जनाबे फ़िज़्ज़ा और क़ुरआन
  • शीर्षक: जनाबे फ़िज़्ज़ा और क़ुरआन
  • लेखक: जनाब राहत हुसेैन नासरी
  • स्रोत: जनाबे फिज़्ज़ा
  • रिलीज की तारीख: 20:15:10 1-9-1403

वह सभी ऐतिहासिक पुस्तकें जिनमें जनाबे फ़िज़्ज़ा का वर्णन है उनमें यह बात स्पष्ट रूप से मुद्रित है कि आले मोहम्मद (अ.स) के निवास स्थल से निकल ने के बाद से जीवन भर जनाबे फ़िज़्ज़ा ने सिवाय क़ुरआनी भाषा के और किसी ज़बान में बात न की और यह अवधि लगभग 22 वर्ष है। "चुनांचे मनाकिब शहरे आशोब" से यह वाक़ेआ सविस्तार लिखा जाता है। साहिबे मनाकिब ने यह रवायत विश्वसनीय सुत्रों से अबुल क़ासिम दमिश्की तक पहुँचाई है ,लिखते हैं कि रावी ने बयान किया उससे अबुल क़ासिम दमिश्की ने बयान किया अस्ल वाक़ेया निम्न हैः


अबुल क़ासिम दमिश्की बयान करते हैं कि एक अरब हज करके कूफ़े से गुज़र रहा था वह कहता है कि मैं एक वीरान स्थान पर काफ़िले से पीछे रह गया। मैंने देखा कि एक मोअज़्ज़मा एक मैंदान में तन्हा बैठी है। मैं उन के क़रीब गया और हाल पूछा ,उन्होंने क़ुरआन की आयत पढ़ीः


"क़ुल सलामुन फ़ सौफ़ा तअलामून" यानि "पहले सलाम करो फिर मालूम करों।"

अतः मैंने सलाम किया फिर दरियाफ़्त किया कि आप कौन हैं ,क़ौमे जिन्न है या बनी आदम हैं ?

जवाब दियाः  या बनी आदमा ख़ुजू ज़ी नताकुम इन्दा कुल्ले मस्जिद

यानि ऐ बनी आदम अपने को ज़ीनत दो मस्जिदों से (हर नमाज़ में अपने को ज़ीनत दिया करों)

बस मैंने समझा कि बनी आदम (अ.स) हैं। फिर मैंने सवाल किया कि आप यहाँ क्या कर रहीं है ?

फ़रमायाः  युनादूना मंय यहदेयल्लाहो फ़ला मुज़िल्ला लहू । यानि ,जिस की ख़ुदा हिदायत (निर्देश) करता है उसको कोई गुमराह नहीं कर सकता ।

मैं समझ गया कि राह भूल गई हैं। मैंने पूछा आप कहाँ से तशरीफ़ ला रहीं हैं ?

फ़रमायाः  मिम मकानिन बईद (दूर से तशरीफ़ लाईं हैं)

फिर मैंने सवाल किया कि कहाँ का इरादा है ?

फ़रमायाः  लिल्लाहे अलन नासे हिज्जुल बैते ली मीनस लताआ एलैयहे सबील

यानि ,अल्लाह की तरफ़ से इन्सानों पर हज्जे बैयतुल्लाह फ़र्ज़ किया गया है बशर्ते कि इस्ताअत रखता हो।

मैं समझ गया कि हज के लिये जा रहीं है।

फिर मैंने सवाल किया कि कितने दिनों से सफ़र में हैं ?

कहाः  व लक़द खलक़न्नस समावाते वल अरज़ा फी सित्तते अयाम

यानिः  और हमने छः दिनों में आसमानों और ज़मीन को पैदा किया

मैं समझ गया कि छः दिनों से सफ़र में हैं। फिर मैंने पूछा कुछ खाने की इच्छा है ?

कहाः  मा ज अल्नाहुम जसा दल ला याकुलूनत तआम

अर्थातः  हमने उनके शरीर ऐसे नहीं बनाए कि वह खाना न खाऐं

मैं समझ गया कि आप भूक का अनुभव कर रहीं है। अतः मैंने खाना प्रस्तुत किया। खाने के उपरांत मैंने चलने के लिये जल्दी की

कहाः  ला यकुल्लेफ़ुल्लाहो नफ़्सन इल्ला वुस अहा

ख़ुदा ने ताक़त से ज़्यादा तकलीफ़ नहीं दी।

मैंने कहा अगर आप चलने की शक्ति नहीं रखती तो मेरी सवारी हाज़िर है।

कहाः  लौ काना फ़ी हेमा आले हतुन इल्लल्लाहो ल फ़ंसा दत

अर्थातः  अगर एक ख़ुदा के सिवा दो ख़ुदा होते तो दोनों (आसमान व ज़मीन) फ़ासिद हो जाते

