प्रत्येक क्रांतिकारी की चिंता का एक विषय क्रांति के संस्थापक के बाद का काल होता है। यही कारण है कि क्रांति के शत्रु क्रांति को कमज़ोर करने हेतु उसके नये नेता के काल का चयन करते हैं। ईरान की इस्लामी क्रांति भी इस नियम से इतर नहीं है। इमाम ख़ुमैनी के बाद क्रांति की पहला दशक, ईरान की इस्लामी क्रांति के मित्रों एवं शत्रुओं दोनों के लिए संवेदनशील काल था। तीन जून वर्ष 1989 को जब ईरान की इस्लामी क्रांति के संस्थापक इमाम ख़ुमैनी का परलोकगमन हुआ तो परिस्थिति संवेनशील थी। शत्रुओं का यह मानना था कि इमाम ख़ुमैनी के जीवन की समाप्ति के साथ ही ईरान की इस्लामी क्रांति का भी अंत हो जायेगा। इसी मानसिकता के आधार पर उन्होंने ईरान में सत्ता के लिए संघर्ष एवं इस्लामी गणतंत्र के पतन की योजना तैयार की थी। किन्तु वह इस वास्तविकता से अनभिज्ञ थे कि इस्लामी क्रांति धार्मिक मूल्यों के आधार पर और जनता के समर्थन से सफल हुई थी तथा व्यापक शत्रुता के बावजूद इस्लामी क्रांति की निरंतरता का भी यही कारण रहा है। यह ऐसा बिंदु है कि जिसकी ओर इमाम ख़ुमैनी ने अनेक बार क्रांति के समर्थकों का ध्यान आकर्षित किया था। वास्तव में उन्होंने अपने देहांत के बाद की स्थिति के दृष्टिगत परिस्थितियों को तैयार किया था ताकि नेतृत्व में अंतराल से इस्लामी क्रांति को कोई क्षति न पहुंचे। इमाम ख़ुमैनी के परलोकगमन के पश्चात नेता का चयन करने वाली समिति ने दूरदर्शता का प्रमाण देते हुए आयतुल्लाहहिल उज़मा सैय्यद अली ख़ामेनई को नेता एवं इमाम ख़ुमैनी का उत्तराधिकारी चुनकर शत्रु के समस्त समीकरणों पर पानी फेर दिया तथा जनता के संपूर्ण समर्थन ने शत्रु को भ्रमित कर दिया। अब दो दशकों से भी अधिक बीत चुके हैं और आंतरिक, क्षेत्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय राजनीतिक तूफ़ानों के बावजूद इस्लामी क्रांति की नाव के इस माँझी ने पूर्णतः सतर्कता और क्षमता के साथ उसका उचित ढंग से तट की ओर मार्गदर्शन किया है।इस्लाम में नेतृत्व इस धर्म के मौलिक विश्वासों पर आधारित है तथा आज के युग में प्रबंधन के नवीन दृष्टिकोण में नेतृत्व को प्राप्त विशेष स्थान के दृष्टिगत इसके महत्व में और अधिक वृद्धि हो गयी है। उस्ताद शहीद मुर्तज़ा मुतह्हरी लिखते हैं कि प्रबंधन एवं नेतृत्व के आधुनिकीकरण के बावजूद यदि इस्लामी संदर्भ में उसका समानार्थी शब्द खोजेंगे तो हम कह सकते हैं कि उसका अर्थ है मार्गदर्शन, विकास तथा दिशा निर्देशन। मार्गदर्शन एवं दिशा निर्देशन की शक्ति ही नेतृत्व की शक्ति है। विकास का तात्पर्य भी आत्मा की परिपक्वता है तथा जीवन की पूंजी और साधनों का ठीक ढंग से प्रयोग एवं उनकी रक्षा की योग्यता ही विकास है। उस्ताद मुतह्हरी