सूरे रूम पवित्र क़ुरआन का तीसवां सूरा है। यह सूरा मक्के में उतरा है।
जिस वक़्त पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल लाहो अलैहि व आलेही व सल्लम मक्के में थे और वहां पर ईश्वर पर आस्था रखने वाले मोमिन बंदे अल्पसंख्या में थे, उस वक़्त ईरानियों और रोमियों के बीच जंग हुयी जिसमें ईरानी विजयी हुए। मक्के के अनेकेश्वरवादी इस जीत पर ख़ुश थे। उनके विचार में ईरानियों की जीत उनकी अनेकेश्वरवादिता की सच्चाई की दलील थी। इस संदर्भ में रूम सूरे की शुरु की कुछ आयतें उतरीं जिसमें इस बात की भविष्यवाणी थी कि ईरानी जीतने के बावजूद भविष्य में रोमियों से हार जाएंगे और इस संदर्भ में समय सीमा का भी मोटे तौर पर ज़िक्र किया गया है।
इतिहास के अनुसार, ईरानियों की जीत को अभी 9 साल भी नहीं गुज़रे थे कि रोमियों ने नई जंग में ईरानियों को हरा दिया। रोमियों की ईरानियों पर जीत पर आधारित भविष्यवाणी, सृष्टि के सभी मामलों का ईश्वर को ज्ञान होने की निशानी है। रोमियों की जीत से मुसलमान बहुत आशावान और ख़ुश थे।
सूरे रूम की आयत का अगला हिस्सा उन लोगों के बारे में है जो प्रलय की निशानियों पर ध्यान नहीं देते और प्रलय के दिन का इंकार करते हैं। ऐसे लोगों के बारे में रूम सूरे की आयत नंबर आठ में ईश्वर कह रहा है, “क्या वे इस बात पर चिंतन मनन नहीं करते कि ईश्वर ने ज़मीन और आसमान और जो कुछ इन दोनों के बीच में है, उसे हक़ के साथ एक निर्धारित समय के लिए पैदा किया है। लेकिन बहुत से लोग ईश्वर से मिलने के दिन का इंकार करते हैं।”
सूरे रूम की आयत नंबर 12 में अपराधियों और मोमिन बंदों के अंजाम का उल्लेख है। इस आयत में ईश्वर कह रहा है, “जिस दिन प्रलय होगी, अपराधी निराश व दुख में डूब जाएंगे क्योंकि न उनके मन में ईश्वर पर आस्था होगी और न ही उन्होंने सद्कर्म किया होगा। उनका न तो कोई मददगार होगा और न ही उनके पास दुनिया में लौट कर प्रायश्चित करने की संभावना होगी। वे उन चीज़ों से नफ़रत करेंगे जिन्हें वे ईश्वर के स्थान पर पूजते थे। किन्तु वह गुट जिसकी ईश्वर पर आस्था होगी और उन्होंने भले काम किए होंगे, वे स्वर्ग में आराम से रहेंगे। उनके चेहरों से ख़ुशी झलक रही होगी।”
बाद की आयतों में एकेश्वरवाद और सृष्टि में ईश्वर की निशानियों का उल्लेख है। इसी प्रकार इंसान के मिट्टी से बनने और उसके वंश के आगे बढ़ने के बारे में भी उल्लेख है।
सूरे रूम की इक्कीसवीं आयत में इस बात को भी ईश्वर की निशानियों में बताया गया है कि तुम्हारी ही जाति से तुम्हारे जीवनसाथी को पैदा किया ताकि उसके पास सुकून पाओ। तुम्हारे और तुम्हारे जीवन साथी के बीच आपस में मोहब्बत पैदा की। इस आयत के अनुसार मर्द और औरत को एक जाति से पैदा किया गया है। पति पत्नी के बीच संबंध के लिए भावनात्मक लगाव की ज़रूरत होती है। इसलिए शादी के बाद पति पत्नी के बीच संपर्क मोहब्बत पर आधारित हो ना चाहिए ताकि उन्हें आत्मिक शांति हासिल हो। इसके इलावा