंक्ति मे रखना।

ईश्वर को केवल इस्लाम धर्म स्वीकार्य है

इन्सान की पूरे माद्दी और मानवी जीवल काल मे न्यायिक स्तर पर अनुदेश और उसकी इन्सानियत के आधार को द्धढ़ करते हुऐ उस को गुणों एवं विभूति का स्रोत बना देना इस्लाम के अतिरिक्त कोई और धर्म नही कर सकता है।

इस्लाम ईश्वर के समक्ष सर झुकाता है और उस के आदेशों का संचालन  करते हुऐ इन्सान के जीवन को संसार मे पवित्र जीवन और परलोक मे अशीयतुर राज़िया बना देता है और चूंकि कोई भी अध्यापक या संस्कृति एवं सभ्यता, इस्लाम की तरह सम्पूर्ण और शक्तिमान नही है इसलिए ईश्वर ने इस को इन्सानों के लिये धर्म विधान बनाया है और इस्लाम के अतिरिक्त किसी दूसरे धर्म को स्वीकार नही किया है।

ईश्वर ने जिस प्रकार से संसार मे इस्लाम को इन्सान के लिये मनोनीत धर्म जाना है उसी प्रकार महाप्रलय मे भी वह अपने भक्तों से केवल इसी धर्म को मांगेगा।

ईश्वर संसार में अपने मनोनीत धर्म के बारे मे कहता हैः

رَضِيتُ لَكُمُ الإِسْلاَمَ دِينًا...[7]

तुम्हारे लिये इस्लाम धर्म को मनोनीत बना दिया है।

और महाप्रलय मे इस्लाम के लिये कहता हैः

وَمَن يَبْتَغِ غَيْرَ الإِسْلاَمِ دِينًا فَلَن يُقْبَلَ مِنْهُ وَهُوَ فِي الآخِرَةِ مِنَ الْخَاسِرِينَ[8]

और जो इस्लाम के अतिरिक्त कोई भी धर्म मानेगा तो वह धर्म उससे स्वीकार नही किया जाएगा और वह महाप्रलय के दिन घाटे उठाने वालों मे होगा।

इस्लाम सारे संसार का धर्म है

यह पवित्र धर्म आत्मा के अनुसार ईश्वर के सामने सिर झुकाने और उसके आदेशों का पालन करना है इसलिए यह धर्म केवल इन्सानो के लिए नही है बल्कि ये अपनी उत्पत्ति के पड़ाव मे इस संसार की सारी चीज़ो को सम्मिलित है।

क़ुरआने मजीद इस बारे में फ़रमाता हैः

وَلِلّهِ يَسْجُدُ مَا فِي السَّمَاوَاتِ وَمَا فِي الأَرْضِ مِن دَآبَّةٍ وَالْمَلآئِكَةُ وَهُمْ لاَ يَسْتَكْبِرُونَ[9]

और अल्लाह ही के लिए आसमान की सारी चीज़े और ज़मीन के सारे चलने वाले और फ़रिश्ते सजदा करते हैं और कोई अभिमान एवं घमंड करने वाला नही है

दूसरी आयत में फ़रमाता हैः

وَالنَّجْمُ وَالشَّجَرُ يَسْجُدَانِ[10]

और बेल बूटियां और वृक्ष सब उसी को सजदा कर रहे हैं।

बहर हाल अपनी उत्पत्ति के पड़ाव में इस्लाम सारी सृष्टि का धर्म है लेकिन तशरीअ (आदेश के पड़ाव) में मनुष्य के लिए ईश्वर का मनोनीत धर्म है।

सारी सृष्टि के उपर जो दृण और मज़बूत व्यवस्था शासन कर रही है वह तकवीनी इस्लाम है (उत्पन्न इस्लाम )

