हज़रत हमज़ा इब्ने इमाम काज़िम अलैहिस्सलाम
  • शीर्षक: हज़रत हमज़ा इब्ने इमाम काज़िम अलैहिस्सलाम
  • लेखक: सैय्यद मौहम्मद मीसम नक़वी
  • स्रोत: .abdolazim.com
  • रिलीज की तारीख: 21:59:45 1-9-1403

शहरे रै (तेहरान/ईरान) मे जिन सादात की क़ब्रे हैं उन मे से एक जलीलुल कद्र इमामज़ादे हज़रते हमज़ा है आपके बारे मे  बयान किया जाता है कि आप एक आलिम, फाज़िल और मुत्तक़ी व परहेज़गार शख्स थे।


 
माता-पिता
हज़रत हमज़ा हमारे सातवें इमाम हज़रते इमाम मूसा काज़िम (अ.स) के फरज़न्द है और आपकी वालिदा का नाम उम्मे अहमद था जोकि इमाम काज़िम (अ.स) की नज़र मे एक खास जाहो मक़ाम रखती थी।

 

विलादत
आप विलादत के सन् का अंदाज़ा 151 हिजरी की सूरत मे होता है।

 

अज़मते इल्मी
क्योकि हज़रत हमज़ा के हालाते ज़िन्दगी के कोई खास सुबूत नही मिलते लेकिन तमाम उलामा का मुत्तफिक़ फैसला है कि आप एक बरजस्ता आलिम और आशिक़े विलायत थे।

 

रूहानी हैसीयत
जनाबे हमज़ा की रूहानी और बुलन्द हैसीयत की निशानी के लिऐ यही कहना काफी होगा कि जनाबे अब्दुल अज़ीम हसनी कि जिनकी क़ब्र की ज़ियारत का सवाब इमाम हुसैन (अ.स.) की क़ब्र की जियारत के सवाब के बराबर है, शहरे रै मे सुकुनत के वक़्त मे हमेशा आपकी ज़ियारत को आया करते थे।

 

औलाद
आपके तीन फरज़ंद थे कि जिनके नाम हमज़ा बिन हमज़ा, कासिम बिन हमज़ा और अली हमज़ा है।

 

शहादत
आपकी शहादत के बारे मे मिलता है कि जनाबे हमज़ा को खुरासान के सफर के दरमियान मामून के सिपाहीयो ने जख्मी कर दिया था फिर भी आप किसी तरह वहा से ज़िन्दा निकल आऐ और शहरे रै मे रहने लगे लेकिन जैसे ही मामून के सिपाहीयो को इसकी खबर हुई उन्होने आपको शहीद कर दिया यक़ीनन तो नही कहा जा सकता लेकिन उलामा का अंदाज़ा ये है कि ये वाकिया 203 या 204 हिजरी का है।


कब्रे मुबारक
हज़रत हमज़ा का मज़ारे मुक़द्दस शहरे रै (तेहरान/ईरान) मे मौजूद है कि जहाँ रोज़ाना हज़ारो चाहने वाले आपकी क़ब्र की जियारत के लिऐ आते है।
आपके जवार मे हज़रत शाह अब्दुल अज़ीम हसनी और जनाबे ताहिर इब्ने मुहम्मद इब्ने मुहम्मद इब्ने हसन इब्ने हुसैन इब्ने ईसा इब्ने याहिया इब्ने हुसैन इब्ने ज़ैद इब्ने इमाम ज़ैनुल आबेदीन (अ.स) की कब्रे मौजूद है।