करबला हिन्दु बुद्धीजीवीयो के माध्यम से
  • शीर्षक: करबला हिन्दु बुद्धीजीवीयो के माध्यम से
  • लेखक: आक़ाई वहीद मुहम्मदी
  • स्रोत: ज़ुल्मत से निजात
  • रिलीज की तारीख: 13:42:15 4-9-1403

पंडित जवाहर लाल नेहरू

 

तारीख़ का एक सबक़ आमोज़ वाक़ेआ वो अज़ीम व जावेदानी असर है जो करबला के ग़म अंगेज़ सानिहे से दुनियाऐ इस्लाम पर मुरत्तब हुआ। ताज्जुब ख़ेज़ अम्र यह है कि उन तवील ईसाईयों में करोंङो नफ़ूस पर ये अज़ीमुश्शान असर जारी रहा और लातादाद अफ़राद की हमदर्दियां हासिल करता रहा। लेकिन फिर भी यह यह अम्र ताज्जुब ख़ेज़ नहीं है ,इसलिये की किसी ख़ास मक़सद के लिये क़ुर्बानी नवे इन्सान पर हमेशा असर अंदाज़ होती रही है।

क़ुर्बानी जिस क़द्र पुरख़ुलूस और जिसका मक़सद जितना आला होगा उतना ही उसकी सदाऐ बाज़गश्त ज़माने के गुंबद में गूंजती चली जाएगी और मर्दों औरतों की ज़िन्दगियों पर उसका असर होता रहेगा।

यह लाज़मी अम्र है कि एक ग़मअंगेज़ वाक़ेआ हमारे जज़्बाते ग़म को उभारे ताकि हम उस जज़्बाऐ ग़म मे एक जज़्बाऐ कामरानी भी नमुदार है। यानि इंतेहाई मुख़ालिफ़ माहौल में इन्सानी क़ूवते इरादी की फ़तह और यूँ शिकस्तो ग़म से फ़तह मन्दी और मसर्रत पैदा होती है। इसलिये यह बहुत अच्छा है कि हम इसे याद रक्ख़े और इससे हिदायत व सबक़ हासिल करते रहें। (सरफ़राज़ लखनऊ)

 

महात्मा गांधी

 

(1)मैने करबला की अलमनांक दास्तान उस वक़्त पढ़ी जबकि मैं नौजवान ही था। उसने मुझे दमबख़ुद और महसूर कर दिया। (पैग़ामे इस्लाम)

(2)मैं अहले हिन्द के सामने कोई नई बात पेश नहीं करता। मैंने करबला के हीरो की ज़िन्दगी का बखूबी मुतालेआ किया है और उससे मुझे यक़ीन हो गया है कि हिन्दोस्तान की अगर नजात हो सकती है तो हमको हुसैनी उसूलों पर अमल करना चाहिये। (हुसैनी दुनिया)

(3)बहैसियत शहीद के इमाम हुसैन अ 0की मुक़द्दस क़ुर्बानी मेंरे में सना व सिफ़त का लाजवाब जज़्बा पैदा करती है। क्योंकि उन्होंने तशनगी की अज़ीयत और मौत को अपने लिये और अपने बच्चों और तमाम ख़ानदान के लिये गवारा कर लिया लेकिन ज़ालेमाना क़ुवतों के सामने सर नहीं झुकाया। मेरा अक़ीदा ये है कि इस्लाम की तरक़्क़ी उसके मानने वालों की तलवारों की रहीने मिन्नत नहीं  है बल्कि उसके अपने औलियाऐ कराम की क़ुर्बानीयों का नतीजा है। (रज़ाकार लाहौर)

 

डा0 राजेन्द्र प्रसाद

करबला का वाक़ेआ-ए-शहादत इन्सानी तारीख़ का वह वाक़ेआ है जिसे कभी फ़रामोश नहीं किया जा सकता और जो दुनिया के करोङो मर्दों और औरतों की ज़िन्दगी पर असर डालता है और डालता रहेगा। हिन्दुस्तान में इस वाक़ेए की याद बङी संजीदगी से मनाई जाती है जिसमें न सिर्फ़ मुसलमान हिस्सा लेते है बल्कि ग़ैर मुस्लिम अफ़राद भी मिसावियाना दिलचस्पी का इज़्हार करते हैं। उन शौहदा की ज़िन्दगियाँ ऐसे ज़माने में जब कि हम इस मुल्क में जंगे आज़ादी में मसरूफ़ हैं और क़ौम व वतन की ख़ातिर क़ुर्बानियाँ पेश करते हैं हमारे लिये मिनार-ए-रौशनी की हैसियत रखते है। (शिया लाहौर)

 

सर राधा कृशनन

इमाम हुसैन अ 0ने अपनी क़ुर्बानीयों और ईसार से दुनिया पर साबित कर दिया है कि दुनिया में हक़ व सदाक़त को ज़िन्दा और पाइन्दा रखने के लिये हथियारों और फ़ौजों की बजाये जानों की क़ुर्बानी पेश करके कामयाबी हासिल हो सकती है। उन्होंने दुनिया के सामने एक बेमिसाल नज़ीर पेश की है।

आज हम उस बहादुर फ़िदाई और इन्सानयत को ज़िन्दा रखने वाले अज़ीमुश्शान इन्सान की याद मनाते हुए अपने दिलों में फ़ख़्र व मुबाहात का जज़्बा महसूस करते हैं।

इमाम हुसैन अ 0ने हमें बता दिया कि हक़ व सदाक़त के लिये अपना सब कुछ क़ुर्बान किया जा सकता है। (पयामें इस्लाम)

 

मिस्टर गोखले

(साबिक़ सद्र इंडियन नेशनल कांग्रेस)

अगर इमाम हुसैन अ 0की अपनी शहादत से इस्लाम के उसूल को अज़सरेनौं ज़िन्दा न करते तो इस्लाम मिट जाता और अगर इस्लाम का वजूद होता भी तो बे उसूल मज़हब की हैसियत से ,जिसके अन्दर बङी आसानी से वो बुराईयां फैल जातीं जिनका रिवाज यज़ीद और उस ज़माने के मुसलमानों की रोज़ मर्रा की ज़िन्दगी में हो गया था। (हुसैनी दुनिया)

 

पंडित गोविन्द वल्लभ पन्त

(साबिक़ वज़ीरे दाख़ेला हिन्दुस्तान)

इमाम हुसैन अ 0की ज़ात इस ज़ुल्मत और तारीकी में एक मनाराऐ नूर की हैसियत रखती है। उनकी शहादत इन्सानियत को दरसे बसीरत देती रहेगी और उसको वहशीयाना क़ुवत और बहीमियत के मुक़ाबले में सिबाते क़दम अता फ़रमाएगी।

जब भी इन्सान के लिये उन लाफ़ानी ख़ूबियों के तहफ़्फ़ुज़ का मौक़ा आयेगा जो इन्सानी तवद्दुन का जुज़वे ला यनफिक़ है। उस वक़्त यही शहादत उचे टिडडी दल दुशवारियों का मुक़ाबला करने की ताब व ताक़त देगी।

(पैग़ामे इस्लाम)

 

बाबू पुरषोत्तम दास टण्डन

(साबिक़ स्पीकर यूपी ऐसेम्बली)

शहादते इमाम हुसैन अ 0हमेशा मेरे लिये एक अलमया-ए-कशिश रखती है। उस ज़माने में भी जब कि मैं कमसिन बच्चा था मैं उस अज़ीम वाक़ेऐ की याद मनाने की अहमियत को समझता था। इतनी बुलन्द क़ुर्बानी ने जैसे कि इमाम हुसैन अ 0ने पेश की है इन्सानियत को हद दर्जा बुलन्द कर दिया है। उनकी याद मनाने और क़ायम रखने के क़ाबिल है। (हुसैन अ 0डे रिपोर्ट लखनऊ)

 

बी जी खैरो

(साबिक़ वज़ीरे आला सूबा-ए-बम्बई)

इमाम हुसैन अ 0ने जो सबक़ सिखाया है वो हमारी ज़िन्दगी के लिये चिराग़े राह है।

ये तो आसान है कि हक़ और सच्चाई के लिये अपनी जान दे दी जाये मगर ये मुश्किल है कि हज़ारो दुशमनों के मुक़ाबले चन्द गिने चुने साथियों और रिश्तेदारों को लेकर उनका मुक़ाबला किया जाये और यके बाद दीगरे अपनी आँख के सामने अपने दोस्तों और रिश्तेदारों को क़त्ल होता हुआ देखा जाये।

जो सबक़ हुसैन अ 0ने तेरह सौ बरस पहले सिखाया था वह सबक़ आज तक हम सिखने की कोशिश कर रहे हैं। हिन्दुओं का कोई बङा पंडित या आलम उस वक़्त तक हक़ीक़ी मानों में आलम या पंडित नहीं हो सकता जब तक कि वह हुसैन अ 0के उस पैग़ाम और उसूल को न जानें।

इमाम हुसैन अ 0सिर्फ मुसलमानों ही के नहीं बल्कि हिन्दुओं के भी हैं और हिन्दु और मुसलमान उनके नक़्शे क़दम पर चल कर ज़ुल्म व सितम के ख़िलाफ़ सीना सिपर हो सकते हैं। (शिया लाहौर)

 

डाक्टर रवीन्द्र नाथ टैगौर

हुसैन अ 0ने क्या सिखाया ?

