इतिहास रचने वाली कर्बला की महिलाएं
  • शीर्षक: इतिहास रचने वाली कर्बला की महिलाएं
  • लेखक:
  • स्रोत:
  • रिलीज की तारीख: 3:40:26 4-9-1403

बहुत से महापुरुष और वे लोग जिन्होंने इतिहास में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है, उनकी सफलता के पीछे दो प्रकार की महिलाओं का बलिदान और त्याग रहा है। पहला गुट उन मोमिन और बलिदानी माताओं का है जो इस प्रकार के बच्चों के पालन पोषण में सफल हुईं। दूसरा गुट उन महिलाओं का है जो अपने पति के कांधे से कांधा मिलाकर कठिन से कठिन घटनाओं के समक्ष डट गयीं।


इस प्रकार से घटना के पीछे या विभिन्न मंचों पर परोक्ष रूप से महिलाओं की भूमिका की अनदेखी नहीं की जा सकती।


इस्लामी इतिहास की अद्वितीय और अनुदाहरणीय घटना जिसने इस्लामी समाज में मूल परिवर्तन उत्पन्न कर दिया, इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम का महा आन्दोलन और क्रांति है। इस पवित्र महा आन्दोलन में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले गुटों में से एक महिलाओं का गुट था। इस महा आन्दोलन में महिलाओं ने दर्शा दिया कि जब भी धर्म के समर्थन, न्याय और सत्य की स्थापना की चर्चा होगी तो वे पुरुषों के कंधे से कंधा मिलाकर अपनी ऐतिहासिक और प्रभावी भूमिका निभा सकती हैं।


इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के महा आन्दोलन में महिलाओं की उपस्थिति एक प्रकार से हज़रत हमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के आन्दोलन को परिपूर्णता तक पहुंचाने वाला महत्वपूर्ण कारक था और उन महिलाओं ने इस सिलसिले में अनोखी भूमिका निभाई थी। आशूर के दिन इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के महा आन्दोलन में यज़ीदी सेना के हज़ारों पथभ्रष्ट सैनिक कुछ गिने चुने सत्य प्रेमियों के मुक़ाबले पर आ गये। स्पष्ट सी बात है ऐसी परिस्थिति में वही व्यक्ति प्रतिरोध कर सकता है जो वीरता, साहस और ईमान के श्रेष्ठतम स्थान पर हो। हज़रत इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के साथियों में कुछ ऐसे थे जो इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के मार्ग के सही और सच्चा होने में संदेह और शंका नहीं रखते थे और कोई भी चीज़ उनको सत्य की रक्षा में बाधित नहीं कर सकती थी किन्तु दूसरा गुट आरंभ में शंका ग्रस्त था।


इन लोगों में ज़ुहैर इब्ने क़ैन थे। वे आरंभ में इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम की सहायता करने से दूर रहे किन्तु अपनी पत्नी दैलम बिन्ते अम्र के प्रेरित करने से इमाम हुसैन के मार्ग पर चल निकले।ज़ुहैर इब्ने क़ैन के एक मित्र का कहना है कि हम सन 60 हिजरी क़मरी में हज करने मक्का गये। हज़रत इमाम हुसैन अलैहिस्लाम की ख़तरों भरी यात्रा की सूचना के दृष्टिगत, हमने इमाम हुसैन अलैहिस्लाम के कारवां से दूर ही रहने का प्रयास ताकि उनसे आमना सामना न हो जाए। जब हमारा कारवां एक पड़ाव पर पहुंचा तो इमाम हुसैन और उनके साथियों का कारवां भी वहां पहुंच गया। अभी हमने खाना खाना आरंभ ही किया था कि इमाम हुसैन अलैहिस्सला का दूत हमारे पास आया और सलाम करने के बाद उसने ज़ुहैर से कहा कि इमाम हुसैन ने तुम्हें याद किया है। यह बात सुनकर ज़ुहैर इतना आश्चर्य चकित हुए कि जो कुछ भी उनके हाथ में था ज़मीन पर गिर पड़ा। उसी आश्चर्य और मौन के वातावरण में अचानक ज़ुहैर की पत्नी की आवाज़ गूंजी, वाह-वाह क्या बात है?! पैग़म्बरे इस्लाम का नाती तुम्हें अपने पास बुला रहा है और तुम उनके पास नहीं जा रहे हो, तुम्हें क्या हो जाएगा यदि उनके पास गए और उनकी बात सुनी।ज़ुहैर की पत्नी के शब्द ऐसी निष्ठा और दिल की गहराईयों से निकले थे कि इन्हीं एक-दो वाक्यों ने ज़ुहैर को अंदर से झंझोड़ दिया और उन्होंने इमाम हुसैन अलैहिस्लाम से भेंट की और उनके साथ हो गए। यदि ज़ुहैर के भाग्य में ऐसी पत्नी न होती तो उन्हें ईश्वर के मार्ग में शहादत और इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के साथ रहने का गौरव प्राप्त न होता। ज़ुहैर की पत्नी ने विदाई के समय ज़ुहैर से इच्छा जताई कि वे प्रलय के दिन हज़रत इमाम हुसैन से उनकी सिफ़ारिश करेंगे।


