ग़रीबों को खाना खिलाना
  • शीर्षक: ग़रीबों को खाना खिलाना
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  • रिलीज की तारीख: 18:45:0 1-9-1403

ग़रीबों को खाना खिलाना नरक की आग से बचने का मार्ग है
इस्लाम ने विशेषकर ग़रीबों व दरिद्रों को खाना खिलाने पर बहुत ध्यान व बल दिया है। इस आधार पर इस्लामी समाजों में एक अच्छी परम्परा ग़रीबों व दरिद्रों को खाना खिलाना है। कुछ मुसलमान ईदे क़ुर्बान, रमज़ान के पवित्र महीने और हज़रत इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम की शहादत जैसे धार्मिक अवसरों पर सब लोगों को खाना खिलाते हैं। पवित्र क़ुरआन खाना खिलाने को ईश्वरीय भय व सदाचारिता को प्राप्त करने तथा नरक की आग से बचने का मार्ग बताता है। पवित्र क़ुरआन और पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहि व आलेही व सल्लम के पवित्र कथनों में खाना खिलाने वाले और इसी प्रकार उस व्यक्ति की प्रशंसा की गई है जो दूसरों को भूखों को खाना खिलाने के लिए प्रोत्साहित करता है और ऐसे व्यक्तियों का स्थान स्वर्ग है। पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहि व आलेही व सल्लम इस संबंध में कहते हैं" स्वर्ग में ऐसे महल व कमरे हैं जिनके अंदर का भाग बाहर से और बाहर का भाग अंदर से दिखाई देता है। यह कमरे उन लोगों से संबंधित हैं जो धीमें स्वर में शिष्टाचार के साथ बात करते हैं और दूसरों को खाना खिलाते हैं तथा नमाज़े शब अर्थात रात को पढ़ी जाने वाली विशेष प्रकार की नमाज़ पढ़ते हैं"

पवित्र क़ुरआन इसी प्रकार उन लोगों की ओर संकेत करता है जो दूसरों को खाना खिलाने से मना करते हैं और स्वयं भी दूसरों को खाना खिलाने पर ध्यान नहीं देते हैं। इस संबंध में पवित्र क़ुरआन के सूरये माऊन की पहली से तीसरी आयतों में आया है" क्या उस व्यक्ति को देखा है जो सदैव प्रलय के दिन का इंकार करता है? वह वही व्यक्ति है जो अनाथों को दुरदुरा कर लौटा देता है और दूसरों को ग़रीबों व आश्रयहीन लोगों को खाना खिलाने के लिए प्रोत्साहित नहीं करता है" पवित्र क़रआन की दृष्टि में ऐसे लोग स्वर्ग से वंचित हैं और नरक उनका ठिकाना होगा।