ये माददी दुनिया जिसमें हम रहते हैं ,उस वक़्त अपना तवाज़ुन खो देती है जब उसका रिश्ता मोहब्बत की दुनियां से ख़त्म हो जाता है। ऐसी हालत में हमें निहायत अरज़ां और फ़रोमाया चीज़ों की क़ीमत अपनी रूह से अदा करनी पङती है। सिर्फ उस वक़्त हो सकता है जब माददीयत की मुक़य्यद करने वाली दीवारें हयात की आख़री मंज़िल होने की धमकी देती है।

जब यह होता है तो बङे बङे तनाज़ेअ ,हासिदाना फ़ितने और मज़ालिम अपने लिये जगह और मौका तलाश करने के लिये उठ खङे होते हैं हमें उस ख़राबी की दिल गुदाज़ ख़बर मिलती है और हम सदाक़त के महदूद दायरे के अन्दर ही तवाज़ुन क़ायम रखने की हर मुमकिन कोशिश करते हैं। इसमें हमें नाकामियां होती हैं ,उस मौक़े पर सिर्फ़ वही हमारी मदद करता है जो अपनी हयाते नफ़सानी से ये साबित कर दिखलाता है कि हम रूह भी रखते हैं। वो जिसका मसकन मोहब्बत की बादशाहत में है। और फिर जब हम रूहानी आज़ादी हासिल करते हैं तो माददी अशया की मसनवी क़ूव्वतों का ज़ोर हमारी निगाहों में ख़त्म हो जाता है। (मून लाईट लखनऊ)

 

प्रोफ़ेसर रघुपति सहाय

(फ़िराक़ गोरखपुरी)

सय्यदना इमाम हुसैन अ 0की बुलन्द और पाकीज़ा सीरत महसूस किये जाने की चीज़ है। ऐसे अल्फ़ाज़ का पाना आसान नहीं जो उनके किरदार की अज़मत के मुकम्मल मज़हर हों।

यूँ तो उनकी सीरत ,रूहानियत और आँसूओं की सब से ज़्यादा ताबनांक रौशनी करबला के अन्दर चमकती दिखाई देती है लेकिन जो लोग हुसैन अ 0के वाक़ेआऐ करबला से पहले की ज़िन्दगी से वाक़िफ़ हैं उनके लिये उस ज़िन्दगी की बेदाग़ और उस्तवार पाकीज़गी उसकी तशनगी ,उसका ख़ुलूस और वक़ार ,सदाक़त की चट्टान और सख़्त इम्तेहान के मुक़ाबले की ताक़त। ये बातें इतनीं नुमायां है कि बिला जेहाज़ मज़हबो मिल्लत हर फ़र्द ख़िराजे अक़ीदत पेश करता है।

क्या सिर्फ़ मुसलमान के प्यारे हैं हुसैन

चर्ख़े नौए बशर के तारे हैं हुसैन

इन्सान को बेदार तो हो लेने दो

हर क़ौम पुकारेगी हमारे हैं हुसैन

मुझ जैसे गुनाहगार इन्सान के लिये हुसैन अ 0के एख़लाक़ी कमालात की सही क़द्रो क़ीमत का अंदाज़ा लगाना ग़ालेबन अपनी क़ाबिलियत से बढ़ कर जुर्अत आज़माई के मुतरादिफ़ होगा। हुसैन अ 0दुनिया के बङे से बङे ख़ुदा रसीदा ऋषियों और शहीदों के हम पल्ला हैं। (सरफ़राज़ लखनऊ)

 

पंडित गोपीनाथ अमन देहलवी

इमाम हुसैन अ 0ने जो बात कही ,सीधी साधी और सच्ची कही ,उन्होंने चालबाज़ियों से काम न लिया। आख़िर हुसैन अ 0और उनके साथी शहीद हो गये। ये सवाल पैदा होता है कि शिकस्त किसकी हुयी ?इसे दो फ़िक़्रो में कहा जा सकता है कि हुसैन अ 0के जिस्म की और यज़ीद के इरादों की। ज़ाहिर बीन उसे हुसैन अ 0की शिकस्त कहें तो हक़ बीन उसे हुसैन अ 0की फ़तह कहेगी।

हुसैन इब्ने अली अ 0को सलाम जो मुदबिर और हक़ परस्त था।

हुसैन इब्ने अली अ 0को सलाम जो दिलेर होकर मुनकसिरूल-मिजाज़ था।

हुसैन इब्ने अली अ 0को सलाम जिसने इस्लाम को दाख़ली ख़तरों से बचा लिया।

हुसैन इब्ने अली अ 0को सलाम जिसने अपनी जान देकर इन्सानियत का पैग़ाम दुनिया को दिया।

 

पंडित अमरनाथ जी

(साबिक़ वाईस चांसलर इलाहबाद यूनिवर्सिटी)

तारीख़े इन्सानी के ग़मनांक वाक़ेआत में कोई भी वाक़ेआ इतना दिल ख़राश न होगा जितना करबला के मैदान में जंगे हुसैन अ 0का ख़ात्मा है। वो ऐन सजदे में क़त्ल किये गये और शहादत का दर्जा हासिल कर गये। हमारे नज़दीक क़दीम सुरमाओं के कारनामों को नज़र में रखना बहुत बेहतर है कि वह लोग क्या थे और क्या कर गये।

उनकी कामयाबियाँ रूह की पुरइस्तेख़लाल फतह का बायस है जिनके लिये उन्हें सख़्त इम्तेहान से गुज़रना पङता है। (मून लाईट लखनऊ)

 

मिस्टर नारायन गुर्टू

(वाइस चांसलर बनारस यूनिवर्सिटी)

आज की परेशान दुनिया में ज़रूरत है कि हज़रत इमाम हुसैन अ 0की बेमिसाल क़ुर्बानी और ईसार की याद धूम से मनाई जाया करे।

इमाम हुसैन अ 0ने एक बलन्द मक़सद के लिये मौत क़बूल की और ख़ुद को इस्लाम के एक ख़िदमत गुज़ार रखवाले की हैसियत से तारीख़ के सफ़हात में ज़िन्दाए जावेद कर लिया। (हुसैन अ 0डे रिपोर्ट)

 

डा0 जवाहर लाल रोहतगी एम-एल-ए

इमाम हुसैन अ 0जैसे बहादुर किसी ख़ास मुल्क और मज़हब के हीरो नहीं समझे जा सकते।

मैदाने करबला में हुसैन अ 0और उनके रोफ़क़ा की क़ुर्बानियाँ और वह बुलन्द मकासिद जिनके लिये उन्होंने अपनी जाने दीं मौजूदा ज़माने की मुबाररज तलब सब क़ौमो के लिये आँखें खोलने वाले हैं।

मुझे उम्मीद है कि हमारे मुल्क का हर आदमी करबला की तारीख़ के एक एक वरक़ का मुतालेआ करेगा और हुसैन अ0 की क़ुर्बानियों की तक़लीद अपने मुल्क के मफ़ाद के लिये करेगा। (हुसैन अ 0डे रिपोर्ट)

 

क़ुंज बिहारी लाल एडवोकेट

(इलाहबाद)

बुलन्द मक़ासिद के लिये जंग करने वाले बुलन्द मरताबत हुसैन अ 0के जज़्बाऐ ईसार व क़ुर्बानी की जितनी भी तारीफ़ की जाये कम है। वह पाक इन्सान उन चन्द नुफ़ूस में से था जो हर रोज़ दुनियां को नसीब नहीं होते और जब इस सरज़मीन पर उतरते हैं तो उसे आसमान की तरह बुलन्दी और अज़मत अता कर देते हैं। अपने जायज़ हक़ के लिये लङना और जान दे देना ये अम्र भी कुछ कम दादो तहसीन का मुस्तहक़ नहीं। लेकिन वह इन्सान कितना अज़ीम-उल-मरताबत और क़ाबिले सद तहसीन है जिसने अपने लिये नहीं बल्कि दूसरों के लिये ,इस्लाम के लिये और इस्लाम के मुस्तहकम और बुलन्द उसूलों के लिये जंग की और अपनी ही नहीं बल्कि अपने अहलेख़ाना तक की क़ुर्बानी दे दी। वह दुश्मन के मुक़ाबले में कमज़ोर थे ,उनकी फ़ौज सिर्फ़ बहत्तर नुफ़ूस पर मुश्तामिल थी वह भी भूके और प्यासे। मगर हुसैन अ 0और उनके साथियों ने जिस इस्तेक़लाल और शुजाअत से जंग लङी उसने साबित कर दिया की उनका मकसद कितना पाकीज़ा ,जज़बा कितना नेक और इरादा कितना बुलन्द था।

