आज सूचना, उद्योग और तकनीक का दौर है। यह वह चीजें हैं जिसने इंसान के जीवन को परिवर्तित कर दिया है। हां तकनीक में इस प्रकार के विकास से इंसान कभी उन्नति व प्रगति करता है और यही विकास कभी उसके पतन का कारण बनता है। दूसरे शब्दों में यह कहा जा सकता है कि जहां तकनीक में विकास ने इंसान के लिए बहुत से कार्यों को बहुत सरल बना दिया है वहीं इस विकास ने इंसान से शांति छीन कर उसे व्याकुल बना दिया है और उसे अपने जीवन के मूल उद्देश्य से निश्चेत बना दिया है।
निःसंदेह जीवन सुन्दर है और यह दुनिया भी अनगिनत सुन्दरताओं और सुन्दरता उत्पन्न करने वाली वस्तुओं से भरी पड़ी है। स्वाभाविक रूप से इंसान सुन्दरता को पसंद करता है और महान व सर्वसमर्थ ईश्वर ने इंसान के आराम व शांति के लिए हर प्रकार की वस्तु की रचना की है और इंसान को चाहिये कि वह महान ईश्वर द्वारा प्रदान की गयी वस्तुओं से वैध व सही तरीके से लाभ उठाये।
वास्तव में एक स्वस्थ व संतुलित इंसान संसार में मौजूद वस्तुओं से लाभ उठाना चाहता है और इंसान की प्राकृतिक रुचियों व रूझानों का इस्लाम धर्म विरोधी नहीं है परंतु वह इन वस्तुओं से लाभ उठाने के बारे में इंसान को चेतावनी अवश्य देता है। उदाहरण स्वरूप अगर किसी इंसान के भीतर धन- दौलत की चाहत सीमा से अधिक हो जाये तो यह बहुत खतरनाक हो जायेगी और इंसान परिपूर्णता के मार्ग पर अग्रसर होने के बजाये दिग्भ्रमित हो सकता है।
ईश्वरीय दूतों और पैग़म्बरों के विरोधियों का जीवन इस बात का सूचक है कि वे अपनी और अपने समर्थकों की सम्पत्ति के कारण स्वयं को श्रेष्ठ समझते थे जबकि उन्हें यह बात ज्ञात नहीं थी कि महान ईश्वर के निकट श्रेष्ठता का मापदंड केवल तक़वा अर्थात ईश्वरीय भय व सदाचारिता है और यह वही वस्त्र व आभूषण था जिससे पैग़म्बरों, ईश्वरीय दूतों और मासूम इमामों ने धारण कर रखा था। इन महान हस्तियों ने शैतानी उकसावे का मुकाबला किया। यह महान हस्तियां दूसरों की भांति जीवन में सांसारिक सुख -सुविधा की चीज़ों से लाभ उठा सकती थीं परंतु पूर्ण क्षमता के बावजूद उन्होंने बहुत ही सादा जीवन व्यतीत किया यहां तक कि उन्होंने जीवन की बहुत सी आवश्यक वस्तुओं से लाभ ही नहीं उठाया ताकि दूसरों के लिए आदर्श बन सकें। इसी कारण पैग़म्बरे इस्लाम और उनके पवित्र परिजनों ने सदैव इस बात की चेतावनी दी थी कि भौतिक व सांसारिक चीज़ों से लगाव खतरनाक है। इसी तरह इन महान हस्तियों ने यह भी बता दिया है कि किस प्रकार धन- सम्पत्ति की चाह से बचा जा सकता है।
धन- संचित करने की चाह बुरी नहीं है परंतु उसमें अतिवाद बुरा है और यह ईर्ष्या, घमंड, लालच और द्वेष जैसे नाना प्रकार के पापों की भूमिका बनती है। महान ईश्वर पवित्र कुरआन के सूरे हदीद की २०वीं आयत में कहता है” जान लो कि सासांरिक जीवन तो बस एक खेल और तमाशा है और साज-सज्जा और तुम्हारा एक दूसरे पर बड़ाई जताना तथा धन- सम्पत्ति और संतान में एक दूसरे से बढ़ा हुआ दिखाना और सांसारिक जीवन की मिसाल वर्षा जैसी है जिसकी वजह से किसानों की खेती लहलहाती और उन्हें खुश कर देती है फिर वह सूख जाती है तो वह उसको देखता है कि पीली हो गयी है फिर चूर चूर हो जाती है और परलोक में नास्तिकों के लिए कड़ा दंड है और ईश्वर की क्षमा तथा प्रसन्नता भी और सांसारिक जीवन तो केवल धोखे की सुख सामग्री है”