इंसान अगर सारी सृष्टि और दृण एवं मज़बूत व्यवस्था से लाभ उठाना चाहता है तो उसको इस्लामी आदेशो (तशरीई इस्लाम) को मानना पड़ेगा और वह अपने जीवन की सारी लौकिक एवं अलौकिक (माद्दी एवं मानवी) आवश्यकताओं को इस्लाम पर  आस्था रखने और उसके आदेशों का पालन करने के माध्यम से पूरा कर सकता है और इस संसार एवं परलोक का सौभाग्य प्राप्त कर सकता है।

नागरिकता इस्लाम की दृष्टि में

इस्लाम धर्म में ईश्वर की अराधना (इबादत), एकाकी, समाजी, अर्ध व्यवस्था, सियासत (राजनीति, ब्रह्नाज्ञान, बुद्धि और ज्ञान जैसी सारी चीज़े पाई जाती हैं, इसीलिए क़ुरआने करीम ने इस को संपूर्ण धर्म जाना है और इसी संपूर्णता की वजह से नागरिकता की तरफ़ ध्यान दिलाया है जो मनुश्य के लिए अति आवश्यक है और सही नागरिकता की वयाख्या करने के लिए मार्ग दर्शन है चाहे वह अम्बिया, अइम्मा और ईश्वरीय दूतो के साथ आत्मा का संबन्ध हो या उनके समक्ष हो, और चाहे उनकी अनुपस्तिथि में, इसी प्रकार नागरिकता चाहे पत्नि, बेटे, माँ, बाप और संबंधियों के साथ हो या दूसरे व्यक्तियों के साथ इस्लाम ने ऍसे नियम बना दिये हैं कि अगर कोई नागरिकता की सारी समस्याओं में इस आदेशों का पालन करे तो कल्याण एवं सौभाग्य उस के क़दम चूमेंगें और नागरिकता से माध्यम से एक दूसरे के दोस्त हो जाऐगें और इस प्रकार से अपनी कुछ लौकिक एवं अलौकिक (माद्दी एवं मानवी) समस्याओं या दूसरे की समस्याओं का हल निकाल सकेगें।

नागिरकता का स्थान

नागरिकता सृष्टि के नियम के अनुरूप है

बहर हाल इस सारी सृष्टि पर एक नियम शासन कर रहा है इस प्रकार से कि आत्मज्ञानी इस को एक मानते हैं, जैसे कि सारे संसार सारी उत्पत्ति इंसान को निमंत्रण दे रही है किः

सारे इंसान अपने जीवन को दोस्ती और मोहब्बत से जीयें और सब मिल जुल कर माद्दी मानवी (लौकिक एवं अलौकिक) सदाचार इंसानी आचरण में एक दूसरे की सहायता करें और एक दूसरे की ख़ुशी और ग़म में समिलित हों और एक दूसरे के जीवन के रिक्त स्थान को अच्छे व्यवहार से भरें, और ईश्वर एवं परलोक पर आस्था और इस्लाम के जीवनदायी नियमों का ज्ञान रखते हुए नागरिकता एवं दोस्ती के साथ जीवन यापन करें, ताकि सब की दुनिया एवं परलोक सौभाग्यमय हो जाए और कल्याण एवं सौभाग्य सदा उन के संग रहे और इस प्रकार की नागरिकता और दोस्ती की छाया में सुख शांति, प्यार मोहब्बत, और श्रेष्ठता और बड़ाई से जीवन यापन करें।

ये दोस्ती और मिलाप चीज़ों के बीच विशेषकर मनुष्य के लिए महान प्रतिफल को जन्म देती है। ऐ काश कि इंसान भी एक दूसरे के लिए मैत्री, दोस्ती एवं पार्श्व वर्ती के साथ एक दूसरे के जीवन में अच्छे विचार व्यक्त करते ताकि जीवन का वातावरण स्वर्ग जैसा हो जाता और सदैव एक दूसरे से इंसानी एवं सद्व्यवहारिक लाभ उठाते। नि:सन्देह इस प्रकार की दोस्ती और पार्षदता केवल ईश्वर, महाप्रलय, इस्लाम धर्म के नियमों का पालन करने, अम्बिया, क़ुरआन और मासूमीन (ईश्वरीय दूत) पर आस्था रखने से ही मिल सकती है।