ऐ ख़ाके करबला तुझ पर ख़ुदा की हज़ार-हज़ार रहमतें हों के तेरे सीने में ख़ुदा की मुक़द्दस अमानत दफ़न है। तेरे ज़र्रों पर मासूम ख़ून के फव्वारे गिरे हैं। (मन्शूर लखनऊ)

 

डा 0एस-के-बनर्जी

हुसैन अ 0ने ख़ुद्दारी और न मिटने वाले हक़ के सिलसिले में मक़ावमत करके एक शहीद की मौत मरना और तकलीफ़ उठाना पसन्द किया। दुनिया की तारीख़ के सफ़हात में वह मंज़र सब से ज़्यादा दर्दअंगेज़ है। यह मुक़द्दस हस्ती चटियल और वीरान रेगिस्तान से रवाना हुई और करबला में बहादुराना मुक़ाबला किया। जिसके नतीजे में हुसैन अ 0और उनकी जमाअत के बहादुर अफ़राद को जामे शहादत नोश करना पङा। हसुन अ 0की रूहानी अज़मत का अन्दाज़ा रूह को बेचैन करने वाले उन उसूलों से हो सकता है जिनका मुज़ाहेरा उनके साथियों ने किया ,जब नींद ,ग़िज़ा और पानी सब के दरवाज़े उन पर मसदूद कर दिये गये थे ,उस वक़्त उन्होंने यह ख़्वाब भी न देखा कि वह हुसैन को छोङ कर चले जाऐं ,उस वक़्त भी उन्होंने अपने दुश्मनों के ख़िलाफ़ कोई कलमाऐ बद नहीं कहा बल्कि अपने क़ायद के हाथ पर हाथ रख कर उसकी दुआ हासिल करने के मुतमन्बी होकर अपनी जाने दे दीं।

हुसैन अ 0की तालीमात ,अमल ,पैकार और शहादत ने उन हक़ायक़ और सदाक़ती की तसदीक़ कर दी जिन पर उनके नाना जनाबे रिसालत मआब (स 0)ने रौशनी डाली थी।

अपने मक़सद पर मज़बूती से क़ायम रहना ,दुनिया के माददी मफ़ाद की परवाह न करना ,उनसे क़ताऐ ताल्लुक़ कर लेना और मसाएब में सब्र व इस्तेक़लाल का सबक़ मैदाने करबला में इस तरह दोहराया गया जिस तरह अरब में कभी उसकी तल्क़ीन नहीं की गयी थी। उन्होंने अपने और अपनी औलाद के लिये ग़ैर फ़ानी कामयाबी और लाजवाब शोहरत हासिल कर ली।

करबला के शोहदा की ज़िन्दगी के साथ हुसैन अ 0के बुलन्द नस्बुलऐन का ख़ात्मा नहीं हुआ। ये नस्बुलऐन अक्सर दोहराया गया और दुनिया के हर गोशे में आज भी उसकी याद ताज़ा है। (मुस्लिम रिविव)

 

डा0 एस-वी-पशीम-बेकर

(सद्र शोबाए तारीख़ बनारस हिन्दू युनिवर्सिटी)

हुसैन अ 0तारीख़े आलम में शरीफ़ तरीन सीरत के हामिल हैं। शहादत एक ऐसा तारीख़ी वाक़ेआ है जिसकी अहमियत और अज़मत बढ़ती वली जाती है। इन्सान जिन बङी और अज़ीमुल मरतबत शख़्सीयतों की तारीफ़ करते और उनसे मोहब्बत करते हैं हुसैन अ 0उन पाकीज़ा हस्तियों में से एक हैं। उनमें शरीफ़ ख़्याली ,पाकीज़गी ,सादगी और ख़ुलूस की सिफ़ात मुजतमअ थी और जो लोग दुनियां में इन्सानी मोहब्बत व इज़्ज़त और अमन व सुकून के ख़्वाहिशमंद हैं उनके लिये ये सिफ़ात एक मुस्तक़िल ज़रीये इन्हाम और हसूले इन्सानियत व रवादारी है और रहेगी। ये तमाम उसूल इमाम हुसैन अ 0की ज़िन्दगी में पाये जाते हैं और इन्ही के लिये उन्होंने शहादत की मौत को अख़्तियार किया।  (मून लाइट लखनऊ)

 

डा0 राधा कुमार मुख़र्जी

(अध्यक्ष इसिहास विभाग लखनऊ युनिवर्सिटी)

तारीख़ जिन अज़ीम तरीन किरदारों से वाक़िफ़ है इमाम हुसैन अ 0उनमें से एक हैं। फ़ानी होकर लाफ़ानी तक पहुँच जाना ,महदूद होकर लामहदूद को पा लेना यही उनकी ज़िन्दगी थी। वह थे तो एक फ़र्द मगर उन्होंने अपनी हस्ती को वुसअत देकर पूरी कायनात बना दिया। इस तरह वह इन्सनियत की मुजस्सम उम्मीद बन गये। उनकी ज़िन्दगी बताती है कि इन्सान किस तरह देवता हो सकता है। इमाम हुसैन अ 0न किसी अहद के हैं ,न किसी मुल्क के। आरज़ी हद बंदियां उनकी अज़मत को महदूद नहीं कर सकती। वह तमाम क़ौमों के हीरों हैं।

ये क्यों ?

इसलिये कि वह उस बुलन्द तरीन मेआरे हक़ के लिये उठ ख़ङे हुए जो तमाम नवे इन्सानी के दिल में मुस्तक़िल तौर पर घर किये हुए है। इसी के लिये जियें और इसी के लिये मरें। उनके लिये हक़ या दीन सिर्फ़ किताबों में पढ़ लेने के लिये न था ,न इस लिये था कि सिर्फ़ फ़ुर्सत के लम्हों में इतमिनान के साथ उस पर अमल किया जाये।

हक़ तो इसलिये है कि उसे अपनी ज़िन्दगी बना लिया जाये ,उसे अपनी रूह में मुस्तक़िल रक्खा जाये। हक़ इमाम हुसैन अ 0के ख़ून में जारी था और उनकी हस्ती का जुज़्वे ला यनफ़िक़ था। हक़ को गोश्त पोस्त वाली ज़िन्दा चीज़ों की तरह माददी तौर पर समझना चाहिये। ये नहीं भूलना चाहिये कि ज़िन्दगी का हर लम्हा हक़ है ,उसमें दम भर के लिये भी लग़ज़िश न हो।

इमाम हुसैन अ 0हक़ का ग़ैबी शोला बन कर चमके जिसमें नूर ही नूर था ,फैलाव और हरारत थी। उनकी शुजाअत की हरारत ने उनके दुश्मनों को जला- जला कर ख़ाक कर दिया। उनकी बेमिसाल शख़्सियत का ज़ौ-फ़िशाँ नूर आज भी ख़्याल की दुनिया रौशन किये हुए है।

ज़ैल की चन्द एक तफ़सीलात से ज़ाहिर होगा की इमाम हुसैन अ 0क्यों कर अपने तमाम अफ़कार व आमाल में एक एक इन्साने कामिल ठहरते हैं उनके वालिदे बुज़ुर्गवार हज़रत अली अ 0की शहादत उनके हिस्से में आयी थी।

हज़रत अली अ 0ने अपनी ज़िन्दगी उस मक़सद के लिये वक़्फ़ कर दी कि रसूले इस्लाम स 0अ 0के उसूलों के मुताबिक़ क़ुर्रए अर्ज़ हक़ व इंसाफ़ की हुकूमत क़ायम कर दें ,मगर उनके दुश्मनों की ताक़त बहुत ज़्यादा थी।

रमज़ान 40हि 0को मस्जिदे कूफ़ा में नमाज़ की हालत में क़ातिल के एक वार नें उन्हें मौत से हमकिनार कर दिया। उन्होंने अपने बेटों को ताक़ीद की थी कि ताग़ूती ताक़त के साथ हक़ की जंग को जारी रक्खें।

तख़्त जो ख़ाली हो गया उसके लिये अहले कूफ़ा की मुत्ताफ़िक़ राय से इमाम हुसैन अ 0का इन्तेख़ाब किया गया मगर अभी उन्हें अपनी फ़ौजों को अज़सरे नौ तरतीब देने का वक़्त भी न मिला था कि दुश्मनों की फ़ौजें उन पर छा गयीं और उन्हें ख़िलाफ़त मुआविया के सिपुर्द करके मदीने में ख़ाना नशीन होना पङा।

