माविया इस्लाम को मिटाना चाहता था।
  • शीर्षक: माविया इस्लाम को मिटाना चाहता था।
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  • रिलीज की तारीख: 20:9:22 1-9-1403

मसऊदी ने मुवफ़्फ़क़यात इब्ने बिकार नामक किताब से मतरफ़ बिन मुग़ैरह बिन शेबा के हवाले से लिखा है कि, वह कहता है कि मेरा बाप का मुआविया के पास उठना बैठना था।

वह हमेशा उससे मुलाक़ात के लिए जाया करता था। कभी कभी मैं भी उसके साथ मुआविया के पास जाया करता था।

वह जब मुआविया के पास से घर पलट कर आता था तो अक्सर उसकी चालाकी की बातें सुनाया करता था।

लेकिन एक रात जब वह मुआविया से मुलाक़ात के बाद घर पलटा तो इतना ग़मगीन था कि उसने शाम का खाना भी नही खाया। मैनें पूछा कि आज आप इतने ग़मज़दा क्यों हैं ?

उसने जवाब दिया कि मैं सबसे ज़्यादा ख़बीस इंसान के पास से आ रहा हूँ। मैने आज मुआविया से बातें की और उससे कहा कि अब तू बूढ़ा हो गया है तेरी तमाम तमन्नायें पूरी हो चुकी हैं।

अब तू इंसाफ़ से काम ले और नेक काम कर अपने भाईयों (बनी हाशिम) के साथ अहसान व सिलहे रहम कर। अल्लाह की क़सम अब उनके पास ऐसी कोई चीज़ नही है जिससे तुझे ख़तरा हो।

मुआविया ने कहा कि मैं हर गिज़ ऐसा नही कर सकता।

इसके बाद उसने अबु बकर, उमर व उसमान का ज़िक्र किया और कहा कि इनमें से हर एक ने हुकूमत की लेकिन मरने के बाद उन सब का नामों निशान मिट गया।

लेकिन अभी तक पाँचों वक़्त अज़ान में मुहम्मद का नाम लिया जाता है। मैं चाहता हूँ कि यह सब भी ख़त्म हो जाये।

यानी मुआविया की दिली तमन्ना यह थी कि इस्लाम व पैग़म्बरे इस्लाम का नामों निशान मिट जाये।