इमामे ज़माना (अ.ज) की मदद करने वाली औरतों का तीसरा समूह उन औरतों पर आधारित हैं जिन्हें हज़रत हुज्जत (अ.ज) के ज़ुहूर की बरकत से दोबारा ज़िंदा किया जाएगा।
इमामे ज़माना के ज़ुहूर और फिर हुकूमत के दौरान बहुत सी औरतें आपकी मदद करेंगी, हालांकि रिवायतों में इमामे ज़माना की सेवा करने वाली चार तरह की औरतों की चर्चा मिलती है।
इमाम मुहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम फ़रमाते हैं:
ख़ुदा की क़सम तीन सौ तेरह (313) लोग आएंगे जिनमें पचास औरतें होंगी जो बिना किसी पहले तय की गई योजना के मक्के में इकठ्ठा हो जाएंगी।
इसी तरह आसमानी औरतों का भी उल्लेख हुआ है। रसूलुल्लाह (स.अ.) फ़रमाते हैं:
ईसा इब्ने मरयम आठ सौ पुरुषों और चार सौ औरतों के साथ जो ज़मीन के सबसे अच्छे लोग होंगे आसमान से उतरेंगे।
इसी तरह इमामे ज़माना (अ.ज) की मदद करने वाली औरतों का तीसरा समूह उन औरतों पर आधारित होगा जिन्हें अल्लाह हज़रत हुज्जत के ज़ुहूर की बरकत से दोबारा ज़िंदा करेगा और वह इस दुनिया में पलट कर आएंगी। रिवायतों के अनुसार इन औरतों की संख्या तेरह होगी और वह जंग में घायल होने वालों की मरहम पट्टी और बीमारों की तीमारदारी व देखभाल करेंगी।
इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस्सलाम फ़रमाते हैं:
क़ाएम (अ.ज) के साथ तेरह औरतें होंगी जो घायलों की मरहम पट्टी और बीमारों की देखभाल की जिम्मेदारी संभालेंगी।
आप उन महिलाओं का नाम बयान करते हुए कहते हैं:
रशीद हिजरी की बेटी क़नवाअ, उम्म ऐमन, हुबाबह वालबिया, सुमय्या (हज़रत अम्मारे यासिर की मां), ज़ुबैदा, उम्मे ख़ालिद अहमसीया, उम्मे सईद हनफ़िया, सियाना माश्ता, उम्मे ख़ालिद जहनिया।
बहरहाल इमामे ज़माना के प्रतीक्षकों का चौथा समूह उन औरतों पर आधारित है जो पहले ही इस दुनिया से जा चुकी हैं। उनसे कहा जाएगा कि तुम्हारे इमाम का ज़हूर हो गया है अगर चाहो तो उनकी सेवा में हाजिर हो सकती है। उसके बाद वह अल्लाह के इरादे से ज़िंदा हो जाएंगी।
इमामे ज़माना की मदद करने वाली आठ औरतें।
यहाँ हम हुज्जतुल इस्लाम मोहम्मद जवाद मुरव्वेजी तबसी की लिखी किताब ज़ेनान दर हुकूमते इमाम ज़मान (अ.ज) (औरतें इमामे ज़माना की हुकूमत में) के हवाले से उक्त औरतों का संक्षिप्त परिचय प्रस्तुत कर रहे हैं:
1. सियाना माश्ता
इमामे ज़माना की सरकार में ज़िंदा होकर फिर दुनिया में आने वाली तेरह औरतों में से एक सियाना माश्ता हैं. आप फिरौन के चचेरे भाई हिज़कील की वीबी थीं और फिरऔन की लड़की का बनाओ सिंगार करती थीं। यह आपका पेशा था। आप भी अपने पति की तरह अपने समय के पैग़म्बर हज़रत मूसा पर ईमान ले आई थीं लेकिन अपना ईमान छिपाए हुई थीं।
रिवायत है कि एक बार आप फिरऔन की लड़की के कंघी कर रही थी कि आपके हाथ से कंघी गिर गई और बेइख्तियार आपकी ज़बान पर अल्लाह का नाम आ गया। फिरऔन की लड़की ने कहा'' क्या तुमने मेरे बाप को याद क्या है?'' आपने जवाब दिया'' नहीं मैंने उस अल्लाह का नाम लिया है जिसने तुम्हारे बाप को पैदा किया है।'' लड़की ने पूरी बात अपने बाप से बताई तो फिरौन ने सियाना को तलब किया और उससे पूछा कि ' 'क्या तुम मुझे ख़ुदा नहीं मानती हो?