मुआविया के बदकार बेटे यज़ीद ने मुआविया के बाद ख़िलाफ़त को ग़स्ब कर लिया। उस शख़्स की  बदअतवारी और मय नोशी पूरे इस्लाम की नफी थी। उसके अहद में हालात तेज़ी से ख़राब होते चले गये। इस्लाम की क़िस्मत में ग़ौर करने के लिये इमाम हुसैन अ 0ही रह गये थे। इस शदीद ग़ौरो फ़िक्र में न उन्हें दिन को चैन था न रात को नींद। आख़िरकार उन्होंने तय कर लिया कि जो भी हो मैं ग़ासिब यज़ीद की फ़ौजो का मुक़ाबला करके हक़ की क़ुर्बान गाह पर अपनी जान की क़ुर्बानी पेश करूगाँ।

अक़ीदे की नाक़ाबिले मुक़ाबला ताक़त ने उकसाया और वह अपने अज़ीज़ो ,औरतों और बच्चों की छोटी सी जमाअत को लेकर मदीने से चले ,उन्होंने करबला के मैदान में अपने ख़ेमें नस्ब किये और दुश्मन ने दरियाए फ़ुरात से पानी लेने के ज़राऐ मस्दूद कर दिये।

इनफेरादी मुक़ाबले में बनी फ़ात्मा की क़ुवत नाक़ाबिले शिकस्त थी क्योंकि उसमें क़ादिरेमुत्लक़ की दी हुई हरारत शामिल थी। लेकिन दुश्मन के तीर अन्दाज़ों ने एक महफ़ूज़ फ़ासले से एक-एक करके सबको क़त्ल कर डाला यहाँ तक कि रसूले ख़ुदा स 0का नवासा दीन का तन्हा मुहाफ़िज़ रह गया। उन्होंने उनके बेटों और भतीजों को भी उनकी आग़ोश में क़त्ल कर डाला। तब उन्होंने ज़िन्दगी की परवाह किये बग़ैर यज़ीदियों पर हमला करके उन्हें हर तरफ़ से पीछे हटा दिया। लेकिन ज़ख़्मों की कसरत से इमाम हुसैन अ 0ग़श खाकर ज़मीन पर पहुँचे। एक क़ातिल ने उनका सर काट लिया और उनकी लाश को घोङों की टापों से पामाल कर दिया।

उसूलों की पैरवी में ऐसी ज़बरदस्त क़ुर्बानी तारीख़ में अपना जवाब नहीं रखती। इमाम हुसैन अ 0इन्सानियत के एक बहुत बङे हीरो हैं। ज़िनकी याद को हर ज़माने और हर मुल्क में मनाना चाहिये ,वह अब भी एक ज़िन्दा ताक़त हैं जिससे मुनासिब मौक़ो पर हमें मदद माँगना चाहिये और जिसकी याद इस तरह मनानी चाहिये जिस तरह फ़ितरत अपने मआरकों की याद मनाती है। ग़ैर फ़ानी अज़मत के एजाज़ में यादगारी तक़रीबों को गर्दिश में रहना चाहिये। सूरज की तरह ,चाँद की तरह ,मौसमों की तरह। उसी बाक़ायदगी के साथ। उसी तकरार के साथ ,यही तरीक़ा है जिससे फ़ानी इन्सान अपने अन्दर ग़ैर फ़ानी जलवा देख सकता है।

(हुसैन अ 0 डे रिपोर्ट लखनऊ)

 

प्रोफ़ेसर आत्मा राम एम-ए

(होशियारपूर)

ऐसी फ़िज़ा में जबकि हिन्दू मुस्लिम कशीदगी अपने उरूज पर है ,एक ग़ैर मुस्लिम का एक मुस्लिम रहनुमा को ख़ेराजे अक़ीदत पेश करना ,बज़ाहिर ताज्जुब ख़ेज़ है और मुमकिन है मेरे हिन्दू भाई मेरे इस फ़ेल को अच्छी नज़र से न देखें मगर उनके पास उसका क्या इलाज है कि हुसैन अ 0,जिसे मैं ख़ेराजे अक़ीदत पेश कर रहा हूँ अपनी मुनफ़रिद शख़्सीयत ,अपनी उलुलअज़मी ,अपने बुलन्द और पाकीज़ा मक़ासिद ,अपने किरदार और अपनी हिम्मत व हौंसले की वजह से तारीख़े इस्लाम ही नहीं तारीख़े आलम में बेनज़ीर हैसियत का मालिक है।

दुनिया के बङे-बङे इन्सानों और खास तौर पर शोहदाए आलम की ज़िन्दगियों पर नज़र डालो और बताओ की मक़ासिद की पाकीज़गी ,इरादों की बुलन्दी ,बे ख़ौफ़ी और मसायब का मर्दानावार मुक़ाबला करने वाला कोई और शहीद नज़र आता है ?

जिन हालात में तकालिफ़ की शिद्दत और तवालत में हुसैम इब्ने अली अ 0ने अपना इम्तेहान दिया और कामयाबी हासिल की ,ऐसा सनद याफ़ता कोई और है ?

फिर उसमें क्या ताज्जुब है अगर मैं ग़ैर मुस्लिम होते हुए एक मुस्लिम शहीद की बारगाह में नज़रानाऐ अक़ीदत पेश कर रहा हूँ जो दर हक़ीक़त सिर्फ़ मुस्लिम शहीद ही नहीं बल्कि शहीदे  इन्सानियत है।

काश इस बदक़िस्मत मुल्क के हम बदक़िस्मत वासी हिन्दू मुसलमान के बजाऐ इन्सान के नुक़ताऐ निगाह से ग़ौर करना सीखें।

काश हम महदूद मफ़ाद के बजाऐ वसीअ मफ़ाद को पेशे नज़र रक्खें तो हम बिलातफ़रीक़े मज़हबो मिल्लत हुसैन अ 0के सामने सरे नियाज़ झुका देंगे ,और इस तरह हक़ीक़ी माअनों में उस अज़ीमुश्शान इन्सान की याद मनायेंगे जो अपनी ज़ात के लिये नहीं बल्कि सारी इन्सानियत के लिये शहीद हो गया। (ज़मींदार लाहौर)

 

प्रोफ़ेसर विश्म्भर नाथ सक्सेना एम-ए

(हैदराबाद सिंध)

मोहम्मद स 0अ 0और हुसैन अ 0अगर तारीख़े इस्लाम से इन दो नामों के निकाल दीजिये तो कुछ बाक़ी ही नहीं रहता। अव्वल उज़-ज़िक्र ने अमल कर दिखाया। अव्वल उज़ ज़िक्र ने आवाज़ दी और सानीउज़ ज़िक्र ने लब्बैक कहा।

इस्लाम मजमुआ है दो अल्फ़ाज़ इल्म और अमल का। मोहम्मद स 0अ 0इल्म थे और हुसैन अ 0अमल ,इन दोनों के मजमुऐ से इस्लाम की तारीख़ बनती है अगर हुसैन अ 0अपने ख़ून से मोहम्मद स 0अ 0के इल्म को अमल न बनाते तो बाज़ मोतारेज़ीन के नज़दीक दीन का अमली पहलू कमज़ोर रह जाता।

किस क़द्र अज़ीम और मुक़द्दस था वह इन्सान जिसने अपना ख़ून देकर दीन की तकमील कर दी और मोतारेज़ीन को ऐतराज़ का मौक़ा ने देने के लिये अपनी जान देने गवारा कर लिया।

काश मेरे हिन्दू भाई ग़ौर करें और देखे कि वह मज़हब कैसे बातिल हो सकता है जिसके परस्तारों में ये रूह कारफ़र्मा है कि अपनी जान देकर अपने मज़हब की सदाक़त साबित करते हैं और जिसके मामूली पैरो ही नहीं बल्कि उसके अकाबिर ,बानी-ए-मज़हब के नवासे और दूसरे रिश्तेदार तक वक़्त आने पर क़ुर्बानी से गुरेज़ नहीं करते। हुसैन अ 0और उनके साथियों ने जो क़ुर्बानियाँ दीं और हौलनांक मसायब उन्होंनें सहे वह तारीख़ में अपनी मिसाल नहीं रख़ते।

उन्होंनें जिस हिम्मत ,इस्तेक़लाल और बहादुरी से हक़ के ख़ातिर बातिल से जंग लङी ,ये जान लेने के बावजूद की अंजामेकार हम क़त्ल कर दिये जायेंगे ,वह इस क़ाबिल है कि सारा आलम उससे सबक़ सीखे और अपनी ज़िन्दगियों को उस साँचे में ढाल दे जिसमें हुसैन अ 0की ज़िन्दगी ढली थी। अगर यूँ हो जाये तो हर तरफ़ आशती का राज हो जाये। (अलअमान देहली)

 

प्रोफ़ेसर एस-सी-सेन

वाक़ेआत को मद्दे नज़र रखते हुए कुछ क़ाबिले हैरत नहीं कि ऐसी शहादत जो हुसैन अ 0की ज़िन्दगी का आख़री और मुमताज़ तरीन कारनामा था आलमे इस्लाम में हर साल जोश व मोहब्बत और ग़म व अंदोह का वो बङा ज़बरदस्त तुफ़ान बर्पा कर दे जिसका आलमगीर मुज़ाहेरा मोहर्रम में किया जाता है।

