जिस वक्त अबुलूलू फिरोज़ ने उमर तो ज़ख्मी कर दिया और उमर ने देखा कि अब मैं मरने वाला हुँ तो कहने लगाः पैग़म्बर अकरम इन छः आदमीयो से खुश थेः- अली (अ.स.), उस्मान, तलहा, ज़ुबैर, सअद इब्ने अबिवेक़ार और अब्दुर रहमान बिन औफ। लेहाज़ा खिलाफत के उमूर इन छः आदमीयो के मशवरे से अंजाम दिये जाऐ ताकि ये लोग खुद अपने मे से किसी एक को चुन ले।
फिर हुक्म दिया कि इन छः आदमीयो को हाज़िर किया जाऐ और इन सब से मुखातिब होकर कहने लगाः तुम सब मेरे बाद खलीफा बनना चाहते हो।
वो सब अफराद चुप रहे और किसी ने कोई जवाब नही दिया।
उमर ने दूबारा अपने जुमले को दोहराया तो ज़ुबैर ने कहा कि हम तुझ से कम नही है तो फिर क्यो खिलाफत के मुस्तहक़ नही बन सकते।
उसके बाद उमर ने इन छः आदमीयो के ऐबो को शुमार कराया और तलहा से कहाः पैग़म्बर दुनिया से चले गऐ लेकिन तुम से आयऐ हिजाब की वजह से कलाम नही किया और तुम से नाराज़गी की हालत मे इस दुनिया से तशरीफ ले गऐ।
और हज़रत अली (अ.स.) से कहा कि तुम लोगो को राहे रोशन की तरफ हिदायत करोगे लेकिन तुम्हारा ऐब ये है कि तुम ज्यादा मज़ाक करते हो।
उमर ने उस्मान के ऐब गिनवाते हुऐ कहा कि जैसे मै देख रहा हूँ कि कुरैश ने खिलाफत के उमूर तुम्हारे हवाले कर दिये और तुमने बनी उमय्या और बनी मुईत को लोगो पर मुसल्लत कर दिया है और बैतुल माल को उनके क़दमो मे निछावर कर रखा है और (मुसलमानो की शोरिश की वजह से) अरब के भेड़ीयो का एक गिरोह तुझे तेरे बिस्तर पर क़त्ल कर रहा है।
इसके बाद अबुतलहा अंसारी को बुलाया और उसको हुक्म दिया कि मेरे मरने के बाद इन छः आदमीयो को पचास लोगो की मौजूदगी मे कमरे मे बन्द कर देना ताकि मेरा जानशीन इन्तेखाब करने के लिऐ आपस मे मशवरा करे।
अगर पाँच आदमी किसी एक को खलीफा बनाना चाहे तो उस एक को क़त्ल कर देना।
इसी तरह अगर चार आदमी एक दूसरे के मुवाफिक़ हो लेकिन दो मुखालिफ हो तो उन दोनो को क़त्ल कर देना।
और अगर तीन आदमी एक तरफ और तीन एक तरफ हो तो जिस तरफ अब्दुर रहमान बिन औफ हो। उन लोगो को की बात को हैसीयत देना और दूसरे अगर मुखालिफत करे तो उनको क़त्ल कर देना और अगर कमेटी बने हुऐ तीन दिन गुज़र जाऐ और कोई फैसला न हो पाऐ तो सबको क़त्ल कर देना ताकि मुसलमान खुद अपना खलीफा बना सके।
आखिरे कार तलहा को मालूम था कि अली (अ.स.) और उस्मान के होते हुऐ खिलाफत उस को नही मिल सकती और वो हज़रत अली (अ.स.) से खुश भी नही था इस लिऐ उस्मान की तरफ चला गया। जबकि ज़ुबैर ने अपना वोट इमाम अली (अ.स.) को दे दिया। सअद इब्ने अबिवेक़ार ने अपना वोट अपने चचेरे भाई अब्दुर रहमान बिन औफ को दे दिया। नतीजे मे छः लोग तीन लोगो मे बंट गऐः इमाम अली (अ.स.), उस्मान और अब्दुर रहमान।
अब्दुर रहमान ने पहले हज़रत अली (अ.स.) से कहा कि तुम्हारी इस शर्त पर बैअत करता हूँ कि किताबे खुदा, सुन्नते नबी और सीरते अबूबकर व उमर पर अमल करो।
इमाम अली (अ.स.) ने कहाः क़ुबुल करता हूँ लेकिन किताबे खुदा, सुन्नते पैग़म्बर और अपनी नज़र के मुताबिक़ अमल करूँगा।
अब्दुर रहमान ने उस्मान की तरफ रूख कर के वही जुमला दोहराया उस्मान ने कुबुल कर लिया।
अब्दुर रहमान ने तीन मरतबा इस जुमले की तकरार की और हर बार वही जवाब सुना। इसके बाद अब्दुर रहमान ने बैअत के लिऐ उस्मान का हाथ फैलाया।
यहा पर हज़रत अली (अ.स.) ने फरमायाः तूने ये काम किसी खास मक़सद के लिऐ किया है जिस तरह अबुबकर और उमर को एक दूसरे से उम्मीद थी लेकिन तुम कभी अपने मकसद मे कामयाब नही हो सकते।
हवालाः किताब आशूरा, आयतुल्लाह मकारिम शीराज़ी, पेज न. 127