ग़रीब व आश्रयहीन लोगों को खाना खिलाना पुराने समय से ही ईश्वरीय दूतों एवं अच्छे लोगों का आचरण रहा है। सर्व समर्थ व महान ईश्वर ने पवित्र क़ुरआन में हज़रत इब्राहीम द्वारा खाना खिलाने एवं मेहमानों की आव-भगत की कहानी बयान की है जो स्वयं पूर्व की जातियों व समाजों में इस कार्य के होने का सर्वोत्तम प्रमाण है। पवित्र क़ुरआन में आया है कि हज़रत इब्राहीम अपरिचित एवं अनजान मेहमानों को भी खाना खिलाते थे और उनकी आव-भगत करते थे। हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम पहले व्यक्ति एवं ईश्वरीय दूत हैं जिन्होंने जानवर की क़ुर्बानी करके दूसरों को खाना खिलाया है।
पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहि व आलेही व सल्लम के काल में हज करने वालों पर ईदे क़ुर्बान के दिन जानवर की क़ुर्बानी करना अनिवार्य किया गया। इसी प्रकार बहुत से मुसलमान इस दिन जानवरों की क़ुर्बानी करते हैं और उसके मांस को ग़रीबों व दरिद्रों में बांट देते हैं। पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहि व आलेही व सल्लम भी जो प्रेम, कृपा और दया के संदेशक हैं सदैव दूसरों को खाने के लिए आमंत्रित करते थे और खाना खिलाते थे। पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहि व आलेही व सल्लम के पवित्र परिजन भी आपकी तरह दूसरों को खाना खिलाने में सबसे आगे-२ थे। पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहि व आलेही व सल्लम के परिजनों द्वारा ग़रीबों, निर्धनों और आश्रयहीन लोगों को खाना खिलाने की बहुत सारी घटनाएं बयान की गई हैं। उनमें से एक घटना यह है कि एक बार पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहि व आलेही व सल्लम के नाती हज़रत इमाम हसन और इमाम हुसैन अलैहिमुस्सलाम बीमार हो गये। उस समय हज़रत अली और जनाब फ़ातेमा ज़हरा सलामुल्लाह अलैहा तथा उनकी दासी जनाब फिज़्ज़ा ने मनौती मानी कि हज़रत इमाम हसन और इमाम हुसैन के ठीक हो जाने की स्थिति में वे तीन दिनों तक रोज़ा अर्थात व्रत रखेंगे। इमाम हसन और इमाम हुसैन अलैहिमस्सलाम के ठीक हो जाने के बाद पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहि व आलेही व सल्लम के पवित्र परिजनों ने अपनी मनौती उतारते हुए तीन दिनों तक रोज़ा रखा परंतु रोज़ा खोलने के समय शाम को उन लोंगों ने तीनों दिन अपने-२ खानों को दरवाज़े पर आये मांगने वालों को दे दिया। इस प्रकार एक दिन उन्होंने अपना खाना भिखारी व परेशानहाल को दे दिया और दूसरे दिन अनाथ को जबकि तीसरे दिन स्वतंत्र हुए बंदी को दे दिया।

महान ईश्वर ने इस परित्याग एवं अद्वितीय दान की कहानी का संकेत पवित्र क़ुरआन के सूरये इंसान में किया है। पवित्र क़ुरआन की आयतों में ध्यान योग्य बिन्दु की ओर संकेत किया गया है और वह बिन्दु यह है कि पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहि व आलेही व सल्लम के पवित्र परिजन न प्रतिदान के लिए और न ही दूसरों की प्रशंसा के लिए अपना खाना आवश्यकता रखने वालों को दिया बल्कि उन्होंने महान ईश्वर की प्रसन्नता प्राप्त करने के लिए ऐसा किया। ऐसा खाना जिसकी तीन दिन की भूख सहन करने के बाद उन्हें आवश्यकता थी परंतु महान ईश्वर की प्रसन्नता में उनके लिए वह मिठास थी जिसके कारण भूख एवं शारीरिक कमज़ोरी को वे भूल गये थे। इसी कारण महान ईश्वर ने अपनी प्रसन्नता प्राप्त करने के लिए अपना भोजन दे देने के कारण पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहि व आलेही व सल्लम के पवित्र परिजनों की प्रशंसा की है। सूरये इंसान की ११वीं-१२वीं आयतों में आया है" ईश्वर उन लोगों को प्रलय के दिन के प्रकोप से सुरक्षित रखेगा और उनका स्वागत करेगा ऐसी स्थिति में कि वे प्रसन्न होंगे और वह उनके धैर्य के बदले उन्हें स्वर्ग तथा रेशम का वस्त्र प्रदान करेगा। वे स्वर्ग में सुन्दर सिंहासनों पर टेक लगाये बैठे होंगे। वहां पर न सूरज की गर्मी होगी और न अधिक ठंडक। वे स्वर्ग के वृक्षों की छाया में होंगे तथा इन वृक्षों के फलों को तोड़ना बहुत सरल होगा"

पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैही व आलेही व सल्लम के काल में एक बंदी को स्वतंत्र किये जाने की घटना भी इस सुन्दर व अच्छे कार्य का एक अन्य उदाहरण है। जब एक युद्ध के बाद कुछ ग़ैर मुसलमान बंदियों को पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैही व आलेही व सल्लम की सेवा में लाया गया तो आप पर ईश्वरीय फरिश्ते हज़रत जीब्राईल उतरे और बंदियों में से एक संबंध में कहा कि हे मोहम्मद! ईश्वर आपको सलाम कहने के पश्चात कहता है कि यह बंदी लोंगो को खाना खिलाता है तथा मेहमानों की आव-भगत करता है एवं कठिनाइयों में धैर्य करता है" उसके बाद पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैही व आलेही व सल्लम ने उस बंदी से कहा कि ईश्वर की ओर से जीब्राईल ने मुझे तुम्हारे बारे में यह बातें बताई हैं और मैं तुम्हारी इन अच्छी आदतों के कारण तुम्हें स्वतंत्र करता हूं" बंदी ने पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैही व आलेही व सल्लम से कहा कि क्या यह बातें तुम्हारे ईश्वर को पसंद हैं और उसके निकट इनका मूल्य है? पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैही व आलेही व सल्लम ने कहा हां, उस समय उस बंदी ने जो स्वयं पर ईश्वर द्वारा ध्यान दिये जाने के कारण खुशी से फूले नहीं समा रहा था, किसी प्रकार के संकोच के बिना कहा कि मैं गवाही देता हैं कि ईश्वर एक है और आप उसके पैग़बम्बर हैं। इस प्रकार उसने ईश्वरीय धर्म स्वीकार कर लिया। उसने जब यह देखा कि उसका मानवता प्रेमी व्यवहार इस प्रकार इस सीमा तक ईश्वर की प्रसन्नता का कारण बना है तो बहुत प्रसन्न हुआ। उस ताज़ा मुसलमान बंदी ने पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैही व आलेही व सल्लम से कहा" हे ईश्वर के पैग़म्बर मैं उस ईश्वर की सौगन्ध खाकर कहता हूं जिसने आप को अपना पैग़म्बर बना कर भेजा है कि अब मैं अपने धन से समस्त दरिद्रों को लाभावन्वित करूंगा"

दूसरों को खाना खिलाना एक अच्छी व प्रभावी शैली है जो समाज को भूख व निर्धनता से मुक्ति दिलाती है। अनाथों, दरिद्रों और आश्रयहीन लोगों के पेट भरने का बहुत पुण्य व ईश्वरीय प्रतिदान है और यह कार्य समाज के लोगों के मध्य समरसता में वृद्धि का कारण भी है। इस अच्छे कार्य से लोगों में प्रेम विस्तृत होता है और लोगों में सहकारिता की भूमि प्रशस्त होती है तथा लोगों के हृदय एक दूसरे से निकट हो जाते हैं। महान ईश्वर ने पवित्र क़ुरआन में इस कार्य पर बहुत अधिक बल दिया है जो इस बात का सूचक है कि खाना खिलाने के सकारात्मक सामाजिक परिणाम उसके दृष्टिगत हैं। जो लोग कुछ करने की क्षमता नहीं रखते हैं या बुढ़ापे और शरीर के किसी अंग के निष्क्रिय हो जाने के कारण अपनी आवश्यकता की पूर्ति करने में सक्षम नहीं हैं उन्हें सक्षम लोंगो की सहायता की आवश्यकता होती है। अब यदि सक्षम व धनी लोग इस प्रकार के अक्षम व्यक्तियों पर ध्यान न दें तो कम से कम भोजन न होने के कारण संभव है कि ये लोग नाना प्रकार की बीमारियों से ग्रस्त हो जायें और क्रमशः उन्हें मृत्यु का सामना करना पड़े। पवित्र क़ुरआन के अनुसार दरिद्रों एवं अनाथों को खाना खिलाना सक्षम लोगों का दायित्व एवं ज़िम्मेदारी है। इस आधार पर जिसके पास जो कुछ भी है उसे चाहिये कि वह ग़रीबों व दरिद्रों को खाना खिलाने को महत्व दे। निः संदेह यदि धर्म की इस मूल्यवान शिक्षा को आज विश्व में लागू कर दिया जाये तो निश्चित रूप से हम इतने बड़े पैमाने पर विश्व में भूखमरी के शिकार लोगों के साक्षी नहीं होंगे जिससे प्रतिवर्ष लाखों लोग काल के गाल में समा रहे हैं।