मुबारक है वह क़ौम जिसकी गोद में ऐसा अदीमुल मिसाल हीरो पैदा हुआ और क़ाबिले सदफ़ख़्र हैं वो लोग जो ऐसी ज़ात की क़ुर्बानियों को ज़िन्दा-ए-जावेद बनाने की पुरख़ुलूस कोशिश करें और जिन उसूलों के ख़ातिर ये क़ुर्बानियाँ दी गयीं उनको नमुनाऐ हयात तसव्वुर करते हुये अपनी ज़िन्दगी को अपने मुताबिक़ चलाने की भरपूर ख़्वाहिश रखते हों। (सरफ़राज़ लखनऊ)

 

प्रोफ़ेसर राजकुमार शर्मा

(लुधियाना)

हुसैन अ 0की ज़िन्दगी और मौत दोनों क़ाबिले रश्क और इल्मे इन्सानियत के लिये एक नमूना है। वह ज़िन्दा रहे तो एक पाकबाज़ इन्सान की हैसियत से। अगर वह यज़ीद की बेअत करके उसे अपना ख़लीफ़ा तसलीम कर लेते तो दुनिया की कौन सी नेमत थी जो उनके क़दमों में न डाल दी जाती और वह कौन सा मनसब था जो यज़ीद उन्हें न देता। इस सूरत में वह दुनियावी जहा व सरवत तो हासिल कर लेते लेकिन नेक नामी के साथ हमेंशा की ज़िन्दगी से महरूम रह जाते।

उन्होंने यज़ीद की बैअत न की और दुनियवी जहा व सरवत और आरज़ी इमारत व मनासिब को ठोकर मार दी ,क्योंकि ऐसे शख़्स की बैअत उनकी जैसी अज़ीमुलमरताबत हस्ती के शायानेशान न थी। वह इसके ख़िलाफ़ सफ़ आरा हो गये क्योंकि वह उन्हें एक ऐसे काम के लिये मजबूर कर रहा था जो इस्लाम की रूह का ख़ात्मा कर देने वाला था। उन्होंने अपनी रूह का ख़ात्मा गवारा कर लिया मगर अपने मज़हब की रूह का फ़ना होना गवारा न किया जिसका नतीजा यह हुआ कि न इस्लाम फ़ना हुआ और न हुसैन अ 0,हुसैन अ 0भी ज़िन्दा रहे और इस्लाम भी। (इत्तेहाद लाहौर)

 

प्रोफ़ेसर बी-बी मोज़मदार एम-ए

(अध्यक्ष इतिहास विभाग पटना यूनीवर्सिटी)

इमाम हुसैन अ 0की अहम ज़िन्दगी का अहम सबक़ यह है कि बातिल को बहादुरी के साथ रोकना चाहिये ,और जबकि दूसरे लोग ख़ामोशी से यज़ीद के मज़ालिम से इत्तेफ़ाक़ कर रहे थे उस वक़्त इमाम हुसैन अ 0ने उसके ख़िलाफ़ बहादुरी के साथ उठने का इरादा फ़रमाया। आपकी अच्छी तरह अपने क़वी दुश्मन के मुक़ाबले में अपनी ज़ाहरी ताक़त का इल्म था। मगर यह अम्र बनी उमय्या की बदअमली के ख़िलाफ़ ऐहतेजाज में मानेअ न हुआ। आपको ख़तरात का इल्म था मगर आपके लिये नामुमकिन था कि अपनी ज़िन्दगी में दुनयावी आराम की ख़ातिर बातिल से सुलह कर लेते। आपको मौत और अज़ीयतों से ख़ौफ़ न था। अपने और अज़ीज़ो के सख़्त मसायब से आपके इरादे मुताज़लज़िल न हुये क्योंकि आपको इल्म था कि हर चीज़े फ़ानी हैं बाजुज़ "ज़ाते बारी" कि जिसने अपनी क़ुदरते कामला से तमाम चीज़ो को पैदा किया और जिनको वह अपनी ताक़त से फ़ना कर देगा।

मैदाने करबला में उस ज़िन्दगी का आग़ाज़ देखा जो इमाम हुसैन अ 0के लिये ग़ैरफ़ानी है और ज़ुल्म व इस्तेब्दाद पर हक़्क़ानियत की फ़तह है। हर मज़हब में शोहदा मौजूद हैं मगर सिवाए इस्लाम के किसी और मज़हब को इमाम हुसैन अ 0जैसा शहीद मयस्सर न हुआ ,जिसकी शहादत बनी नवे इन्सान के लिये दायमी इफ़ादीयत रखती हो। (हुसैन अ 0दी मारटर)

 

प्रोफ़ेसर नापटा अमीका एम-ए

(बनारस यूनीवर्सिटी)

उस नाज़ुक मौक़े पर इमाम हुसैन अ 0ने जो हज़रत अली अ 0के दूसरे बेटे थे इस्लाम के मुक़द्दस पैग़ाम और रवायत को अपनी बेनज़ीर शहादत से बचा लिया। करबला में आपकी क़ुर्बानी ने आपकी ज़बरदस्त एख़लाख़ी ताक़त का सबूत दिया और इस्लाम को अस्ल हालत में रख लिया। आप इस्लाम और मक़सदे इस्लाम के लिये खङे हुए थे और मज़हब के आला उसूलों में आप इंसाफ़ ,मसावत व उख़वत ,एख़लाख़ी और रूहानी ज़िन्दगी के मुजस्समें थे।

बुराईयों और हुक्काम के बूरे कामों के ख़िलाफ़ इन्क़ेलाब की रूह लोगों में पैदा हो गई। उसका लाज़मी नतीजा मज़हब व सियासत में इस्लाह व इन्क़ेलाब था। लोगों के ख़्यालात और ख़िदमात फिर एक मरतबा आला मंज़िल पर पहुँच गये जिस्से उनकी ज़िन्दगी में यकगुना तरक़्क़ी हुई। एक हद तक आपकी शहादत उनकी नजात और उनके ज़वाल को रफ़ा करने का बायस हुई। बनी उमय्या के पास आला मक़ासिद और पैग़ाम न था। उनकी ज़ाहरी फ़ुतुहात उनकी फ़ौजी ताक़त और क़ातिलाना तरीक़ो का नतीजा थी। वे औरतों और बच्चो तक का लेहाज़ न करते थे। फ़ात्मा स 0अ 0के लाल ने अपनी शहादत से उन बुनाईयों को दूर किया और अपनी बेनज़ीर और आला मिसाल पेश करके इस्लाम की सच्ची तालीमात को बचा लिया। (हुसैनी दुनिया)

 

पंडित व्यास देव

(एम-ए ,एल-एल-बी ,पी-एच-डी)

कुछ साल गुज़रे मैंनें एक मातमी जुलूस देखा था। ये मंज़र मेरे लिये बहुत ही दर्दनांक था। मैनें इरादा कर लिया कि मैं इस मसअले का पूरा मुताअलेआ करूगां।

मैनें क़दीम तारीख़ी वाक़ेऐ को ख़ुद पढ़ा और दीगर मज़ाहिब की किताबों में देखा। मेरा ख़्याल है कि अगर एक साहेबे दिल हसद व तास्सुब से दूर होकर और मज़हबी कीना को छोङकर वाक़ेऐ करबला पर ग़ौर करे तो यह कहे बग़ैर नहीं रह सकता कि इमाम हुसैन अ 0की ज़ाते गिरामी की मिसाल किसी दूसरे मज़हबो मिल्लत में नहीं मिल सकती।

सिर्फ़ चन्द घंटो में हुसैन अ 0की बहत्तर क़ुर्बानियां (जिसमें हुसैन अ 0के भाई ,भतीजे ,लङके और चन्द निहायती पुरख़ुलूस दोस्त शामिल थे।) हमें यह सबक़ सिखाती हैं कि इन्सान को अगर कोई बङी ताक़त जाबेराना और नाजायज़ तरीक़े से दबाना चाहे तो इन्सान चाहे कितना ही कमज़ोर हो उसका मुक़ाबला करे और अपनी इज़्ज़त और हक़ूक़ के लिये फ़ना हो जाऐ। अपने अहलो अयाल को क़ुर्बान कर दे मगर ज़िल्लत से ज़िन्दा रहना गवारा न करे।

इमाम हुसैन अ 0जानते थे कि यज़ीदी फ़ौज के मुक़ाबले में उनकी फ़ौजी क़ुवत कुछ भी नहीं मगर फिर भी उन्होंने इरादा कर लिया था कि वह ज़ुल्म व सितम की बुनियाद को हमेशा के लिये मफक़ूद कर देंगे।

