शिया और पैग़म्बरे इस्लाम स.अ. की सुन्नत
  • शीर्षक: शिया और पैग़म्बरे इस्लाम स.अ. की सुन्नत
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  • रिलीज की तारीख: 23:39:36 1-9-1403

सुन्नत शब्दकोष में ‘शैली’ तरीक़े या ‘अंदाज़’ को कहा जाता है और फ़ुक़्हा की परिभाषा में मासूम अ. के कथन, अमल और तक़रीर (ख़ामोशी के द्वारा किसी चीज़ की पुष्टि करने को तक़रीर कहते हैं) को सुन्नत कहा जाता है इस आधार पर रसूले इस्लाम स.अ. की सुन्नत से मुराद आपका कथन, अमल और तक़रीर है।

शिया धर्म में पैग़म्बरे इस्लाम स. की सुन्नत अक़ीदे, अख़लाक़ और अल्लाह के हुक्म को हासिल करने का दूसरा माध्यम और स्रोत है और इस बारे में समस्त इस्लामी समुदाय सहमत भी है यद्धपि नबी की हदीस के रावियों के शर्तों या रसूले इस्लाम स.अ की सुन्नत हासिल करने के रास्तों के बारे में थोड़ा बहुत मतभेद पाया जाता है।

इसलिए अगर किसी विश्वासपात्र माध्यम से कोई ऐसी हदीस बयान हो जिसमें रसूले इस्लाम स.अ. का कथन, अमल या तक़रीर मौजूद हो तो शरई लिहाज़ से हुज्जत और मान्य है। बौद्धिक तर्कों के अतिरिक्त ख़ुद क़ुरआने मजीद भी रसूले इस्लाम स.अ की सुन्नत के  हुज्जत होने का प्रमाण है जैसे निम्नलिखित आयतों में बयान हुआ है।وَأَنزَلْنَا إِلَیْکَ الذِّکْرَ لِتُبَیِّنَ لِلنَّاسِ مَا نُزِّلَ إِلَیْہِمْ وَلَعَلَّہُمْ یَتَفَکَّرُونَ
और हमने आपकी तरफ़ ज़िक्र को उतारा ताकि जो कुछ उनकी तरफ़ नाज़िल किया गया है उसको उनके लिए स्पष्ट कर दें और शायद वह लोग सोच विचार कर सकें।

इस आयत के अनुसार पैग़म्बरे इस्लाम स. की हदीसें, क़ुरआन मजीद के अर्थ व मतलब और उसके उद्देश्य बयान करती हैं और यह स्पष्ट है कि क़ुरआन मजीद का जो उद्देश्य है अर्थात इंसानियत की हिदायत वही रसूले इस्लाम स.अ की सुन्नत का भी है और  क़ुरआन मजीद की तरह सुन्नत भी हुज्जत व मान्य है।

لَقَدْ کَانَ لَکُمْ فِی رَسُولِ اﷲِ أُسْوَۃٌ حَسَنَۃٌ لِمَنْ کَانَ یَرْجُو اﷲَ وَالْیَوْمَ الْآخِرَ وَذَکَرَ اﷲَ کَثِیرًا

“तुममें से उसके लिए रसूल की ज़िंदगी बेहतरीन आदर्श है जो इंसान भी अल्लाह और परलोक से उमीदें लगाए हुए है और अल्लाह को बहुत ज़्यादा याद करता है।

“وَمَا آتَاکُمْ الرَّسُولُ فَخُذُوہُ وَمَا نَہَاکُمْ عَنْہُ فَانْتَہُوا وَاتَّقُوا اﷲَ إِنَّ اﷲَ شَدِیدُ الْعِقَابِ“

जो कुछ भी रसूल तुम्हें दे दे उसे ले लो और जिस चीज़ से मना कर दे उससे रूक जाओ और अल्लाह से डरो कि अल्लाह सख़्त अज़ाब करने वाला है।

قُلْ إِنْ کُنْتُمْ تُحِبُّونَ اﷲَ فَاتَّبِعُونِی یُحْبِبْکُمْ اﷲُ وَیَغْفِرْ لَکُمْ ذُنُوبَکُمْ وَاﷲُ غَفُورٌ رَحِیمٌ   

