रमज़ान के पवित्र महीने में तौबा करने अर्थात प्रायश्चित करने पर विशेष बल दिया गया हैं। तो आरंभ कर रहे हैं इसी विषय से।
जिस प्रकार से ईश्वर का आज्ञापालन मनुष्य को श्रेष्ठता तथा मार्गदर्शन के मार्ग पर अग्रसर करता है और कृपालु ईश्वर के साथ उसके संबन्धों को सुदृढ़ बनाता है उसी प्रकार से पाप इस संबन्ध को तोड़ दिया करते हैं। पाप ही मनुष्य को ईश्वर की व्यापक अनुकंपाओं से दूर कर देते हैं। पाप तथा ईश्वर अवज्ञा मनुष्य को परिपूर्णता के मार्ग से विचलित कर देती है। ईश्वर का मार्ग दर्शन मानव जाति की भलाई, उसके कल्याण तथा विकास के लिए है इसीलिए इनकी अनदेखी, उसकी आध्यत्मिक परिपूर्णता के मार्ग की सबसे बड़ी बाधा होगी। क्योंकि मनुष्य हर प्रकार का कार्य करने के लिए स्वतंत्र है अतः उसमे ग़लती की संभावना भी पाई जाती है। यही कारण है कि मनुष्य कभी-कभी ईश्वर की अवज्ञा करते हुए पाप कर लेता है। लेकिन सबसे बड़ी बात यह है कि ग़लती करने के पश्चात वापस लौटने का मार्ग उसके लिए बंद नहीं होता। ईश्वर ने अपनी असीम कृपा से वापसी का मार्ग उन लोगों के लिए खोल रखा है जो अपने ग़लत कार्यों पर पश्चाताप करते हैं। यह तौबा और प्रायश्चित का मार्ग है। एसे लोग जो अपने पापों से लज्जित होकर पवित्रता तक पहुंचने का मार्ग खोजने लगते हैं वे प्रायश्चित करके अपने मन से बुराइयों की गंदगी को धो डालते हैं। इस आधार पर कहा जा सकता है कि हर पापी जो अपने पापों पर लज्जित हो वह प्रायश्चित करके ईश्वर की ओर पलट सकता है। इसके लिए शर्त यह है कि मनुष्य का प्रायश्चित या उसकी तौबा वास्तविक हो। कहने का तात्पर्य यह है कि ईश्वर से क्षमा याचना के पश्चात मनुष्य भले और अच्छे कार्य में व्यस्त रहे। एसी स्थिति में ईश्वर भी अपने उस बंदे की ओर विशेष ध्यान देता है जो उससे प्रायश्चित करता है।
पवित्र क़ुरआन के सूरए फ़ुरक़ान की 70वीं आयत में हम पढ़ते हैः- सिवाए उनके जो ईश्वर की ओर पलटा और ईमान लाया और अनुकूल कार्य किया, तो एसे लोगों की बुराइयों को ईश्वर भलाइयों से बदल देगा। और ईश्वर अत्यन्त क्षमाशील तथा दया करने वाला है।
इस आयत में महत्वपूर्ण बिंदु यह है कि हम अपने पापों का यदि प्रायश्चित कर लें तो फिर महान सर्व शक्तिशाली परमेश्वर बुरे कामों को भलाई में परिवर्तित कर देता है। यह आयत लज्जित होने तथा पछतावा करने वाले बंदों के प्रति ईश्वर की दया, उसकी कृपा तथा अनुकंपा की निशानी है। सच्ची तौबा या वास्तविक प्रायश्चित से अमृत की भांति मनुष्य के पूरे असितत्व में एक गहरी हलचल उत्पन्न हो जाती है। वास्तविक प्रायश्चित इस प्रकार है मानों मनुष्य ने पुनः जन्म लिया हो। तौबा करके एक बुरा व्यक्ति, भले व्यक्ति में परिवर्तित हो जाता है। वास्तविक प्रायश्चित के पश्चात पाप और बुरे कर्मों के चिन्ह भी मिट जाते हैं और वे भलाई में परिवर्तित हो जाते हैं। इस प्रकार जो भी व्यक्ति वास्तविक रूप से ईश्वर की ओर लौटता है उसका व्यक्तिव भी अलग होता है। इस स्थिति में उसका अशांत मन, ईश्वर की मित्रता के शांत साहिल तक पहुच जाता है।
अब जब हमने देख लिया कि पापों की क्षमा याचना मनुष्य की आत्मा और उसके मन को इस प्रकार परिवर्तित कर देती है, उचित होगा कि हम भी कृपा के इस साहिल तक पहुंच जाएं और पवित्र रमज़ान के मूल्यवान क्षणों से भरपूर लाभ उठाने का प्रयास करें। यहां हमें यह बात ध्यान में रखनी होगी कि रमज़ान का अवसर हमें वर्ष में केवल एक बार ही मिलता है। अंत में हम प्रायश्चित के संबन्ध में यह दुआ पढ़ते हैं। हे पालनहार, हमने स्वयं पर अत्याचार किया, यदि तूने हमे क्षमा न किया और हमपर दया न की तो निश्चित रूप से हम घाटा उठाने वालों में से हो जाएंगे।