बच्चों के व्यक्तित्व
बच्चे जिस समय किशोरावस्था तक पहुंचते हैं, उनमें बहुत अधिक शारिरिक और भावनात्मक परिवर्तन उत्पन्न होते हैं।
उनमें व्यक्तित्व और आत्म सम्मान की भावना पैदा होती है। किशोरावस्था में बच्चे प्राय: एक संकटमई स्थिति से गुज़रते हैं और स्वाभविक है कि ऐसे में वो एक डॉंवाडोल चरण में होते हैं। इस काल में हर ग़लती के लिए उनके मन में घृणा भाव जागृत होता है और यह कारण बनता है कि नए अनुभवों से उन्हें डर लगने लगे।
अलबत्ता माता - पिता के लिए भी यह अत्यन्त कठिन होता है कि अपने बच्चों को सकंट में देखें और उनकी सहायता न करें। उचित मार्ग यह है कि उन्हें उनके हाल पर छोड़ दिया जाए ताकि अपने दाइत्वों का निर्वाह स्वंय करना सीखें। यहॉ तक कि यदि हमें यह वश्वास भी हो कि उन्हें विफलता का सामना होगा, फिर भी उनकी समस्याओं का समाधान करके उन्हें ख़ुश करना उचित मार्ग नहीं है। बल्कि उनके साथ ऐसी सहकारिता और समरसता का मार्ग सही है जिससे अन्तिम निर्णय लेने का दाइत्व स्वंय उनहीं पर छोड़ दिया जाए। यह वही चीज़ है जो उन्हें शक्ति, आत्म विश्वास और स्वावलम्बन प्रदान करती है और उनपर दाइत्व डालना उनके लिए सीमाएं उत्पन्न करने से बेहतर है।
किशोरावस्था का काल बचपन से युवावस्था में परिवर्तन और अन्तत: बच्चे के बड़े हो जाने का काल है और यह माता -पिता के लिए बहुत कठिन और परेशानी वाला होता है। यह वो समय है जब बच्चा अपनी पहचान की खोज में होता है परन्तु माता - पिता यह समझते है कि वो उनके प्रति लापर्वाह हो गया है। इस काल में प्राय: बच्चे माता - पिता का समर्थन चाहते हैं। इस समय उन्हें उनके व्यक्तिगत मामलों में माता - पिता के हस्तक्षेप और सहायता की आवश्यकता होती है।
अनुसंधानों से पता लगा है कि ७० प्रतिशत किशोरों को अपने मित्रों, शिक्षकों या दूसरों से अधिक अपने माता - पिता द्वारा की जाने वाली प्रशंसा की आशा होती है। अधिकांश किशोर चाहते हैं कि उनके माता - पिता उनसे प्रेम करें, उन्हें अपने पास बिठाएं, उनकी प्रशंसा करें और उनको महत्व दें। माता - पिता का समर्थन बच्चों के विकास एवं प्रगति में सबसे अधिक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
स्वाभाविक है कि बच्चों को यह अच्छा नहीं लगता कि अपने गुप्त मामलों को माता - पिता के सम्मुख रखें और ऐसा लगता है कि माता - पिता भी चाहते हैं कि अपने बच्चों के साथ अपना सम्पर्क बनाए रखें, परन्तु खेद की बात यह है कि वो उनकी सीमाओं का उल्लंघन करते हैं, क्योंकि चाहते हैं कि उनकी हर बात की जानकारी प्राप्त कर सकें। कभी कभी ऐसा होता है कि बच्चे अकेले रहने या एकान्त को अधिक प्राथमिकता देते हैं, उस समय माता - पिता को जिज्ञासा उत्पन्न होती है और वो बच्चे का बैग, ड्रॉर यहॉ तक कि उसकी डायरी में इसका कारण खोजने लगते हैं और उनके फ़ोन तक सुनने का प्रयास करते हैं। सम्मान और विश्वास, बच्चे और माता - पिता के बीच अच्छे संबंधों के विस्तार का महत्वपूर्ण आधार है। एक अनुसंधान के आधार पर लगभग ८० प्रतिशत किशोर अपने माता - पिता का विश्वास प्राप्त करने का प्रयास करते हैं।
