सूरए नूर की तफसीर
  • शीर्षक: सूरए नूर की तफसीर
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  • रिलीज की तारीख: 12:18:56 14-9-1403

नूर पवित्र क़ुरआन का चौबीसवां सूरा है जो पैग़म्बरे इस्लाम के पलायन के बाद मदीने में पैग़म्बरे इस्लाम पर उतरा। इसमें 64 आयतें हैं। इस सूरे को नूर इसलिए कहते हें कि इसकी पैंतीसवीं आयत में ईश्वर को ज़मीन और आसमान के नूर अर्थात प्रकाश के रूप में याद किया गया है। इस सूरे में व्यभिचारी महिलाओं और पुरुषों के दंड, पर्दे के आदेश, महिलाओं और पुरुषों द्वारा पवित्रता का ध्यान रखने जैसे विषयों पर प्रकाश डाला गया है। इसी प्रकार इस सूरे में अच्छे पारिवारिक संबंधों और अनैतिकता और ग़ैर सही संबंधों से समाज के वातावरण को पाक करने जैसे विषयों पर चर्चा की गयी है।

पवित्र क़ुरआन की दृष्टि में महिलाओं और पुरुषों के मध्य ग़ैर क़ानूनी संबंध, महापाप और बहुत बुरा कार्य समझा जाता है क्योंकि इस प्रकार के अनुचित संबंध पारिवारिक संबंधों के बिखराव का शिकार हो जाते हैं।

पवित्र क़ुरआन का मानना है कि भ्रष्टाचार और अपवित्रता, मूल रूप से मोमिन मनुष्य को शोभा नहीं देती और व्यभिचारी महिलाओं और पुरुषों को कड़ा दंड दृष्टिगत रखा है जिसकी ओर इस सूरे की दूसरी आयत में संकेत किया गया है। इस आयत में बल दिया गया है कि अपराधियों को दंडित करने में किसी भी प्रकार का तरस खाने की आवश्यकता नहीं है और यह इसलिए है कि ताकि अपराधी दंडित हों और सार्वजनिक पवित्रता भी सुरक्षित रहे।

इसी के साथ इस्लामी क़ानून की दृष्टि से अपराध के साबित होने और दंड के क्रियान्वयन के लिए कठिन शर्तें हैं।उदाहरण स्वरूप सज़ा देने के लिए यदि किसी मोमिन महिला या पुरुष पर व्यभिचार का आरोप हो तो उसे सिद्ध करने के लिए चार गवाहों की आवश्यकता होती है। चूंकि किसी पर लांछन लगाना, संभवता किसी से दुश्मनी निकालने के लिए भी हो सकता है। इसीलिए अपराधियों का दंड सुनाये जाने के बाद पवित्र क़ुरआन लांछन और आरोप लगाने वालों के दंड को भी बयान करता है।

सूरए नूर की चौथी आयत में आया है कि और जो लोग महिलाओं पर (व्यभिचार का) लांछन लगाएँ, (और) फिर चार गवाह (भी) न लाएँ, तो उन्हें अस्सी कोड़े मारो और उनकी गवाही कभी भी स्वीकार न करो कि यही लोग वास्तविक अवज्ञाकारी हैं

सूरए नूर की ग्यारहवीं आयत और उसके बाद की कुछ आयतों में लांछन लगाने और बड़ा झूठ बोलने जैसे मामले की ओर संकेत किया गया है जो निर्दोष व्यक्ति पर आरोप लगाना पवित्रता के विपरीत है। पिछली आयतों में पतिव्रता महिलाओं पर लांछन लगाने के दंड का उल्लेख करने के पश्चात यह आयत पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम के काल में उनकी एक पत्नी के संबंध में घटने वाली घटना की ओर संकेत करती है। इतिहास की किताबों में वर्णित है कि पैग़म्बरे इस्लाम एक यात्रा में अपनी पत्नी हज़रत आयशा को भी अपने साथ ले गए। मदीना वापसी के समय वे एक निजी काम से कारवां से अलग हो गईं और उससे थोड़ा पीछे रह गईं। पैग़म्बरे इस्लाम के एक साथी ने, जो कारवां से पिछड़ गए थे, आयशा को कारवां तक पहुंचा दिया। कुछ लोगों ने आयशा और पैग़म्बर के उस साथी पर अनुचित आरोप लगाया और यह झूठ, लोगों के बीच फैल गया। मिथ्याचारियों के इस प्रोपेगैंडे का लक्ष्य, इस घटना को अपने हितों के लिए प्रयोग करना और समाज में भ्रांति फैलाना तथा पैग़म्बरे इस्लाम का अपमान करना था किन्तु सूरए नूरी की इन आयतों के उतरने के बाद उनकी पोल खुल गयी।