सियाना ने कहा'' बिल्कुल नहीं! मैं वास्तविक ख़ुदा को छोड़कर तुम्हारी इबादत नहीं कर सकती।'' फिरऔन ने हुक्म दिया कि तनूर जलाकर उस औरत के सभी बच्चों को उसके सामने जला दिया जाए। जब दूध पीते बच्चे की बारी आई तो सियाना ने ऊपरी तौर पर दीन से दूरी इख्तियार करना चाही लेकिन दूध पीते बच्चे ने अल्लाह की इजाज़त से अपनी माँ से कहा कि'' माँ सब्र करो, तुम हक़ पर हो।'' फ़िरऔनियों ने उस औरत और उसके दूध पीते बच्चे को आग में डालकर जला डाला और अब अल्लाह तआला दीन की राह में उस औरत के सब्र व धैर्य के आधार पर उसे इमाम महदी की हुकूमत के ज़माने में दोबारा ज़िंदा करेगा ताकि अपने इमाम की सेवा के साथ फ़िरऔनियों से बदला भी ले सके।
2. हज़रत अम्मार यासिर की माँ सुमय्या।
आप इस्लाम लाने वाली सातवीं मुसलमान थीं। आपके इस्लाम लाने पर दुश्मन सख्त नाराज़ हुए और आप को कड़ी से कड़ी सजाएं देने लगे। आप और आपके पति यासिर को अबू जहेल ने बंदी बना लिया। उसने पहले उन्हें रसूलुल्लाह (स.अ.) को गाली देने और अपशब्द कहने पर मजबूर किया लेकिन वह लोग इस काम के लिए कभी तैयार नहीं हुए। इसके बाद उसने उन दोनों को लोहे का कवच पहना कर तपती आग में डाल दिया। रसूलुल्लाह (स.अ.) जब उनके पास से गुज़रते तो उन्हें सब्र व संयम की हिदायत करते और कहते:
ऐ यासिर के घर वालों! सब्र करो, तुम्हें जन्नत मिलेगी।
आखिरकार अबू जहेल ने उन्हें तलवार से शहीद कर दिया।
अल्लाह, इस्लाम के सरबुलंदी की खातिर उस महान औरत के सब्र व धैर्य और सख्त से सख़्त अत्याचार सहन करने के बदले में उन्हें हज़रत महदी के ज़हूर के ज़माने में ज़िंदा करेगा ताकि अल्लाह के वादे को पूरा होते देखें और हज़रत के लश्कर की सेवा करें।
3. कअब माज़निया की बेटी नसीबा
आप उम्मे अम्मारा के नाम से मशहूर और इस्लाम की जांबाज़ औरत हैं। आपने रसूलुल्लाह (स.अ.) के साथ कई जंगों में हिस्सा लिया और घायलों की मरहम पट्टी करती रहीं। ओहद की जंग में जब मुसलमान पैग़म्बर (सल्ल.) को छोड़ कर भाग गए तो अपने आक़ा की रक्षा करने लगीं. इस दौरान आप को कई घाव लगे।
रसूलुल्लाह (स.अ.) ने आप के इस बलिदान की सराहना करते हुए आपके बेटे अम्मारा से कहा:
आज तुम्हारी माँ का स्थान जंग के मैदान में लड़ने वाले पुरुषों से ऊंचा है।
जंग की समाप्ति के बाद नसीबा अपने जिस्म पर तेरह घाव लिए दूसरे मुसलमानों के साथ घर वापस आ गईं और आराम करने लगी। उसके बाद जैसे ही आप ने पैग़मबरे अकरम स.अ. का यह हुक्म सुना कि केवल ज़ख़्मी ही दुश्मन का पीछा करें, नसीबा उठीं और जाने के लिए तैयार हो गईं लेकिन ज्यादा खून बह जाने के कारण नहीं जा सकीं। जब रसूलुल्लाह (स.अ.) दुश्मन का पता लगा कर वापस आए तो घर जाने से पहले अब्दुल्लाह इब्ने कअब माज़नी को नसीबा के हाल चाल जानने के लिए भेजा। अब्दुल्ला ने नसीबा की ख़ैरियत पूछ कर, यह खबर पैगंम्बर अकरम स.अ. को दी।
4. उम्मे ऐमन
आप एक परहेज़गार व सदाचार औरत थीं, रसूलुल्लाह (स.अ.) की सेवा करती थीं. आंहज़रत आपको माँ कह कर सम्बोधित करते और कहते थे:
इनका सम्बंध मेरे परिवार से है।
आप दूसरी मुजाहिद औरतों के साथ जंग के मैदान में घायलों की मरहम पट्टी करती थीं।
उम्मे ऐमन अहलेबैत अ. को दोस्त रखती थीं, फ़िदक के मुद्दे में जनाबे फ़ातिमा ज़हरा सलामुल्लाह अलैहा ने आप को गवाह के तौर पर पेश किया था, आप रसूलुल्लाह (स.अ.) के देहांत के बाद छह महीने ज़िंदा रहीं।
