जनाब मूसा मुबरक़ा
  • शीर्षक: जनाब मूसा मुबरक़ा
  • लेखक: नजमुल हसन कर्रारवी
  • स्रोत: चौदह सितारे
  • रिलीज की तारीख: 11:42:25 2-10-1403

हज़रत मूसा मुबरक़ा (अ. र.) हज़रत इमाम मोहम्मद तक़ी (अ.स.) के फ़रज़न्द और हज़रत इमाम अली नक़ी (अ.स.) के बरादरे अज़ीज़ थे।

 

आपकी कुन्नीयत अबू जाफ़र और अबू अहमद थी। आप कमाले हुस्नो जमाल की वजह से हमेशा चेहरे पर नक़ाब डाले रहते थे। इसी लिये आपके नाम के साथ ‘‘ मुबरक़ा ’’ भी मुस्तमिल होता है।

 

आप बेहतरीन आलिमे दीन, सख़ी और बहादुर थे। आप 10 रजबुल मुरज्जब 217 हिजरी को मदीना ए मुनव्वरा में पैदा हुए फिर 38 साल की उम्र में 255 हिजरी में कूफ़े तशरीफ़ ले गए, फिर वहां से 256 हिजरी में क़ुम मुन्तक़िल हो गए। उलमा का बयान है कि यह पहले शख़्स हैं जिन्होंने सादाते रिज़विया से कु़म में मुस्तक़िल क़याम का इरादा किया।

 


अल्लामा शेख़ अब्बास कु़म्मी तहरीर फ़रमाते हैं कि जब आप कूफ़े से क़ुम पहुँचे तो वहा के रऊसा ने आपके मुस्तक़िल क़याम की मुख़ालेफ़त की और आपकी भर पूर कोशिशे क़याम के बावजूद आपको वहां टिकने न दिया, बिल आखि़र आप वहां से रवाना हो कर ‘‘ काशान ’’ पहुँचे, आपकी नस्ली अज़मत और तबलीग़ी सर गर्मियों की शोहरत की वजह से वहां के बाशिन्दों ने आपकी बड़ी आओ भगत की और पूरी इज़्ज़त व तौक़ीर के साथ इनको अपनी आंखों पर जगह दी, चुनान्चे इनके सरबराह अहमद बिन अब्दुल अज़ीज़ बिन दल्फ़ अजली ने दिलो जान से ख़ैर मक़दम किया और लिबासे फ़ाख़ेरा पहना कर उनके लिये शानदार घोड़े फ़राहम किये और एक हज़ार मिसक़ाल सोना, सालाना उनके लिये मुक़र्रर किया।

 


मुवर्रेख़ीन का बयान है कि अहले काशान आपके वहां क़याम करने से इन्तेहाई ख़ुश थे और आपके क़याम को सारे काशान की ख़ुश क़िस्मती समझते थे लेकिन इसी दौरान में जब क़ुम वालों को होश आया और उनके बाज़ मोअजि़्ज़ हज़रात जो कि बाहर थे जैसे ‘‘ अबू अल सय्यद बिन अल हुसैन बिन अली बिन आदम ’’ जब क़ुम वापस पहुँचे और उन्हें इस हादसे इख़राज का हुक्म हुआ तो वह बेहद शर्मिन्दा हुए और उन लोगों की सख़्त मज़म्मत की जिनका इनके इक़ख़्राज में हाथ था। ‘‘ फ़ार सल्वा रऊसा अल अरब ’’ फिर इन मोअज़्ज़ेज़ीन और अरब के रईसो ने आपको वापस लाने के लिये एक जमीअत भेज दी, इसने उज़र व माज़ेरत के बाद आपको क़ुम वापस तशरीफ़ लाने पर आमादा कर लिया।

 

चुनान्चे आप निहायत इज़्ज़त व एहतिराम के साथ क़ुम वापस तशरीफ़ लाए, इन हज़रात ने इनके लिये एक शानदार मकान और बहुत सी ज़रूरी चीज़ें और जाएदाद में उनको वाफ़िर हिस्सा दिया और बीस हज़ार दिरहम से नक़द खि़दमत की आपके क़ुम में मुस्तक़िल क़याम के बाद आपकी बहने, ज़ीनत उम्मे मोहम्मद,मैमूना वग़ैरा भी पहुँच गई और आपकी लड़की वग़ैरा भी जा पहुँची। यह बीबियां मुस्तक़िल वहीं मुक़ीम रहीं बिल आखि़र सब की सब हज़रत मासूमा ए क़ुम के गिर्दा गिर्द दफ़्न हुई।

 


आप अपने भाई इमाम अली नक़ी (अ.स.) के पैरो थे और उन्हें बेहद मानते थे और मसाएल के जवाब देने में बावक़्ते ज़रूरत उन्हीं से मद्द लिया करते थे जैसा कि यहिया इब्ने अक़सम के सवाल के जवाब में आपका इमाम अली नक़ी (अ.स.) की तरफ़ रूजू करने से ज़ाहिर है। (सफ़ीनतुल बेहार जिल्द 1 पृष्ठ 591)

 

आपके मुताअल्लिक़ जो यह कहा जाता है कि आप इमाम अली नक़ी (अ.स.) की मर्ज़ी के खि़लाफ़ एक दफ़ा मुतावक्लि से मिलने गए थे। ‘‘ ग़लत है ’’ क्यों कि इस ख़बर की रवायत याक़ूब बिन यासिर ने की है और वह मोवक्किल का आदमी था यानी ‘‘ यह हवाई उसी दुश्मन की उड़ाई हुई है ’’ इसकी कोई अस्लीयत नहीं। (बदर मशअशा अल्लामा नूरी व सफ़ीनतुल अल बहार 2 पृष्ठ 652)

 


आपने शबे चार शम्बा 22 रबीउस्सानी 296 में ब उम्र 79 साल वफ़ात पाई। आपकी नमाज़े जनाज़ा अमीरे क़ुम अब्बास बिन अमरू ग़नवी ने पढ़ाई और आप इसी मुक़ाम पर दफ़्न हुए जिस जगह आपका रौज़ा बना हुआ है। एक रवायत की बिना पर यह वह जगह है जिस जगह मोहम्मद बिन अल हसन बिन अबी ख़ालिद अशरी मुलक़्क़ब ब ‘‘ शम्बूल ’’ का मकान था। (मन्थउल माल जिल्द 2 पृष्ठ 351) राक़िम अल हुरूफ़ ने 1966 ई0 में आपके मज़ारे मुक़द्दस पर हाज़री दी और फ़ातेहा ख़्वानी की है।