ज़मीन आसमान का बनना ईश्वर की अनंत शक्ति की निशानियों में से है। इंसान का ज्ञान जितना ज़्यादा होगा उतना ही ईश्वर की महानता के नए आयामों को समझेगा। ईश्वर ने इंसान के मामलों को सुव्यवस्थित रखने के लिए, आवाज़, रंग, ज़बान और नस्ल की दृष्टि से भिन्न भिन्न बनाया है। ईश्वर इन आश्चर्यजनक बातों के बारे में कहता है, “इन मामलों में विद्वानों और सोच विचार करने वालों के लिए निशानियां हैं।”
सूरे रूम की आयत 24 में उस प्राकृतिक वास्तविक्ता का उल्लेख है जो ईश्वर की निशानिया हैं। जैसे बारिश, बिजली की कड़क और सूखी ज़मीन का बारिश से फिर से खेती के लायक बनना जिसे क़ुरआन ने मौत के बाद ज़मीन की दुबारा ज़िन्दगी से उपमा दी है।
बिजली की कड़क को डर और उम्मीद दोनों का कारण बताया गया है। इंसान बिजली से इसलिए डरता है कि उसके गिरने से जानी व माली नुक़सान होता है। बिजली की कड़क इंसान के लिए उम्मीद का ज़रिया इसलिए है क्योंकि बिजली की कड़क बारिश के आने की सूचना देती है। पवित्र क़ुरआन में इन प्राकृतिक घटनाओं को उन लोगों के लिए निशानी क़रार दिया गया है जो सोच विचार करते हैं। क्योंकि वे इस बात को समझते हैं कि सृष्टि की व्यवस्था ईश्वर के हाथ में है और बिजली की कड़क, बारिश होना और ज़मीन का हरा भरा होना संयोगवश घटना नहीं बल्कि यह एक सुनियोजित व सुव्यवस्थित प्रोग्राम के तहत चल रही है।
ईश्वर के शुद्ध व खरे नियम को अपनाओ। यह वह प्रवृत्ति है जिसके आधार पर ईश्वर ने इंसान को पैदा किया है। सृष्टि के नियमों में बदलाव नहीं है। यह एक ठोस नियम है किन्तु ज़्यादातर लोग नहीं जानते। ईश्वर ने इंसान को ऐसा पैदा किया है कि उसमें सत्य की ओर झुकाव और असत्य से दूरी का रुझान पाया जाता है। उन लोगों के विचारों के विपरीत जो इंसान को ख़ाली बर्तन की तरह मानते हैं। ईश्वर ने सत्य की प्राप्ति की चाह इंसान के वजूद में रखी है। इसलिए उस पहले दिन जब इंसान अपना क़दम इस सृष्टि पर रखता है, ईश्वर का प्रकाश उसके वजूद में आता है। आज इस बात को दुनिया मान रही है कि उद्दंड हुकूमतों की धर्म और धार्मिक प्रतीकों को ख़त्म करने की कोशिशों के बावजूद, धर्म की जड़े मानव समाज में उसी तरह मौजूद हैं।
दूसरी ओर कठिनाइयों में इंसान का एक परालौकिक शक्ति का सहारा लेना इस बात की दलील है कि उसके अस्तित्व में एक प्राकृतिक चीज़ मौजूद है जो उसे एक बहुत बड़ी ताक़त की ओर ले जाती है।
सूरे रूम की आयत नंबर 41 में इस बिन्दु पर बल दिया गया है कि ज़मीन पर अत्याचार और भ्रष्टाचार का कारण इंसान के कर्म हैं। जैसा कि रूम सूरे की आयत नंबर 41 में आया है, “थल और जल में भ्रष्टाचार इंसान के कर्म के कारण प्रकट हो गया है। ईश्वर इसलिए कुछ कर्म की सज़ा उन्हें देना चाहता है कि शायद वह सत्य की ओर लौट आएं।”