करबला की वीर महिलाओं में से एक वहब की मां थीं। वे अपने इकलौते पुत्र वहब और अपनी बहू के साथ एक स्थान पर हमाम हुसैन के कारवां से मिलीं और उनके साथ हो गयीं। वहब की मां हज़रत इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के आध्यात्मिक और मानसिक सदगुणों में ऐसा खो गयीं थीं कि उनकी सहायता के लिए उन्हें कुछ सुझाई नहीं दे रहा था। करबला में महा आन्दोलन के दिन वहब बार बार अपनी माता के उत्साह बढ़ाने और प्रेरित करने से रणक्षेत्र गये और साहस पूर्ण युद्ध किया और शहीद हो गये। उनकी माता उनके शव पर आईं और वहब के चेहरे से रक्त साफ़ करती जा रहीं थी और कह रही थीं कि धन्य है वह ईश्वर जिसने हुसैन इब्ने अली के साथ तुम्हारी शहादत से मुझे गौरान्वित कर दिया। अपने सुपुत्र की शहादत के पश्चात तंबू के स्तंभ की लकड़ी को लेकर वह शत्रु सैनिकों पर टूट पड़ीं और शहीद हो गईं। वह करबला की पहली शहीद महिला हैं।


अम्र बिन जुनादह की माता भी एक अन्य वीर और त्यागी महिला हैं जिन्होंने आशूर के दिन इतिहास में ऐसी शौर्य-गाथा रची जो कभी न भुलाई जाएगी। जब उनका पुत्र अम्र शहीद हो गया तो शत्रुओं ने उनके पुत्र के सिर को मां के पास भेजा, अम्र की माता ने जब अपने पुत्र के सिर को देखा तो उन्होंने सिर को रणक्षेत्र में फेंक दिया और कहा कि मैंने जो चीज़ ईश्वर के मार्ग में न्योछावर कर दी है उसे वापस नहीं लूंगी।


इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के महा आन्दोलन में उपस्थित वीर महिलाओं के व्यवहार और कथन से धर्म के लक्ष्यों की रक्षा में उनकी निष्ठा और महत्त्वकांक्षा के स्तर को समझा जा सकता है। इन महिलाओं ने जबकि वे अपने कांधों पर दुःखों के पहाड़ उठाए हुए थीं, पैग़म्बरे इस्लाम सलल्लाहो अलैह व आलेही वसल्लम के पवित्र नाती की सहायता की और सत्य की रक्षा की।


इन त्यागी और बलिदानी महिलाओं की मुखिया हज़रते ज़ैनब हैं। ऐसी महिला जिन्होंने हज़रत अली और हज़रत फ़ात्मा से प्रशिक्षण प्राप्त किया और ज्ञान के मोती चुने। करबला की घटना में हज़रते ज़ैनब की जिस महत्त्वपूर्ण भूमिका का उल्लेख किया जाता है वह वास्तव में उन विशेषताओं और परिपूर्णताओं का प्रकट होना है जिससे उन्होंने स्वयं को बाल्याकाल में ही सुसज्जित कर लिया था। हज़रते ज़ैनब मानसिक परिपूर्णता के उस चरण में पहुंच चुकी थीं कि करबला की घटना और तथा अपने प्रियजनों की शहादत को उन्होंने ईश्वरीय परीक्षा माना और भ्रष्ट यज़ीद के समक्ष जो उनको अपमानित करने का उद्देश्य रखता था, तेज़ आवाज़ में कहा कि यज़ीद मैंने करबला में सुंदरता के अतिरिक्त कुछ और नहीं देखा।इस घटना में हज़रते ज़ैनब का धैर्य अद्वितीय है। ऐसे समय में कि केवल सुबह से दोपहर तक जिसके भाई, भतीजे और पुत्र शहीद हो चुके हों, वह करबला की साहसी महिला इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के पवित्र शरीर के पास खड़ी हुई। दृढ़ संकल्प और भावना से ओतप्रोत होकर कहती है कि हे ईश्वर पैग़म्बरे इस्लाम के परिजनों में से इस क़ुरबानी को स्वीकार कर। क्योंकि हज़रते ज़ैनब एक बड़ी ज़िम्मेदारी, महान दायित्व और उद्देश्य के बारे में सोच रही थीं। ऐसी ज़िम्मेदारी जो हज़रते इमाम हुसैन ने अपनी शहादत से पूर्व बारम्बार हज़रत ज़ैनब को सौंपा था। हज़रत इमाम हुसैने ने करबला में मौजूद महिलाओं से इच्छा व्यक्त की थी कि अपनी बुद्धि और युक्ति पर भावनाओं को वरीयता दें और अपने दायित्वों के विपरीत कोई कार्य न करें।हज़रत इमाम हुसैन जब अपने परिजनों से विदा होकर रणक्षेत्र जा रहे थे तो उन्होंने कहा कि कठिन से कठिन परीक्षा के लिए तैयार रहो और यह जान लो कि ईश्वर तुम्हारा समर्थक और रक्षक है और तुम को शत्रुओं की उदंडता से मुक्ति देता है, तुम लोगों को भले अंत तक पहुंचाएगा और तुम्हारे शत्रुओं को विभिन्न प्रकार से प्रकोप में ग्रस्त करेगा। ईश्वर इन समस्त कठिनाइयों और मुसीबतों के बदले विभिन्न प्रकार के अनुकंपाएं देगा। शिकायत मत करना और ऐसी बातें ज़बान पर मत लाना जिससे तुम्हारी प्रतिष्ठा में कमी हो।


