मुसलमानों की तीन बड़ी समस्याएं
  • शीर्षक: मुसलमानों की तीन बड़ी समस्याएं
  • लेखक: सैय्यद ताजदार हुसैन ज़ैदी
  • स्रोत: tvshia.com
  • रिलीज की तारीख: 18:24:48 1-9-1403

हम मुसलमानों के पास क़ुरआन और अहलेबैत (अ) से मिली महान शिक्षा और एक शक्तिशाली सभ्यता है लेकिन हम मुसलमान तीन ऐसी समस्याओं में गिरफ़्तार हैं जिसकों हमें दूर करने के लिये मिलकर काम करना होगा। और वह तीन समस्याएं जो हम मुसलमानों के सामनें है और जो हम मुश्किल और समस्या की जड़ बनी हुई हैं वह यह हैं


1. एकता का न होनाः क़ुरआन की आयतों और इस्लामी रिवायतों में एकता, इत्तेहाद, भाईचारे के बारे में बहुत ताकीद की गई हैं, लेकिन हमने कभी भी इन चीज़ों पर ग़ौर नहीं किया, इतिहास गवाह कि जब तक मुसलमानों में एकता थी वह एक दूसरे को अपना भाई समझते थे तब तक वह विश्व के क्षितिज पर सूर्य की भाति चमक रहे थे, लेकिन जब से हमारे बीच की एकता कम होनी शुरू हुई है तब से इस्लाम की शक्ति का सूरज डूबने लगा है, आज हालत यह है कि एक कान्फ़्रेस में सारे इस्लामी देशों के प्रधानमंत्री एक प्लेटफ़ार्म में एकत्रित होते हैं और ज़ाहिर में एक दूसरे से बात करते हैं लेकिन जैसे ही यह कान्फ़्रेंस समाप्त होती है यहीं एक दूसरी की पीठ में छुरा घोंपने के लिये तैयार दिखाई देते हैं।


2. दोस्त और दुश्मन की पहचान का न होनाः एक दूसरी सबसे बड़ी समस्या जो इस्लामी दुनिया की है वह यह है कि हम अपने वास्तविक दोस्त और दुश्मन को नहीं पहचानते हैं और यही कारण है कि कुछ पथभ्रष्ट मुसलमान अमरीका और इस्राईल से हाथ मिलाते हैं ताकि लेबनानी प्रतिरोध के सूचक और सिम्बल हिज़्बुल्लाह को मिटा दें।


इरान और इराक़ की जंग में सारे इस्लामी देशों ने इराक़ का साथ दिया ताकि इराक़ को हरा दिया जाए, प्रश्न यह है कि क्या ईरान इस्लामी देशों का शत्रु है, वह देश जिसने किसी भी देश की एक इंच ज़मीन पर भी क़ब्ज़ा नहीं किया है और एक भी मुसलमान को बिना कारण नहीं मारा है क्या वह शत्रु है? या अमरीका और इस्राईल शत्रु हैं जिन्होंने लेबनान सीरिया जार्डन और फ़िलिस्तीन जैसे इस्लामी देशों की ज़मीनों पर क़ब्ज़ा कर रखा है, और केवल इराक़ में एक मिलयन मुसलमानों की मौत का कारण बनें हैं?


और इस लेख के लिखे जाने तक इस्राईल की तरफ़ से ग़ज़्ज़ा पर जारी बर्बर हमलों में न जाने कितने मुसलमान शहीद हुए हैं और कितनी औरतें बेवा हुई हैं लेकिन बजाए इसके कि सारे मुसलमान इस्राईल के विरुद्ध फ़िलिस्तीन का साथ देते वहीं कुछ नाम निहाद मुसलमान मुफ़्ती यह फ़तवा देते हैं कि इस्राईल के विरुद्ध जंग हराम है या इस्लाम मुर्दाबाद कहना हराम है, और अपने अतिरिक्त सारे मुसलमानों को काफ़िर बताने वाली वहाबी विचारधारा जिसने जिहाद के नाम पर लाखों मुसलमानों की हत्या की है उसने कभी भी इस्राईल के विरुद्ध जेहाद का नारा लगाना तो दूर की बात है टेढ़ी आखों से भी नहीं देखा है।


हां अगर मुसलमान अपने दोस्त और दुश्मन की सही पहचान रखते तो संसार में उनकी स्थिति इतनी गंभीर और विकट नहीं होती।


3. मुसलमानों के पास मज़बूत संचार माध्यमों का आभावः तीसरी सबसे बड़ी समस्या मुसलमानों की यह है कि हम मुसलमानों के पास संचार माध्यमों की कमी है, और दूसरी तरफ़ दुनिया के अधिकतर संचार माध्यमों पर यहूदियों का क़ब्ज़ा है, और वह जिस प्रकार भी चाहते हैं इन संचार माध्यमों का उपयोग करके समाचारों और घटनाओं को मनमानों ढंग से दिखाते हैं।


इस समय इस दुनिया में एक चौथाई आबादी मुसलमानों की है और अगर मुसलमानों के पास मज़बूत संचार प्रणाली होती जिसके माध्यम से वह इस्लाम की वास्तविक्ता और क़ुरआन की गहराई को लोगों तक पहुंचा पाते तो निसंदेह यह कहा जा सकता है कि इस्लाम के विरुद्ध होने वाली साज़िशें कामियाब न हो पाती और वह इस्लाम जो सुलह और शान्ति का धर्म था आज उसको आतंकवादियों का धर्म न कहा जाता।


बेशक एकता का न होना, दोस्त और दुश्मन की सही पहचान न होना और मज़बूत संचार प्रणाली का आभाव मुसलमान की वह तीन बड़ी समस्याएं है जिनसे दूसरी समस्याएं जन्म लेती हैं।