अब्र व बाद व मह ख़ुर्शीद व फ़लक दर कारन्द

ता तू नानी बेह कफ़ आरी व बेह ग़फ़्लत नख़ुरी

बेहमे अज़ बहरे तू सर गश्ते व फ़रमान बरदार

शर्ते इंसाफ़ नबाशद केह तू फ़रमान नबरी[11]

अनुवादः अल्लाह तआला ने बादल, हवा, चाँद सूरज और आसमान सब को तुम्हारी ख़ातिर काम पर लगा रखा है ताकि तुम हाथ में आई हुई रोटी को बेख़बरी व ग़फ़लत में न खाओ, यह सब तुम्हारे लिये हैं और तुम्हारे इशारे और हुक्म पर सर झुकाते हैं, अब ये न्याय नही है कि तुम उस अल्लाह के आदेश का पालन न करो।

सृष्टि का मेलजोल एवं मैत्री

इस वास्तविक्ता की व्याख्या कि सारी सृष्टि एक दूसरे से मिली हुई है करने के लिए एक बहुत बड़ी पुस्तक लिखने की आवश्यकता है, इसलिए हम यहां पर इस से  संबंधित कुछ आवश्यक पहलुओं पर प्रकाश डाल रहे हैं।

अगर सृष्टि के बीच बुद्धिमान और शक्तिमान पैदा करने वाला, कृपालु और बुद्धिमान उत्पत्ति कर्ता इस प्रकार की दोस्ती मिलाप उत्पन्न न करता तो नि:सन्देह जीवन इस प्रकार न होता और सृष्टि का क्रम इतना सुंदर और व्यवस्थित एवं संगठित आकृति में प्रकट न होता।

सारी सृष्टि एक दूसरे मे समाहित है, यानी एक का जीवन दूसरे के जीवन पर निर्भर है, दूसरे शब्दों में ये कहा जाए कि हर एक का अस्तित्व दूसरे के अस्तित्व को पूर्ण करता है।

मानो इस संसार की सारी सृष्टि के सारे अंश और सेल्स एक शरीर से बने हैं, और उन के बीच जीवन का एक संबंध स्थापित है, इस प्रकार से कि अगर इस संसार में कोई छोटा सा दोष भी प्रकट हो जाए और एक प्राणि वर्ग भी समाप्त हो जाए तो दूसरे प्राणियों के जीवन के लिए भी संकट उत्पन्न हो जाएगा।

अब हम यहा पर प्राणि वर्ग के बीच छोटा सा नमूना पेश करते हैं।

पक्षियों के पंख और  मनुष्य का जीवन

अगर पक्षियों के पंख न होते तो इंसान व जानवर जीवित न रहते, अगर विश्वास नही होता तो इस पर ध्यान दें

पंख, पक्षियों के शरीर को सर्दी एवं गर्मी से बचाने के लिए उन का वस्त्र हैं, और उड़ने में बहुत सहायता करते हैं, अगर पक्षियों के पंख न होते तो सर्दी एवं गर्मी मे वह जीवित नही रह सकते और शीघ्र ही सब समाप्त हो जाऐंगे फिर क्या होगा?

कीड़े मकोड़े (जो कि अधिक्तर पक्षियों का खाना हैं) अधिक हो जाऐगें और जब ये अधिक हो जाऐंगे तो वह सदैव बढ़ते ही रहेगें और फैलते रहेगें, खेती को खा जाऐंगे, शस्यस्थल और गोचर समाप्त हो जाऐंगे, हरियाली और वृक्ष समाप्त हो जाऐंगे, चरने और घास खाने वाले जानवर खाना न होने के कारण मर जाऐगें, और फिर शाकाहारों के बाद मांसाहारो का नंबर आएगा वह भी मर जाऐंगे और धरती ख़ाली हो जाएगी और कोई भी चलने फिरने वाला प्राणी दिखाई न देगा, इसी प्रकार कीड़ों की अधिकता से कीटाणु अधिक हो जाऐंगे और जब कीटाणु अधिक होगें तो मनुष्य, जानवर, घास फूस सब समाप्त हो जाऐंगे।[12]