हुसैन अ 0के छ: माह के बच्चे की क़ुर्बानी देना ज़ाहिर करता है कि उनको ममलिकत और जाह व इक़बाल की ख़्वाहिश न थी बल्कि उनका मक़सद बहुत आला व अरफा था और यक़ीनी तौर पर वह अपने मिशन में कामयाब हुए।

मेरा ख़्याल है कि अगर दुनिया के तमाम मज़ाहिब इमाम हुसैन अ 0के पैरो हो जाये तो दुनिया के तमाम झगङे ख़त्म हो जायें।

इमाम हुसैन अ 0ने यज़ीद से यह नहीं कहा कि मैनें जंग इस लिये की है कि अगर मुझे फ़तह हासिल हुई तो मैं अरब का नाम हुसैनाबाद रक्खूंगा। आप जंग हक़ और इस्लाम की सरबुलन्दी के लिये और ज़ुल्म व सितम को मिटा देने के लिये थी।

हुसैन अ 0का वाक़ेआ बताता है कि जब तुम जायज़ मुतालबे के लिये क़दम बढ़ाओगे तो तुम्हें बहुत परेशानियों का सामना करना पङेगा। (जद्दो जहद)

 

पंडित चन्द्रिका प्रसाद जिज्ञासु

हुसैन अ 0को जब हम इन्सानी नुक़ताऐ नज़र से देखते हैं तो आप में उन तमाम सिफ़ात को नुमाया पाते हैं जिन से इन्सान इन्साने कामिल बन जाता है। हुसैन अ 0को हम हर पहलू से कामिल पाते हैं और यह कह उठते है कि हुसैन अ 0एक ऐसा अनमोल हीरा हैं जिसे जिस पहलू से देखो बे ऐब व बेश क़िमत है। हुसैन अ 0वह ख़ुशनुमा गुलाब हैं जिसका हर जुज़ अपनी ख़ुबसूरती और ख़ुशबू से दिल को ख़ींच लेता है। हुसैन अ 0एक ऐसा खरा सोना हैं जिसे जितने परखा जाये ख़ुसरंग निकलता आयेगा। हुसैन अ 0वह आफ़ताब हैं जिसमें हर रंग मौजूद है और वाक़ेअ करबला एक ऐसा वाक़ेआ है जिसमें बाप ,बेटा ,भाई ,बहन ,बीवी ,शौहर ,दोस्त व अक़रूबा सब के फ़रायज़ की हद बन्दी का अमली नमूना है। उसमें दीनी व दुनियावी ज़िन्दगी का कामिल नक़्शा मौजूद है। बल्कि उसमें सियासी जद्दोजहद और सियासी मुश्किलात का भी नुमाया हल मौजूद है।

अगर ग़ौर से देखा जाये तो दीन व दुनिया का कोई ऐसा सवाल नहीं जिसे इमामे हुसैन अ 0ने अपने कारनामों से हल न कर दिया हो। हज़रत हुसैन अ 0का कोई काम अधूरा नहीं ,हर काम मुकम्मल है ,क्योंकि कामिल इन्सान का हर फ़ेल कामिल होता है। ( शहीदे इन्सानियत)

 

दीवान बहादुर के-एम झवेरी

(साबिक़ चीफ़ डीन फ़ेकल्टी आफ़ ला मुम्बई)

एक अज़ीम मिशन के लिये ख़ुदा की एक मुख़्तसर फ़ौज बातिल के असाफ़िर से टकराई और वक़्ती तौर पर बातिल की फ़ौज को फतह भी नसीब हुई।

इमाम हुसैन अ 0जानते थे कि जंग का नतीजा क्या होगा फिर वह यज़ीद से क्यों लङे ?

उन्होंने हक़ व सदाक़त की ख़ातिर जंग की। उस तमाम अहद में उनकी मिसाल तारीकी में नूर की शमां बन कर रौशनी फैला रही है। (हुसैनी दुनिया)

 

मुंशी प्रेमचन्द

(मशहूर अफ़साना निगार)

मारकाए करबला दुनिया की तारीख़ में पहली आवाज़ है और शायद आख़री भी ,जो मज़लूमों की हिमायत में बुलन्द हुई और जिसकी सदा आज तक फ़िज़ाऐ आलम में गूंज रही है।

हुसैन अ 0को ख़िलाफ़त की मोहब्बत कूफ़े में नहीं लाई थी ,न वह जंग के इरादे से आये थे। अगर उन्हें यज़ीद से जंग करनी होती तो वह लावोलश्कर लेकर आते। हुक्मरानी और मुल्कगीरी की हवस उनको न थी। न ये हवस उनके नफ़्से आली को डांवाडोल कर सकती थी। वह कूफ़ियों की दावत पर महज़ अम्रे हक़ की दस्तगीरी के लिये आये और जानबूझ कर आये। इस मारके का अंजाम उनसे पोशीदा न था। वह ख़ूब जानते थे की करबला की ख़ाक ग़ुबार बन कर उङेगी। लेकिन वह आली हिम्मत सदाये दर्द सुनकर दिल पर क़ाबु न रख सकते थे।

ये मारका ईसार और क़ुर्बानी की ज़िन्दा-ए-जावेद दास्तान है। एक तरफ कुल सत्तर या बहत्तर ज़ी रूह हैं जिनमें ज़्यातर बूढ़े ,ज़ईफ़ हुसैन अ 0के बच्चे और बीमार हैं। दुसरी तरफ़ एक कसीर फ़ौज है (टिडडी दल) सामाने हर्ब से लैस। अगर हुसैन अ 0के ईसार और क़ुर्बानी के लेहाज़ से ये सानेहा बेमिसाल है तो शायद मुख़ालेफीने हुसैन अ 0की दग़ा व फ़रेब बहीमियत और नफ़सानियत के ऐतबार से बेनज़ीर है।

कूफ़े के ज़ालिमों! तुमनें सरवत और जागीर ,मरतबा और मनसब हासिल करनें के लिये उस पाक नफ़्स बुज़ुर्ग के साथ दग़ा की जो सिर्फ़ तुम्हारी सदाऐ दर्द सुनकर तुम्हारी हिमायत करने के लिये सर बकफ़न होकर आया था। न वह सल्तनत रही ,न वह सरवत रही ,न वह मरतबा और न वह मनसब ,तुम्हारी हडिडयां तक पेवन्दे ख़ाक हो गई। तुम्हारी पेशानी पर कलंक का टीका अभी तक लगा हुआ है और क़यामत तक लगा रहेगा।

तुमने किस के साथ दग़ा की ?हुसैन अ 0के साथ जो तुम्हारे नबी के नवासे थे ,मकरूहाते रोज़गार से अलग ,ख़्वाहिशात से दूर। तुम्हारी दग़ा ने दुनिया में कितना बङा इन्क़ेलाब पैदा कर दिया क्या तुम इसे जानते हो ? (सरफ़राज़ लखनऊ)

 

स्वामी शंकराचार्य

कमोबेश जुमला मज़ाहिब के रहबरान ने इशाअते मज़हब में क़ुर्बानियां पेश की हैं लेकिन जैसा कि हुसैन अ 0की क़ुर्बानियों में असर देखा ऐसा मैने किसी भी क़ुर्बानी में नहीं देखा और यही वह चीज़ है जिसने इस्लाम को बाक़ी रख लिया वरना आज दुनिया में इस्लाम का नाम लेने वाला कोई भी मौजूद न होता। (शिया लाहौर)

 

बाबू काली बदआमबर जी नीशानाथ राय

सातवीं सदी ईसवी के आख़िर में जबकि यज़ीद फ़रमानरवाये दमिश्क़ की सरकरदगी में अवाम के एक गिरोह ने इस्लामी मक़सद के ख़िलाफ़ अलमे बग़ावत बुलन्द किया तो मुत्तक़ी व परहेज़गार हुसैन अ 0ने मज़हब व सदाक़त की हिमायत के लिये करबला के मैदान में शुजाअत व बहादुरी के साथ अपनी जान की क़ुर्बानी  पेश कर दी। माद्दी तौर पर यज़ीद को फ़तह हासिल हुई लेकिन रूहानी हैसियत से उसकी यह फ़तह शिकस्त साबित हुई। वह इस्लाम को जो सूरत देना चाहता था वो सूरत व बुनियाद बहुत जल्द मादूम हो गई।

हुसैन अ 0की शहादत का नतीजा फ़तह व कामरानी की सूरत में निकला और इस्लाम यानि सच्चे और हक़ीक़ी इस्लाम ने अज़सरे नौ नशोनुमा हासिल की।

फ़ख़्रे इन्सानियत हस्तियों का ये मज़हबी फ़रीज़ा रहा है कि वह अवाम कि दिमाग़ी तरबियत व तालीम का सामान बहम पहुँचाये ,वह उस राह में दुनियां के रंज और मसायब का कोई लेहाज़ नही रखते। कृष्ण जी ने एक शिकारी के हाथों जान गंवाई। मसीह की ज़िन्दगी का ख़ात्मा भी अफ़सोसनांक हुआ लेकिन मज़हब के मुताल्लिक़ उन्होंने जो रास्ता दिखाया वह अब तक इन्सानों को मनफेअत पहुँचा रहा है।