बस मैंने उनको सवार किया और स्वयं पैदल चला उन्होंने कहाः

अल्हम्दो लिल्लाहिल लज़ी सख़्खरा लना हाज़ाः

यानिः  प्रशंसा योग्य है वह ईशवर जिसने हमारे लिये इसको (सवारी) मोहय्या किया


जब हम गंतव्य पर पहुँचे तो मैंने पूछा कि आपका कोई रिश्तेदार इस काफ़िले में है ,जिसको मैं सूचित करूँ ?कहाः  या दाऊदों इन्ना जअल्नाका फ़िल अरज़े ख़लीफ़ा ,वमा मोहम्मदुन इल्ला रसूल ,या योहया ख़ुज़िल किताब ,या मूसा इन्नी अनल्लाह।

यानिः  ऐ दाऊद हमनें तुमको ज़मीन पर ख़लीफ़ा मुक़र्रर किया ,मोहम्मद नहीं है मगर (हमारे) रसूल ऐ यहिया। यह किताब (पकड़) लो ,ऐ मूसा ! यक़ीनन मैं अल्लाह हूँ।

 

बस मैं काफ़िले में गया और इन चारों नामों को पूकारा तो चार जवान काफ़िले से निकल कर आपके पास आये मैंने दरियाफ़्त किया कि यह नौजवान कौन है ?

कहाः  अल मालो वल बनून जी नतुल हयातिद दुनिया।

अर्थातः  माल और औलद दुनिया की ज़ीनते हैं

मैं समझ गया कि यह इनके बेटे हैं। फिर वह उनकी तरफ़ मुख़ातब हुईं और बोलीः

इस्ताजिर हो इन्ना ख़ैरा मनिस ता जरतल क़विय्युल अमीन

अर्थातः  इसको (मज़दूरी) उजरत दे दो क्योंकि बेहतरीन मज़दूर वही है जो मज़बूत और ईमानदार हो

बस उन नौजवाने ने मुझे कुछ रक़म दी।

उन मोअज़्ज़मा ने फिर कहाः  वल्लाहो युज़ा अफ़ो ले मयी यशाअ

अर्थातः  अल्लाह जिसको चाहता है इज़ाफ़े (और अधिक) से नवाज़ता है

तब उन्होंने मेरे साथ एहसान में इज़ाफ़ा (वृध्दि) किया और मज़ीद रक़म दीः


मैंने उन नौजवानों से दरियाफ़्त किया कि यह आदरणीय वृध्दा कौन हैं ?उन्होंने बताया कि यह हमारी माँ जनाबे फ़िज़्ज़ा (अ.स) हैं जो सेविका ए जनाबे फ़ातिमा ज़हरा (स0) है बीस वर्ष ग़ुज़र गये कि सिवाय कलामे इलाही के इन्होंने कोई और कलाम नहीं किया।

 

तथाकथित घटना से आपके अध्यात्मिक चमत्कार के अलावा यह भी मालूम होता है कि आपको क़ुरआने मजीद का कितना ज्ञान था। 20 वर्ष केवल क़ुरानी भाषा में वार्तालाप करना ऐसी करामत है जिसका विचार ही आश्चर्यजनक है किन्तु इस दर की सेवा का परिणाम और सौभाग्य है जिस डयोंढी पर जिब्राईल अमीन सेवक स्वरूप उपस्थित होते थे ,रिज़वाने जन्नत दर्ज़ी बनना सौभाग्य समझते थे ,पिछले रसूलों (स0 अ0) ने गृहस्थियों से लाभ आर्जित किया और उनकी कठिनाईंया आसान हुईं। मुल्ला काशी के अनुसारः

कातिबे दीवाने आरत मूसा ए दरिया शिग़ाफ़ पर्दा दारे वामे कस्रत ईसा ए गर्दू नशीं

 

वह अम्मार हो या मिक़दाद अबुज़र हो या सलमान कम्बर हो या फ़िज़्ज़ा जिसने इस दर की सेवा की वह मनुष्यता की उस पराकाष्ठा श्रेणी पर नियुक्त हुआ जिससे समीपस्थ फ़रिश्ते भी पस्त नज़र आते हैं। इन आदरणीय अस्तित्वों ने मनुष्यता के डंके बजवा दिये और दनुया को दिखा दिया कि आले मोहम्मद (अ.स) की सेवा करने वाले बेमिसाल होते हैं।

