पढ़ा लिखा गधा
  • शीर्षक: पढ़ा लिखा गधा
  • लेखक:
  • स्रोत:
  • रिलीज की तारीख: 19:53:3 1-10-1403

बोहलोल बाज़ार से गुज़र रहा था के एक शख़्स ने दामन पकड़ लिया- बोहलोल ने उसकी तरफ़ देखा- "क्या बात है भाई- मुझे क्यों रोका है"-  ?


वह परेशानी से बोला- "जनाब शेख़ बोहलोल ख़ुदा के लिये मेरी मद्द किजिये- वरना मैं बे मौत मारा जाऊँगा"-


"क्यों ख़ैरियत तो है"- बोहलोल ने पूछा- "बस ख़ैरियत ही तो नहीं है- मेरी इस ज़बान ने मुझे आज मरवा दिया है- मैंने अपनी मौत का सामान ख़ुद अपने हाथों किया है"- वह तास्सुफ़ से कहने लगा-


"बताओ तो सही के क्या हुआ है"- ?बोहलोल ने इस्तेफ़्सार किया-


"क्या बताऊँ जनाब- अपनी हिमाक़त का हाल अपनी ज़बान से किस  तरह कहुँ- दर अस्ल हुआ यूँ के हाकिमे कूफ़ा की ख़िदमत में किसी ने बेहद ख़ूबसूरत गधा पेश किया- सब लोग उसकी तारीफ़ करने लगे- कोई कहता था के यह बहुत आलानस्ल का गधा है- कोई कहता था के इसे ख़ूब सधाया गया है- कोई कहता था के यह बहुत चाक़ और चौबंद और तैयार है- मेरे मुँह से कहीं निकल गया के यह गधा तो इतना दानिशमन्द है के इसे पढ़ाया जा सकता है"-


बस मेरा इतना कहना था के हाकिमे कूफ़ा ने मेरी बात पकड़ ली- मेरे मुख़ालिफ़ो ने इसे और हवा दी- यहाँ तक के हाकिमे कूफ़ा ने मुझे हुक्म दे दिया- के मैं गधे को पढाऊँ और अपना क़ौल सच कर के दिखाऊँ अगर मैं इसमें कामयाब हो गया- तो मुझे इनाम व इकरारम दिया जायेगा- और अगर मैं कामयाब न हुआ- तो मेरी गर्दन मार दी जायेगी- मैं सख़्त मुसीबत में हूँ-


भाई बोहलोल- मेरी जान पर बनी है- ख़ुदा के लिये कोई सूरत पैदा करो के मै बच जाऊँ।


बोहलोल बोला- "भाई ग़म न कर- मैं तूझे एक तरकीब बता दूँगा आगे जो अल्लाह को मन्ज़ूर"-


मुक़र्ररा मुदद्त के बाद हाकिमे कूफ़ा ने उसे तलब किया- वह गधे को लेकर उसके दरबार में पहुँचा- सारा दरबार भरा हुआ था और लोग बड़े शौक़ से देख रहे थे के पढ़ा लिखा गधा क्योंकर अपने फ़न का मुज़ाहिरा करता है-


उस शख़्स ने गधे के सामने किताब रखी- गधा सफ़े उलटने लगा- आहिस्ता-आहिस्ता वह तमाम सफ़े उलट गया और जब किताब बन्द कर चुका- तो उसने ज़ोर से पुकारा ढ़ीचूँ- ढीचूँ- ढीचूँ-


हाज़ेरीन और हाकिम हैरान रह गये- उन्होने तमलीम कर लिया के गधा तमाम किताब पढ़ चुका है और अपनी ज़बान में उसका एलान कर रहा है- हाकिम ने उस शख़्स को भारी इनाम् न इकराम् दिया- वह ख़ुश-ख़ुश वापिस आया और बोहलोल की ख़िदमत में पहुँचा-


"जनाब शेख़ बोहलोल- यह इनाम् व इकराम्- यह सब आपका हक़ है- अगर आप मुझे यह तरकीब न बताते तो मैं अपनी जान से भी जाता"-


"नहीं भाई- यह इनाम् व इकराम् तुम्हें ही मुबारक हो- मैंने तो सिर्फ़ तरकीब बताई थी- गधे के साथ मेहनत तो तुमने की है"-


बोहलोल ने बे नियाज़ी से कहा-


क़रीब ही ख़ड़ा हुआ एक शख़्स बोला- "भाई वह तरकीब क्या है- जिसने गधे को सारी किताब पढ़वा दी"-  ?


वह शख़्स हँसा और बोला- "अब तो मेरी जान बच गयी है सो तरकीब को बता देने में कोई हर्ज भी नहीं- के जिसको अपने गधे को पढ़वाना हो- वह इस तरीक़े से पढ़ाये"-


"हाँ भाई बताओ"- दूसरा शख़्स पूछने लगा-


"सुनो भाई- वह किताब जो गधे को पढ़ानी हो- उसके दरमियान जौ रख दो- गधे को दिन भर भूखा रखो- और शाम को वही किताब उसके सामने रख दो- भूखा गधा किताब के सफ़े उलटता जायेगा और जौ खाता जायेगा- इस तरह आठ-दस दिन यह अमल दोहराओगे- तो गधा इसका आदी दो जायेगा के इसकी ख़ुराक किताब के सफ़ो के दरमियान है- अब जिस वक़्त भी गधे से किताब पढ़वाने का मुज़ाहिरा करवाना हो- तो उसे भूखा रखो- और किताब के दरमियान जौ भी न रखो- अब गधा यही समझेगा के सफ़ो के दरमियान जौ रखे हुए हैं- वह भूख से बेताब होकर सफ़े उलटता जायेगा-


आख़िरी सफ़े तक जब उसे जौ नहीं मिलेंगे- तो वह ढीचूँ –ढीचूँ करके एलान कर देगा के उसने सारी किताब पढ़ ली है" ।