5. उम्मे ख़ालिद
इतिहास में इस नाम की दो औरतों का उल्लेख हुआ है, उम्मे ख़ालिद अहमसीया और उम्मे ख़ालिद जहनिया. शायद मुराद उम्मे ख़ालिद मक़तूअतुल यद (कटे हाथ वाली) हों जिनका हाथ यूसुफ बिन उमर ने जनाबे ज़ैद इब्ने अली के शहीद के बाद शिया होने के जुर्म में कूफ़े में काट दिया था, रिजाले कश्शी में इस बलिदान देने वाली महिला से सम्बंधित इमाम जाफ़र सादिक अलैहिस्सलाम की एक रिवायत बयान हुई है जिसका बयान उचित होगा:
अबू बसीर कहते हैं कि इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस्सलाम के सामने बैठा हुआ था कि उम्मे मक़तूअतुल यद आ गईं, आपने कहा 'ऐ अबू बसीर! क्या उम्मे ख़ालिद की गुफ़्तुगू सुनना चाहोगे? मैंने कहा'' जी! उनकी बात सुन कर मुझे खुश होगी ...''. तभी उम्मे ख़ालिद इमाम की सेवा में उपस्थित हुई और बातचीत करने लगी। मैंने देखा कि उनकी बातचीत में बहुत ज़्यादा वक्तृत्व व फ़साहत व बलाग़त है, इसके बाद इमाम ने उनसे विलायत और दुश्मनों से दूरी और बराअत से सम्बंधित गुफ़्तुगू की।
6. ज़ुबैदा
इस महान महिला की पूरी ज़िंदगी बयान नहीं हुई है। शायद हारून रशीद की बीवी ज़ुबैदा होँ जिनके बारे में शेख़ सदूक़ ने लिखा है:
वह अहलेबैत की चाहने वाली और उनकी अनुयायी थीं, जब हारून को उनके शिया होने का पता चला था तो उसने उन्हें तलाक देने की कसम खाई थी।
ज़ुबैदा ने बहुत से अहेम काम किये जैसे अराफात में पानी का प्रबंध आदि. कहा जाता है कि उनकी सौ कनीज़ें थीं जो हमेशा कुरान याद करने में व्यस्त रहती थी और आपके निवास स्थान से हमेशा कुरान की तिलावत की आवाज़ें आती रहती थीं. आप का देहांत 216 हिजरी में हुआ।
7. हुबाबा वालबिया।
यह वह महान महिला हैं जिन्हें आठ इमामों के युग में ज़िंदगी बिताने का सौभाग्य हासिल हुआ, सभी इमाम हमेशा आप पर ख़ास ध्यान रखते थे, एक या दो बार इमाम ज़ैनुल आबेदीन अ. और इमाम अली रेज़ा अ. द्वारा आपकी जवानी पलट आई। सबसे पहले आपकी मुलाकात अमीरुल मोमेनीन हज़रत अली अलैहिस्सलाम से हुई तो आपने मौला से मागं की कि इमामत की कोई पहचान बता दें। हज़रत अली ने एक पत्थर उठाकर उस पर अपनी मुहर लगा दी और मुहर ने पत्थर पर अपना निशान बना दिया. इसके बाद आपने कहा ' 'मेरे बाद जो कोई इस पत्थर पर इस तरह का निशान लगा सके वह इमाम होगा''। इस लिये हुबाबा हर इमाम की शहादत के बाद उनके उत्तराधिकारी के पास वही पत्थर लेकर चली जातीं और उनसे उस पत्थर पर मुहर लगवातीं। जब इमाम रेज़ा के पास आईं तो आप ने भी ऐसा ही किया। आप इमाम रेज़ा की शहादत के बाद नौ महीने ज़िंदा रहीं।
रिवायत मे आया है कि जब हुबाबा इमाम ज़ैनुल आबेदीन की सेवा में उपस्थित हुईं तो उस समय उनकी उम्र एक सौ तेरह (113) साल हो चुकी थी, हज़रत ने उंगली के इशारे से उनकी जवानी पलटा दी।
8. क़नवाअ
हज़रत अली अ. के सच्चे सहाबी रशीद हिजरी की बेटी और इमाम जाफ़र सादिक़ के वफ़ादार सहाबियों में से थीं। आप उस महान हस्ती की बेटी हैं जिसे अमीरुल मोमेनीन हज़रत अली अलैहिस्सलाम से मोहब्बत के सिलसिले में बहुत बेदर्दी से शहीद कर दिया गया। शेख़ मुफ़ीद के अनुसार क़नवाअ ने अब्दुल्लाह इब्ने ज़ियाद (लानतुल्लाह अलैह) के दरबार में अपनी आँखों के सामने अपने बाप के दोनों हाथ और दोनों पैर कटते देखे और फिर दूसरों की मदद से अपने अधमरे बाप को दरबार से बाहर निकाल कर घर ले गईं।