फ़ैशन और परिवार की अर्थ व्यवस्था
  • शीर्षक: फ़ैशन और परिवार की अर्थ व्यवस्था
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  • रिलीज की तारीख: 18:41:19 1-9-1403

परिवार का आर्थिक प्रबंधन हर समाज का एक महत्वपूर्ण मामला है यानी आमदनी और खर्च में संतुलन स्थापित करना। परिवार के आर्थिक मामले का प्रबंधन धन- सम्पन्न परिवार तक सीमित नहीं है बल्कि यह मामला उन परिवारों के लिए अधिक महत्वपूर्ण है जिनकी आमदनी और खर्च में समन्वय नहीं है। इस संबंध में एक ध्यान योग्य बिन्दु यह है कि अगर किसी की आमदनी में वृद्धि हो जाये तो वह परिवार की आर्थिक स्थिति के बेहतर होने का प्रमाण नहीं है बल्कि जब आमदनी में वृद्धि होती है तो खर्च बढ़ जाता है। जो चीज़ महत्वपूर्ण है वह परिवार के खर्च का सही प्रबंधन है और जो व्यक्ति परिवार के आर्थिक खर्च का सही प्रबंधन करता है इससे उसकी समझदारी का पता चलता है। परिवार की अर्थ व्यवस्था विभिन्न चीज़ों से प्रभावित होती है जैसे परिवार की संस्कृति, परिवार की आमदनी, भौगोलिक वातावरण, जीवन स्थल और सामाजिक परिस्थिति आदि।

 

हर परिवार के सदस्य अच्छा से अच्छा खाना खाना चाहते हैं। अच्छा से अच्छा कपड़ा पहनना चाहते हैं, अच्छे से अच्छे शहर में रहना चाहते हैं, और अच्छे से अच्छी संभावनाएं चाहते हैं। वो यात्राओं पर जाना चाहते हैं और  हर परिवार की यह इच्छा होती  है कि उनके बच्चे अच्छी से अच्छी शिक्षा ग्रहण करें।

 

वास्तविकता यह है कि ये वे चीज़ें हैं जिन्हें हर परिवार चाहता है परंतु स्पष्ट है कि बहुत कम परिवार हैं जो इन चीज़ों को पूरा करने में सक्षम हैं। औसत आमदनी वाला परिवार इनमें से कुछ मागों को पूरा कर सकता है। इस आधार पर परिवारों को चाहिये कि वे अपनी मांगों के मध्य चयन करें। सबसे अच्छा वह चयन है जिससे परिवार सबसे अधिक प्रसन्न हो।

 

प्रश्न यह है कि किस समय और किस चरण में परिवार के सदस्यों के लिए वांछित स्थिति उपलब्ध होगी? उसका उत्तर यह है कि यह चीज़ परिवार की संस्कृति और उसकी सोच पर निर्भर है।

 

समय की चमक दमक और फैशन भी परिवार की संस्कृति पर निर्भर है और इसका भी परिवार की अर्थ व्यवस्था पर प्रभाव पड़ता है।

 

यहां पर संस्कृति और अर्थ व्यवस्था के मध्य संबंध को समझा जा सकता है। दुनिया के फैशन से परिवार की अर्थ व्यवस्था पर क्या प्रभाव पड़ता है, इसके बारे में हम बाद में चर्चा करेंगे पर इससे पहले हम फैशन के बारे में कुछ चर्चा करना चाहते हैं।

 

आज विश्ववासी राजनीतिक, आर्थिक, सांस्कृतिक और तकनीक सहित सभी क्षेत्र में परिवर्तन के साक्षी हैं। सांस्कृतिक परिवर्तन पर प्रभाव डालने वाली एक चीज़ फैशन है। फैशन वह चीज़ है जो किसी देश या समाज से विशेष नहीं है। फैशन के संबंध में एक ध्यान योग्य बिन्दु यह है कि फैशन कुछ समय के लिए होता है यानी कोई फैशन स्थाई व टिकाऊ नहीं होता है। बहुत सी चीज़ें एसी होती हैं जो किसी विशेष समय में फैशन होती हैं जबकि वही चीज़ें दूसरे समय में फैशन से समाप्त हो जाती हैं और उन्हें कोई पूछता तक नहीं। उदाहरण स्वरुप एक समय में मोबाइल के किसी विशेष माडल का फैशन होता है जबकि कुछ समय के बाद उस माडल का वक्त निकल जाता है और उसे कोई पसंद नहीं करता। फैशन का अनुसरण या उसके पीछे भागना एक एसी चीज़ है जो हमेशा से थी और हमेशा रहेगी।

 

