पवित्र माहे रमज़ान-6
  • शीर्षक: पवित्र माहे रमज़ान-6
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  • रिलीज की तारीख: 20:22:26 13-9-1403

उस दिन जब, हज़रत आदम में ईश्वरीय आत्मा फूंके जाने से मानव के सिर पर श्रेंष्ठता का मुकुट रखा गया, इबलीस के मन में घृणा, द्वेष तथा ईर्श्या की भावना बैठ गई। उसने आदम का सजदा करने से इन्कार किया तथा स्वयं को ईश्वर के दरबार से वंचित कर लिया। बस उसी समय से शैतान अपनी समस्त संभावनाओं के साथ आदम की संतान के कल्याण तथा आध्यात्मिक विकास के मार्ग मे बाधा बना हुआ है। शैतान अपनी पूरी भ्रष्ट सेना के साथ मानवजाति के साथ युद्धरत है तथा मानवजाति के जीवन के अन्तिम दिन तक वह अपने इस कार्यक्रम को जारी रखेगा ताकि अपने विचार में, वह कल्याण के सार को मनुष्य से छीन ले।


शैतान सदा ही मानव के भीतर शंका उत्पन्न करते हुए इस बात का प्रयास करता है कि उसकी कमियों से लाभ उठाते हुए उसे मोक्ष तथा कल्याण के मार्ग से रोक दे। यहां पर उल्लेखनीय बात यह है कि शैतान के सारे ही कार्य शंका उत्पन्न करने तक ही सीमित हैं और वह विवश्ता की सीमा तक नहीं होते। शैतान द्वारा उत्पन्न की गई शंकाओं को व्यावहारिक बनाना मानव की आंतरिक कमज़ोरी का चिन्ह है। क़ुरआन के कथनानुसार शैतान का वर्चस्व, ईमान या आस्था की दृष्टि से कमज़ोर लोगों पर ही होता है जो उसके वर्चस्व को स्वीकार करते हैं। दुष्ट शैतान पाप करने के लिए मानव के मन में शंकाएं उत्पन्न करता है और साथ ही उस पाप का औचित्य भी उनको सिखाता है।

सूरए नहल की आयत संख्या 99 तथा 100 में आया है किः- निःसन्देह, उसका (शैतान का) उनपर कुछ भी ज़ोर नहीं चलता जो ईमान ले आए और अपने रब पर भरोसा रखते हैं। उसका ज़ोर तो केवल उन लोगों पर ही चलता है जो उससे (शैतान से) मित्रता का नाता जोड़ते हैं। वास्तव में जो लोग दृढ़ विश्वास रखते हैं और ईश्वर पर भरोसा करते हैं उनपर शैतान के "वसवसे" अर्थात शंका उत्पन्न करने या बहकावे का कोई प्रभाव नहीं पड़ता।

शैतान की ओर से अपहरण की प्रक्रिया सामान्यतः धीरे-धीरे होती है जो अद्रश्य होती है। सामान्यतः मनुष्य को इस ख़तरनाक शत्रु के षडयंत्र का आभास ही नहीं होता। हालांकि मनुष्य तक़वा अर्थात ईश्वरीय भय और आस्था की सहायता से शैतान के बहकावे और ईश्वरीय संदेश के बीच अंतर को सरलता से समझ सकता है। क्योंकि ईश्वरीय संदेश मानव की पवित्र अन्तरात्मा से मेल खाते हैं अतः जब वे हृदय तक पहुंचते हैं तो मनुष्य में प्रभुल्लता की भावना उत्पन्न हो जाती है। दूसरी ओर शैतान का बहकावा या उसकी ओर से उत्पन्न की जाने वाली शंकाएं मनुष्य की अन्तरात्मा से मेल नहीं खातीं इसीलिए जब मानव का उनसे सामना होता है तो उसमें अप्रसन्नता की भावना जाग्रत होती है। इस शत्रु से मुक़ाबले के लिए धर्म ने हमारा मार्गदर्शन किया है जो मनुष्य के ज्ञान में वृद्धि करता हैं और उसको ख़तरे से मुक्ति दिलाता है। इस बीच रोज़ा एसा कार्यक्रम है जो हज़रत मुहम्मद मुस्तफ़ा सल्लल्लाहो अलैहे वआलेही वसल्लम के कथनानुसार शैतान को मानव से दूर करता है और उसमें इच्छा शक्ति और आस्था को प्रबल बनाने का अवसर प्रदान करता है। एक दिन आपने फ़रमाया कि क्या तुम यह चाहते हो कि मैं तुमको एक एसे कार्य के बारे में बताऊं जिसके करने से शैतान तुम से दूर हो जाए। लोगों ने बड़े ही उत्साह से कहा कि हां या रसूलल्लाह। आपने कहा कि रोज़ा रखो क्योंकि रोज़ा शैतान का मुंह काला करता है।

ईश्वर ने हमें बहुत से अवसर प्रदान किये हैं। किंतु इन अवसरों का प्रदान किया जाना इस अर्थ में नहीं है कि यह निरंतर हमारे साथ भी रहेंगे। इन अवसरों का बाक़ी रहना या उनसे लाभान्वित होना, हमारे क्रियाकलापों पर निर्भर है। महापुरूषों के बहुत से कथनों में यह मिलता है कि ईश्वरीय अनुकंपाओं को अपनी "नाशुक्री" से दूर न करो। इमाम अली अलैहिस्सलाम फ़रमाते हैं कि तुमपर ईश्वर का सबसे छोटा अधिकार यह है कि उसकी विभूतियों को उसके मार्ग के विपरीत मार्ग में ख़र्च न करो। निश्चित रूप से ईश्वरीय विभूतियों से मुंह मोड़ना और इन विभूतियों के महत्व को न समझना, पतन के कारकों में से एक है।

