ग़दीरे खुम में पैगम्बर का खुत्बा
  • शीर्षक: ग़दीरे खुम में पैगम्बर का खुत्बा
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  • रिलीज की तारीख: 18:50:16 1-9-1403

“हम्दो सना अल्लाह की ज़ात से मखसूस है। हम उस पर ईमान रखते हैं उसी पर तवक्कुल करते हैं और उसी से मदद चाहते हैं। हम बुराई, और अपने बुरे कामों से बचने के लिए उसकी पनाह चाहते हैं। वह अल्लाह जिसके अलावा कोई दूसरा हादी व रहनुमा नही है। और जिसने भी गुमराही की तरफ़ हिदायत की वह उसके लिए नही थी। मैं गवाही देता हूँ कि उसके अलावा कोई माबूद नही है, और मुहम्मद उसका बंदा और पैगम्बर है।

हाँ ऐ लोगो वह वक़्त क़रीब है कि मैं दावते हक़ को लब्बैक कहूँ और तुम्हारे दरमियान से चला जाऊँ। तुम भी जवाब दे हो और मै भी जवाब दे हूँ”

इसके बाद फ़रमाया कि मेरे बारे में क्या सोचते हो ? क्या मैनें तुम्हारे बारे में अपनी ज़िम्मेदारी को पूरा कर दिया है ?

यह सुन कर पूरी जमीअत ने रसूले अकरम स. की खिदमात की तसदीक़ मे आवाज़ बलंद की।

और कहा कि हम गवाही देते हैं कि आपने अपनी ज़िम्मेदारी को पूरा किया, और बहुत कोशिश की, अल्लाह आपको अच्छा बदला दे।

पैगम्बर ने फ़रमाया कि “क्या तुम गवाही देते हो कि इस पूरी दुनिया का माबूद एक है और मुहम्मद उसका बंदा और रसूल है। और जन्नत जहन्नम व आखेरत की जावेदानी ज़िन्दगी में कोई शक नही है।”

सबने कहा कि “ सही है हम गवाही देते हैं।”

इसके बाद रसूले अकरम स. ने फ़रमाया कि “ऐ लोगो मैं तम्हारे दरमियान दो अहम चीज़े छोड़ रहा हूँ मैं देखूँगा कि तुम मेरे बाद मेरी इन दोनो यादगारों के साथ क्या सलूक करते हो।”

उस वक़्त एक इंसान खड़ा हुआ और बलंद आवाज़ मे सवाल किया कि इन दो अहम चीज़ों से क्या मुराद है ?

पैगम्बरे अकरम स. ने यफ़रमाया कि “एक अल्लाह की किताब है जिसका एक सिरा अल्लाह की क़ुदरत में है और दूसरा सिरा तुम्हारे हाथों में है। और दूसरे मेरी इतरत और अहले बैत हैं अल्लाह ने मुझे खबर दी है कि यह हरगिज़ एक दूसरे से जुदा न होंगे।”

हाँ ऐ लोगो क़ुरआन और मेरी इतरत पर सबक़त न करना, और दोनो के हुक्म की तामील में कोताही न करना, वरना हलाक हो जाओगे।

उस वक़्त हज़रत अली अलैहिस्सलाम का हाथ पकड़ इतना ऊँचा उठाया कि दोनो की बग़ल की सफ़ैदी सबको नज़र आने लगी। और अली को सब लोगों से मुतार्रिफ़ कराया।

इसके बाद फ़रमाया“मोमेनीन पर खुद उनसे ज़्यादा सज़वार कौन है ?

सब ने कहा कि “अल्लाह और उसका रसूल ज़्यादा जानते हैं।”

पैगम्बर स. ने फ़रमाया कि

“अल्लाह मेरा मौला है और मैं मोमेनीन का मौला हूँ और मैं उनके नफ़सों पर उनसे ज़्यादा हक़्क़े तसर्रुफ़ रखता हूँ। हाँ ऐ लोगो “मनकुन्तो मौलाहु फ़हाज़ा अलीयुन मौलाहु अल्लाहुम्मावालि मन वालाहु व आदि मन आदाहु व अहिब्बा मन अहिब्बहु व अबग़िज़ मन अबग़ज़हु व अनसुर मन नसरहु व अख़ज़ुल मन ख़ज़लहु व अदरिल हक़्क़ा मआहु हैसो दारः। ”

जिस जिस का मैं मौला हूँ उस उसके यह अली मौला हैं।[4] ऐ अल्लाह उसको दोसेत रख जो अली को दोस्त रखे और उसको दुश्मन रख जो अली को दुश्मन रखे उस से मुहब्बत कर जो अली से मुहब्बत करे और उस पर ग़ज़बनाक हो जो अली पर ग़ज़बनाक हो उसकी मदद कर जो अली की मदद करे और उसको रुसवा कर जो अली को रुसवा करे और हक़ को उधर मोड़ दे जिधर अली मुड़ें।”[5]

ऊपर लिखे खुत्बे[6] को अगर इंसाफ़ के साथ देखा जाये तो जगह जगह पर हज़रत अली अलैहिस्सलाम की इमामत की दलीलें मौजूद हैं।(हम इस क़ौल की शरह जल्दी ही बयान करेंगे।)