मुक़द्दस हुसैन अ 0की अलम अंग़ेज़ क़ुर्बानी ने ज़लालत की तारीकी का ख़ात्मा कर दिया और नई रौशनी फैला दी। वह क़ुर्बानी आज हज़ारों मुस्लिमों और ग़ैर मुस्लिमों में इस जज़्बे को मोहर्रिक कर रही है कि फ़रायज़ अदा करने में जान के जाने और मौत के आने की परवाह नहीं करना चाहिये। आज जबकि क़ौमियत की रूह बेदार हो रही है हमको दुआ करनी चाहिये की इसमें और इज़ाफ़ा हो। (हुसैन अ 0दी मार्टर)

 

ऐ-के-आचार्य

(जर्नलिस्ट मद्रास)

इमाम हुसैन अ 0की अज़मत का इससे बढ़कर और क्या सबूत हो सकता है कि तक़रीबन साढ़े तेरह सौ साल से उनकी याद में करोङो इन्सान आँसू बहा रहे हैं। और सिर्फ मुसलमान ही नहीं बल्कि रह मज़हब व मिल्लत के लोग उन्हें ख़ेराजे अक़ीदत पेश करते हैं।

बलन्द नसब ,आलातरीन शख़्सीयत ,ऐख़लाख़ी ऐक़्तेदार की हिफ़ाज़त और ज़ुल्म के ख़िलाफ़ मुस्तक़ील मिजाज़ी से डट जाना। यह वह ख़ुसूसियात हैं जिनकी मौजूदगी से हज़रत हुसैन अ 0को हमेशा की ज़िन्दगी हासिल हुई।

इमाम हुसैन अ 0ने सख़्त से सख़्त मुश्किलात का मुक़ाबला किया। अपनी आँखों के सामने अपने जवान और शीरख़्वार बच्चों को ज़िबह होता देखा मगर अपने मौक़िफ़ पर चट्टान की तरह डटे रहे और आख़ीर में अपनी मुसीबत ज़दा ख़्वातीन और बीमार बेटे को ख़ुदा के सहारे छोङ कर ख़ुद भी ख़ून के समन्दर में तैर कर पार उतर गये।

उन मसायब को तसव्वुर करके जो इमाम हुसैन अ 0को पेश आये इन्सानी हिम्मत जवाब दे देती है। आफ़रीन है उस अज़ीम इन्सान पर जो उन तमाम मराहिल से बङी पामरदी और इस्तेक़लाल से गुज़र गया।

ऐसे अज़ीम इन्सान की याद में सरे अक़ीदत ख़म कर देना हर इन्सान के लिये बायेसे फ़ख़्र है जो दुनिया से ज़ुल्म व इस्तेबदाद ,गुनाह व फ़िस्क़ व फ़िज़ूर का ख़ात्मां चाहता है।

काश आज भी दुनिया हज़रत इमाम हुसैन अ 0के बताये हुए रास्ते पर चले तो ज़ुल्म व सितम और फ़िस्ख़ व फ़िज़ूर का ख़ात्मा हो जाये। (मक़ामें हुसैन अ 0)

 

जे-आर गोडे एडवोकेट

(बम्बई)

दुनिया में हुसैन अ 0के अलावा और भी बहुत से इन्सान शहीद हुए ,हुसैन अ 0पहले शहीद न थे मगर जब हम उन वाक़ेआत पर नज़र डालते हैं जिनसे हज़रत इमाम हुसैन अ 0को गुज़रना पङा और उन मक़ासिद पर ग़ौर करते हैं जिनके लिये हुसैन अ 0ने अपनी और अपने साथियों की जाने क़ुर्बान की तो तसलीम करना पङा है कि हुसैन अ 0से बढ़कर कोई शहीद दुनिया की इब्तेदा से लेकर आज तक पैदा ही नहीं हुआ।

उन्होंने हक़ की इशाअत ,इन्सानियत की बक़ा ,इस्लामी उसूलों की हिफ़ाज़त और मुलूक़ियत के ख़ात्में के लिये जो जद्दो जहद की और ऐसी शदीद तक्लीफ़े बर्दाश्त की जिनसे अम्बिया भी शाज़ो नादिर ही दो चार हुए होंगे। इसलिये कोई वजह नहीं के उन्हें तारीख़े आलम का अज़ीम किरदीर क़रार न दिया जाये और उनकी क़ुर्बानियों को फ़रामोश कर दिया जाये। उनकी पाकीज़ा ज़िन्दगी ,उनकी आला तालीम ,उनकी अज़्म व अमल और इस्तेक़लाल व शुजाअत रहती दुनिया तक इन्सानियत की रहनुमाई करती रहेगी। वो रौशनी की मिनार हैं ,मंज़िल के मुतालाशी उनसे रौशनी हासिल करके मंज़िल की तरफ़ बढ़ते रहेंगे। (मक़ामे हुसैन (अ))

 

महाराजा होलकर आफ़ इंदौर

आज जिस जलसे को तमाम अक़वाम व मज़हब के लोग मुश्तरका तरीक़े से कर रहे हैं जिसमें इमाम हुसैन अ 0के इस कारनामें से सबक़ हासिल करेंगे जिसमें आपने आज़ादी के लिये वहशीयाना ताक़त का मुक़ाबला करते हुए अपनी जान की बाज़ी लगाकर वह अज़ीमुश्सान क़ुर्बानी दिखाई जिसने हक़ और इंसाफ़ को दुनियां में क़ायम कर दिया।

अगर तमाम मुल्क में इस क़िस्म के जलसे होने लगें तो मुझे यक़ीन है कि तमाम क़ौमों और मज़हबों में इत्तेहाद व इत्तेफ़ाक़ हो जायेगा।

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हिज़ हाईनेस सर नटवर सिंह

(महाराजा आफ़ पोरबन्दर)

क़ुर्बानियों के ज़रिये तहज़ीबों का इरतेक़ा होता है। हज़रत इमाम हुसैन अ 0की न सिर्फ़ मुसलमानों के लिये बल्कि पूरी नस्ले इन्सानी के लिये एक क़ाबिले फ़ख़्र कारनामे की हैसीयत रखती है। मौजूदा दौर में जबकि ज़ाती व नस्ली नफ़रतें अपने उरूज पर हैं और क़त्ल व ग़ारत का बाज़ार हर तरफ़ गर्म है क्या हम सर के बल तबाही के ग़ार में नहीं गिर रहे ?कोई अपाऐ नहीं सिवाऐ इसके कि हज़रत इमाम हुसैन अ 0की शहादते उज़्मा को मशअले राह बनाया जाये। हमारी ज़िन्दगी में अम्न व सुकून सिर्फ़ और सिर्फ़ हज़रत इमाम हुसैन अ 0और उनके रफ़ीक़ो की क़ुर्बानियों को पेशे नज़र रखते हुए हक़ व सदाक़त के रास्ते पर क़दम आगे बढ़ाने ही में मुज़मर है। हज़रत इमाम हुसैन अ 0ने अपना सब कुछ एक आला मक़सद के लिये क़ुर्बान कर दिया। उन्होंने जान दे दी लेकिन इन्सानियत के रहनुमा उसूलों पर आँच नहीं आने दी। दुनिया की तारीख़ में ऐसी दूसरी मिसाल नज़र नहीं आती है। हज़रत इमाम हुसैन अ 0की क़ुर्बानी के ज़ेरे क़दम अम्न व मसर्रत दोबारा बनीनवे इन्सान को हासिल हो सकते हैं बशर्ते कि इन्सान उनके नक़्शे क़दम पर चलने की कोशिश करे।

 

पंडित सुन्दर लाल

(हिन्दू आलिम रहनुमा और मुसन्निफ़)

तारीख़ के आला मक़ासिद के लिये और हक़ व सदाक़त के रास्ते में बहुत सी क़ुर्बानियों के वाक़ेआत को महफ़ूज़ किया है। इन में सबसे बलन्द क़ुर्बानी हज़रत इमाम हुसैन अ 0की है जो तेरह सौ साल क़ब्ल करबला के मैदान में पेश की गई थी। गुज़िश्ता तेरह सौ साल में जिस तरह हर मुसलमान हुक्मरान बादशाह ने सिर्फ़ अपनी ताक़त के ज़रिये अपनी हुकूमत को इस्लामी कहलवाया है उस से इस्लाम इब्तेदा में ही ख़त्म हो जाता अगर इमाम हुसैन अ 0और उनकी मुख़तसर सी जमाअत अपने ख़ून का नज़राना पेश करके इस्लाम को मुकम्मल तबाही से न बचा लेती। मेरी प्रर्थना यह है कि उनकी और उनके कारनामों की याद हम सब को मुतास्सिर करने के लिये हो और हम में मोहब्बत और यगानगत के जज़्बात पैदा कर सके।