जब इंसान के अंदर सांसारिक चीज़ों की मोहमाया बढ़ने लगती है तो वह बहुत सी वस्तुओं में शैतानी उकसाहट का शिकार होने लगता है। उदाहरण स्वरूप इंसान जब अपने जीवन को दूसरों से बेहतर समझने लगता है तो उसके अंदर अहं घर करने लगता है। इस घमंड का परिणाम यह होता है कि वह दूसरों को छोटा समझने लगता है। यह एसी स्थिति में है जब ईश्वरीय धर्म इस्लाम इंसान को घमंड करने से मना करता है और वह जीवन की भौतिक संभावनाओं को मात्र वास्तविक पूरिपूर्णता तक पहुंचने का साधन समझता है।
दूसरी ओर जब इंसान अपनी आमदनी पर ध्यान देने के बजाये सांसारिक तामझाम पर ध्यान देने लगता है तो उसकी यह दृष्टि धीरे धीरे निरधनता का कारण बनती है। जिस इंसान का खर्च उसकी आमदनी से कम होता है या तकरीबन आमदनी के बराबर होता है तो आर्थिक दृष्टि से उसका जीवन बेहतर होता है परंतु जब इंसान अपने खर्च को अपनी आमदनी से अधिक कर लेता है तो वह नाना प्रकार की समस्याओं में घिरता जाता है और प्रतिदिन निर्धन से निर्धन होता जाता है। हज़रत अली अलैहिस्सलाम जीवन में अंदाज़े के अनुसार खर्च करने और सीमा से अधिक खर्च करने के परिणाम के बारे में फरमाते हैं” जीवन के खर्च में सीमा का ध्यान न रखना इंसान की निर्धनता का कारण बनता है”
जब इंसान सांसारिक जीवन की चमक- दमक में आ जाता है तो वास्तविक शांति समाप्त हो जाती है और उसके बहुत सारे परिणाम निकलते हैं जैसे परिवारिक और सामाजिक संबंध कमज़ोर पड़ जाते हैं। जो इंसान सांसारिक जीवन की चमक-दमक में आ जाता है वह सदैव एसी चीज़ों की तलाश में रहता है जो आधुनिकतम हों। जिस इंसान की सोच इस प्रकार की हो जाती है वह हमेशा परेशान रहता है और उसकी आत्मिक शांति समाप्त हो जाती है। हज़रत अली अलैहिस्सलाम कहते हैं” जिस इंसान का दिल दुनिया की मोहब्बत से भर जाये तो तीन चीज़ें उसके दिल से मिश्रित हो जाती हैं एसा दुःख जो उसका पीछा नहीं छोड़ता है, लालच कि जो उसे नहीं छोड़ती और वह आकांक्षा जिसे वह कभी भी प्राप्त नहीं कर सकता”
जो इंसान सांसारिक जीवन और भौतिक चीज़ों पर सीमा से अधिक ध्यान देने लगता है वह अपने पालनहार और ब्रह्मांड के रचियता से दूर हो जाता है और इसी प्रकार वह परलोक को भूल जाता है तथा वह छोटे एवं तुच्छ कार्यों में व्यस्त हो जाता है। महान ईश्वर सूरे रोम की ७वीं आयत में कहता है” वे केवल विदित व जाहिरी दुनिया को जानते हैं और वे परलोक से बेखबर हैं”