ऐ पैग़म्बर कह दीजिए कि अगर तुम लोग अल्लाह से प्यार करते हो तो मेरा अनुसरण करो अल्लाह भी तुम से प्यार करेगा और तुम्हारे  गुनाहों को माफ़ कर देगा कि वह बड़ा बख़्शने वाला और मेहरबान है।

قُلْ أَطِیعُوا اﷲَ وَالرَّسُولَ فَإِنْ تَوَلَّوْا فَإِنَّ اﷲَ لاَیُحِبُّ الْکَافِرِینَ

ऐ पैग़म्बर कह दीजिए कि अल्लाह और उसके रसूल का अनुसरण करो और जो उससे मुंह मोड़ेगा तो ख़ुदा काफ़िरों को दोस्त नहीं रखता है।َ

اضَلَّ صَاحِبُکُمْ وَمَا غَوَی وَمَا یَنْطِقُ عَنْ الْہَوَی إِنْ ہُوَ إِلاَّ وَحْیٌ یُوحَی

तुम्हारा साथी न गुमराह हुआ है और न बहका और वह अपनी इच्छा से बात भी नहीं करता है वह वही बोलता है जिसकी उसे वही होती है। अइम्म-ए- अहलेबैत अ. और रसूले इस्लाम स.अ की सुन्नत अइम्मा-ए-मासूमीन (अ.) से बयान होने वाली रिवायतों में भी सुन्नत की महानता बयान हुई है और इन रिवायतों में क़ुरआने करीम के बाद सुन्नत को हुक्म के ढ़ूंढ़ने की दलील क़रार देने के बारे में बल दिया गया है जैसा कि इमाम जाफ़र सादिक़ अ. फ़रमाते हैः

مامن شیء الا وفیہ کتاب اوسنۃ

कोई चीज़ ऐसी नहीं है जिसका आदेश अल्लाह की किताब या सुन्नत में मौजूद न हो।जनाब समाआ बिन मेहरान ने इमाम मूसा काज़िम से यह सवाल किया कि क़ुरआने करीम व सुन्नत में हर चीज़ का  हुक्म बयान हो चुका है? या यह कि आप भी (किताब व सुन्नत से अलग) उसके बारे में कोई हुक्म देते हैं? तो आपने फ़रमायाः

بل کل شیء فی کتاب اللّٰہ وسنۃ نبیہ

क़ुरआन मजीद और पैग़म्बरे इस्लाम स.अ. की सुन्नत में हर हुक्म मौजूद है।जिस प्रकार हदीसों के सही या ग़लत होने का आधार क़ुरआन मजीद है उसी प्रकार इमामों की हदीसों के लिए पैग़म्बरे इस्लाम स.अ की हदीसें आधार हैं इसलिए जब अब्दुल्लाह  बिन अबी यअफ़ूर ने इमाम जाफ़र सादिक़ (अ.) से अइम्मा मासूमीन की हदीसों के बारे में सवाल किया तो आपने फ़रमायाः

اذاورد علیکم حدیث فوجدتم لہ شاھداً من کتاب اللہ اومن قول رسول اللہ صلی اللہ علیہ وآلہ والا فالذی جاء کم بہ اولیٰ بہ

‘‘जब तुम तक कोई हदीस पहुँचे और तुम्हें क़ुरआन या पैग़म्बर स.अ की हदीस से उसका प्रमाण मिल जाए तो उसे स्वीकार कर लो वरना बेहतर यही है कि उसकी निस्बत उसी की ओर दी जाए जिसने उसे तुमसे नक़्ल किया है।“जनाब ज़ुरारा ने इमाम मुहम्मद बाक़िर अ. से यह रिवायत बयान की है कि आपने फ़रमाया है

کل من تعدی السنۃ رد الیٰ السنۃ

जो इंसान भी पैग़म्बरे इस्लाम स.अ की सुन्नत से आगे बढ़े उसे सुन्नत की ओर पलटाया जाए।इमाम जाफ़र सादिक़ अ. ने फ़रमायाः