इस प्रकार से करबला के महा आन्दोलन का दूसरा भाग इमाम हुसैन और उनके साथियों की शहादत के बाद, इमाम हुसैन के संदेश को आगे बढ़ाने के महिलाओं के दायित्व के साथ आरंभ हुआ। इमाम हुसैन और उनके साथियों की शहादत के बाद आरंभिक क्षणों में ही लूट-खसोट मच गई और अगली सुबह दुःखी बच्चों और महिलाओं को बंदी बना लिया गया। जब शत्रुओं ने बंदी कारवां को करबला से कूफ़ा ले जाना चाहा तो उन्होंने महिलाओं को शहीदों के शवों के पास से गुज़ारा। यह दुःखी महिलाएं अपने परिजनों के शवों के पास पहुंची तो ऐसा दृश्य सामने आया जिसने कठोर से कठोर हृदय वाले व्यक्ति को भी प्रभावित कर दिया। इन प्रभावित कर देने वाले दृश्यों में से एक वह बात है जो जनाबे ज़ैनब ने अपने भाई के पवित्र शरीर से कही।बंदियों की यात्रा के दौरान पैगम्बरे इस्लाम (स) के परिजनों में से प्रत्येक महिला ने उचित अवसरों पर भाषण दिया और लोगों वास्तविकता से अवगत कराया। जनाबे ज़ैनब के अतिरिक्त इमाम हुसैन की पुत्री हज़रत फ़ातेमा और इमाम हुसैन की दूसरी बहन उम्मे कुलसूम हर एक ने कूफ़े में ऐसा भाषण दिया कि कूफ़े के बाज़ार में हलचल मच गई और लोग दहाड़े मार कर रोने लगे। इतिहास में आया है कि कूफ़े की महिलाओं ने जब यह भाषण सुने तो उन्हें अपने सिरों पर मिट्टी डाली और अपने मुंह पर तमाचे मारे और ईश्वर से अपनी मृत्य की कामना की।


पैग़म्बरे इस्लाम के परिजनों की महिलाओं का प्रयास करबला की घटना के विवरण का उल्लेख करना था। यह विषय, जनता की भावना को भड़काने के अतिरिक्त करबला की घटना को फेर बदल से सुरक्षित रखने का कारण भी बना और इसने बनी उमैया से हर प्रकार की भ्रांति फैलाने का अवसर छीन लिया। वास्तव में महिलाओं ने अत्याचार से संघर्ष में उपयोगी शस्त्र के रूप में अपने बंदी काल का प्रयोग किया और भ्रष्ट और मिथ्याचार के चेहरे से नक़ाब उलट दी।


इन महिलाओं ने इस्लामी जगत के तीन महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों कूफ़ा, सीरिया और मदीने में लोगों को जागरूक बनाने का प्रयास किया। यद्यपि इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम का महा आन्दोलन अपनी सत्यता और सच्चाई के लिए ठोस और सुदृढ प्रमाण रखता था किन्तु महिलाओं ने इस घटना के भावनात्मक आयामों की गहराई से लोगों के मन को आकृष्ट करने के लिए एक अन्य क़दम उठाया। करबला की महिलाओं ने अपने सुदृढ़ और तर्क संगत भाषणों द्वारा लोगों का सत्य के मोर्चे की ओर मार्गदर्शन किया