यह आयतें जिनके आदेश हर समय और काल में जारी हैं, मोमिनों को अनुचित आरोप लगाने और बुरी सोच से रोकती हैं। पवित्र क़ुरआन, सूरए नूर के इस भाग में मुख्य घटना बयान करते हुए कहता है कि जिन लोगों ने लांछन लगाया वह षड्यंत्रकारी है। आयत बयान करती है कि अफ़वाह फैलाना और उस पर कान धरना और उस अफ़वाह को हवा देना जिसके बारे में विश्वास न हो और इसी प्रकार इसको छोटा समझना, महापाप समझा जाता है। इस्लामी समाज में सद्भावना और सही सोच को प्रचलित होना चाहिए और ऐसा नहीं होना चाहिए कि जो लोगों की ज़बानों पर जारी है उसे सरलता से स्वीकार कर लें क्योंकि लोग एक दूसरे की इज़्ज़त के संबंध में ज़िम्मेदार हैं।

प्रत्येक दशा में, व्यभिचार या पवित्र व्यक्ति पर व्यभिचार का आरोप लगाना जैसी ग़लतियों के लिए दंड का निर्धारण, परिवार के सम्मान की रक्षा और परिवार को विघटन से बचाने के लिए है।

सूरए नूर की आगामी आयतों में भ्रष्टाचार की रोकथाम के लिए विभिन्न उपाय बयान किए गये हैं। इन आयतों में साथ रहने के संस्कार व इस्लाम के सामूहिक निर्देश जो सार्वजनिक और व्यक्तिगत पवित्रता की रक्षा से संबंधित है, बयान किए गये हैं और वह लोगों के घर मं  प्रविष्ट होने के लिए उनसे अनुमति लेना है।

पवित्र क़ुरआन कहता है कि कभी भी अनुमति के बिना किसी के घर में प्रविष्ट न हो और यदि घर में कोई न हो तो उसके घर में प्रविष्ट न हो यहां तक कि तुम्हें अनुमति मिल जाए और यदि तुम से कह दिया जाए कि वापस चले जाओ तो बिना क्रोधित हुए वापस चले जाओ। अलबत्ता जब तुम्हें प्रविष्ट होने की अनुमति मिल जाए तो घरवालों को सलाम करते हुए और बड़ी दयालुता से प्रविष्ट हो।

सूरए नूर की तीसवीं और इक्तीसवीं आयत में महिलाओं के पुरुषों और पुरुषों के महिलाओं पर नज़र डालने पर प्रकाश डाला गया है। पवित्र क़ुरआन की दृष्टि में मोमिन पुरुषों को अपनी नज़रों पर नियंत्रण रखना चाहिए और अपनी नज़रों को उन चीज़ों पर नज़र डालने से रोकें जिसमें ईश्वर की प्रसन्नता न हो। सूरए नूर समस्त लोगों को विशेषकर मोमिनों को सचेत करता है कि बुरा मत सोचो तुम्हारी नज़रें ईश्वर से छिपी नहीं है बल्कि ईश्वर तुम्हारे दिलों में चलने वाली बातों से भी अवगत है।

एक दिन अंसार का एक युवा रास्ते में एक महिला से मिला। उस समय महिला अपना स्कार्फ़ कान के पीछे बांधती थीं। इससे गर्दन और सीने का कुछ भाग दिखता था। महिला के चेहरे ने युवा की नज़र अपनी ओर खींच ली और वह उसे टिकटिकी बांध कर देखता रहा।  जब वह महिला आगे निकल गयी किन्तु वह युवा अपनी नज़रों से मुड़ मुड़कर उसे देखता रहा, अचानक वह दीवार से टकरा गया, इससे सिर फट गया और उसके सिर से ख़ून बहने लगा। वह बहुत क्रोधित हुआ। वह पैग़म्बरे इस्लाम के पास पहुंचा और पूरी घटना उनसे बयान की। इसी मध्य हज़रत जिब्राइल वहि अर्थात ईश्वरीय संदेश के साथ उतरे, उस समय उतरने वाली आयतें हिजाब से संबंधित थी और उन्होंने यह आयतें पैग़म्बरे इस्लाम को पढ़कर सुनाईं।

(हे पैग़म्बर!) ईमान वाले पुरुषों से कह दीजिए कि वे अपनी निगाहें (हराम चीज़ों से) बचाकर रखें और अपनी पवित्रता की रक्षा करें। यही उनके लिए अधिक (अच्छी व) पवित्र बात है। निःसंदेह जो कुछ वे करते हैं उससे ईश्वर पूर्णतः अवगत है। और (हे पैग़म्बर!) ईमान वाली स्त्रियों से (भी) कह दीजिए कि वे भी अपनी निगाहें नीची रखा करें, अपनी पवित्रता की रक्षा करें, अपने श्रृंगार प्रकट न करें, सिवाय उस भाग के जो उसमें से स्वयं खुला रहता है और अपने सीनों पर अपने दुपट्टे डाले रहें और अपना श्रृंगार किसी पर प्रकट न करें सिवाय अपने पतियों के या अपने पिताओं के या अपने पतियों के पिताओं के या अपने बेटों के या अपने पतियों के बेटों के या अपने भाइयों के या अपने भतीजों के या अपने भांजों के या महिलाओं के या उन दासियों के जो उनके अपने स्वामित्व में हों या उन दासों के जो यौन इच्छा की अवस्था को पार कर चुके हों, या उन बच्चों के जो स्त्रियों की गुप्त बातों से परिचित न हों। और महिलाएं (इस प्रकार) अपने पैर धरती पर मार कर न चलें कि उन्होंने अपना जो श्रृंगार छिपा रखा हो, वह प्रकट हो जाए। हे ईमान वालो! तुम सब मिल कर ईश्वर से तौबा करोकि शायद तुम्हें कल्याण प्राप्त हो जाए।