पानी और ताप

धरती का पानी सूरज की ऊषमा से भाप बनता है, भाप ऊपर ठंडे स्थल में जा कर बादल बनता है, बादल वर्षा बनते हैं और सभी जानते हैं कि अगर धरती पर वर्षा न हो तो क्या होगा!

क्या आप ये भी जानते हैं कि अगर सूरज की ऊषमा ठीक मात्रा मे धरती के पानी तक न पहुंचे तो वर्षा नही होगी? अगर पानी को भाप बनने के लिए बहुत अधिक मात्रा मे ताप की आवश्यकता होती तो कभी वर्षा न होती, जो भाप ऊपर जाती है वह अगर ठंडे स्थल में न पहुंचे तो भी वर्षा नही हो सकती, जो भाप ठंडे स्थल में पहुंती है अगर उसमें एक स्थान पर एकत्र होने की योग्यता न होती तो न ही बादल बनते और न वर्षा होती, अगर बादलो में दोष रह जाता तो वर्षा न होती अगर धरती का आक्रषण वर्षा की बूंदों को अपनी ओर न खींचता तो वर्षा न होती और वर्षा में सहायक अनगिनत कारण न होते तो वर्षा न होती।[13]

वायु और वर्षा

क्या आप जानते हैं कि जीवित वस्तु और घास के जीवन में वायु कितनी प्रभावी है? क्या आप जानते हैं कि संसार में हवा चलने में क्या प्रबंध और व्यवस्था छुपी हुई है?

वायु वर्षा बनाती है, अगर हवा न हो तो वर्षा नही हो सकती, प्रकर्ति के जानकार कहते हैं कि: बादल एक बिजली (विधुत) की तरह है अगर एक प्रकार की हो तो एक दूसरे को दूर करती है और अगर दो तरह की हो तो एक दूसरे को खीचती है।

वायु की विषेशता ये है कि वह दो प्रकार की विधुत को एकत्र करती है परिणाम स्वरूप एक विधुत दूसरी को आकर्शित करती है और विधुत का मिलाप होता है और वर्षा इसी मिलाप का परिणाम होती है, इसलिए इन दो विधुतों के मिलाप एवं मैत्री से जो प्रभावी आमिल उत्पन्न होता है और उसको वर्षा का नाम दिया जाता है वह हवा है।

मौसमी हवायें जो महा सागरों की तरफ़ से आती हैं और गर्म क्षेत्रों में चलती हैं अगर ये हवायें न चलें तो वहा पर गर्मी की अधिकता से जीवन व्यतीत करना कष्टकारी हो जाता, वायु गर्मी की अधिकता को कम करती है और इन क्षेत्रों को मनुष्य के जीवन अनुसार बनाती है, इन्ही क्षेत्रों में से एक हिन्दुस्तान है जो बहुत गर्म प्रदेश है लेकिन हवा ने इस भूखंड को जीवन के अनुसार बना दिया है।

दरयाई और ज़मीनी हवायं जो रात दिन गर्म क्षेत्रों में चलती रहती हैं इन हवाओं ने समुद्र तट पर रहने वालों के जीवन को आसान बना दिया है।

गर्म क्षेत्रों से गर्म वायु ठंडे इलाक़ो की तरफ़ जाती है और वहां की सर्दी को कम करती है, जैसे इंग्लैड के लिए गल्फ़ इस्ट्रेम और जापान के लिए गल्फ़ वल्ड (gulf world)

