हज़रत शीस की विलादत का वाक़िया तारीखों मे यूं मिलता है कि एक दिन हज़रत आदम और हव्वा एक पाकीजा मकाम पर बैठे हुए महवे गुफ़तगू थे कि जन्नत से एक जू-ए-आब जारी होकर दोनो के करीब पहुचां और इसी के साथ साथ जिबराईले अमी भी कुछ फरिश्तो को लिए हुए वारिद हुए, उन्होने आकर हज़रत आदम को सलाम किया, आदम ने जवाबे सलाम दिया उसके बाद जिबरईल ने आदम के सामने जन्नती मेवों का एक तबक पेश किया और कहा कि इसे नोश कीजिये और आप आबे बेहिशत से गुल्ल करके हव्वा के पास जाइये क्योकि आज नूरे मोहम्मदी तुम्हारे सुल्ब से रहमे हव्वा मे मुन्तिकि़ल किया जाएगा और तुम्हरी वही की बुन्याद पड़ेगी।
हज़रत आदम ने इस हुक्मे इलाही की तामील की और हज़रत हव्वा इसी शब हामेला हुई। मोद्दते हमल गुजरने के बाद एक फरजन्द की विलादत हुई जिसका नाम शीस रखा गया।
तारीखे़ ख़मीस मे है कि चूंकि नूरे मोहम्मदी को हज़रत आदम के सुल्ब से मुन्तकि़ल होकर हज़रत शीस के सुल्ब मे आना था इसीलिए उनकी विलादत मे खास एहतेमाम किया गया।
अजाएबुल क़सस और हयातुल कु़लूब मे है कि जब हज़रत शीस सिने बुलूग़ पर पहुचें तो जिबराईल नाज़िल हुए है और आदम से कहा कि ए आदम तुम फलां मकाम पर कल शीस को लेकर पहुँच जाओ और मै भी फरिश्तों को लेकर वहाँ आ जाऊगा। आदम ने इस इजतेमा का सब्ब दरयाफ्त किया तो जिबराईल ने कहा कि शीस से नूरे मोहम्मदी के मोताल्लिक़ एहदो मीसाक लेना है। दूसरे दिन हजरत आदम मकामे मोइयना पर पहुँच गये, हजरत जिबरईल भी हजारो फरिशतो को लेकर वहां आ गये , और हजरत शीस से अहदे मीसाक़ लिया गया और उन्हे कुछ हिदायें
जिस वक्त हज़रत शीस मोतावल्लिद हुए उस वक्त हज़रत आदम की उम्र 230 बरस की थी। आप की नस्ल हज़रत शीस से ही चली। और हज़रत शीस के अहद मे अवलादे आदम दो गिरोह मे तक़सीम हुई एक क़ाबील की पैरव, जो आतश परस्त हुई दूसरी हज़रत शीस की पैरव जो खुदा परस्त रही।
हज़रत शीस अवलादे आदम मे इन्तेहाइ मोहतरम बुजुर्ग अपने वालिद से मुशाबेह और खू़बसूरत थे। इन पर 50 सहीफे नाजिल हुए । और जब इनकी उम्र 612 बरस की हुई तो इन्तेक़ाल हुआ । इन्तेक़ाल से क़ब्ल इन्होने अपना वसी अनूश को मोकर्रर किया और अनूश ने क़ीनान को क़ीनान ने महलाईल को और महलाईल ने यारो को यारो ने अख़नूख़ को अपना वसी और जानाशीन मोक़र्रर किया जो हजरत इदरीस कहलाए।