एक कथन में आया है कि एक दिन हज़रत दाऊद ने ईश्वर से मांग की थी कि उनके साथी को स्वर्ग में उनके साथ स्थान मिले। आवाज़ आई कि कल उसको शहर के दरवाज़े के बाहर देखोगे। अगले दिन हज़रत दाऊद शहर के दरवाज़े से निकले। उन्होंने यूनुस पैग़म्बर के पिता मत्ता से भेंट की। उनके कंधे पर थोड़ा सा ईंधन था और वे उसे बेचने के लिए ग्राहक की तलाश में थे। हज़रत दाऊद उनके साथ हो लिए और उनसे बात कर

ने लगे। इसी बीच एक व्यक्ति ने ईंधन ख़रीदा। मत्ता ने पैसों से आंटा और नमक ख़रीदा। उन्होंने दाऊद, सुलैमान और अपने लिए रोटियां पकाई। रोटी खाते समय हज़रत दाऊद ने देखा कि मत्ता ने अपना सिर ऊपर उठाते हुए कहा, हे ईश्वर मैने जो ईंधन इकट्ठा किया था उसके पेड़ तूने उपजाए। मेरी भुजाओं को शक्ति तूने प्रदान की। ईंधन का बोझ ढोने की शक्ति तूने ही मुझकत दी। ईंधन के ग्राहक को तूने मेरे पास भेजा। गेहूं तूने पैदा किया। यह सब शक्तियां तूने मुझको प्रदान कीं ताकि मैं तेरी अनुकंपाओं से लाभ उठा सकूं। जिस समय मत्ता यह बातें कह रहे थे उस समय उनकी आखों से आंसू बह रहे थे। इसी बीच हज़रत दाऊद ने हज़रत सुलैमान को ओर मुख करते हुए कहा कि इस प्रकार का शुक्र ही मानव को उच्च स्थान की ओर ले जाता है।

जीवन और उससे संबन्धित विषयों के बारे में लोगों का दृष्टिकोण उनके व्यवहार की शैली पर बहुत प्रभाव पड़ता है। निश्चित रूप से जीवन के संबन्ध में लोगों का दृष्टिकोण और उनका मनोबल, उनके अंदर परिस्थितियों और विशेष प्रकार के व्यवहार को असित्तव प्रदान करता है। इस बात को मनुष्य सुनिश्चित करता है कि वह जीवन को किस प्रकार से देखता है। दूसरे शब्दों में सोच-विचार की शैली कभी सकारात्मक तो कभी नकारात्मक विचारधारा का कारण बनती है। सामान्यतः हमारे आंतरिक विचार/ घटनाओं, पवित्र आस्था, मूल्यों, और विचारों से गुज़रते हुए हमारे मस्तिष्क में अंकित होते हैं।

किंतु बाईमान लोग जीवन के प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण रखते हैं। एसे लोगों का मानना है कि सृष्टि को ईश्वर ने बनाया है। वही सृष्टि को चलाने वाला है। वह शक्ति तथा दया का प्रतीक है। उसीने अपनी दया से मानव को उचित मार्ग दर्शाया है। अब अगर कोई सीधे मार्ग को अपनाता है तो वह सफलता अर्जित करता है। ईमान रखने वाले व्यक्ति को जब सही रास्ता मिल जाता है और वह अच्छे कार्य करता है तो उसे ईश्वर की सहायता पर विश्वास होता है। एसे व्यक्ति के अनुसार ईश्वर सर्वशक्तिमान है फिर भी वह दूसरों पर अत्याचार नहीं करता। अपने दासों की प्रार्थना को सुनता है। वह उनसे बहुत ही निकट है। वह बहुत अधिक क्षमाशील तथा दयालु है। यहां तक कि जो लोग बुराई करने वाले हैं वे भी उसकी असीम कृपा के पात्र बनते हैं।

इस दृष्टिकोण के साथ जो भी सृष्टि के रचयता पर विश्वास रखता है वह सृष्टि को लक्ष्यहीन और बेकार नहीं जानता। वह संसार को कार्यस्थल तथा उचित प्रयास का स्थान समझता है। एसा व्यक्ति अपने व्यव्हार पर ईश्वर को निरीक्षक समझता है। घटनाएं चाहें वे अच्छी हो या बुरी उसकी मानसिक शांति को प्रभावित नहीं करती। इसका कारण यह है कि वह अपने जीवन के अंधकारमय छणों में भी अकेलेपन का भी आभास नहीं करता है और सदा ही अपने निकट ईश्वर का आभास करता है। ईश्वर के आभास के विचार के साथ वह यह समझता है कि उसे स्वतंत्र नहीं छोड़ा गया है और सृष्टि में उसके प्रयास विफल नहीं होंगे। एक अमरीकी मनोवैज्ञानिक के अनुसार ईमान एसी शक्ति है जिसकी मानव जीवन में सहायता के लिए ईमान की शक्ति की नितांत आवश्यकता होती है और ईमान का न होना जीवन की कठिनाइयों में मानव की पराजय के लिए ख़तरे की घण्टी के समान है।