पैग़म्बरे इस्लाम (स) का संपूर्ण जीवन एवं उसका एक एक क्षण अति महत्वपूर्ण तथा विशिष्ट आश्चर्यजनक घटनाओं से भरा हुआ है। इस लिए कि पैग़म्बरे इस्लाम (स) के कथन न केवल क़ुराने मजीद की स्पष्ट आयतों के आधार पर हर प्रकार के लोभ व लालसा रहित होते हैं और ईश्वरीय संदेश अर्थात वहयी से जुड़े होते हैं बल्कि उस महान व्यक्ति का आचरण भी प्रत्येक मुसलमान के लिए आदर्श व तर्क युक्त है तथा विश्ववासियों को सही मार्ग दिखाता है। लेकिन इस बीच, उस महान व्यक्ति के जीवन के विशेष भाग विभिन्न आयामों के दृष्टिगत विशेष महत्व रखते हैं, स्पष्ट रूप में उनमें से एक ग़दारे ख़ुम की घटना है। इस्लामी जगत में शायद ही कोई ऐसी घटना होगी कि जो प्रमाण, मूल घटना के घटित होने की निश्चितता, उसका उल्लेख करने वाले विद्वानों एवं उस पर उनके भरोसे, दृढ़ता व मज़बूती की दृष्टि से इस महत्वपूर्ण घटना की भांति हो।
इस्लाम में विलायत अर्थात संरक्षण एवं सरपरस्ती पैग़म्बरी की निरंतरता एवं ऐसे दीप की भांति है कि जो अंधेरों को छांट देता है और सच्चाई एवं वास्तविकता के प्रतीक के रूप में मनुष्यों का मार्गदर्शन करता है। जिस किसी पर भी विलायत का प्रकाश पड़ जाता है तो मानो वह विचलन एवं भटकाव से सुरक्षित हो जाता है। ईदे ग़दीर, विलायत एवं संरक्षण की ईद है। ऐसा दिन कि जब इस्लाम संपूर्ण हुआ और हज़रत अली (अ) इस्लाम के ध्वजवाहक व पैग़म्बरे इस्लाम (स) के उत्तराधिकारी के रूप में विश्ववासियों के सामने पेश किए गए। इस ऐतिहासिक घटना की महानता ने पैग़म्बरे इस्लाम (स) को उनके जीवन के अंतिम महीनों में इतना प्रसन्न एवं आश्वस्त कर दिया कि उन्होंने प्रसन्नता के साथ कहा, मुझे बधाई दो, मुझे बधाई दो, ईश्वर ने मुझे पैग़म्बरी और मेरे परिवार को इमामत से विशेषता प्रदान की।
ग़दीर की घटना सन् 10 हिजरी में पैग़म्बरे इस्लाम (स) के अंतिम हज के बाद घटी। पैगम्बरे इस्लाम (स) अपना अंतिम हज अंजाम देकर मुसलमानों के एक बहुत बड़े समूह के साथ वापस लौट रहे थे। 18 ज़िलहिज्जा की दोपहर को सूर्य अपनी पूरी शक्ति से किरणें बखेर रहा था और विशाल रेगिस्तान में कहीं दूर केवल कुछ वृक्ष दिखाई पड़ते थे। इस क्षेत्र का नाम ग़दीरे ख़ुम था। यह ऐसा क्षेत्र था जहां से विभिन्न क्षेत्रों को जाने वाले क़ाफ़िले एक दूसरे से अलग हो जाते थे। पैग़म्बरे इस्लाम (स) अपने ऊंट पर सवार थे कि जो धीमे धीमे आगे बढ़ रहा था, अचानक पैग़म्बरे इस्लाम के चेहरे का रंग बदल गया। वास्तव में जिबरईल अवतरित हुए और पैग़म्बरे इस्लाम के लिए ईश्वरीय संदेश लेकर आए थे। कुछ ही क्षणों बाद पैग़म्बरे इस्लाम (स) की मनमोहक आवाज़ में यह आयत लोगों के कानों तक पहुंची, हे पैग़म्बर जो कुछ तुझ पर तेरे ईश्वर की ओर से अवतरित हुआ है उसे लोगों तक पहुंचा दे, यदि तूने इस काम को अंजाम नहीं दिया तो अपना कर्तव्य पूरा नहीं किया और ईश्वर तुझे लोगों से सुरक्षित रखेगा। ईश्वर काफ़िर समूहों का मार्गदर्शन नहीं करता है।
लोग इस आयत को सुनकर आश्चर्य से एक दूसरे को देख रहे थे और चुप रह कर यह जानना चाहते थे कि हुआ किया है? पैग़म्बरे इस्लाम (स) ने ठहरने का आदेश दिया और कहा कि जो आगे बढ़ गए हैं उन्हें वापस बुलाया जाए और जो पीछे रह गए थे उनके वहां पहुंचने की प्रतीक्षा करते रहे। एक विशाल समूह एकत्रित हो गया। इतिहास में है कि वहां उपस्थित लोगों की संख्या एक लाख बीस हज़ार थी। पैग़म्बरे इस्लाम ने आदेश दिया कि एक मंच बनाया जाए ताकि उस पर चढ़कर वे सभी लोगों तक अपनी बात पहुंचा सकें।
उसके बाद ज्योति एवं प्रकाश के पैग़म्बर मंच पर गए, सबका ध्यान पैग़म्बर की ओर था। पैग़म्बरे इस्लाम (स) ने अपने चारो ओर देखा तथा ईश्वर की प्रशंसा एवं गुणगान के बाद कहा, हे लोगों शीघ्र ही मेरा जीवन संपन्न होने वाला है और मुझे ईश्वर के दर्शन प्राप्त होने वाले हैं। क्या मैं ने अपनी पैग़म्बरी के दायित्व को पूरा किया?
