इस्लाम और औरत का सोशल स्टेटस
  • शीर्षक: इस्लाम और औरत का सोशल स्टेटस
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  • रिलीज की तारीख: 15:46:30 1-9-1403

हिजरत के पाँचवें या छटे साल, 1 शाबान या पाँच जमादिउल अव्वल को अली (अ.) और फ़ातिमा (स.) के घर को ज़ैनब बिन्ते अली (अ.) ने आकर ख़ुशियों का गहवारा बना दिया था। ज़ैनब कर्बला की शैर दिल ख़ातून हैं। शर्म और पाकदामनी के आसमान का चमकता हुआ सितारा हैं, इस्मत और पाकी के क़िले की ऐसी मुहाफ़िज़ हैं कि बरसों तक पड़ोसियों ने भी उनके क़द-काठी को

न देखा था, क्यों कि वह घर के अन्दर भी हिजाब में रहती थीं और ज़माने ने उन्हें सिर्फ़ पर्दे के पीछे ही देखा है। आप जब भी प़ैगम्बरे अकरम (स.) की ज़ियारत के लिए जाती थीं तो आप के बाबा अली (अ.) आगे-आगे और भाई हसन व हुसैन (अ.) दाएं-बाएं चला करते थे। क़ब्र के किनारे जलती हुई मोमबत्तियां हज़रत अली अलैहिस्सलाम बुझा दिया करते थे ताकि ज़ैनब (स.) का क़द किसी पर ज़ाहिर न हो सके।

इसके अलावा वह एक सरगर्म और एक्टिव ख़ातून थीं। आप अपने बाबा की ख़िलाफ़त के वक़्त कूफ़े में क़ुरआन की तालीम और तफ़सीर की ज़िम्मेदारी पूरी किया करती थीं। और इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के वक़्त में दुनिया के अज़ीम तरीन इंक़ेलाब में अपने भाई के साथ-साथ अपना ज़बरदस्त रोल अदा कर रही थीं। इमाम हुसैन (अ.) और उन के असहाब की शहादत के बाद क़ैद औरतों और बच्चों की ज़िम्मेदारी आप ही के कांधों पर थी। जनाबे ज़ैनब (स.) ने दुशमनों के चुंगल में होने के बाद भी सरबुलन्दी के साथ क़ैदियों के क़ाफिले को कर्बला से शाम तक पहुंचाया, और फिर वहां से मदीने तक ले गईं। यहाँ तक कि कूफ़े वाले तैयार थे कि इब्ने ज़्याद के साथ बग़ावत कर बैठें। लेकिन इस तक़रीर के बीच में भी आप हया और पाकीज़गी का बेहतरीन नमूना थीं। चूनांचे ख़ज़ीम असदी कहता है, कि मैंने ज़ैनब को देखा। ख़ुदा की क़सम! ऐसी औरत जो पूरी की पूरी शर्म व हया का पैकर हो और बेहतरीन तक़रीर करने वाली हो, मैंने कोई भी औरत उन से बढ़ कर नहीं देखी। यानी ज़ैनब अली (अ.) की ज़बान से बोल रही थीं।

दरबारे यज़ीद में भी बीबी ने मुँह खोला और यज़ीक को फटकार दिया, क्या यही इंसाफ़ है कि तू अपनी औरतों और कनीज़ों को तो पर्दे में बिठाए और रसूल (स.) की बेटियों को क़ैदी बनाए, उन की चादर छीन ले और उन के चेहरों को खोल दे,।

जनाबे ज़ैनब (स.) और उन जैसी औरतों की ज़िन्दगी पर अगर एक हल्की सी नज़र डाली जाये तो इस से भी साबित हो जाएगा कि औरत ज़रूरत के वक़्त समाज में बेहतरीन अंदाज़ से अपने वुजूद का इज़हार कर सकती है और पर्दे व हया की हदों का भी बेहतरीन तरीक़े से ख़याल रख सकती है।