भूमध्य रेखा से नीचे की गर्मी को विद्रान लोग जानते हैं और वह जानते है कि इसकी गर्मी प्रकर्ति के अनुसान बढ़ती रहती है, उत्तरीय और दक्षिणीय ध्रुव के मुक़ाबले में भूमध्य रेखा के क्षेत्रों में वहा बहुत ही तेज़ होती है जिसके कारण वहां के लोग बहुत आसानी से जीवन बसर करते हैं।

क्षेत्रों की बारिश के हालात को वायु बदल देती है, इन्डोनेशिया जैसे देशों में वर्षा ऋतु को गर्मी की ऋतु कहा जाता है, लबनान में बारिश सर्दियों में होती है।

कुछ क्षेत्रों में शायद हिन्दुस्तान का एक शहर भी इसी में से है, पूरे साल वर्षा होती है, हिन्दुस्तान के इस क्षेत्र में एक एक साल में ग्यारह मीटर तक बारिश हो जाती है पृथवी पर वर्षा ऋतु का भिन्नता कारण बनती है कि मनुश्य हर तरह की वनस्पति से लाभ उठा सकता है।

ज़्यादातर वनस्पतियों में नर मादा दोनो पहलू पाए जाते हैं जैसे मनुष्य मे दोनो पाए जाते हैं, अकसर वनस्पतियों में क़लम लगा दी जाए तो वह बहुत ज़्यादा फल देते हैं और अगर ये न किया जाए तो अच्छे फल नही देते हैं।

कुछ वृक्षों की क़लम इंसान लगाता है जैसे खजूर की नेकिल कुछ दूसरे वृक्षो की क़लम नर और मादा के माध्यम सो हवा करती है, इस से पता चलता है कि अगर हवा ये काम न करे तो पूरी दुनिया में अच्छे फल न पायें।

खजूर के वृक्ष का क़लम मे भी हवा का प्रभाव होता है, हवा के माध्यम से क़लम का अर्थ ये है कि वायु नर वृक्ष के कणों को लेकर मादा वृक्ष तक पहुंचा देती है, इस के अलावा कीड़ो के माध्यम से भी ये काम होता है।

अब तक जो बयान किया वह वायु की सेवा से संबंधित था अगरचे हवा की सेवायं इस से बहुत अधिक हैं।[14]

कुकुरमुत्ता और जलबक

कुकुरमुत्ता अपने अंदर हरे रंग का मूल द्रव्य (क्लोरोफ़िल) न होने के कारण (जो कि अकसर वनस्पतियों में कारबन लेने के लिए होता है और ये शकर और चर्बी आदि बनाने के काम आता है) सदैव प्रयत्न करता है कि क्लोरोफ़िल वाली घास से दोस्ती करे और इस प्रकार अपने जीवन के लिए उचित आहार प्राप्त करे। इसलिए ये “जलबक” से दोस्ती करता है (जो ख़ुद भी एक दूसरे दर्द से ग्रस्त है यानी उसमें पृथ्वी की शक्ति और खनिज पदार्थ को अपने अंदर प्राप्त करके की योग्यता नही होती है लेकिन इसके बदले उसमे क्लोरोफ़िल बहुत अधिक होता है) दोनो तरफ़ से इस दोस्ती और उपनिवेश के प्रसताव के माध्यम से कुकुरमुत्ता जलबक से क्लोलोफ़िल प्राप्त करता है और जलबक कुकुरमुत्ते से शक्ति लेता है।

क्या कुकुरमुत्ता और जलबक एक साथ मिलकर अपने इस बुद्धिमत्ता पूर्ण सहयोग के माध्यम से एक सचेत, बसीर, और हकीम (बुद्धिमान) मबदा (पैदा करने वाला) की तरफ़ अनुदेश कर सकता है?[15]

घास और जानवर

हर वनस्पति अपने समान वनस्पति उत्पन्न करती है और ये ख़ुद एक आश्चर्य जनक और जटिल वनस्पतियों को उत्पन्न करती है जो कि ईश्वरेच्छा और विस्तिरित प्रोग्राम के अधीन अंजान पाती है, आप ने उनकी परिचित एवं प्रचलित आकृतियों को बहुत बार देखा होगा, अधिक जानकारी के लिए हम दूसरे उदारहण पेश करते हैं:

