जवानों को इमाम अली(अ)की वसीयतें
  • शीर्षक: जवानों को इमाम अली(अ)की वसीयतें
  • लेखक: मुहम्मद सुबहानी
  • स्रोत:
  • रिलीज की तारीख: 20:2:5 1-9-1403

इस लेख की सनद नहजुल बलाग़ा का 31 वा पत्र है। सैयद रज़ी के कथन के अनुसार सिफ़्फ़ीन से वापसी पर हाज़रीन नाम की जगह पर आप ने यह पत्र अपने पुत्र इमाम हसन (अ) को लिखा है।

हज़रत अली (अ) ने इस पत्र के ज़रिये से जो ज़ाहिर में तो इमाम हसन (अ) के लिये है, मगर वास्तव में सत्य की तलाश करने वाले सारे जवानों को इसमें संबोधित किया गया है।

हम इस लेख में उसके केवल कुछ बुनियादी उसूलों का वर्णन करेगें।

तक़वा और पाक दामनी

इमाम अली (अ) फ़रमाते हैं

واعلم يابنی ان احب ما انت آخذ به الِِی من وصِتی تقوِِ ی الله

बेटा जान लो कि मेरे नज़दीक सबसे ज़्यादा प्रिय चीज़ इस वसीयत नामे में अल्लाह का तक़वा है तुम उसे अपनाये रहो।
जवानों के लिये तक़वे का महत्व उस समय स्पष्ट होता है कि जब जवानी की तमन्नाओं, अहसासात और चाहतों को केन्द्रित किया जाये।

वह जवान जिसे जिन्सी ख़्वाहिशें, ख़्यालात और तेज़ अहसासात के तूफ़ानों का सामना करना पड़ता है ऐसे जवान के लिये तक़वा एक मज़बूत क़िले की तरह है

जो दुश्मन के हमलों से उसकी सुरक्षा करता है या तक़वा एक ऐसी ढाल की तरह है जो उसके शरीर को शैतान के ज़हर में बुझे हुए तीरों से सुरक्षित रखता है।
फ़रमाते हैं:

اعلموا عباد الله ان التقوی دارحصن عزيز

ऐ अल्लाह के बंदों जान लो कि तक़वा एक कभी न गिरने वाला क़िला है।
शहीद मुतहहरी फ़रमाते हैं: यह ख़्याल नही करना चाहिये कि तक़वा नमाज़ रोज़े की तरह दीन के मुख़तस्सात में से है बल्कि यह इंसानियत के लिये अनिवार्य है।

इंसान अगर चाहता है कि जानवरों और जंगलों की ज़िन्दगी से निजात हासिल करे तो वह मजबूर है कि तक़वा इख़्तियार करे।

जवान हमेशा दो राहे पर होता है दो अलग अलग शक्तियाँ उसे अपनी ओर ख़ैचती हैं एक ओर तो उसका अख़लाक़ी और इलाही ज़मीर होता है जो उसे नेकियों को ओर आकर्षित करता है

दूसरी ओर शैतानी ख़्वाहिशें, नफ़्से अम्मारा और शैतानी वसवसे उसे काम वासना की ओर दावत देती हैं।

अक़्ल व वासना, नेकी व बुराई, पवित्रता व अपवित्रता इस जंग और कशमकश में वही जवान सफल हो सकता है जो ईमान और तक़वा के हथियार से लैस हो।

यही तक़वा था कि हज़रत युसुफ़ (अ) मज़बूत इरादे के साथ अल्लाह की ओर से होने वाली परिक्षा में सफल हुए और बुलंद मरतबे तक पहुचे।

क़ुरआने करीम हज़रत युसुफ़ (अ) की सफ़लता की कुँजी दो चीज़ों को क़रार देता है एक, तक़वा और दूसरे सब्र। सूरए युसुफ़ की 90वीं आयत में इरशाद होता है :


انه منِِ يتق وِِ يصِبر فان الله لا ِِ يضِِيع اجر المحسنين


जो कोई तक़वा इख़्तियार करे और सब्र से काम ले तो अल्लाह तआला नेक कर्म करने वालों के पुन्य को बर्बाद नही करता।