ख़ुलासा ए ख़ुतबा ए ग़दीर
  • शीर्षक: ख़ुलासा ए ख़ुतबा ए ग़दीर
  • लेखक: फ़ीरोज़ अली बनारसी
  • स्रोत:
  • रिलीज की तारीख: 23:21:31 1-9-1403

ख़ुदा के रसूल (स) ने ग़दीरे ख़ुम में सवा लाख हाजियों के मजमे में मौला ए कायनात हज़रत अली (अ) की विलायत व इमामत के ऐलान से पहले एक निहायत अज़ीमुश शान फ़सीह व बलीग़, तूलानी व तारीख़ी ख़ुतबा इरशाद फ़रमाया। आपने इस ख़ुतबे में क़यामत तक आने वाले इंसानों को इमामत व विलायत की तरफ़ रहनुमाई व हिदायत फ़रमाई है और अपने बाद उम्मते मुस्लिमा की हिदायत व रहबरी का एक ऐसा मासूम सिलसिला क़ायम किया है जिससे तमस्सुक की सूरत में इंसान गुमराही व ज़लालत के ख़तरनाक और मोहलिक रास्तों से महफ़ूज़ रह कर मंज़िले मक़सूद (जन्नते रिज़वान) तक पहुच सकता है।

यहा पर उसी अज़ीम तारीख़ी ख़ुतबे के बाज़ गोहर बार फ़िक़रों को क़ारेईन की नज़्र किया जा रहा है:

एक अहम ऐलान के लिये हुक्मे परवरदिगार

रसूले ख़ुदा (स) ने हम्द व सना ए परवरदिगारे आलम के बाद इरशाद फ़रमाया:

मैं बंदगी ए परवरदिगार का इक़रार करता हूँ और गवाही देता हूँ कि वह मेरा रब है और उसने जो कुछ मुझ पर नाज़िल किया मैंने उसे पहुचा दिया है, कहीं ऐसा न हो कि कोताही की सूरत में वह अज़ाब नाज़िल हो जाये जिसका दफअ करने वाला कोई न हो..... उस ख़ुदा ए करीम ने मुझे यह हुक्म दिया है कि ऐ रसूल, जो हुक्म तुम्हारी तरफ़ अली के बारे में नाज़िल किया गया है उसे पहुचा दो और अगर तुम ने ऐसा नही किया तो रिसालत की तबलीग़ ने नही की और अल्लाह तुम्हे लोगों के शर से महफ़ूज़ रखेगा।

ऐ लोगो, मैंने हुक्मे ख़ुदा की तामील में कोई कोताही नही की। जिबरईल (अ) तीन मरतबा मेरे पास सलाम व हुक्मे ख़ुदा लेकर नाज़िल हुए कि मैं इसी मक़ाम पर ठहर कर हर सियाह व सफ़ेद को यह इत्तेला दे दूँ कि अली बिन अबी तालिब मेरे भाई, वसी, जानशीन और मेरे बाद इमाम हैं। उनकी मंज़िलत मेरे नज़दीक वैसी ही है जैसे मूसा (अ) के लिये हारुन की थी, फ़र्क़ सिर्फ़ यह है कि मेरे बाद कोई नबी न होगा। वह अल्लाह और रसूल के बाद तुम्हारे हाकिम व वली हैं....।

बारह इमामों की इमामत व विलायत का ऐलान

ऐ लोगो, अली के बारे में यह भी जान और समझ लो कि ख़ुदा ने उन्हे तुम्हारा साहिबे इख़्तियार और इमाम बनाया है और उसकी इताअत व पैरवी को वाजिब क़रार दिया है...।

नूर की पहली मंज़िल मैं हूँ। मेरे बाद अली और उनके बाद उनकी नस्ल है और यह सिलसिला उस महदी क़ायम (अज्लल्लाहो तआला फ़रजहूश शरीफ़) तक बरक़रार रहेगा। जो अल्लाह का हक़ और हमारा हक़ हासिल करेगा।

उसके बाद इरशाद फ़रमाया: जो इस बात में शक करेगा वह गुज़श्ता जाहिलियत जैसा काफ़िर हो जायेगा और जिसने मेरी किसी एक बात में भी शक किया उसने गोया तमाम बातों को मशकूक क़रार दिया और उसका अंजाम जहन्नम है।

मसअल ए इमामत पर ख़ास तवज्जो

अल्लाह ने दीन की तकमील, अली (अ) की इमामत से की है। लिहाज़ा जो अली (अ) और उनके सुल्ब से आने वाली मेरी औलाद की इमामत का इक़रार नही करेगा उसके आमाल बर्बाद हो जायेगें वह जहन्नम में हमेशा हमेशा रहेगा। ऐसे लोगों के अज़ाब में कोई कमी नही होगी और न ही उन पर निगाहे रहमत की जायेगी...।

याद रखो, अली (अ) की दुश्मन सिर्फ़ शक़ी होगा और अली का दोस्तदार सिर्फ़ तक़ी व मुत्तक़ी होगा। उस पर ईमान रखने वाला सिर्फ़ मोमिने मुख़लस हो सकता है और उन्ही के बारे में सूर ए वल अस्र नाज़िल हुआ है।

मुनाफ़ेक़ीन की मुख़ालेफ़त और सरकशी से होशियारी

ऐ लोगो, अल्लाह, उसके रसूल और उस नूर पर ईमान ले आओ जो उसके साथ नाज़िल किया गया है, ..........................................