माता - पिता समझते हैं कि विश्वास करने का अर्थ यह है कि बच्चे के खाने पीने , ख़र्च और एक सीमित स्वावलम्बन का ध्यान रखा जाए। अध्ययन दर्शाते हैं कि दोनों पक्षों के संबंधों को बनाए रखने का सबसे उचित मार्ग निकट संबंध है। आप के किशोर के साथ आपके आत्मीय संबंध अत्यधिक सन्तोषजनक होते हैं और जो बच्चे अपने माता - पिता के साथ मित्रतापूर्ण संबंध रखते हैं, उनके पथभ्रष्ट होने की संभावना बहुत कम होती है।
कभी कभी शायद आप को ऐसा लगे कि आप का किशोर ऐसा आभास क्यों करता है कि उसके पास भाग निकलने का कोई मार्ग नहीं है। किशोरावस्था में बच्चे को ऐसा लगता है कि वो एक गेंद की भांति इधर से उधर फेंका जा रहा है। यह भावना पूर्ण रूप से स्वाभाविक है। परन्तु माता - पिता के लिए यह मामला अत्यन्त थकाने वाला और निरर्थक होता है। एक अनुसंधान के अनुसार किशोरों का कहना है कि जब भी उन्होंने अपनी अप्रसन्नता का कारण माता - पिता के सामने रखने का प्रयास किया, या तो माता - पिता उससे इन्कार कर देते हैं या उनकी बातों को बिना महत्व दिए उसकी अनदेखी कर देते हैं।
जब बच्चे की परिस्थितियां और व्यवहार अपने उतार - चढ़ाव की सीमा पर पहुंच जाते हैं , उस समय वे अधिक दुखी और उदासीन होते हैं और माता - पिता के लिए यह बड़ी ही चिन्ता जनक बात होती है।
कभी कभी भावनाएं उनकी बुद्धि पर विजय प्राप्त कर लेती हैं और उनके मन में यह वाक्य उभरने लगता है " अब इस जीवन को सहन नहीं कर सकते" और यहीं से यह वाक्य उनके मस्तिष्क को प्रभावित करने लगता है। अलबत्ता यह केवल एक भ्रम है परन्तु उनकी बातों को सुना जाना चाहिए। अधिकतर युवाओं में आत्म हत्याएं इसी भावना के साथ होती है और उन्हें यह विश्वास नहीं होता कि उनके माता - पिता उन्हें समझने और उनके विचारों को महत्व देने का प्रयास करते हैं। प्राय: लड़कों में आत्म हत्या की दर लड़कियों की तुलना में अधिक होती है।
किशोरों के लिए मित्रता का बहुत अधिक महत्व है और उनके जीवन में सामान्य सी बात है। यह स्पष्ट है कि वो अपना अधिकॉंश समय मित्रों के साथ गुज़ारना चाहते हैं। अपने बच्चों को उनके मित्रों को आमंत्रित करने के लिए प्रोत्साहित करें और उनकी सही पहचान प्राप्त करने का यह उचित अवसर है। आप जितनी उनको इस बात की अनुमति देंगे कि अपने निर्णय स्वंय लें उतने ही अपने लिए उनके मन में अच्छे भाव पैदा होंगे।
किशोरों पर अधिक ध्यान दिया जाना अधिकतर प्रभावी रहा है और यह उनके जीवन पर सकारात्मक और नकारात्मक दोनों प्रकार के प्रभाव डाल सकता है। अपने बच्चों को ऐसे बच्चों से मित्रता करने की अनुमति मत दीजिए जिनका आचरण ठीक नहीं है।
आप को पता होना चाहिए कि आप के बच्चे के मित्र किस प्रकार के हैं, उनके परिवार वाले कैसे हैं, यदि संभव हो तो उनके माता- पिता से मिलने का प्रयास कीजिए। जिन बच्चों के माता- पिता उनके राज़दार हैं, वे अपने बच्चों के घनिष्ट मित्र समान होते हैं और यह , कारण बनता है कि बच्चे भी अपनी वास्तविकता पर विश्वास करें।