एक और स्थान पर लिखते हैं कि मनुष्य एक अत्यधिक महत्वूर्ण पूंजी है तथा इस पूंजी का प्रबंधन, रक्षा, उसे बरबाद न होने देना और उसका उपयुक्त प्रयोग करना ही वास्तविक विकास है। वास्तव में मानवशक्ति को संगठित करना, उसे भावनात्मक प्रेरणना प्रदान करना तथा निराशा और संकीर्णता से उसे बाहर निकालना ही विकास है कि जिसे आज प्रबंधन या नेतृत्व का नाम दिया जाता है।इस्लामी गणतंत्र व्यवस्था की राजनीतिक प्रणाली में भी नेतृत्व को सर्वोच्च स्थान एवं प्रचुर अधिकार प्राप्त हैं। इस्लाम में नेतृत्व के लिए अनेक शर्तें हैं। उस्ताद मुतह्हरी का मानना है कि लोगों से प्रेम तथा स्नेह नेतृत्व की अनिवार्य शर्तों में से है, वे लिखते हैं कि सामाजिक दृष्टि से प्रेम की शक्ति सर्वश्रेष्ठ एवं प्रभावशाली शक्ति है। सर्वोत्तम राज्य वह है कि जिसका संचालन प्रेम से किया जाये, शासक का प्रेम तथा स्नेह शासन की मज़बूती एवं निरंतरता के मूल कारणों में से है। लोगों से प्यार किये बग़ैर उन्हें अनुशासित एवं क़ानून का पालन करने वाला नहीं बनाया जा सकता चाहे उस समाज में न्याय एवं बराबरी का बोलबाला हो। लोग उस समय क़ानून का पालन करेंगे कि जब उन्हें आभास होगा कि उनके नेता उनसे प्यार करते हैं। यह प्रेम उन्हें अनुसरण की प्रेरणा देता है।इस्लामी क्रांति के नेता के रूप में आयतुल्लाहिल उज़मा सैय्यद अली ख़ामेनई में इस्लामी नेतृत्व की यह समस्त विशेषताएं पायी जाती हैं इसी कारण क्रांति की आकांक्षाओं को पूरा करने और देश के संचालन में उनकी निर्णायक भूमिका रही है। आयतुल्लाह हिल उज़मा ख़ामेनई के साहसिक एवं दृढ़ नेतृत्व ने क्रांति की रक्षा की है। उनका मानना है कि किसी भी देश की स्वाधीनता एवं संप्रभुता की प्रबलता, ज्ञान की मज़बूत नींव और उसके परिणामस्वरूप आर्थिक, सांस्कृतिक एवं सामाजिक विकास और प्रगति में है, यही कारण है कि वे लोगों को मज़बूत आधारभूत ढांचे के निर्माण के लिए प्रेरित करते हैं। आयतुल्लाहिल उज़मा सैय्यद अली ख़ामेनई ने इराक़ के प्रधान मंत्री नूरी अल मालिकी से भेंट में कहा था कि किसी भी देश की संप्रभुता को कुछ साधनों की आवश्यकता होती है जिनमें वैज्ञानिक प्रगति और सार्वजनिक सेवाएं अत्यधिक महत्वपूर्ण हैं। इस्लामी गणतंत्र व्यवस्था की राजनीतिक प्रणाली में उच्चतम अधिकारी होने के रूप में उन्होंने विदेश नीति में स्पष्ट सिद्धांतों को अपनाया है कि जिनमें वर्चस्ववाद का विरोध केंद्रीय बिंदु है। उन्होंने विभिन्न अवसरों पर उल्लेख किया है कि आज विश्व में वर्चस्ववाद का बोलबाला है। वर्चस्ववाद का अर्थ है कि कोई बन्दूक़ की नोक पर विश्व में दबंगई करे और लज्जित भी न हो तथा दूसरे भी उसकी ग़ुंडा गर्दी को सहन करें। आयतुल्लाहहिल