कर्बला में ज़िंदा बच जाने वाले लोग।
  • शीर्षक: कर्बला में ज़िंदा बच जाने वाले लोग।
  • लेखक:
  • स्रोत: vilayat.in
  • रिलीज की तारीख: 19:51:13 1-10-1403

 इतिहास की किताबों के पढ़ने से कुछ लोगों के ज़िन्दा बाक़ी रह जाने की बात कही जा सकती है, हम इसे दो हिस्सों 1. बनी हाशिम 2. दूसरे असहाब के संदर्भ में बयान करते हैं:

 पहला हिस्साः बनी हाशिम

 1- इमाम सज्जाद अ.ह

 2- हसन बिन हसन अ.
जो हसने मुसन्ना के नाम से मशहूर हैं, यह आशूर के दिन घायल हालत में बंदी बना लिये गए, अस्मा इब्ने ख़ारजा उन्हे क़त्ल करना चाहता था लेकिन उमर बिन साद नें मना कर दिया, उन्होंनें फ़ातिमा बिन्ते इमाम हुसैन अ. से शादी की और पैंतीस साल की उम्र में इस दुनिया से कूच कर गए, वह कुछ समय तक हज़रत अली अ. के अवक़ाफ़ व सदक़ात (धर्मार्थ दान) के प्रबंधक रहे।

शहीदों के नामों से ज़्यादा अवगत होने के लिये निम्नलिखित किताबों की स्टडी करें:

1- बिहारुल अनवार, जिल्द 101 पेज 269, 274, ज़ियारते नाहिया जिसमें एक एक शहीद का नाम आया है और उन पर सलाम भेजा गया है,

2- समावी, शेख़ मोहम्मद, अन्सारुल हुसैन फ़िन्नारिल हुसैन, इसमें एक सौ तेरह इमाम हुसैन अ. के सहाबियों के नाम और उनके हालात लिखे हुए हैं:

3- फ़ुज़ैल बिन ज़ुबैर

हसन बिन हसन, अब्दुल्लाह बिन हसन के (जो अब्दुल्लाह महेज़ के नाम से मशहूर थे) बाप थे और वह मोहम्मद बिन अब्दुल्लाह के (जो नफ़्से ज़किया के नाम से मशहूर थे) बाप थे, और चूँकि यह पहले ऐसे अलवी थे जो अलवी माँ बाप से पैदा हुए थे इसलिए आपको यह उपाधि मिली।

4- ज़ैद बिन हसन:

यह भी इमाम हसन अ. के बेटे थे और कुछ किताबों में उनके कर्बला में मौजूद होने की रिवायत मिलती है, उन्होंनें 90 साल की उम्र पाई, हाशिम के बुज़ुर्गों में गिने जाते थे और बहुत समय तक पैग़म्बरे इस्लाम स.अ. के सदक़ात के प्रबंधक रहे।

5- अम्र बिन हसन:

इनके कर्बला में मौजूद होने और कर्बला की घटना के बाद ज़िन्दा रहने की रिवायत कुछ किताबों में ज़िक्र हुई है।

6- मुहम्मद बिन अक़ील

7- क़ासिम बिन अब्दुल्लाह बिन जाफ़र:

दूसरा हिस्साः दूसरे सहाबी

1- अक़बा बिन समआन:
यह इमाम हुसैन अ. की बीवी जनाबे रबाब के ग़ुलाम थे और आशूर के दिन बंदी बनकर उमर बिन साद के पास ले जाए गए, इब्ने साद नें जब सुना कि यह ग़ुलाम हैं तो उन्हें आज़ाद कर देने का हुक्म दिया।

2. ज़हाक बिन अब्दुल्लाह मशरक़ी:
उन्होंने इमाम हुसैन अ. से यह शर्त की थी कि जब तक आपके मददगार व साथी रहेंगे मैं आपके साथ रहूँगा और जिस समय आप अकेले रह जाएंगे मैं आपको छोड़ कर चला जाउंगा, इसी लिये आशूर के दिन आख़िरी समय इमाम की सेवा में और अपनी शर्त याद दिलाई इमाम नें कहा सही कह रहे हो लेकिन आपने पूछा की तुम किस तरह अपने को नजात दिलाओगे? फिर फ़रमाया: अगर तुम ख़ुद नजात दिला सकते हो तो मेरी तरफ़ से (तुम्हारे जाने में) कोई हर्ज नहीं है, वह इमाम की यह बात सुन कर अपने घोड़े पर सवार हुए जंग करते हुए दुश्मन की सेना के दो आदमियों को क़त्ल करते और उनको चीरते हुए चमत्कारिक तौर पर बच निकले, इसके बाद इतिहासकारों नें आशूर के दिन की विभिन्न घटनाओं के एक रावी के तौर पर उनसे फ़ायदा उठाया।

3. अब्दुर्रहमान बिन अब्दुल्लाह अंसारी के ग़ुलाम:
यह मैदाने कर्बला में मौजूद थे और कुछ रिवायतों को बयान करने वाले हैं, वह कहते हैं कि जब मैंने देखा कि इमाम अ. के साथी व मददगार सब क़त्ल हो गए तो मैंने मैदान से भाग कर अपनी जान बचाई।
जैसा कि बयान हुआ, कर्बला की घटना की बहुत सारी बातें जो इतिहास की किताबों में सुरक्षित हैं वह डायरेक्ट या इन-डायरेक्ट इन्ही लोगों के हवाले से बयान हुई हैं।