इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के हरम मे दफ्न शख्सीयात मे से एक जनाबे सैय्यद इब्राहिम मुजाब है कि जिनका मक़ाम और मर्तबा बहुत ही ज़्यादा है।
लक़ब (उपनाम)
आपको मुजाब और ज़रीरे कूफी के लक़ब से याद किया जाता है।
पिता
सैय्यद इब्राहिम मुजाब अलैहिस्सलाम के पिता सैय्यद मौहम्मद आबिद इब्ने इमाम काज़िम (अ.स.) थे। बाज लोग आपको इमाम काज़िम (अ.स) का बेटा भी कहते है।
जिंदगी
आपकी विलादत कब और कहाँ हुई इसके बारे मे कोई खास जानकारी नही मिलती और आपके करबला आने के बारे मे मिलता है कि सैय्यद इब्राहिम 247 हिजरी मे कूफा से करबला तशरीफ लाऐ और उसके बाद वही रहने लगे। आपकी हिजरत के बारे मे इतिहासकार लिखते है कि आप पहले फातमी सैय्यद थे कि जिन्होने कूफे को छोड़ कर करबला को आबाद किया जबकि आपकी आँखो की रोशनी आपका साथ छोड़ चुकी थी।
लक़बे मुजाब
आपके लक़ब मुजाब के बारे मे मिलता है जब आप इमाम हुसैन (अ.स) के हरम मे दाखिल हुऐ तो आपने ये कह कर इमाम को सलाम कियाः अस्सलामो अलैका या अबा (ऐ वालिद आप पर मेरा सलाम हो।)
तो इमाम हुसैन की क़ब्र से आपको जवाब आयाः अलैकुम सलाम मेरे बेटे।
इसी वजह से जनाबे सैय्यद इब्राहिम को मुजाब का लकब मिला कि अरबी ज़बान मे मुजाब उसे कहते है कि जिसको जवाब दिया गया हो।
रूहानी हैसीयत
सैय्यद इब्राहिम मुजाब अलैहिस्सलाम की रूहानी और बुलन्द हैसीयत की निशानी के लिऐ यही कहना काफी होगा कि इमाम हुसैन (अ.स) ने आपके सलाम का जवाब दिया था।
क़ब्रे मुबारक
सैय्यद इब्राहिम मुजाब अलैहिस्सलाम की क़ब्रे मुबारक करबला/इराक़ मे इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के रोज़े के सहन मे मौजूद है।