उज़मा ख़ामेनई के विचार में जहां कहीं भी इस्लामी व्यवस्था होगी वहां अत्याचार, हिंसा, साम्राज्यवाद एवं जनता की अवमानना से टकराव और मुक़ाबला भी होगा। ऐसी स्थिति में यदि कोई राष्ट्र विश्व की बड़ी वर्चस्ववादी शक्तियों के सामने घुटने टेक दे और राष्ट्रीय हितों की ओर से आँखें बंद कर ले तो वह हीनता की गहरी एवं असीमित घाटियों में भटकता फिरता है कि जिसका अंत अस्पष्ट होता है, और जो शासन अंतरराष्ट्रीय वर्चस्ववाद की इच्छाओं के समक्ष घुटने टेक देता है तो वह विगत की तुलना में और कमज़ोर हो जाता है तथा उसके विघटन की आशंका में वृद्धि हो जाती है।आयतुल्लाहिल उज़मा खामेनई ने वर्चस्ववाद के प्रति दो प्रकार के आचरणों को उल्लेखित किया है। एक उसके सामने झुक जाना है और दूसरे उसका मुक़ाबला करना है। विश्व में धमकी व धौंस जमाने वालों के सामने घुटने टेकने से उन्हें अपनी वर्चस्ववादी नीतियों में वृद्धि करने का साहस मिलता है। इसी कारण राष्ट्रों के सामने केवल एक मार्ग रह जाता है और वह प्रतिरोध है। प्रतिरोध के मार्ग में इस्लामी देश, तीसरी दुनिया की सरकारें और जनता यदि अपनी शक्ति के महत्व को समझें तो वर्चस्ववादियों का सबसे बड़ा हथियार कि जो धौंस, धमकी और दुष्प्रचार है, कुन्द हो जायेगा। आयतुल्लाहहिल उज़मा सैय्यद अली ख़ामेनई की पारदर्शी एवं स्पष्ट नीतियां, लोगों से स्नेह, सत्यता एवं ईमानदारी और हृदयों में इमाम ख़ुमैनी के आकर्षण और सद्भावना व पवित्रता को जीवित करने के साथ साथ राष्ट्रों में पवित्र मनुष्य के प्रति आशाओं के दीप जलाती है। मिस्री विद्वान डाक्टर हुल्मी महमूद अलक़ाऊद ईरान और समस्त इस्लामी देशों के बीच न्यायपूर्ण तुलना करते हुए तथा इन देशों में नेतृत्व की भूमिका के संबंध मे लिखते हैं कि ईरान के संबंध में मेरी दृष्टि एक आलोचक के रूप में एक ऐसे व्यक्ति की दृष्टि है कि जो यह चाहता है कि उसके देश में वही कुछ हो जो वह वहां देख रहा है जैसे कि हर स्थिति में इस्लाम के सिद्धांतों का पालन। उसके बाद वे कहते हैं कि मैंने ईरान की यात्रा नहीं की है और वहां किसी से परिचित भी नहीं हूं परन्तु वहां घटने वाली घटनाओं की सूचना, विरोधियों एवं आलोचकों द्वारा प्राप्त करता हूं विशेषकर अवैध अधिकृत फ़िलिस्तीन के संबंध में ईरान की नीतियों के बारे में। मैं कहना चाहता हूं कि धरती पर इस्लामी गणतंत्र ईरान का शासन प्रथम ऐसा शासन है कि जिसमें एक शक्तिशाली धार्मिक नेता के महत्वपूर्ण स्थान एवं नियंत्रण के बावजूद वे अपना प्रभुत्व नहीं जमाते हैं। वे अपने शासन में समस्त लोगों को ज़िम्मदार मानते हैं। नेता, मुसलमानों का सेवक समझा जाता है अत्याचारपूर्ण आचरण अथवा किसी की भी ग़लती को अनदेखा नहीं किया जाता है। वे