दूसरे शब्दों में यह पहले के समाजों में भी मौजूद थी जो आज भी मौजूद है। यहां इस बात का उल्लेख आवश्यक है कि फैशन स्वयं में बुरा नहीं है बल्कि वह एक सांस्कृतिक या सामाजिक चलन व आदत है। जो लोग फैशन करते हैं वे भी एक दूसरे से भिन्न हैं कुछ लोगों में कुछ चीज़ों के प्रति विशेष रूचि होती है उदाहरण स्वरूप कुछ लोगों में गाड़ियों के प्रति बहुत रूचि होती है जबकि कुछ लोगों में उसी चीज़ के प्रति कोई विशेष लगाव व रूचि नहीं होती है। जैसे एक व्यक्ति गाड़ी को बहुत पसंद करता है जबकि दूसरे व्यक्ति में उस चीज़ के प्रति कोई विशेष लगाव नहीं होता है। माडल और फैशन जिस चीज़ का भी हो वह महत्वपूर्ण नहीं है महत्वपूर्ण उसके साथ बर्ताव है। कोई भी फैशन वास्तव वह में किसी संस्कृति का नमूना होता है और उसका अनुसरण करने वाले को चाहिये कि वह प्रयोग से पहले उसके सकारात्मक एवं नकारात्मक बिन्दुओं पर ध्यान दे।

 

आज के युग में जो कंपनियां है वे लोगों की भावनाओं व इच्छाओं के अनुसार चीज़ें तैयार करती हैं और देखती हैं कि लोग किस माडल व फैशन को पसंद करते हैं। ये कंपनियां कपड़े, जूते, बैग और गाड़ी आदि को लोगों की भावनाओं व पसंद को ध्यान में रखकर बनाती हैं। कुछ कंपनियां अपनी चीजों में थोड़ा सा परिवर्तन उत्पन्न करके उसे नये माडल का रूप दे देती हैं जबकि अपनी चीज़ों को जल्द से जल्द बेचने के लिए कुछ कंपनियां प्रसिद्ध हीरो या खिलाड़ियों को काफी पैसा देती हैं ताकि वह कम से कम एक बार उनकी चीज़ का प्रयोग कर ले ताकि उसे देखकर दूसरे लोग उसे खरीदें टीवी व समाचार पत्रों में किये जाने वाले बहुत से विज्ञापनों को इसी दिशा में देखा जा सकता है।

 

ध्यान योग्य बिन्दु यह है कि बहुत से विचारों को संचार माध्यमों एवं विज्ञापनों द्वारा फैलाया जाता है। पश्चिमी देशों में विभिन्न पार्टियां, गुट, और दल हैं और राजनीतिक, धार्मिक, सांस्कृतिक, नैतिक और सामाजिक दृष्टि से उनके एक दूसरे से भिन्न दृष्टिकोण होते हैं और बहुत से समाजों व देशों में पश्चिमी लोगों के विश्वासों एवं फैशन को पसंद नहीं किया जाता है। तार्किक मार्ग यह है कि किसी भी फैशन का अनुसरण करने से पहले पर्याप्त मात्रा में उसकी पहचान की जाये अन्यथा उसका अपनाया जाना अंधा अनुसरण होगा।

 

फैशन को एक आयाम से आधुनिकता व नूतनता की उपज माना जा सकता है। क्योंकि नूतनता, विश्व और इंसान को नई दृष्टि से देखती है।

 

नये अर्थ में माडल और फैशन के अनुसरण का मतलब एक प्रकार से स्वयं को दूसरे पर निर्भर बना देना है। जो लोग नये नये माडलों को तैयार करते हैं उनका लक्ष्य लोगों को विशेष कार्य अंजाम देने के लिए प्रोत्साहित करना होता है। अतः जो व्यक्ति नये- नये माडलों व फैशनों के पीछे भागता है उसे इस बिन्दु से निश्चेत नहीं रहना चाहिये। रेडियो, टीवी, इंटरनेटर और दूसरे संचार माध्यमों से नाना प्रकार की नई चीज़ों का प्रचार किया जाता है और इस मार्ग से परिवारों विशेषकर जवानों को नये नये माडल, चमक- दमक और फैशन की ओर लुभाने का प्रयास किया जाता है।

 

यहां प्रश्न यह उठता है कि समय के अनुरूप होना किस सीमा तक इस्लाम के अनुसार है? इस संबंध में इस्लाम का क्या दृष्टिकोण है? इसका उत्तर यह है कि इस्लाम हर, फैशन और नूतनता का विरोधी नहीं है। वह कपड़ा पहनने में भी माडल और फैशन का विरोधी नहीं है, हां वह उस माडल व फैशन का विरोधी है जिसमें धार्मिक मूल्यों का ध्यान न रखा जाये और अपव्यय से न बचा जाये। कभी एसा भी होता है कि समय के अनुसार या अपडेट होने के लिए इंसान मानवीय मूल्यों को भुला देता है जबकि कभी एसा भी होता है कि इंसान अपडेट होने के साथ साथ अपने इतिहास एवं मानवीय मूल्यों से भी जुड़ा रहता है। दूसरे शब्दों में इस्लाम उस आधुनिकता, माडल और फैशन का विरोधी नहीं है जिसमें मानवीय मूल्यों को ध्यान में रखा जाता है।