हमें एक दूसरे के जज़्बात और ख़्यालात की क़द्र करनी चाहिये और अपनी कोताहियों पर भी नज़र रखनी चाहिये। उनकी याद मनाने से हमारा तज़किये नफ़्स होना चाहिये ताकि हमारे दिलों में से बुग़्ज़ व हसद और इन्तिक़ाम की ख़्वाहिशात मिट जायें और गुनाहगार अपने गुनाहों से तौबा करलें।

 

मेला राम फरानी

इस्लाम के बहादुरों ने अहले दुनिया के जिस क़िस्म की शुजाअतों के लासानी नमूने दिखाये है वो इन्सानी अक़्लो और फ़हमों को गुम कर देने वाले हैं। मौला मुश्किल कुशा अली इब्ने अबी तालिब अ 0की शुजाअत किसी से पोशीदा नहीं है। फिर हुसैन अ 0की बहादुरियाँ और क़ुर्बानी ऐसी नहीं कि जिन्हें भुलाया जा सके। करबला के ख़ौफनांक मैदान में आपने जो दिलावरी दिखाई उसके नज़ीरे नायाब हैं। अहलेबैत अ 0के तमाम अफ़राद की बेमिसाल बहादुरियाँ और क़ुर्बानियाँ तारीख़ में मज़कूर हैं। ग़रज़ की तारीख़ों में ऐसी बेबाकी और जुर्रतमन्दी के नमूने बिल्कुल ही नादिर व नायाब हैं।

 

जी-आर-गोदी

(मशहूर हिन्दुस्तानी एडवोकेट)

इमाम हुसैन अ 0पहले शहीद नहीं हैं अगर हम आपकी शहादत को उस ज़ावियाऐ निगाह से देखें तो हमें कोई ख़ास बात नज़र नहीं आयेगी लेकिन अगर हम उन वाक़ेआत को देखें जिनसे इमाम अ 0को दोचार होना पङा और उन मक़ासिद पर ग़ौर करें जिनके लिये इमाम हुसैन अ 0और उनके साथियों ने अपनी जाने क़ुर्बान की तो उस वक़्त ये तसलीम करना पङेगा कि इमाम हुसैन अ 0से बङा शहीद दुनिया की इब्तेदा से लेकर आज तक पैदा नहीं हुआ। आपने हक़ की राह ,इन्सानियत की बक़ा ,इस्लामी उसूलों की हिफ़ाज़त और मुलूक़ियत के ख़ात्में के लिये जद्दो जहद की और शदीद तकलीफ़ें बर्दाश्त की। यही वजह है कि आप तारीख़े आलम के अज़ीम किरदार हैं आपकी तालीम ,अज़्म व इस्तेक़लाल और शुजाअत रहती दुनिया तक इन्सानियत की रहनुमाई लिये रौशन मीनार है।

 

राईट आनरऐबिल एम-आर-जियारकर

(जज फ़ीडरलकोर्ट इंडिया)

कई बरस से मेरी ये तमन्ना थी कि हिन्दू मुसलमान एक दुसरे के मुक़द्दस अय्याम और पैग़म्बरों का दिन मिलझुल कर मनाया करें। तेरह सौ साला हुसैन अ 0डे पर मेरी तमन्ना पूरी होती हुई नज़र आई और मैं बारगाहे हुसैनी में अपना नज़राने अक़ीदत पेश करता हूँ।

मुझे यह भी तवक़्क़ो है कि मुसलमान साल ब साल इस अज़ीम तरीन क़ुर्बानी की याद मनाते हुऐ इस मेआरे हक़ व सदाक़त को भी सामने लायेंगे जिस ने पूरी बनीनवे इन्सान के लिये तरक़्क़ी और कामयाबी का दरवाज़ा खोल दिया।

 

दीवान बहादुर कृष्ण लाल

(साबिक़ चीफ़ जस्टिस मुम्बई)

मुझे हुसैन अ 0डे की तक़रीबात में से एक की सदारत का मौक़ा मिला और मैंने देखा कि हज़ारो सामेईन अदब व ऐहतेराम से तक़रीर सुन रहे हैं। सामेईन की तवज्जो के मेरे नज़दीक दो सबब हो सकते हैं। अव्वल यह कि करबला के वाक़ेआत इन्तेहाई अलमनांक है और हर सुनने वाला उनमें मुतास्सिर होता है। दोयम ये कि मारकाऐ करबला में हक़ और बातिल का मुक़ाबला हुआ और बज़ाहिर फ़तह बातिल क़ुवत को होई थी। आख़ीर इमाम हुसैन अ 0ने यज़ीदी फ़ौज का मुक़ाबला क्यों किया जबकि वह जानते थे कि नतीजा क्या होगा ?ये सवाल लोगों की तवज्जो अपनी तरफ़ ख़ींचता है। उसके साथ यह हक़ीक़त कि इमाम हुसैन अ 0ने अपने गिनती के चन्द साथियों के साथ हज़ारों की तादाद पर मुश्तमिल फ़ौज से मुक़ाबला किया ,किसी दुनियावी मक़सद के लिये नहीं बल्कि हक़ व सदाक़त का मेआर क़ायम करने के लिये। ये मिसाली क़ुर्बानी एक मशाल की तरह रहती दुनिया तक अंधेरों में बनीनवे इन्सान की रहनुमाई करती रहेगी।

 

 

मिसेज़ सरोजनी नायडू

हज़रत इमाम हुसैन अ 0ने आज से तेरह सौ साल क़ब्ल दुनियां के सामने जो पैग़ाम और उसूल पेश किया था वो इतना बेनज़ीर और मुकम्मल था कि आज हम उसकी यादगार मना रहे हैं। मेरे पास ऐसे अल्फ़ाज़ नहीं और न दुनिया की कोई ऐसी फ़सीह व बलीग़ ज़बान है जिसके ज़रिये मैं उन जज़्बाते अक़ीदत को बयान कर सकूँ जो उस शहीदे आज़म के लिये मेरे दिल में पाये जाते हैं। हज़रत इमाम हुसैन अ 0सिर्फ़ मुसलमानों के नहीं बल्कि रब्बुलआलमीन के सारे बन्दों के लिये हैं।

मैं मुसलमानों को मुबारकबाद देती हूँ के उनमें एक ऐसा बुलन्द इन्सान गुज़रा है जिसे दुनियाँ की हर क़ौम यकसां तरीक़े सा मानती है और उसकी इज़्ज़त करती है।

आपने हुसैन डे कमेटी बम्बई के नाम अपने पैग़ाम में कहा:

करबला का दर्दनांक सानेहा आज भी वैसा ही ताज़ा ,वैसा ही दर्दअंगेज़ और वैसा ही असर ख़ेज़ है जैसा कि उस रोज़ था जब इस्लाम का यह बहतरीन रहबर शहीद किया गया था। तेरह सौ साल बाद भी इमाम हुसैन अ 0कि मिसाल हक़ व हुर्रियत की तलाश रखने वालों की रहनुमाई के लिये रौशनी का मिनार बनी हुई है। उनकी ज़ात तमाम ऐख़तेलाफ़ात से बालातर है ,वक़्त और ज़माने की क़ैद से आज़ाद है और बुराईयों के मुक़ाबले में सदाक़त की फ़तह का लाफ़ानी निशान है।

आपने हैदराबाद दक्षिण मे इजलास यादगारे हुसैनी के मौक़े पर जो पैग़ाम भेजा वो हस्बे ज़ैल है।

जब लोग मरते हैं तो उनकी याद भी मौसम ख़ेज़ा पत्तों की तरह ग़ायब हो जाती है और ख़त्म हो जाती है लेकिन हज़रत इमाम हुसैन अ 0 क़िस्मते इन्सानी की उन नादिर और मुंनतख़ेबा हस्तियों में से हैं जिनके नाम उफ़क़े तारीख़ पर एक सितारे की तरह जगमगा रहे हैं। शायद की किसी और हस्ती को इस्लाम के उस हरदिल अज़ीज़ रहनुमा की तरफ़ ऐसी ग़ैरफ़नी शौक़त और हुस्न नसीब हुआ हो। शायद ही कोई क़िस्सा इतना आलमनांक और दिलदोज़ हो जितना की वाक़ेआऐ करबला है ,जो आज तेरह सदियों के बाद भी लाखो करोङो इन्सानों को ख़ून के आँसू रूलाने की क़ाबलियत रखता है। तेरह सदियों के बाद भी उस मुक़द्दस शहादत की अज़मत व शौक़त ज़ुल्म व बातिल के ख़िलाफ़ कशमाकश की आलातरीन निशानी है और इन्सानी आज़ादी और हक़ परस्ती की राह में सब से बढ़ी हुई इन्सानी क़ुर्बानी भी।