एक वास्तविक एवं प्रतिभाशाली नेता हैं और राष्ट्र को धर्म की सेवा के लिए प्रेरित करते हैं। डाक्टर अलक़ाऊद कहते हैं कि ईरान ने धार्मिक नेतृत्व की छाया में विज्ञान के विभिन्न क्षेत्रों में महत्वपूर्ण विशेषज्ञों को जन्म दिया है तथा उसने अमरीका और अरब देशों की सहायता से इराक़ द्वारा थोपे गये आठ वर्षीय युद्ध का सफलतापूर्वक मुक़ाबला किया है और क्रांति की सफलता के बाद से ही पश्चिम की ओर से लगाये गये निरंतर प्रतिबंधों को निष्क्रिय बनाया है। इसी प्रकार ईरान ने युद्ध एवं प्रतिबंधों की की छाया में मज़बूत औद्योगिक ढांचे की स्थापना तथा कृषि के क्षेत्र में ध्यान योग्य प्रगति की है तथा उसने विभिन्न उत्पादों में आत्मनिर्भरता प्राप्त की है। राजनीतिक एवं प्रशासनिक जैसे विभिन्न क्षेत्रों में भी ईरानी महिलाओं की श्रेष्ठता जग ज़ाहिर है, वह भी इस्लामी नैतिकता एवं मूल्यों का पालन करते हुए, इन सबसे महत्वूर्ण यह कि ईरान की सेना ने थल, जल एवं हवाई क्षेत्रों में सैन्य उपकरणों के निर्माण में रचनात्मक सफलता प्राप्त की है। इसके अतिरिक्त अंतरिक्ष में उपग्रहों का प्रक्षेपण तथा यूरेनियम संवर्धन की तकनीक प्राप्त कर इन सब उपलब्धियों में चार चांद लगा दिये हैं। ईरानी राष्ट्र धार्मिक नेता के आशीर्वाद से एक जीवित राष्ट्र है कि जिसने धर्म की सहायता से अपना मार्ग प्राप्त कर लिया है।लेबनान में सामाजिक क्षेत्र में कार्यरत महिला संगठनों की प्रमुख अफ़्फाफ़ अल हकीम का कहना है कि लेबनान में हम सदैव वरिष्ठ धार्मिक नेता के वक्तव्यों की प्रतीक्षा करते रहते हैं तथा विभिन्न क्षेत्रों में उनके उपदेशों से लाभान्वित होते हैं विशेषकर आज के इस संवेदनशील काल में कि जब हमें एक ईश्वरीय एवं निष्ठावान नेता की आवश्यकता है। एक ऐसा व्यक्ति कि जो इस्लाम के प्रति हर वफ़ादार मुसलमान में ज्ञान, विश्वास तथा आत्मविश्वास की ज्योति जलाये। इराक़ के टीवी चैनल अलफ़ुरात के संवाददाता ज़ैनुल आबेदीन हैदरी कहते हैं कि मेरे परिवार में इराक़ के अनेक प्रसिद्ध धर्मगुरु हैं और देश में धार्मिक हल्क़ों से मेरा काफ़ी संबंध है, परन्तु जब मैंने आयतुल्लाहिल उज़मा ख़ामेनई को देखा तो उनकी नैतिकता और शिष्टाचार से अत्यधिक प्रभावित हुआ। वे एकमात्र ऐसे धर्मगुरु हैं कि जिनको देखकर अनायास मेरी आंखों से आंसू बहने लगे। ईरान में चुनाव के बाद घटित घटनाओं के चक्र से उन्होंने देश को अपनी प्रतिभा एवं दूरदर्शता से सफलतापूर्वक बाहर निकाला। ऐसे समय में कि जब ईरान की ओर से यूरेनियम संवर्धन को निलंबित कर दिया था वरिष्ठ नेता ने ही आदेश जारी किया था कि संवर्धन पुनः आरम्भ किया जाये और आज परमाणु तकनीक संपन्न ईरान के मुक़ाबले में पश्चिम असहाय हो गया है।