पवित्र कुरआन की यह आयत इस बात की सूचक है कि जो लोग दुनिया की चमक दमक के चक्कर में आ जाते हैं वह इस दुनिया में इस प्रकार व्यस्त हो जाते हैं कि यह भूल ही जाते हैं कि मरने के बाद दूसरे संसार अर्थात परलोक में भी जाना है। दूसरे शब्दों में जब इंसान यह समझ लेता है कि यही भौतिक संसार ही सब कुछ है और उसके बाद कोई दुनिया नहीं है और मरने के बाद वह समाप्त हो जायेगा तो इस प्रकार की सोच रखने वाला व्यक्ति वास्तविक मार्ग से भटक जाता है और वह अपने पतन के मार्ग में चला जाता है। इस प्रकार के व्यक्ति अगर दुनिया की वास्तविकता को समझे तो उसकी चमक- दमक के धोखे में नहीं आयेगा और परलोक पर ईमान लाता और यह समझ जाता कि क्षणिक संसारिक जीवन सदैव बाक़ी रहने वाले जीवन तक पहुंचने का मात्र एक चरण है।
दुनिया की चमक- दमक में आ जाने का एक दूसरा परिणाम यह होता है कि समाज दूसरों व विदेशियों पर निर्धर हो जाता है और धीरे- धीरे इंसान की प्रतिष्ठा व इज्जत के समाप्त होने का कारण बनता है। दुनिया की चमक- दमक की जाल में फंस जाने वाला व्यक्ति कभी भौतिक संसाधनों की पूर्ति के लिए दूसरों के सामने हाथ फैलाता है और बड़ी सरलता से दूसरों के समक्ष झुक जाता है। यद्यपि अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए दूसरों के साथ संबंध रखना आवश्यक है परंतु यह संबंध उसी सीमा तक अच्छा लगता है जब तक यह समाज में प्रचलित सीमा तक हो परंतु जब यह संबंध सीमा से अधिक हो जाये और इंसान का व्यक्तित्व खतरे में पड़ जाये तो यह स्वीकारीय नहीं है। इमाम सज्जाद ने फरमाया है कि जिसके पास दुनिया का माल अधिक हो जाये लोगों से उसकी आवश्यकता अधिक होगी”
ईश्वरीय धर्म इस्लाम एक संतुलित व मध्यमार्गी धर्म है। उसने जीवन की सुन्दरताओं और उसके संसाधनों के न केवल प्रयोग की अनुमति दी है बल्कि उनके प्रयोग की सिफारिश भी की है। अतः पवित्र कुरआन सूरे क़सस की ७७वीं आयत में कहता है” जो कुछ ईश्वर ने तुम्हें दुनिया से दिया है उससे परलोक के घर का निर्माण करो और जिस तरह ईश्वर ने तुम्हारे साथ भलाई की है उसी तरह तुम भी भलाई करो”
इमाम हसन अलैहिस्सलाम की जीवनी में आया है कि जब नमाज़ का समय होता था तो इमाम हसन अलैहिस्सलाम सबसे अच्छे वस्त्र धारण करते थे। जब उनसे इस कार्य के कारण के बारे में पूछा गया तो इमाम ने फरमाया ईश्वर सुन्दर है और वह सुन्दरता को पसंद करता है और इसी कारण मैं सुन्दर वस्त्र धारण करता हूं। क्योंकि स्वयं उसने आदेश दिया है कि मस्जिद जाने के समय स्वयं को सुन्दर बनाओ” इस आधार पर संतुलित सीमा तक सुन्दरता पसंद है परंतु बहुत से लोग जीवन में अतिवाद के मार्ग का चयन करते हैं और नाना प्रकार के बहानों से दुनिया की चमक- दमक में पड़ जाते हैं। इसी कारण जहां एक ओर पवित्र कुरआन दुनिया की अनुकंपाओं से लाभ उठाने की बात करता है वहीं सीमा से अधिक खर्च करने से मना करता और कहता है” हे आदम की संतान! प्रत्येक उपासना के अवसर पर स्वयं को सुसज्जित करो, खाओ- पिओ परंतु सीमा से आगे मत बढ़ो निश्चय ही वह सीमा से अधिक बढ़ जाने वालों को पसंद नहीं करता है।
अगर कोई इंसान यह चाहता है कि वह कुछ दिनों के सांसारिक जीवन की चमक- दमक में न पड़े तो उसे चाहिये कि वह दुनिया की अनुकंपाओं से सही तरह से लाठ उठाये।