लोगों ने उत्तर दिया, हम गवाही देते हैं कि आप ने अपना कर्तव्य पूरा किया और अत्यधिक प्रयास किया। उसके बाद पैग़म्बरे इस्लाम ने एक आकर्षक भाषण दिया और कहा वास्तव में मंऔ तुम्हारे लिए दो मूल्यवान वस्तुएं छोड़े जा रहा हूं, यदि इन से जुड़े रहोगे तो कदापि भ्रमित नहीं होगे, एक ईश्वरीय पुस्तक क़ुरान और दूसरे मेरे परिजन।
उसके बाद पैग़म्बरे इस्लाम ने हज़रत अली (अ) को अपने पास बुलाया। हज़रत अली पैग़म्बरे इस्लाम की पत्नि जनाबे ख़दीजा के बाद इस्लाम धर्म स्वीकार करने वाले पहले युवा थे। वे सदैव और हर अवसर पर पैग़म्बरे इस्लाम के साथ और उनके सहायक रहे। पैग़म्बरे इस्लाम ने अनेक बार उनकी प्रशंसा की और उनके ज्ञान, गुणों एवं योग्यता की सराहना की। जब हज़रत अली (अ) पैग़म्बरे इस्लाम के निकट पहुंचे तो पैग़म्बरे इस्लाम (स) ने चमकते हुए चेहरे एवं प्रसन्नता से उनका हाथ अपने हाथ में लेकर उठाया और कहा, हे लोगों क्या मुझे तुम्हारी आत्माओं पर तुम से अधिक अधिकार प्राप्त नहीं है?
लोगों ने उत्तर दिया ईश्वर और उसका दूत बेहतर जानते हैं।
पैग़म्बरे इस्लाम ने कहा, ईश्वर मेरा संरक्षण एवं सरपरस्त है और मैं धर्म में आस्था रखने वालों का सरपरस्त हूं, अतः जिस जिसका भी मैं संरक्षक व सरपरस्त हूं अली उसके संरक्षक व सरपरस्त हैं।
पैग़म्बरे इस्लाम ने इस वाक्य को तीन बार दोहराया। उसके बाद कहा, हे लोगों अली को स्वयं से सर्वश्रेष्ठ जानों, क्योंकि वह मेरे बाद समस्त पुरुषों एवं महिलाओं में सर्वश्रेष्ठ है। हे ईश्वर तू उसके साथ मित्रता कर जो अली के साथ मित्रता करे और जो कोई अली के साथ शत्रुता रखे तू उससे शत्रुता रख, (जो कोई भी अली को मित्र रखे तू उसे मित्र रख और जो कोई अली को शत्रु रखे तू उसे शत्रु रख) जो उपस्थित हैं वे अनुपस्थित लोगों तक यह संदेश पहुंचा दें।
पैग़म्बरे इस्लाम (स) प्रसन्न अवस्था में मंच से नीचे उतरे, पैग़म्बरे इस्लाम के साथी उनके निकट गए ताकि हज़रत अली (अ) के उत्तराधिकारी के रूप में चयन की बधाई दें। उमर बिन ख़त्ताब वह पहले व्यक्ति थे कि जिन्होंने बधाई दी और कहा हे अली आपको बधाई हो।
जैसे ही पैग़म्बरे इस्लाम (स) का भाषण संपन्न हुआ, जिबरईल पुनः ईश्वर का संदेश लेकर उपस्थित हुए और पैग़म्बरे इस्लाम को इस आयत के साथ गौरान्वित किया कि आज मैं ने तुम्हारा धर्म संपूर्ण कर दिया और तुम्हारे ऊपर अपनी अनुकंपाओं को परिपूर्ण किया और इस्लाम को तुम्हारे धर्म के रूप में स्वीकार किया।
ग़दीर की घटना इस्लामी इतिहास की महत्वपूर्ण घटनाओं में से है। और सदैव बुद्धिजीवियों, विश्लेषकों एवं धार्मिक समीक्षकों के ध्यान का केन्द्र रही है। यह घटना दर्शाती है कि हज़रत अली (अ) पैग़म्बरे इस्लाम (स) के सबसे उचित उत्तराधिकारी हैं। ग़दीर की घटना का मूल पाठ भी यही है कि सज्जन, न्याय करने वाले एवं ईमानदार अर्थात सत्यवादी नेताओं को चाहिए कि समाज की सत्ता संभालें। ग़दीर का दूसरा संदेश धर्म विरोधी, अत्याचारी एवं स्वार्थी शासनों का विरोध करना है कि जो जनता के अधिकारों का हनन करते हैं और ईश्वरीय क़ानूनों का उल्लंघन करते हैं।