फूल और वनस्पतियों के विभिन्न समूह अपने कारख़ानो और निजी ग्रंथियों के कारण विभिन्न फूलों के शीरे को बनाते हैं और चुने हुए कीड़ों को अपने इर्द गिर्द इकट्ठा करते हैं ताकि यो कीड़े, क़लम लगाने का काम करें, जिस के फल स्वरूप अगले साल और अगली नस्ल के फूलों और पौधों को तैयार करने के लिए आवश्यक बीद तैयार हो सकें

यही वह स्थान है जहां वनस्पतियां अपने जमा किये हुए विभिन्न शीरों के माध्यम से कीड़ों को अपने साथ दोस्ती पर बाध्य करते हैं या दूसरे शब्दों मे ये कहा जाए कि ईश्वरीय व्यवस्था ने जानवरों को वनस्पति की उत्पत्ति की सेवा के लिए बनाया है।

इस जटिल प्रकिर्या और राज़ को इस विद्या के जानकार डाक्टर जान विलियम क्लातेस की दृष्टि से अध्ययन करें जो कि जीव विज्ञान के गुरू या फ़िज़ियोलाजी, प्रकृति और फ़लसफ़े के डाक्टर और विभिन्न प्रकार के कीड़ों की विरासत मे माहिर हैं, वह कहते हैः

विश्व के जटिल विषयों मे से एक विषय एक तरह का इजबारी संबंध और समागम है जो कुछ उत्पत्तियों के बीच जैसे एक चुने हुए फूल और एक ख़ास जानवर के बीच देखने को मिलता है। इस गहरे संबंध के एक चरितार्थ यूका फूल[16] और यूका मक्खी के अंदर पाया जाता है। यूका फूल के सर नीचे की तरफ़ होता है और इस फूल के मादा के भाग नर फूल से नीचे की तरफ़ होता है, फूल की मादा का भाग जहां बीज को जाना चाहिए, इस प्रकार से है कि उस मे अपने आप बीज प्रवेश नही कर सकता, यूका का बीज मादा यूका मक्खी सूर्यास्त के थोड़ी ही देर बाद उठा कर ले जाती है और फिर यूका मक्खी इस बीज का एक भाग को मुंह मे दबाती है और मादा फूल की ओर उड़ती है, फूल के बीज को उस पर छिड़कती है और अपने बीज के कुछ दाने उस पर रखती है, फिर इस के ऊपरी भाग को इस बीज से छिपा देती है जिस को वह ले कर आई है।

फूल बहुत अधिक दाने देता है जिस मे से कुछ को मक्खी के नवजात कीड़े खा लेते हैं और उसमें से कुछ दाने नये फूल बनाते है, यूका फूल की नस्ल के बाक़ी रहने का राज़ इस की उत्तपत्ति से ले कर आज तक केवल इसी मक्खी के माध्यम से होता है।[17]

इंजीर और उसके अंदर छोटे छोटे मच्छरों के बीच भी इसी प्रकार का संबंध पाया जाता है।

इंजीर के वृक्ष के गुच्छे दो प्रकार के होते हैं, इनमे से कुछ मे नर फूल भी होते हैं और मादा फूल भी होते है और कुछ मे केवल मादा फूल होते हैं, लेकिन ये सब फूल मादा मक्खियों के माध्यम से क़लम कारी करते हैं, इस प्रकार कि इन फूलों के ऊपर विभिन्न पत्ते होने के कारण उन के मदख़ल को पार करना बहुत कठिन होता है इसलिए बेचारे कीड़े बहुत ही परिश्रम के साथ उसके अंदर जा पाते हैं और उसके अंदर जाते समय उन के पर उखड़ जाते हैं लेकिन ईश्वरेच्छा उनको इस कठिक कार्य पर मजबूर करती है जिस के कारण वह उसके अंदर दाख़िल हो जाते हैं।