من خالف کتاب اللّٰہ وسنۃ محمدؐ فقد کفر

जो इंसान अल्लाह की किताब और हज़रत मुहम्मद स.अ की सुन्नत का विरोध करे वह काफ़िर है।सम्भव है कोई यह कहे कि शिया हज़रात अपनी कलामी, फ़िक़्ही और अख़लाक़ी किताबों में अधिकतर अइम्मा ताहेरीन (अ.) की हदीसों को ही प्रमाण के तौर पर पेश करते हैं और बहुत कम अवसरों पर रसूले इस्लाम स.अ की हदीसों को प्रमाण बनाते हैं इस आधार पर शिया उल्मा व्यवाहरिक रूप से रसूले इस्लाम स.अ. स.अ की हदीसों को कोई ख़ास महत्व नहीं देते हैं।इसका जवाब हम पहले ही बयान कर चुके हैं कि पैग़म्बरे इस्लाम स.अ की हदीसों के मान्य होने पर सभी मुसलमान सहमत हैं लेकिन पैग़म्बर की हदीसों को किस प्रकार हासिल किया जाए इस बारे में उनके यहाँ, यहाँ तक कि कभी कभी एक ही धर्म के मानने वालों के बीच मतभेद पाया जाता है क्यूँकि यह लोग रसूले इस्लाम स.अ की सुन्नत के लिए जिन शर्तों को मानते हैं उनमें उनके बीच सहमति नहीं है यही कारण है कि अहकाम के अध्याय में हनफ़ी समुदाय के इमाम अबू हनीफ़ा बहुत ही कम हदीसों को विश्वासपात्र समझते हैं इब्ने ख़ल्दून के अनुसार उनकी संख्या बीस भी नहीं है लेकिन इमाम मालिक ने उनकी संख्या तीन सौ बताई है।इमामिया शियों के निकट रसूल स.अ. की हदीसों को हासिल करने का सबसे विश्वासपात्र रास्ता मासूम इमाम ही हैं अर्थात जो इमाम सादिक़ अ. ने बयान फ़रमाया है वह वास्तव में वही है जो पैग़म्बरे इस्लाम स.अ की सुन्नत है जैसा कि हेशाम बिन सालिम और हेमाद बिन ईसा और दूसरे लोगों ने रिवायत की है कि इमाम जाफ़र सादिक़ अ. ने फ़रमाया हैः

حدیثی حدیث ابی ، حدیث ابی حدیث جدی وحدیث جدی حدیث الحسین وحدیث الحسین حدیث الحسن وحدیث الحسن حدیث امیر المومنین ، وحدیث امیر المومنین حدیث رسول اللّٰہؐ  وحدیث رسول اللّٰہؐ  قول اللّٰہ عز وجل

अर्थात मेरी हदीस मेरे बाबा की हदीस है। मेरे बाबा की हदीस मेरे दादा की हदीस है और मेरे दादा की हदीस हज़रत इमाम हुसैन अ. की हदीस है और हज़रत इमाम हुसैन अ. की हदीस इमाम हसन अ. की हदीस है, इमाम हसन अ. की हदीस अमीरुल मोमिनीन अ. की हदीस है, अमीरुल मोमिनीन अ. की हदीस रसूल अल्लाह की हदीस है और रसूले इस्लाम स.अ की हदीस अल्लाह तआला का कथन है।यह बयान करने के बाद कि किताब व सुन्नत के स्रोत व प्रमाण शरई होने के बारे में शियों और अहले सुन्नत के बीच कोई अंतर नहीं है अल्लामा काशेफ़ुल ग़ेता कहते है कि रसूल की सुन्नत के बारे में शियों की विशेषता यह है कि यह लोग केवल उसी सुन्नत को विश्वासपात्र समझते हैं जो अहलेबैत अ. द्वारा उन तक पहुँची हो जैसे इमाम जाफ़र सादिक़ अ. ने अपने वालिद इमाम मुहम्मद बाक़िर अ. से रिवायत की हो, उन्होंने अपने बाबा इमाम ज़ैनुल आबेदीन अ., उन्होंने इमाम हुसैन अ. से और उन्होंने अमीरुल मोमिनीन अ. से और उन्होंने पैग़म्बरे इस्लाम स.अ से रिवायत की हो। लेकिन उनकी निगाह में अबू  हुरैरा, समरा बिन जुंदब, मरवान बिन हकम और अम्र बिन आस जैसे लोगों की रिवायत का कोई महत्व नहीं है और शिया उन्हें विश्वासपात्र नहीं समझते हैं।