ईरान की इस्लामी क्रांति के संस्थापक इमाम ख़ुमैनी की दृष्टि में ग़दीर ऐसा आदर्श है कि जिसके आधार पर जनता और नेता का संबंध निर्धारित हो जाता है और शासन जनता एवं समाज के प्रति अपने कर्तव्य को अच्छी तरह निभाता है। यही कारण है कि वे ईदे ग़दीर की महानता को हज़रत अल (अ) जैसी विशिष्ट हस्ती को एक सज्जन एवं पवित्र नेता के रूप में प्रस्तुत करने में मानते हैं, इमाम ख़ुमैनी कहते हैं कि वे पवित्र एवं विशिष्ट अस्तित्व कि जो समस्त गुणों का स्रोत है, ग़दीर की घटना के घटित होने का कारण बना। ईश्वर ने यह उल्लेख कर दिया कि पैग़म्बरे इस्लाम (स) के बाद लोगों के बीच कोई ऐसा व्यक्ति नहीं है कि जो कुछ उसकी सहमति के दृष्टिगत है उसे पूरा करे। उसने अपने दूत को आदेश दिया कि अली को अपना उत्तराधिकारी नियुक्त करें, इस लिए कि उनमें इतनी शक्ति है कि वह न्याय को उसके पूरे अर्थ में समाज में लागू कर सकें और एक ईश्वरीय शासन की स्थापना कर सकें।
इस परिप्रेक्ष्य में कहा जा सकता है कि ग़दीर को जीवित रखने का अर्थ मूल वास्तविकता का अनुसरण है। अतः ग़दीर पैग़म्बरे इस्लाम (स) के युग से ही विशेष नहीं है बल्कि उसका संदेश समस्त युगों के लिए है। इस प्रकार कि पैग़म्बरे इस्लाम (स) के उत्तराधिकारी के रूप में हज़रत अली (अ) की शासन शैली, समस्त समाजों के लिए एक उज्जवल आदर्श एवं उदाहरण है तथा शासकों को शासन चलाने के लिए हज़रत अली (अ) की शैली का अध्ययन करना चाहिए और उसका अनुसरण करना चाहिए। उन्होंने अपने शासनकाल में न्याय के पौधे को सींचा और अत्याचार एवं भेदभाव का मुक़ाबला किया और जनता के अधिकारों पर विशेष ध्यान दिया।
पैग़म्बरे इस्लाम (स) ने हज से वापसी पर ग़दीर की घटना का महत्व दर्शाने के लिए उसे मुसलमानों की सर्वश्रेष्ठ ईद क़रार दिया और कहा कि ग़दीर वह दिन है कि जब महान ईश्वर ने आदेश दिया कि मैं अपने भाई अली इब्ने अबी तालिब का इस्लाम के ध्वज वाहक के रूप में चयन करूं ताकि मेरे बाद वे लोगों का मार्गदर्शन करें। ऐसा दिन कि जब ईश्वर ने धर्म को संपूर्ण कर दिया अपनी अनुकंपाओं को मेरे अनुसरणकर्ताओं पर संपन्न कर दिया और इस्लाम को उनके धर्म के रूप में स्वीकार किया।
इस प्रकार, ग़दीर मुसलमानों के हृदयों में हज़रत अली (अ) के संरक्षण का बीज बोना है। सुन्नियों के वरिष्ठ विद्वान का कहना है कि पैग़म्बरे इस्लाम ने कहा, प्रलय के दिन जब ईश्वर समस्त व्यक्तियों को इकट्ठा करेगा और नर्क के ऊपर पुले सिरात स्थापित किया जाएगा तो उसे कोई पार नहीं कर पायेगा उन लोगों के अतिरिक्त कि जो अली इब्ने अबी तालिब (अ) की सरपरस्ती और उनके संरक्षण में होंगे।