यानी क़ब्ल इसके कि हम तुम्हारे चेहरों को बिगाड़ कर पुश्त की तरफ़ फेर दें या उन पर इस तरह लानत करें जिस तरह हम ने असहाबे सब्त पर लानत की है।

ख़ुदा की क़सम इस आयत से मुराद नही हैं मगर मेरे बाज़ सहाबी कि मैं उन्हे उन के नाम व नसब के साथ पहचानता हूँ लेकिन मुझे हुक्म दिया गया है कि मैं पर्दा पोशी करूँ। पस हर शख़्स अपने दिल में मौजूद अली (अ) की निस्बत दोस्ती या दुश्मनी के मुताबिक़ अमल करे।

अहले बैत (अ) के दोस्तदार और दुश्मन

ऐ लोगों, हमारा दुश्मन वह है जिसकी ख़ुदा ने मज़म्मत व मलामत और उस पर लानत की है और हमारा दोस्त वह है जिस की ख़ुदा ने मदह की है और उसे दोस्त रखा है।

इमामे ज़माना (अज्लल्लाहो तआला फ़रजहुश शरीफ़)

याद रखो कि आख़िरी इमाम हमारा ही क़ायम महदी (अज्लल्लाहो तआला फ़रजहुश शरीफ़) है। वही अदयान पर ग़ालिब आने वाला और ज़ालिमों से इंतेक़ाम लेने वाला है। वही क़िलों का फ़तह करने वाला और उनका मुनहदिम करने वाला है। वही मुशरेकीन के हर गिरोह का क़ातिल और अवलियाउल्लाह के हर ख़ून का इंतेक़ाम लेने वाला है। वही दीने ख़ुदा का मददगार और विलायत के अमीक़ समुन्दर से सैराब करने वाला है। वही हर साहिबे फ़ज़्ल पर उसके फ़ज़्ल और जाहिल पर उसकी जिहालत का निशान लगाने वाला है।

बैअत

अय्योहन नास, (ऐ लोगों) मैंने बयान कर दिया और समझा दिया। अब मेरे बाद अली (अ) तुम्हे समझायेगें। आगाह हो जाओ कि मैं इस ख़ुतबे के इख़्तेताम पर इस बात की दावत देता हूँ कि मेरे हाथ पर उनकी बैअत का इक़रार करो। उसके बाद उसके बाद उनके हाथ पर बैअत करो। मैंने अल्लाह के हाथ अपना नफ़्स बेचा है और अली (अ) ने मेरी बैअत की है और मैं तुम से अली (अ) की बैअत ले रहा हूँ। जो इस बैअत को तोड़ेगा वह अपना ही नुक़सान करेगा।

अय्योहन नास, (ऐ लोगों) तुम इतने ज़्यादा हो कि एक एक मेरे हाथ पर हाथ मार कर बैअत नही कर सकते हो। लिहाज़ा अल्लाह ने मुझे हुक्म दिया है कि तुम्हारी ज़बान से अली (अ) के अमीरुल मोमिनीन होने और उनके बाद के आईम्मा (अ) जो उनके सुल्ब से मेरी ज़ुर्रियत हैं सब की इमामत का इक़रार ले लूँ। लिहाज़ा तुम सब मिल कर कहो:

हम सब आपकी बात के सुनने वाले, इताअत करने वाले, राज़ी होने वाले और अली (अ) और औलादे अली (अ) के बारे में जो परवरदिगार का पैग़ाम पहुचाया है उसके सामने सरे तसलीम ख़म करने वाले हैं। हम इस बात पर अपने दिल, अपनी रूह, अपनी ज़बान और अपने हाथ से बैअत कर रहे हैं, इसी पर ज़िन्दा रहेगें, इसी मरेगें और इसी पर दोबारा उठेगें। न कोई तग़य्युर व तबद्दुल करेगें और न ही किसी शक व रैब में मुबतला होगें, न अहद से पलटेगें न ही मीसाक़ को तोड़ेगें। अल्लाह की इताअत करेगें। आपकी इताअत करेगें और अली अमीरुल मोमिनीन और उनकी औलाद आईम्मा जो आपकी नस्ल में से हैं उनकी इताअत करेगें....।

याद रखो, जो अल्लाह, उसके रसूल (अ) और इन आईम्मा (अ) की इताअत करेगा वह बड़ा कामयाबी का मालिक होगा।