इन आयतों में अपनी निगाहों को बचाकर रखने से तात्पर्य यह है कि जब भी किसी को पर महिला दिखे, तो वह अपनी आंखों को इतना बचाए कि वह महिला उसकी नज़रों की परिधि से बाहर निकल जाए और वह उस पर हराम नज़र न डाले।

यह दो आयतें, समाज में रहने के लिए महिलाओं और पुरुषों की ज़िम्मेदारियों की ओर संकेत करती हैं। इन ज़िम्मेदारियों में से कुछ इस प्रकार हैः मुसलमान को चाहे महिला हो या पुरुष, अपनी नज़रों को नियंत्रित करना चाहिए, मुसलमान महिला और पुरुष को पवित्र होना चाहिए और स्वयं को बचाए रखना चाहिए, महिलाओं को पूरा वस्त्र पहनना चाहिए और अपने श्रंगार और आभूषणों को दूसरों को नहीं दिखाना चाहिए और समाज के वातावरण को सुरक्षित रखने के लिए पुरुषों के ध्यान को अपनी ओर आकर्षित नहीं करनी चाहिए।

इस्लाम की दृष्टि से सामाजिक वातावरण में महिलाओं का प्रदर्शन मना है किन्तु पर्दे के साथ, समाज में महिलाओं की उपस्थिति में किसी भी प्रकार की रुकावट नहीं है, नि:संदेह पर्दे पर ध्यान देने से पारिवारिक संबंध मज़बूत होते हैं, मानसिक व आत्मिक शांति, महिला की मानवता और उसकी हस्ती की रक्षा और मनचलों की नज़रों से उसे सुरक्षित रखने का कारण बनी है। अलबत्ता हिजाब में महिलाओं पर शरीर के उस भाग को जो प्राकृतिक रूप से प्रकट होते हैं जैसे चेहरा व हाथ इत्यादि, छिपाना अनिवार्य नहीं है।

सूरए नूर की 31वीं आयत में महिलाओं के पर्दे के लिए कुछ अपवाद का उल्लेख किया गया है और यह आवश्यक नहीं है कि महिला अपने पति से पर्दा करे बल्कि रिवायत में बल दिया गया है कि महिलाएं अपने पति के लिए श्रंगार करें।

पश्चिम में महिलाओं की स्वतंत्रता के नाम पर जो चीज़ प्रचलित है वह स्वतंत्र यौन संबंधों और वह भी पुरुषों के लिए अधिक आनंद उठाने के अतिरिक्त कुछ नहीं है। पुष्ट आंकडों के आधार पर विश्व में नग्नता में वृद्धि हुई है जबकि तलाक़ की दरों में ज़बरदस्त वृद्धि हुई और दामपत्य जीवन भी बुरी तरह बिखर चुका है क्योंकि इस प्रकार के कामुकता से भरे वातावरण में हर एक अपनी निरंकुश इच्छाओं की पूर्ति के प्रयास में है। अलबत्ता इन निरंकुश स्वतंत्रताओं के कारण अस्तित्व में आने वाली विभिन्न प्रकार की समस्याओं के कारण मनुष्य को चाहिये कि वह संबंधों और पवित्रता के संबंध में धार्मिक संदेशों पर अधिक से अधिक ध्यान दे।

जिस समाज में पर्दे का ध्यान रखा जाता है और दो पवित्र पति पत्नी एक दूसरे से जुड़े हुए होते हैं और वह अपने दामपत्य संबंधों से संबंधित भावनाओं को एक दूसरे से प्रकट करते हैं, वे समाज में अपनी गतिविधियों पर नज़र रखते हैं और सार्वजनिक शिष्टाचार के विरुद्ध कार्य नहीं करते। इस प्रकार से समाज हर प्रकार के यौन आकर्षण से मुक्त होता है और सुन्दर व सुरक्षित रहता है।

सूरए नूर की बत्तीसवीं आयत में यौन संबंधी बुराईयों से बचने के लिए विवाह के विषय को पेश किया गया है जो नैतिक बुराइयों से समाज के वातावरण को सुरक्षित रखने में मूल भूमिका निभाता है। ईश्वर ने मनुष्य में यौन शक्ति इसलिए दी है ताकि मानव पीढ़ी बाक़ी रहे और इसको पूरा करने का प्राकृतिक व क़ानूनी मार्ग विवाह है। इसीलिए वह लोग जो अपनी लड़कियों का हाथ किसी के हाथ में देना चाहते हैं उन्हें उसकी निर्धनता और परेशानियों पर ध्यान नहीं देना चाहिए क्योंकि स्वयं ईश्वर कहता है कि वह अपनी कृपा से उनको आवश्यकता मुक्त कर देगा।