अगर फूल उस प्रकार के हैं जिसमें नर और मादा दोनों पाय जाते हैं तो उस में मादा मक्खी अंडे देती है और ख़ुद मर जाती है, बाद में वह अंडे मक्खी बन जाते हैं, नर मख्खियां मर जाती हैं और मादा मक्खियां फूल से बाहर आ कर दूसरे फूलो की तरफ़ उड़ान भरती हैं, लेकिन यो मक्खियां फूलों के अंदर से बाहर आने से पहले फूल के अंदर मौजूद बीज मे लिपट जाती हैं ताकि उस बीज को दूसरे फूलों तक पहुंचा सकें।

अगर दूसरे फूल जिन के ऊपर ये मक्खियां बैठती हैं, उस प्रकार की हैं जिसमें नर और मादा दोनो पाये जाते हैं तो ये गत कार्य दोबारा होता है और अगर नया फूल केवल नर हो तो उस फूल की गहराई अधिक होने के कारण ये मक्खियां उस फूल पर अंडे दिये बिना उस पर बैठने के बाद वहां से उड़ जाती हैं लेकिन उन के इस थोड़ी देर बैठने के कारण उसमें जो बीज लिपटा होता है उसके माध्यम वह उसमें क़लम लगा देती है जिस के परिणाम स्वरूप ये फूल बड़ा होने के बाद इंजीर में बदल जाता है।

जब अमरीका में इंजीर का पहला वृक्ष लाया गया तो उस पर फूल नही आए, काफ़ी समय बाद उन लोगों ने ध्यान दिया कि इस वृक्षों को लाते समय इन के साथ जो मक्खियां होती हैं वह उन को नही लाए थे, इसलिए जब उन ख़ास मक्खियों को लाया गया तो उन वृक्षो पर फल आने लगे और इंजीर अमरीकी व्यवसाय का प्रमुख अंग बन गयी।[18]

[1] सूरह माएदा आयत 3

[2] सूरह माएदा आयत 3. अलकाफ़ी, जिल्द 1, पेज 289, भाग मा नस्साल्लाह अज़्ज़ा व जल व रसूलहु.... हदीस 4।

[3]عن جعفر بن محمد الخزاعی عن ابيه قال: سمعت ابا عبدالله عليه السلام يقول: لما نزل رسول الله عرفات يوم الجمعة اتاه جبرئيل فقال له: يا محمد ان الله يقرئک السلام و يقول لک: قل لامتک: الْيَوْمَ أَكْمَلْتُ لَكُمْ دِينَكُمْ وَأَتْمَمْتُ عَلَيْكُمْ نِعْمَتِي وَرَضِيتُ لَكُمُ الإِسْلاَمَ دِينًا و لست انزل عليکم بعد هذا قد انزلت عليکم الصلاة و الزکاة و الصوم و الحج و هی الخامسة و لست هذه الاربعة اقبل الا بها तफ़्सीरे अय्याशी जिल्द 1, पेज 293, हदीस21, बिहारुल अनवार, जिल्द 37, पेज 138, भाग 52, हदीस 28

[4] सूरह बक़रा आयत 128

[5] सूरह बक़रा आयत 132

[6] सूरह यूसुफ़ आयत 101

[7] सूरह माएदा आयत 3

[8] सूरह आले इमरान आयत 85

[9] सूरह नहल आयत 49

[10] सूरह रहमान आयत 6

[11] सअदी शीराज़ी

[12] निशानेहाई अज़ ऊ पेज 41

[13] निशानहाई अज़ ऊ, पेज 49

[14] निशानहाई अज़ ऊ, पेज 164

[15] जाहेलियत व इस्लाम, पेज 321

[16] यूका (yocca) अमरीका मे एक घास का नाम है।

[17] जाहेलीयत व इस्लाम, पेज 322

[18] जाहेलीयत व इस्लाम, पेज 323