इस बात में शक नहीं कि हर अपराध और बुराई से व्यक्तिगत और सामाजिक रूप से लोग प्रभावित होते हैं और बुराई से सामाजिक संरचना पर बुरा असर पड़ता है। जिस तरह विषैले खाने का इंसान के बदन पर बुरा असर पड़ता है उसी तरह पाप और अवज्ञा का स्वाभाविक असर पड़ता है। जैसे झूठ बोलने से सामने वाले व्यक्ति का आप पर से भरोसा ख़त्म हो जाता है, अमानत में ख़यानत से अविश्वास पैदा होता है और सामाजिक संबंध प्रभावित होते हैं। वंचितों के अधिकारों के हनन से दुश्मनी व द्वेष जन्म लेता है जिसके नतीजे में समाज का आधार कमज़ोर हो जाता है।
हर बुरे कर्म का बुरा नतीजा निकलता है। इस बात में शक नहीं कि इंसान के कर्म का प्रकृति और पर्यावरण पर असर पड़ता है। इंसान के ग़लत कर्म बहुत सी अप्रिय प्राकृतिक घटनाओं के जन्म लेने और पर्यावरण की तबाही का कारण बनते हैं।
सामाजिक संबंध की नज़र से भी इंसान के कर्म की प्रतिक्रिया सामने आती है। पैग़म्बरे इस्लाम और उनके पवित्र परिजनों के कथनों में इस बिन्दु का उल्लेख मिलता है कि बहुत से पाप का अंजाम बुरा होता है। जैसे सगे संबंधियों से रिश्तेदारी ख़त्म करने से इंसान की उम्र कम होती है, हराम का माल या रोज़ी खाने से मन काला हो जाता है। व्याभिचार व अवैध संबंध से इंसान की आबादी और रोज़ी कम होती है। इस प्रकार इस आयत में जिन बुराइयों की ओर इशारा किया गया है वे ऐसी बुराइयां हैं जिनका सामाजिक स्तर पर असर पड़ता है और वे नेमतों के छिनने तथा मुसीबतों के आने का कारण बनती हैं।
रूम सूरे की 48वीं आयत में हवाओं के चलने की नेमत को ईश्वर की निशानियों में बताया गया है।
अड़तालीसवीं आयत में ईश्वर कह रहा है, वह ईश्वर है जो हवा चलाता है। बादल को आसमान में फैला देता है और उन्हें टुकड़ों में बांट देता है। फिर तुम बारिश के क़तरे देखते हो जो बादल से बाहर आते हैं। वह जब चाहता है बारिश को अपने जिस बंदे के पास चाहता है पहुंचा देता है। वे ख़ुश हो जाते हैं। हवाएं समुद्र के ऊपर बादल के टुकड़ों को सूखी ज़मीन की ओर ले जाती हैं। बादल आसमान में इकट्ठा हो जाते हैं। हवा के ज़रिए बादल के आस-पास का पर्यावरण ठंडा हो जाता है और बादल बारिश के लिए तय्यार हो जाते हैं। अड़तालीसवीं आयत के आख़िर में ईश्वर कह रहा है कि इस बारिश को उसने लोगों की खुशहाली का ज़रिया क़रार दिया है। बारिश ईश्वर की कृपा है। सूखी ज़मीन को पानी देती है जिससे वनस्पतियों के बीज फलते फूलते हैं। बारिश चश्मों, नहरों और नदियों में पानी का स्रोत है। बाग़ों और खेतों की सिचाई होती है। बारिश प्रकृति में ठंडी और गर्म हवाओं को संतुलित करती है।
सूरे रूम की आयत नंबर 56 और 57 में ईश्वर कह रहा है, जिन लोगों को ज्ञान दिया गया वे अपराधियों से कहेंगे कि तुम ईश्वर के आदेश से प्रलय के दिन तक बरज़ख़ अर्थात मरने के बाद और प्रलय से पहले वाली अवस्था में रहे और अब प्रलय का दिन है किन्तु तुम ये नहीं जानते थे कि प्रलय एक हक़ीक़त है। जिस वक़्त अपराधी अपनी आंखों के सामने प्रलय के दिन को देखेंगे तो प्रायश्चित करेंगे लेकिन उस दिन अपराधियों की तौबा अर्थात प्रायश्चित को नहीं माना जाएगा।