 

काश दुनियावासी इन्हीं व्यक्तियों के चमत्कार को देखकर आले मोहम्मद (अ.स) के महत्व को  समझते और उनकी क़द्र करते और उस मार्ग पर चलते विशेषवार वह मुसलमान जो रसूल (स0 अ0) के अनुयायी होने का दम भरते हैं ,वह आँखें खोलकर देखते लेकिन अफ़सोस है कि बजाए उनके पद चिन्हों पर चलने के आले मोहम्मद (अ.स) की मोअद्दत (प्रेम) व पैरवी तो दूर इन हज़रात के सही हालात व जीवन संबन्धी करामात को गुप्त रखा गया और ऐसे लोगों को उन पर प्रदान्ता दी गई और उसका प्रचार किया गया जो वास्तव में इस्लाम में कोई स्थान ही नहीं रखते थे। मुझे ज़्यादा शिकायत अपनी क़ौम से है जो आले मोहम्मद (अ.स) के अनुयायी होने का दावा करती है किन्तु उनके ग़ुलामों और कनीज़ों के आचरण को भी न अपना सकी। हम जब अपने आचरण का विशलेषण करते हैं तो अपने को उनका ग़ुलाम कहते हुए शर्म आती है। बहरहाल हमें चाहिये कि अब हम अपने अस्तित्वों की दुरूस्तगी और आचरण की शुध्दि का प्रयास करें और केवल ज़बान से हुसैन (अ.स) का नाम लेने ,मजालिसे अज़ा का प्रबन्ध करके कानों को अभिभाषणों से हर्ष प्रदान करने और नौहा व मातम बर्पा करने पर संतोष न करें बल्कि इस दुखद घटना से इमामे मज़लूम (अ.स) के अंसार और रिश्तेदारों के चरित्र व आचरण की आत्मा पर ग़ौर एवं विचार करें और उस पर चलने को अपना तरीक़ा ए कार बनाऐं।

 

साहिबे मनाक़िब लिखते हैं कि जनाबे फ़िज़्ज़ा 22 या 23 वर्ष मदीना छोड़ने के बाद ज़िन्दा रहीं तारीख़ या इस घटना के उपरान्त तारीख़ बिल्कुल ख़ामोश है किन्तु अन्दाज़ से पता चलता है कि मृत्यु सन का किसी ऐतिहासिक पुस्तक से पता नहीं चलता है कि अगर 63 हिजरी या 64 हिजरी में मदीना छोड़ा तो 86 या 87 हिजरी तक जीवित रहीं और अपनी शहज़ादी से 72 या 73 साल इस दुनिया में जुदा रहकर स्वर्गवासी हो गयी अपनी शहज़ादी की सेवा में पहुँच गईं और दुनिया ए इस्लाम की औरतों के लिये अपने आचरण से वह सबक़ दे गईं कि अगर वह उनके पद चिन्हों का अनुसरण करने का प्रयास करें तो मनुष्यता की पराकाष्ठा की श्रेणी पर पहुँच सकती हैं जो इस्लाम के अनुयाइयों का स्थान है।

 

ऐ जनाबे सैय्यदा (स0) की कनीज़ ऐ हुसैन (अ.स) और उनके बच्चों की परवाना हम गुनाहगारान व ग़ुलामाने आले मोहम्मद (अ.स) का आप पर सलाम हो और ख़ुदा की रहमतें (अनुकम्पा) आपके अस्तित्व पर सदैव होती रहे। बीबी हम आपकी शहज़ादी (अ.स) के सिर्फ़ नाम लेना ही सही लेकिन संबंध तो रखते हैं। महाप्रलय के दिन हमको न भूल जाइयेगा और अपनी शहज़ादी से जब महाप्रलय के दिन हम पापियों का हिसाब पेश हो तो आप सिफ़ारिश कर कर सफ़ल बना दीजियेगा और अपने संग हमको भी सैय्यादुश शोहदा (अ.स) की सेवा में पहुँचा दीजियेगा।

 

अब अन्त में जनाबे फ़िज़्ज़ा की निवासी का एक महत्वपूर्ण चमत्कार मुद्रित किया जाता है ताकि पाठकगण इस पूरे घर की महानता का अन्दाज़ा कर सकें और देखें कि सिर्फ़ जनाबे फ़िज़्ज़ा ही उन उत्तम श्रेणियों पर नियुक्त नहीं थी बल्कि उनकी आग़ोशे तरबियत के पले हुए भी आचरण व विश्वास की किस श्रेणी पर नियुक्त थे।